हमर गांव डाहर झलप के तीर म ढेलवा डोंगरी हे। एकर ले संबंधित भीम अउ हिरमिसी कैना (हिडम्बनी) के एक कथा हे। ये डोंगरी म ओ कैना के महल रिहीस अउ झूले बर बड़े जनिक ढेलवा रिहीस। पंडो मन के बनवास के समय घूमत घामत एक दिन भीम ह ओ डोंगरी म आगे। ढेलवा झूलत हिरमिसी कैना ओकर ऊपर मोहागे। भीम ल किहीस बड़ सुग्घर अउ बल्कहार दीखत हस। लेतो मोला बने ढेलवा झुला। भीम ह वो कैना ल ढेलवा झुलईस। झूलावत झुलावत उत्ती कोती ढेलवा ह जाय तब जोंक नदी के पानी ल छुवय अउ बूड़ती कोती जाय तब महानदी के पानी ल।
भीम के ढेलवा झुलाय ले ओ कैना हक खागे। तब भीम ल किहीस तोर ढेलवा झुलाय ले मोर सुधा बूतागे। अब तैं ढेलवा ल रोक हे। भीम कहाँ मानने वाला। झुलई ल बंद करबे नइ करै अउ हिरमिसी कैना ल किहीस – तैं मोला अपन पति के रूप म अपनाबे तभे ये ढेलवा ल रोकहूं।
कैना ह हार मानके ओला अपन पति मान लेथे। तहाँ भीम ढेलवा झुलई ल बंद करथे। दूनो उही डोंगरी म पति पत्नि के रूप म रथें।
घटोत्कक्ष नाव के लईका पैदा होथे।
ढेलवा डोंगरी ले संबंधित ये कथा आज घला केहे सुने जाथे।
ये डोंगरी ह महासमुंद ले भीमखोज बागबाहरा होवत पिथौरा अउ झलप कोती ले चारों मुड़ा ले दीखथे।
– बंधु राजेश्वर राव खरे