छत्तीसगढ़ म जनचेतना के उन्नायक संत गुरु घासीदास

संत परंपरा के मनखे मन जन-चेतना के बिकास म अपन योगदान दे के समाज ल एक नवा दिसा देथे।
समाज में अइसे कतको बिसगति समा जाथे, जोन ह समाज ल आगू नइ बढ़न दे। धीरे-धीरे समाज म एक जड़ता आ जाथे। आम मनखे मन ये जड़ता ल अपन जीवन म अपना लेथे अउ रूढ़ता के कारण एला संस्कृति के हिस्सा मान बइठथे, परुं जोन मनखे मन भीतरी म आत्म-चेतना होथे, वो हा ये जड़ता ल टोरे के अपन बिचार समाज ल देथे।
समाज ह कभू नवा बिचार ल सोझे नइ स्वीकारे। समाज म जब नवा बिचार आथे तब बहुत मनखे मन ओकर बिरोध करथे। फेर बहुत मनखे मन सोचथे, ये नवा बिचार आत हे, तब येमा कुछ तो सही बात होही। धीरे-धीरे नवा बिचार ल स्वीकार करइय्या थोरिक मनखे मन आगू आथे अउ ओमन नवा बिचार के परचार करथे। ये परम्परा ल देवइय्या मनखे मन हर समरपन अउ निस्वार्थ भाव ले काम करथे तब उनला बहुत समय बीते के बाद संत के उपाधि दे जाथे। यही संत मन समाज म नव-चेतना बगराथे।
छत्तीसगढ़ म जनचेतना के विकास म बहुत अकन महापुरुष मन के योगदान हे, जेमा कबीरदास, महाप्रभु वल्लभाचार्य, गुरु घासीदास, वीरनारायण सिंह, धनी धरमदास, गहिरा गुरु, पंडित सुन्दरलाल शर्मा, यतियतन लाल, महंत लक्ष्मीनारायण दास, मुंशी अब्दुल रऊफ खान के नाम ल सम्मान पूर्वक ले जाथे। समाज के बिकास म नवा-विचार देवइय्या मानुस मन एक परम्परा के निरमान करथे अउ समाज ल जीवन जीये के नवा आधार देथे। संत परम्परा के मनखे मन के बिचार जुग-जुग ले अपन परभाव देवत रहिथे अउ ओकर परकास म मनखे मन अपन रेंगे के रद्दा खोजथे। छत्तीसगढ़ के जीवन-दरसन ह संत बाबा गुरु घासीदास के बिचार ले बहुत परभावित करत दिखथे। जोन जनचेतना संत गुरु घासीदास जी ह दे हे, ओहा आज सबो डहर अलग-अलग रूप म अपन परभाव देवत हे। सहज, सरल अउ संतोस के परियास छत्तीसगढ़िया मनखे मन गुरु घासीदास के जीवन दरसन ले नवा रद्दा बना के अपन बिकास के जुगत खोजे हें। लोक-जीवन म उंकर बानी के व्याप्ति देखे जा सकत हे। उंकर बानी के प्रेरण म जुग परिवर्तन के नवा सिध्दांत हे, जोन ह उंकर सहज जीवन शैली अउ चिंतन-प्रक्रिया के उपज हे।
संत गुरु घासीदास के सिध्दांत ल जब बारकी ले बिस्लेसण करथन, तब ओ ह ‘लोककक गीता’ जान परथे। जेमे गियान, बैराग्य, शिक्षा अउ आत्म-मुक्ति समाय हे। ‘सतनाम’ कहे ले ही बात साफ-साफ लागथे कि उंकर दरसन के मूल म ‘सत’ के समग्र सरोकार हे, ‘सत’ से बिलग कुछू नइ हे। जोन दरसन ह ‘सत’ ऊपर आधारित हे, ओमे सक्ति हे, पवित्रता हे, आत्म-बिस्वास हे, सौहार्द्र हे, समरसता हे, दया भाव हे, अउ जोन दरसन के मूल म ये भाव हे, ओहा समग्री जीवन-दरसन हे। गांधी जी घलो अपन दरसन ल सत ले आधारित करे रिहिस हे अउ सत ल एक नवा परिभासा दिस। दुनिया ल नवा चिंतन दिस। भारतीय परम्परा म सत के मजबूत आधार हे। उही पाए के सतनाम पंथ के परचारक मन पंथी गीत गाथे-
सतनाम, सतनाम, सतनाम के आधार
गुरु के महिमा अपार, अमरीत धार बोहाई के
हो जाही बेड़ा पार, सत-गुरु महिमा बताई दे। सत मोक्ष के आधार हे, जेला सत गुरु घासीदास ह अपन जीवन-दरसन के केन्द्र म रखिस।
संत गुरु घासीदास के सिध्दांत म जीवन के अद्भुत गियान के परतीत होथे। उंकर जीवन स्वयं म संघर्ष के गाथा हे। एक सामान्य परिवार म जनम ले के बाद अगियानता के अंधारी म गियान के अंजोर बागरावत दुरगम पहार ल लांघना आय। आज ले लगभग ढाई सौ बरस पहिली जब चारों मुड़ा अंधविश्वास, जात-पात, ऊंच-नीच, छुआछूत, पशुबलि, नारीजात पर अतियाचार जइसे कतको कुरूरीति व्यापे रिहसि, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक ढंग ले समाज म अराजकता के माहौल रिहिस, तानाशाह शासक रिहिस ओन परिस्थति म स्व-चिंतन ले एक नवा दृष्टि उपजाना एक आम मनखे के बुता नइ कहे जा सकत हे। अउ उकर गियान के ऊंचाई ल कोनो पुस्तकीय गियान के परिधि म नइ बांधे जा सकत हे।
