लागे रहिथे दिवाना,
तोर बर मोर मया लागे रहिथे ।
लागे रहिथे दिवानी
तोर बर मोर मया लागे रहिथे ।
दाँते बत्तीसी नयन कजला या
तोर मया के मारे होगेंव पगला ।
ये दिना … लागे रहिये …
गहूँ पिसान के बनाये गुलगुल
तोला झुलुप नई खुले कटाले बुलबुल ।
ये दिन… लागे रहिये ….
मारे ल मछरी निकाले सेहरा या
कहाँ डारे अनबोलना आगू के चेहरा
ये दिना … लागे रहिये ….
घरे बनाये एकेच कुरिया गा
तोर मया के मारें नई जाँव दुरिहा ।
ये दिना … लागे रहिथे ….
आमा ल लगाले ओरीच ओरी ग
जेमा रेेंगे कन्हैया जांवर जोडी
का भईगे लागे रहिथे .. .
जमना प्रसाद कसार के संपादन म प्रकाशित किताब ‘छत्तीसगढ़ी गीत’ ले। किताब के मुताबिक ये पारंपरिक गाना सुखीराम निषाद, छुई खदान ले मिले रहिस।