कहिनी : हिरावन

‘हिरावन बारवीं म मेरिट म पास होईस। फेर नेमसिंग, हिरावन ल आगू नई पढ़इस। सोचिस ‘जादा पढ़े-लिखे ले मनखे अलाल हो जाथे।
नउकरी त मिलना नइ हे।’ ईतवारी, हिरावन ल पढ़ाए बर नेमसिंग ल फेर किहिस। फेर नेमसिंग उहू ल नइ घेपिस उल्टा कहि दिस, ‘भंइसा के सिंग ह भंइसाच ल गरू लागथे’ गा। तोर का हे? पइसा त मोल पटाना हे।’
पूस के महीना रिहिस। जाड़ बनेच जनात रिहिस। परसू के किराना दुकान के आगू म लइका मन कागद, पैरा मन ल सकेल के, भुर्री बार के आगी तापत रिहिन। सियान मन चंवरा म बइठके रोनिया तापत रिहिन। कुकुर मन घलो रोनिया तापे बर चंवरा के आगू म लुटुर-लुटुर करत रिहिन। सुरूज नराएन कांपत-कांपत रोनिया बगरात रिहिस। मनचलहा बादर मन कभू-कभू सुरूज ल तोप देवय। अतका म लइका मन एक संघरा चिल्लावंय- ‘घाम उग जा, घाम उग जा’ कतको झन गाय-गरूवा मन ल दइहान कोति लेगत रिहिन। माइलोगन मन कचरा फेंकत रिहिस। कतको झन माइलोगन मन कुंवा म पानी भरत रिहिन, जिहें काखर घर का होवत हे। काखर-काखर घर झगरा होवत हे। ये तरह के परमुख समाचार के परसारन होवत रिहिस। दू-चार झन पढ़इया टुरा मन परसू के दुकान के आगू के आंट म बइठ के पेपर पढ़त रिहिन।
नेमसिंग लकर-लकर खेत कोति जावत रिहिस। नेमसिंग ल देखिस ते परसू ह वोला दुकान म आए बर अंखियइस। नेमसिंग दुकान म अइस। आवत-आवत मन म सोचत रिहिस- ‘दुकान के उधारी ल त मंय ह पटा डरे हंव। काबर बलावत हे ते?’
परसू कथे- ‘कका! मिठई खवाय के डर म कइसे सुटुर-सुटुर जावत हस? तोर टुरा हिरावन के मास्टरी म नउकरी लग्गे हावय अउ तेंहा कांही नी जानय तइसे मिटकाय हस।’ नेमसिंग कथे- ‘बिहना-बिहना ले काबर ठट्ठा मढ़ाथौ रे?’ अतका मा एक झन पेपर पढ़इया टुरा बतइस – दिल्लगी नइ करन गा। हिरावन के नांव ल ये दे पेपर मं दे हवय। नेमसिंग ल बिसवास नइ होत रिहिस, फेर पेपर ल देखिस ते बिसवास होइस। वोला एक छिन खुसी होवय। दूसर छिन मन म भुरभुस जनाय- ‘पेपर म छपे नांव ह दूसर के त नइ होही।’ नेमसिंग खेत जावत-जावत सोचत रिहिस- ‘फेर हिरावन सिक्छा करमी के फारम कइसे भरिस होही। मेंहा त ओला एको रुपिया नइ दे हंव।’ दूसर छिन सोचिस – ‘ऊपराहा कमाके पइसा बचाके फारम भरिस होही।’ वोला गजब अखरत रिहिस- ‘हिरावन ल सिक्छाकरमी के फारम भरे बर पइसा दे देना रिहिस। सबितरी बर गाहना बिसाए बर उधारी करथौं। ओखरो बर कर लेना रिहिस।’
हिरावन बड़े गऊंटिया घर बनी म गे रिहिस। वोखर मास्टर बने के खभर गांव भर बगरगे। चंऊक-चौराहा, दुकान, गली-खोर, कुंआ पार सबो जगा ए खभर के चरचा होय लागिस। जेन सुनय, हिरावन ल सहिरावय। फेर कोनो-कोनो के मन म जलन तको होवय। हिरावन संग गांव के कतको टुरा मन परीच्छा देवाय रिहिन फेर काखरो नउकरी नइ लगिस।
