ओकर बइसाखी मन फेंका गय रहिन। पीछू-पीछू एक झन टूरी आत रहिस तेन ह ओकर तीर म आइस। ओला उठा के बइठारिस अउ बइसाखी मन ल ला के दिस। लतेल के साबूत गोड़ म लागे रहिस तेला देखके ओहा कहिस- ‘अरे तोला तो बने लाग देहे हे।’ अतका बोल के ओकर घाव ल पोंछे अउ सहलाय लगिस।
ओ हा अपंग रहिस। लइकई म पोलियो होगे रहिस। डेरी गोड़ के माड़ी खाल्हे ह पतला अउ कमजोर हो गे रहिस। दाई-ददा मनके पेट-पीठ बरोबर रहिस त का ओकर इलाज करातिन। वइसे भी गांव म अस्पताल नई रहिस। अकाल परिस त गांव म काम-धंधा बंद होगे। सबे कमाए-खाए बर शहर जाए लागिन। अपंग लइका ल कहां छोड़तिन ओहू ह दाई-ददा संग शहर पहुंच गिस। शहर के बाहिर भाग म एक तला पार मा कुंदरा (झोपड़ी) बनाइन अउ अपन पुरखा मन के लुहारी धंधा ल करे लागिन। सिगड़ी, चूल्हा, तवा, कड़ाही, चिमटा, संड़सी बनाए बर शुरू कर दिन।
लतेल इना रहिस ओ अपंग लइका के। समय बीतत गइस। लतेल जवान होए लागिस। जवानी ह कसनो शरीर रहय तभो आथे। अब लतेल ह अपन दाई-ददा के लुहारी काम म जतका बनय संग देहे लागिस। तीन परानी काम करंय त बड़ समान बन जाय। शहर अऊ हाट-बाजार म बेचे जाए बर परय। लतेल घला समान बेचे बाजार जाए मगर दया करवइया मन के बपुरा कहाई ह ओला थोरको नई सुहावय। ओकर गोड़ ल देखके सबे ओकर ऊपर दया करंय। त ओला बापुर उमड़ जाय, गुस्सा आ जाए।
लोहार के परिवार के स्थिति बने होए लागिस त सुधरे लागिस। मगर दया करवइया मन ले लतेल ल चिढ़ हो गे। इ चिढ़ म ओ बजार जाए ल बंद कर दिस। भले ओकर कमजोरहा समान भी मन दया करवइया मन के बीच म बेंचा जाय। शहर के बढ़ाई ह ओकर बर काम चलाऊ बइसाखी बना दे हे रहिस जेकर सहारा ओहा रेंगे लागिस। मगर दया करवैया अउ बपुरा कहाई ह ओला देहें म आगी लगे कस लागय।
अब ओकर मन ह काम धंधा अउ बजार ले बिचक गय रहिस। अब ओहा निसफिकर छुछिंदहा रहय। किंदरय, खावय अउ जी भर सुतय। बेटी-बेटा कसनो रहय दाई-ददा म के फिकर ह अपन जगहा रथे। लतेल के काम ढंग ल देखके ओकर दाई-ददा मन ल फिकर होगे। एक दिन लुहारिन ह लुहार ल कहिस- ‘हमर लतेल के रंग-ढंग ह आजकल बने नई दिखय।’
लुहार भी ह गोठ ल आघु बढ़ात कथे- ‘बात तो सही ए। ओहा चोरी-छिपे बीड़ी पीए लगे हे। किंदरथे अउ कई घ चा पी पींथे। ओकर बर-बिहा कर देतेन त जिम्मेदारी ल समझके ओहा थोड़कन सुधर जातिस। हमरो बिहा तो बारा-तेरा बछर म होगय रहिस अउ अब लतेल तो उन्नीस बछर के हो जात हे। ओकर अब बिहा कर दे हर उचित रही।’
