कइसे मा दिन बढ़िया आही।
कइसे रतिहा अब पहाही।
गाए बर ओला आय नहीं,
कइसे ओ हर ताल मिलाही।
बिन सोचे काम जउन हर करही,
ओ हर पाछू बड़ पछताही।
अब तो मनखे रक्सा बनगे,
मनखे के जस कौन ह गाही।
साधु के संग जउन हर करही,
ओ मनखे हर सरग म जाही।
पखरा पूजे म क होवत हे,
मन पूजौ जिनगी तर जाही।
‘बरस’ बात ला सुन लाबे तैं,
आज नहीं तब काली जाही।
रतिहा =रात, पखरा पत्थर, काली=कल।
–बलदाऊ राम साहू