पानी के बूँद पाके,
हरिया जाथें, फुले, फरे लगथें पेड़ पउधा,
अउ बनाथें सरग जस,धरती ल।
पानी के बूँद पाके,
नाचे लगथे,
मजूर सुघ्घर, झम्मर झम्मर।
पानी के बूँद पाए बर,
घरती के भीतर परान बचाके राखे रहिथें
टेटका, सांप, बिछी, बीजा, कांद-दूबी,
अउ निकल जथें झट्ट ले पाके पानी के बूँद,
नवा दुनिया देखे बर।
पानी के सुवागत मं
नाचथें फुरफून्दी, बत्तर कीरा।
इसकूल घलोक करत रहिथे अगोरा पानी के
खुले बर।
पानी पाके लाइन घलोक हो जथे अंजोर,
पहिली ले जादा।
पानी ल पाके,
किसान सुरु करथे काम किसानी के,
पानीच के भरोसा मं लेथे ठेका
जग के पेट भरे के,
अउ बन जथे भगवान भुइँया के,
पानीए ल देखके बेयपारी,
अनुमान लगाथे अपन आमदानी के।
पानी पाके नदिया गरजथे,
आघू मं अथाह समुंद के।
पानीच के सेती,
सबले अलग हे हमर धरती।
पानी के भीतरे मं होथे संगी,
अनमोल मोती।
पानी के एक बूँद के खातिर,
मरत हें लाक्खों परानी हर साल
मजबूरन मतलहा पानी पीके,
बीमार,मरत हें लाक्खों परानी हर बरिस।
देख,
अपन आस पास मं देख,
टीबी मं, सामाजिक नेट मं देख संगी।
जल हे त कल हे संगवारी,
जल बिन सब अचल हें जी
जले ह तो अमरित हे संगी,
जले ह सबले जादा पबरित हे संगी।
पवन बरोबर,
जल मं घलोक अधिकार हे सबके।
गाड़ी धोअई मं, गदगद- गदगद नहई मं…
अपन बपौती समझ के,
ये ल अइसने फालतू झन फेक संगी।
केजवा राम साहू ‘तेजनाथ’
बरदुली, कबीरधाम (छ ग )
7999385846