लतेल बर बहुरिया खोजे के परयास शुरू होगे। अपन जात के एक झन लड़की मिलिस त ओला कानी हे कइके लतेल ह मना करिस त ओकर ऊपर ओकर दाई-ददा मन बिफर गंय। दाई-ददा दूनो अपन इकलौता बेटा ऊपर गुस्सात कहिन- ‘तैं कोन मेर सरोत्तर हस जेन सरोत्तर लड़की चाहत हस। खोज ले तंय अपन बर फूल सुंदरी राजकुमारी।’
ऐती गुस्साए दाई-ददा मन लतेल लंग गोठबात बंद कर दिन आती लतेल ह एक कसेर के बरतन कारखाना म काम करे बर जाए लगिस। नवा किसिम के काम ल करत लतेल ल बने लागिस अउ कारखाना के सेठ भी ल ओकर मेहनत, लगन ह पसंद आ गय रहिस। सेठ ह ओकर मजूरी ल बढ़ा दिहिस।
एक दिन बेरा बुड़ती अपन कुंदरा (झोपडी) बर लहुटत लेवत ह एक ठन पखरा म हपट के गिर गइस। ओकर बइसाखी मन फेंका गय रहिन। पीछू-पीछू एक झन टूरी आत रहिस तेन ह ओकर तीर म आइस। ओला उठा के बइठारिस अउ बइसाखी मन ल ला के दिस। लतेल के साबूत गोड़ म लागे रहिस तेला देखके ओहा कहिस- ‘अरे तोला तो बने लाग देहे हे।’ अतका बोलके ओकर घाव ल पोंछे अउ सहलाय लगिस।
इही बीच धियान से ओ टूरी ल लतेल देखिस गहूं के रंग के सुन्दर शरीर, मुड़ ल बने कोरे-गांथे, माथा म टिकली अऊ गोल चेहरा ओहू म डेरी गाल म एक ठन काला टीका। ओ अन्जान लड़की के सुन्दराई अउ ब्यवहार ह ओला अड़बड भाइस। लतेल पूछिस- ‘कहां रथस तंय, का नाम हे।’
‘मोर नाम मोंगरा हे। इ रस्ता म जाबे त डेरी हाथ म बड़अकन कुंदरा (झोपड़ी) हे ओकर दूसर नंबर म रंथा। मय सुखरू सेठ के किराना दुकान म चांउर, गहूं, दार साफ करथां।’ अतका बता के मोंगरा ह ओकर बारे म पूछिस- ‘तोर संग म कोन-कोन रथें।’
‘मोर संग ऊपर म अकास अउ नीचे म धरती हावय। मोर दाई-ददा कोनो नइये। दुलौरिन दाई ह मोला पाल-पोंसके बड़े करे हे। ओइहा मोर दाई-ददा लाग-मान सब ए। ओकर झोपड़ी ही ह मोर घर-द्वार सब आय।’ अतका बोलत ले मोंगरा के चेहरा ह पखरा कस हो गय रहिस।
ए भेंट होएके बाद लतेल अउ मोंगरा जब-जब मिलिन अउ लकठा आत गइन। दू-चार दिन भेंट नई होवय त ओमन बेचैन होके फिकर म पड ज़ावंय। मया ह कोने के चाहे अउ इच्छा करे ले नई उपजय। ऐ मया ह तो भीतरे-भीतर अपने आप धीरे-धीरे उपजत जाथे। अब तो आपस म ओमन के भीतर-भीतर एक दूसर के प्रति मया ह उपज गय रहिस।
ए घ चार दिन बाद मिलिस त मोंगरा के रद्दा देखत लतेल ह गुस्सा म तमतमा गय। मोंगरा बताइस कि बर-बिहा के नाम ले सुखरू सेठ इहां बड़ ग्राहकी हे। ओमन बर चांउर, गहूं, दार अउ आने समान बड़ साफ करे बर परथे एकर नाव ले के काम करत-करत बेर हो जाथे अउ बीच म काम-बुता ल फुरसत घलो नई मिलय। ले गुस्सा ल भुला अउ खाय बर ए पइत मुर्रा-चना, बताशा अउ करी लाड़ू मैं लाय हं तेला मिलाके खाइन। एसनहा खाऐ ले बड़ मजा आथे।
