६. तिल्ली पांत
वंदना
अपन तरी मं रखत अंधेरा – दूसर जगह उजाला ।
अपन बिपत ला लुका के रखथय – पर के हरथय पीरा ।।
खुद बर – पर के दुख ला काटत उही आय उपकारी ।
पांव परंव मंय दिया के जेकर बिन नइ होय देवारी ।।
काव्य प्रारंभ
“मंगलिन कपड़ा मिल’ एक ठक हे, ओकर स्वामिन मंगलिन आय
ओकर गरब अमात कहूं नइ, काबर के धन धरे अकूत.
कपड़ा मिल के कुछ आगुच मं, सकला खड़े हवंय मजदूर
खलकटभाना बुल्खू द्वासू, झनक बैन अउ कई मजदूर.
उंकर हाथ मं मांग के तख्ती, ओमां लिखे मांग के बात
सब के मुंह मं क्रोध उग्रता, चिल्ला रखत हवंय हक मांग.
भाना सब ला सम्बोधन दिस – “”हम कमात हन जांगर टोर
हर कर्तव्य करत हन पूरा, मानत हन मालकिन आदेश.
मगर स्वयं के हक नइ पावत, पेट हे सप सप बिगर अनाज
पहिरे बर चेंदरा तक कमती, हम कब पाबो सुख के राज ?
तरतर तरतर चुहत पसीना, श्रम के कारण करिया देह
पर एको झन सोग मरत नइ, जीयत मं भोगत हन नर्क.”
श्रमिक बीच मं झनक खड़े हे, जउन श्रमिक नेता विख्यात
सदा श्रमिक के पाती दाबत, ओकर धाक मान हर ओर.
झनक के मुंह बम लाल क्रोध मं, ओहर कहत देखा कंस जोश –
“”मितवा मजुर, आय सच एहर – सुख के सुरुज हमर ले दूर.
वास्तव मं मंगलिन हा शोषक, पर हक मारत बन के क्रूर
करय श्रमिक पर दया मया नइ, जोंख असन चुहकत हे खून –
हमर प्रार्थना ला लतियावत, तब हम घलो लेन प्रतिशोध –
कर हड़ताल काम सब रोकव, मिल स्वाहा कर ढिल दव आग.”
श्रमिक मित्र बुल्खू हे ओ कर, उहू सुनिस भाषण कर चेत
बुल्खू मंथिर बुद्धि के स्वामी, उग्र शब्द ला नइ अपनैस.
पर उहि भाषण सुनिन श्रमिक मन, उझलत उंकर जोश के ज्वार
मुंह ला उला लगावत नारा, बंगी पढ़त बहुत बेकलाम.
तख्ती धर आगू तन जावत, ओमा लिखे हवय कई बात –
मुर्दाबाद होय मंगलिन के, सब मजदूर के जिन्दाबाद.
हर मनखे ला मंगत समर्थन, ताकि जमों आकर्षित होय
शहर मं किंजरत हवंय निघरघट, सड़क जाम कर रेंगत राह.
खुले दुकान ला बंद करावत, ताकत देखा – आंख कर लाल
जेन दुकनहा बंद करत नइ, ओकर जिनिस करत हें राख.
रमझू रिवघू सुकलू अउ बांके, उंकर साथ अउ कई ग्रामीण
“”पूना के दूकान मं पहुंचिन, रुपिया गिन क्रय करत समान.
ओतकी बरवत श्रमिक मन अमरिन, द्वासू हा हेरिस स्वर जोर –
“”पूना, तंय हा हमर बिपत सुन – हमर मालकिन सब ले क्रूर.
तरहा तरहा के कर दिस तब, हम्मन करत बिकट हड़ताल
तंय हा घलो समर्थन कर दे, तुरुत बंद कर अपन दुकान.”
पूना सब मजदूर ला बोलिस -“”मोर समर्थन तुम्मन लेव
वास्तव मं मंगलिन ला चहिये – तुम्हर मांग कर ले सिवकार.
