अशोक नारायण बंजारा के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

आंखी म नावा सपना बसा के रखव
अपन घर ला घर तो बना के रखव।
आंखी ले बढ़के कूछू नइये से जग मा
ए-ला अपने मंजर ले बचा के रखव।
सोवा परत म कहूं झनिच जाबे
अंगना म चंदैनी सजा के रखव।
बड़ कोंवर हे जीयरा दु:ख पाही
गोरी के नजर ले लुका के रखव।
दिन महीना बछर कभू मउका मिलही
अंतस ला अपन ठउका के रखव।
बड़ दूरिहा हे- केई कोस हे रेंगना
गोड़ ला फेर अपन थिरका के रखव।

अशोक नारायण बंजारा
सिविल लाईन, बलौदाबाजार, जिला रायपुर
मो. 94252 31018

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2 Thoughts to “अशोक नारायण बंजारा के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल”

  1. anilbhatpahari

    ghad sughghar bhav bhare hav ji apan gajal bani rachana ma . aesanech damdar jinis chahi jaun khobhiya ke khare rahay apan bhasa au sanskrti ke dhaja la farawat……anilbhatpahari 99617777514

  2. छत्तीसगढ़ म गजल एक नवा परयोग आय। येला अउ बढ़ाये के अवस्कता है। अच्छा परयास बर बधाई।

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