लतेल अउ मोंगरा एक कुंआ के जगत म बइठके खाइन। इस बीच लतेल ल मोंगरा तीर बात चलाइस- ”मोंगरा सबेके बर-बिहा होत हे हमुमन अब बिहा कर लेतेन।” मोंगरा खुसी-खुसी उत्तर- ”दिस मोर का मंय तो तियार हंव। मोर दुलौरिन दाई तो तुरते तियार हो जाही।”
लतेल ह घर म जब अनाथ लड़की मोंगरा संग बिहा करे के अपन बिचार ल बताइस त पहली तो ददा बिफरीस, फेर दाई भी बिफर गइस। दूनो के कहना रहिस कि ओ लड़की ह अनाथ ए ओकर जात-पात, दाई-ददा कुछु के पता नइए फेर कइसे ओकर संग तोर बिहा ल कर देबो। अपन जात-समाज भी ल तो देखे बर परथे। इ जात समाज के संग हमन ल आगू भी निभना हे। मोंगरा संग बिहा करे बर लतेल अड़ गइस कि मोर संग शादी करे के बाद तो ओ ह लोहार जात के हो जाही त फेर का बात के जात-पात।
”अनजात म शादी करबो त हमला समाज ह हमर लोहार जात ले निकाल दिही। फेर हमर जीना मुसकुल हो जाही।”
लतेल ह ददा के अतका गोठ अउ फइसला ल सुनके कहिस- ‘त ठीक हे मय ह आजे अलग हो जात हं अउ आखिरी बात ए कि मैं ह शादी करिहां त मोंगरा संग ही।’
लतेल ह अपन बरतन कारखाना के मालिक कसेर ल बताइस त ओहा तुरते ओला मदद करे बर तियार होगिस। वइसे भी लतेल के लगन अउ काम ले ओहा परभावित रहिस। कसेर ह ओला जरूरत के लाइक पइसा अउ बरतन के पूरती कर दिस अउ अपन बेटा के बाड़ा के खाली परे कुरिया ल रहे बर दे दिस। कसेर के बहनी ह ओला अपन बिहा के एक गोड़ टूटहा पलंग अउ कई ठ समान दिस। तुरकिन चूरी बेचय तेन ह चूरी अउ गहना दिस। एक स्कूल के बड़े मास्टर ह कन्या दान करे बर तियार होगे अउ शिव मंदिर के पुजेरी ह अपन खर्चा म बिहा कराए बर तियार हो गइस। किराना दुकान वाले सुखरू सेठ ल पता चलिस त ओहा जरूरत के पुरता चांउर, गहूं, दार दिस। जेन ल खबर मिलय तेन ह अपन समरथ अनुसार मदद करे लागिस। बिहाव ह हंसी-खुसी निपट गइस। कसेर बाड़ा के खाली परे कुरिया ह समान ले भर गिस अउ लतेल-मोंगरा के रहे ले अबाद हो गइस। दुलौरिन दाई सबला देख अड़बड़ खुस होइस।
रात के फइरका बाजिस त लतेल खोलिस बाहिर ओकर दाई खड़े रहिस। ओहा कहिस कि ऐले बेटा तुंहर बर तसमई (खीर) तोर ददा तीर ले लुका ले लाय हं। खा ले हा। लतेल मोंगरा ओकर गोड छू के परनाम करिन त लोहारिन दाई अपन बेटा अउ बहुरिया ल सदा सुखी रहा कइके आशीष दिस। कंडिल के अंजोर म अपन बहुरिया ल देख के कहिस- ‘बेटा लतेल तोर किस्मत म सचमुच म ए फूल सुन्दरी राजकुमार संग बिहाव करे के रहिस।’
डॉ. सीतेश कुमार द्विवेदी
पानी टंकी के पास
पारिजात एक्सटेंशन
बिलासपुर