पर तुम मोरो कोती देखव – दुरिहा के ग्राहक मन आय
बपुरा मन हा जिनिस बिसावत, ओमन ला लेवन दव चीज.
एमन मोला रुपिया देहंय, मोला होत अर्थ के लाभ
एकर बाद तुमन जे कहिहव, मान लुहूं मंय बिन इन्कार.”
भड़किस बैन -“”लफरही झन कर, अपन कमई ला कर दे बंद
हमर कमई हा बंद कड़ाकड़, तोला कार कमावन देन.”
सुकलू हा सब श्रमिक ला बोलिस -“”भइया, हम अन तुम्हर समान
खेत कमाथन मरो जियो रड़, पहती टेम ले बुड़ती बाद.
कृषि औजार बिसाय आय हन, हमला लेवन देव समान
यदि दूकान लगत हे तारा, हमर काम रुक जहय फटाक”.
झनक बिफड़ गिस देहाती पर -“”तुमन पाट भाई अस आव
हमर – तुम्हर हे एक राह मन, बिल्कुल एक ठिंहा उद्देश्य.
पर तुम उल्टा बात करत हव, लगथय तुम अव स्वार्थी जीव
चलव मदद देवव तुम हमला, खुले दुकान ला बंद कराव”.
रमझू किहिस -“”सुकड़दुम हन हम निकल पात नइ बोली ।
यदि हिम्मत कर करत उदेली झाफड़ हमरे झोली ।।
लेकिन शूल हृदय ला मारत – जब तुम्मन चाहत हव मांग
मंगलिन पास पहुंच के बोलव, कार शहर ला देवत कष्ट ?”
भाना के आंखी ललिया गिस, देहाती पर भड़किस जोर –
“”तुम्मन कायर डरपोकना हव, हमर पक्ष ला लेहव कार.
तुम्हर फसल हा चरपट होवत, कभू बाढ़ मं कभू अकाल
ओला देव प्रकोप समझथव, रोवत हव रहि के चुपचाप.
जबकिन तुमला मंगना चहिये – शासन तिर अन धन के मांग
जब तुम कड़कड़ महिनत करथव, सब हक पाय तुम्हर अधिकार.
अपन कान ला टेंड़ के सुन लव – तुम कुछ चीज लेन नइ पाव
हम दुकान ला बंद कराबो, एमां शंका के नइ छेद”.
नेक विचार गंवइहा राखिन, मगर उंकर ला मानय कोन
जमों श्रमिक पूना ला डांटिन, बंद करा दिन तुरुत दुकान.
हवय शहर मं कचरा होटल, नीक प्रबंधक कचरा आय
उहां श्रमिक मन निंगिन दड़ादड़, उठा के फेंकत खाद्य समान.
एकर साथ क्रोध कर खूंदत, रइ छइ कर दिन जम्मों चीज
कचरा हा अकबका के देखत – कते डहर के आफत अैस.
आखिर मं कंझा के बोलिस -“”मंय हा कर्ज बैंक ले लेंव
ओकर ले मंय जिनिस बिसा के, बनवाये हंव खाय के चीज.
सोचे रेहेंव – चीज जब बिकही, मंय हा नफा कमाहंव खूब
मगर जिनिस ला तुम रौंदत हव, मंय हा केंघर होत बर्बाद.
मोर तोर कभु लड़ई न झगड़ा, मोर दीन पर दया देखाव
जमों जिनीस ला राख सुरक्षित, मोर जीविका बने बनाव”.
बुल्खू चलत श्रमिक के संग मं, कब तक सहय गलत अन्धेर
छेंकिस -“”सुनव श्रमिक भइया हो – कचरा कहत तेन हे ठीक.
वाकइ तुम्मन करत कुजानिक, राह चलत ते हवय अनर्थ
तुम खुद अन्न पाय बर तरसत, पेट भरे बर हव असमर्थ.