हिरावन ननपन ले पढ़ई-लिखई म टंच रिहिस। घर अउ खेत-खार के काम म तको पके रिहिस। नानूक राहय त चार बजे इसकूल ले आते साथ अंगना परछी ल बाहर डरै। पानी-कांजी ल भर डरय। अपन दाई-ददा के आत ले दार-भात घलो रांध के मढ़ा देवय। तहांन पढे-लिखे बर बइठ जय। आठवीं किलास म फस्ट अइस। तभो ले नेमसिंग, हिरावन ल नइ पढ़ांव कहिके रोन्हिया दिस। गांव के पढ़े-लिखे मन समझइन ईतवारी गजब किहिस। ले दे के नेमसिंग मानिस अउ हिरावन ल नउमी किलास म भरती करिस। हिरावन चेत लगाके पढ़य। छुट्टी के दिन बनी म जावय। इसकूल के फीस के पुरती कमा डरय। घर म तको पइसा देवय। दूसर घर के सियान मन लइका मन ल कांही नइ पढ़व कइके भड़कय फेर हिरावन ल ओकर दाई-ददा मन काबर अतेक पढ़थस कइके खिसियावयं। हिरावन बारवीं म मेरिट म पास होईस। फेर नेमसिंग, हिरावन ल आगू म पढ़इस। सोचिस ‘जादा पढ़े-लिखे ले मनखे अलाल हो जाथे। नउकरी त मिलना नइ हे।’ ईतवारी, हिरावन ल पढ़ाए बर नेमसिंग ल फेर किहिस फेर नेमसिंग उहू ल नइ घेपिस उल्टा कहि दिस, ‘भंइसा के सिंग ह भंइसाच ल गरू लागथे गा। तोर का हे? पइसा त मोल पटाना हे।’
हिरावन बनी-भूति के काम म लग्गे। धीरे-धीरे समे बीतीस। हिरावन ल एक दिन सिक्छाकरमी भरती के पता चलिस। फारम बिसाए बर अपन ददा ल पइसा मांगिस फेर वोहा नइ दिस। फेर हिरावन हार नइ मानिस। ओभर टेम करके पइसा सकेले के उदीम करिस। रातकून घलो काम म जाय। अइसे-तइसे फारम बिसाय के लइक पइसा सकलागे। देवारी तिहार म हिरावन के जहुंरिया टुरा मन कस के दारू पीन। फेर हिरावन अपन पइसा ल बचाके राजिम अउ खैरागढ़ जा के फारम भरिस। हिरावन खूब मेहनत करिस। कभू-कभू तो पढ़त-पढ़त रात पहा जय। ओखर घर के मन ल तो पताच नइ रिहिस। अभी एदे परसू बतइस ते पता चलिस। हिरावन ल ओखर मेहनत के फल मिलिस। हिरावन के मास्टरी म नउकरी लग्गे।
नेमसिंग सोचय- ये दुनिया म पइसाच वाला मन ल नउकरी मिलथे फेर वोहा आज सरकार ल घेरी-भेरी धन्यवाद दिस।
हिरावन के छोटे भाई खेमसिंग, जेन दसवीं किलास म पढ़त रिहिस। तेनो ल ए खभर मिलिस। वोहा खभर पाते साथ, हिरावन ल बताए बर भंइसासुर चक डाहर दंउड़िस। जिहां हिरावन ह बड़े गऊंटिया के भर्री म चना लुवत रिहिस। खेमसिंग बिधुन होके दउंडत रिहिस। ओखर हांत-गोड़ म आज कोजनी काहां ले अतका ताकत आगे रिहिस। आज कहूं बघुवा घलो ओखर संग दउंड़तिस ते उहू ह नई अघुवातिस। दउंड़त-दउंड़त वोहा एक दू पइत मेढ़ म हपट के गिरगे घलो। फेर खेमसिंग दंऊड़ते रिहिस। खेत म पहुंचके हिरावन ल हंफरत-हंफरत किहिस- ‘भाई तोर मस्टरी के नउकरी लगे हवय।’ फेर हिरावन कांही नइ किहिस। चना लुवत-लुवत मांग म सबो बनिहार ले अगुवागे। ओखर चना लुवइ ल देखिस ते बनिहार मन बक खागे। पाछू डाहर बिन देखे हिरावन उत्ता-धुर्रा लुवत आगू जावत रिहिस मानो काहत हे अभी तो मोला अऊ आगू जाना हे, सबले अगुवाना हे।
यशपाल जंघेल
तेंदूभांठा गंडई
राजनांदगांव

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