लबरा कर गोएठ लेखे, ए बच्छर बरखा कर पानी।
एकस हें कइसें होए पारही, हमरे मन कर किसानी।
एकघरी कर बरखा हर बुइध ला भुलाइस
अगास कर बदरा हर, बुंदी बर तरसाइस।
परिया परल हवे, जोंग ला नसाइस
लागत हवे बतर ला बिदकाइस।
ए बच्छर कर बरखा हें दिसथे, नई होए पारही किसानी।
धुरिया बतराहा अउर चोपी
चिखला नई, बीड़ा ला कोन उठने खोंची।
बीयासी कर बेरा बतर हर नसाइस।
काकर नांव धरी अपन किस्मत ला कोसी।
हमर धरी कर का कहाऊ असों फेर नई होइस नगद पानी।
सोंचे रहेंन ए बच्छर
टेक्टर ला किनवाहूँ।
डांड टिकुरा सगरोला
गहिरेच जोतवाहूँ।
हमर सपना हर टुड़र गईस कटिको नई बांचिस निसानी।
खेती कर परोसा, बरखा कर भरोसा
मिलही तबे खाबो, नई त ललचाबो।
ओकरे जमींनदारी, जेकर हरियर बारी
राजा हर राजा हवे, नई त भिखारी।
ए बरखा कर बुंदी हवे हमर भगवान, जम्मेच किसनहां मन पाएं जिनगानी।
खेती कर भरोसे रहिस बेटी कर बिहाव
दाई कर तिरथ-बरत, गंगा कर नहाव।
बेटा कर पढ़ाई अउ दादा कर दवाई,
करजा माढ़ जाही मुड़े, एतरेच हिचकाव।
सोंच समुझ एही सब ला, रोधियाइस हवे हमर प्ररानी।
आवा जी मेघा राजा झिन बिसरईहा
बरिसिहा हमरो धरी झन सुस्तइहा।
लईकामने टमुड़त हवें ढोंढी कर सोत
घाम हें जरत हवे नोनी कर ओंठ।
बिसर गईस गेंड़ी, बिसरिस सिरसोला अउर गेरवानी।
– जीवन नाथ मिश्र
विवेकानंद नगर
अम्बिकापुर
जिला-सरगुजा (छ.ग.)