खाद्य वस्तु ला नष्ट करव झन, बल्कि खाव ओकर पर पांव
जलगस अन्न देवता जग मं, तलगस जीयत तन मं जान.
इही अन्न ला तुम पाये बर, महिनत करत – करत हड़ताल
होय अन्न – हिनमान कभुच मत, हिरदे ले ओला दव मान”.
बुल्खू जहां श्रमिक ला छेंकिस, झनक ला चढ़गे जलन बुखार
बुल्खू ला प्रतिद्वन्दी मानत, सिरी गिराय होत बउद्दार.
झनक हा बुल्खू ऊपर बिफड़िस -“”श्रमिक उचात क्रांति के काम
जिनिस राख कर – आंतकित कर, प्रकट करत हें अपन विरोध.
तंय मंगलिन के खर दलाल अस, तभे लेत हस ओकर पक्ष
बनत श्रमिक नेता जग जहरित, पर पुंजलग ला देवत लाभ”.
भाना हा बुल्खू पर भड़किस – “”तंय मजदूर के दुश्मन आस
लबरा बादर अस बोली मं, श्रमिक ला पहुंचावत हस लाभ.
तंय मंगलिन केहित के रक्षक, वास्तव मं तंय हा गद्दार
तंय मंगलिन ला देत पलोंदी, तब ओहर लतियावत मांग”.
टांठ गोठ ला सुनिन श्रमिक मन, करिन पसंद हृदय पर राख
बुल्खू ला कर दीन उपेक्षित, मारत बिख के प्रक्षेपास्त्र.
बुल्खू हा रहि गीस कलेचुप, समय आय ओकर विपरीत
जब दुख उल्टा बखत हा आवय, मानव रहय शांत गंभीर.
श्रमिक सुनिन जोशीला भाषण, उंकर जोश हा बढ़ गिस दून
उंकर बढ़त उत्पात बकचण्डी, टोरत हवंय नियम कानून.
आखिर मिल के तिर मं पहुंचिन, बैन हा बोलिस भर उत्साह-
“”नांदगांव के सब मनसे मन, हमला खूब समर्थन दीन.
जेहर हमर बात नइ मानिस, करे हवन ओकर नुकसान
पर आखिर मं लेन समर्थन, शहर बंद हा सफल तमाम.
बचे हवय उद्देश्य एक ठन – मंगलिन ले लेवन प्रतिशोध
तुम्ही सुझाव सघर अक रद्दा – होय शत्रु के खुंटीउजार.”
झनक हा सब झन ला उम्हियावत -“”मंगलिन हमला करत तबाह
ओकर नसना ला टोरे बर, मिल मं आगी ला ढिल देव”.
कतेक अनर्थ सहय बुल्खू हा, झनक ला बोइर अस झर्रात-
“”अपन जिदद् के झण्डा फहरा, कोतला बना श्रमिक ला राख.
लेकिन गलत सलाह झनिच दे, श्रमिक के मुड़ चढ़ जहय नराव
कउनो नइ पतियायंय तोला, यने तोर नंगत नुकसान.
बुल्खू हा मजदूर ला बोलिस -“”तुम्हर शत्रु मंगलिन हा आय
ओकर मिल मं बुता करव झन, बइठव रात दिवस हड़ताल.
रखव सुरक्षित कारखाना ला, ओमां भूल ढिलव झन आग
मंगलिन – तुम्हर चेत जब वापिस, इहिच दिही भोजन भर पेट”.
सच ला ठुकरा दीन श्रमिक मन, तोड़ फोड़ होगिस शुरुवात
कई मशीन ला रटरट टोरिन, मिल ला मिलिस अकुत नुकसान.
एकर बाद अपन घर लहुटिन, मिल मं लगगे तारा ठोस
अब हड़ताल चलत हे सरलग, उत्पादन मं लग गे रोक.