बाबा जी आत्म-चेतना ले जब गियान के सिरजन करिस तब ओला जन-जन तक जन भाषा के माध्यम म पहुंचाइस। उंकर उत्तम विचार आम शोषित, पीड़ित, दलितजन ल आधार दिस अउ नवा रद्दा म चले के प्रेरणा। उंकर बिचार शोषित, पीड़ित मनखे मन बर मलहम के काम करिस। आत्मा ल शांति दिस। एक संबल दिस अउ अन्याय के बिरूध्द खड़े होए के एक बिस्वास दिस।
संत गुरु घासीदास जी हर सिध्दांत दिस- ‘सतनाम उपर बिस्वास रखव मूर्ति पूजा झन करो, जात-पात के भेद म मत परो, मांस मछरी मत खाओ, पर स्त्री ल माता मानो, शराब मत पीओ, अंध बिस्वासी मन बनो।’ ये सिध्दांत भारतीय चिंतन परियाय लागे लागीस। येकर ले आगू कहे जा सकत हे कि भारतीय चिंतन के एक नवा आयाम बन गे, जोन ह रूढ़िवादी, परंपरागत, कुरूरीतियों ले जकड़े तथा कथित ब्राह्मणवादी बिचार ल निकले के नवा रद्दा देख दिस।
‘सतनाम’ के परचायक मन गीत गाके बाबा जी के संदेश ल ये ढंग ले कइथे-
मंदिरवा म का करे ल जइबोन,
अपन मन के देव ला मनइबोन,
मंदिरवा म क करे ल जइबोन।
ये गीत म एक चिंतन, आत्मचिंतन, संघर्ष अउ नवा-दरसन दिखथे। जब सबो डहर मूर्ति पूजा के आडंबर रिहिस, शोषित दलित समाज ल हिन्दू होय के बाद, हिन्दू के अधिकार नइ मिलत रिहिस, तब आत्म-चिंतन ही मोक्ष के मारग बनथे। ये भारतीय दरसन के भी मूल पक्ष हरे। आत्म हर जीव म व्याप्त हे अउ ओला मंदिर म नइ पाय जा सके, ये पाय के अपने भीतर बइठे देव के अराधना करके ईश्वरतत्व ल पाओ।
इहां गुरु घासीदास के ये बिचार कबीर मत के आसपास तको दिखथे। कबीर दास जी ह अइसने मूर्तिपूजा के बिरोध, ये कही के कहिन-
पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पुजहुं पहार।
ताते या चाकी भली पीस खाय संसार॥
कबीर के ये पंक्ति घलो इही जन चेतना के बिकास करथे। कबीर घलो ईश्वर ल अपन भीतरी म खोजे के बात कहे हे-
कस्तूरी कुण्डल बसै मृग ढूंढे बन माहि।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया जाने नाहि।
जनचेतना के उन्नायक गुरु घासीदास के समाज सुधार के काम आज छत्तीसगढ़ के सामाजिक चेतना के आधार बनगे हे। सामाजिक कुरीति के बीच म उंकर सिध्दांत नारी उत्थान बर आधार स्तंभ बनगे। उंकर समय म नारी-समाज पराश्रिम अउ बहुविध अतिचायार ले पीड़ित रिहसि। बाबा जी नारी वेदना ले व्यथित हो के उंकर उत्थान के रद्दा खोजिस। इही पाय के संदेस दिस पर स्त्री ल माता जानो। ओमन नारी मन के आत्म-बल ल जगाइस। बिधवा मन के पुनर्बिहाव के नवा-नियम बनाइस। धार्मिक काम काज म ओमन ल बराबर के भागीदारी दे के बात किहिस। उंकर मानना रिहिस- ‘जब समाज म नारी के दसा सुधरही तभे समाज के नव निरमान होही।’
धरम के नाम पर होवत आडंबर ल संत गुरु घासीदास ह समाज के आगू लाइस, जीव हत्या ल पाप बता के देव पूजा के नाम म पशु बलि जइसे कुरीति ले दूर रहे के संदेस दिस। समाज म फैले अंधबिस्वास ल टोरे बर जन-जन तक अपन संदेस ले परचारित करिस। सुख-शांति पूर्वक जीवन जीये बर सत्य के पालन, चरित के शुध्दा अउ आपसी भाईचारा ल बढ़ाए बर नवा सिध्दांत गढ़िस। आज छत्तीसगढ़ के लोक-चेतना गुरु घासीदास के बिचार के परभाव म हे। इही पाय के एक समतामूलक जात-पात के भेद ले रहिस नवा समाज के निरमान म आगू बढ़त दिखथे। गुरुघासीदास के संदेश आज हमर बीच पंथी गीत के माध्यम से लोक कल्याणकारी भावना देवत बरगत हे। परेम सहनशीलता, छमा अउ सहजता आज छत्तीसगढ़िया मन के अंतस म समागे हे।

बलदाऊराम साहू

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