श्रमिक रखे जे जोड़ के धन, घर बैठे खाइन ओला ।
बाद मं बेचिन बर्तन गहना, तंहने मंगिन उधारी ।।
जब सब राह उपाय उरक गिस, भूख मरत हें बिगर अनाज
जीवन जिये उपाय तपासत, पर तड़तड़ी मं मिल नइ पात.
खलकट भाना पति पत्नी मिल, मिल मं काम करंय सुंट बांध
दुनों परानी खुशी निघरघट, जमों खर्च के होवय पूर्ति.
लेकिन जब हड़ताल मं बइठिन, अब होवत हर जिनिस अभाव
आंख बचावत हवंय अतिथि ले, टोरे परत खर्च सब शौक.
हे गृहस्थ के हालत खस्ता, पर भाना हा लाहो लेत
खलकट तिर हुरमुठी बतावत, जिनिस मंगावत कर आदेश.
सहनशक्ति के नसना टूटिस, खलकट दांत कटर खखुवैस-
“”तंय हा क्रांति राह पकड़े हस, ओकर फल मं दुख भुख भोग.
मंय मरमर समझाएंव तोला – सब ला करन देव हड़ताल
पर हम उंकर धरन नइ तोलगी, कार चलन हम पर के चाल.
पर तंय हठी मूड़पेलवी हस, हठकरके छोड़े हस काम
अपन क्रांति ला चल पूरन कर, दुख अभाव ला हंस हंस झेल.
लोहा लेना होय धनी संग, ताकत नइ कंगला के पास
अपन साथ विद्या धन जन रख, तब पुजलग संग टक्कर लेव.
शोषण के विरोध करना हे, शोषक ला तंय बना मितान
न्यायालय मं विजय चहत हस, अधिवक्ता तिर लेव सलाह.
गोरा शासन ला खेदे बर, मदद करिन गोरा विद्वान
बांध बांधना हवय नदी मं, कर उपयोग नदी के जल रेत”.
जलगस मनखे सक्षम दलगिर, अपन ला समझत सबले ऊंच
मगर घिरत दुख रोग फिकर हा, तंहने सुनत डांट उपदेश.
भाना हा गपगपा जथय सुन, खलकट ला बोलिस गुन सोच-
“”तोर बात ला मंय फांके हंव, चाल चले हंव बन के ढीठ.
मगर रहस्य नइ आवत – मंगलिन मांईलोगन आय
हमर पक्ष ला लेतिस प्रण कर, हर अभाव के करतिस पूर्ति.
लेकिन हमला दुश्मन मानत, हमर प्रार्थना ला लतियात
हम जतका दुख बिपत पात हन, ओतका ओहर खुशी मनात”.
कान टेंड़ के टैड़क ओरखत, उंकर बात सुन आनंद लेत
पति पत्नी के बात रुकिस तंह, मंद हंसत गिस उंकर समीप.
भाना ला समझे कहि बोलिस -“”तोर दिमाग हवय कमजोर
तब तंय गलत बात बोलत हस, गलत तर्क के मारत जोर.
मंगलिन हा मिल के मालकिन ए, तंय ओकर हिनहर मजदूर
ओहर धनी – गरीबिन अस तंय, अलग अलग दूनों के वर्ग.
ओहर जियत खाय पहिरे बर, तंय खावत हस जान बचाय
ओकर जीवन पद्धति उंचहा, निम्न हीन हे जीवन तोर.
वर्ग भेद बढ़थय रब्बड़ अस, तंहने शोषक करथय लूट
एक जीव मछरी मछरी मं, पर छोटे ला बड़े हा खात”.
भाना ला टैड़क समझा के उहां ले रेगिस लौहा ।
छेरकू मंत्री राह मं दिखथय जउन हा अड़बड़ कैंया ।।
ओकर बोल मीठ मंदरस अस, मुंह हा फूल असन मुसकात
मगर पेट मं कपट ला पालत, सोन के गगरी मं विष तीक्ष्ण.
मंगलिन पास पहुंच गिस छेरकू, ओकर हाल करे बर ज्ञात
एक के पास अकुत धन पूंजी, दूसर धरे हवय पद ऊंच.
जब चुनाव के बखत हा अंड़थय, मंगलिन मदद मं रुपिया देत
शाशन मंगलिन ला अरझाथय, छेरकू खतम करत हर कष्ट.
छेरकू ला मंगलिन हा देखिस, स्वागत करत हर्ष के साथ
कहिथय- “”तंय स्थिति जानत हस – मिल मं चलत हवय हड़ताल.
मंय नुकसान सहे हंव नंगत, अउ घाटा होवत अनलेख
कते राह धर आगू जावंव, ताकि लाभ कमती झन होय ?”
छेरकू हा गंभीर बन जाथय, फेर निकालिस सरलग बोल-
“”तंय हा फोकट के झन घबड़ा, कोन जरा सकिहय उद तोर!
कंगला श्रमिक के कतका ताकत, घुटना टेक दिही दिन एक
जउन खवाबे ओमन खाहंय, एकोकन नइ करंय विरोध.
मिल मं तारा लगे बड़े अस, चलन देव सरलग हड़ताल
गिर झन ककरो गोड़ निहू बन, श्रमिक घूम रोवंय बेहाल.”
छेरकू, मंगलिन ला फुरनावत, पर एकर अंदर कुछ राज –
ऊपर नफा दिखत मंगलिन के, पर खुद छेरकू पावत लाभ.
एहर श्रमिक के तिर मं जाहय, दिही सांत्वना मधुर अवाज
जमों श्रमिक एकर पतियाहंय, छेरकू के बढ़ जाहय मान.
सुन्तापुर के जमों श्रमिक मन, काम छोड़ कर दिन हड़ताल
छेरकू हा धनवा तिर चल दिस, खतम करैस चलत हड़ताल.
लेकिन इहां उलट के रेंगत, चाहत चलय अउर हड़ताल
यने जेन स्थिति आवश्यक, करथय काम उहिच अनुसार.
दूसर हा नुकसान ला झेलत, पर छेरकू ला नइ परवाह
अपन लाभ पद यश रक्षा बर, ओहर चलत बहुत ठक राह.
छेरकू हा मंगलिन ला छोड़िस, विश्रामे गृह मं चल दीस
पत्रकार अधिकारी विधायक, शासन तंत्र हा स्वागत देत.
उहां आय हे घना विधायक, खुज्जी क्षेत्र के प्रतिनिधि आय
ओला घेर रखे कई मनखे, चीथत मांस अनर्गल बोल.
डेंवा हा रट किहिस घना ला -“”तोला हम उठाय हन ऊंच
विजय देवाय चुनाव समर मं, कतको झन ले बन के शत्रु.
लेकिन तंय हा गुनहगरा हस, टरिया देवत हमर गोहार
जनता ला धोखा देवत हस, पूरा करत स्वयं के स्वार्थ.”
अचरज मं भर घना हा देखत छेंक के राखे गुस्सा ।
अगर अपन हा बायबिरिंग तब खुद पर आहय बद्दी ।।
घना हा बोलिस पुचकारत अस -“”कहना काय साफ अस बोल
छुपे रहस्य के परदा टरिया, दुख ला हरिहंव जान बिखेद.”
डेंवा के बकचण्डी बढ़ गिस -“”तुन नेता के इहिच सुभाव
जनता कतको आंसू ढारत, पर पथरा अस हृदय तुम्हार.
हमर गांव मं जल के कमती, खेत सिंचई बर नहर अभाव
लघु उद्योग तक के टोटकोर्राे, संकट बीच जियत हे गांव.
तंय आश्वासन देस बहुत ठक, लेकिन अब तक काम अपूर्ण
यद्यपि सब सुविधा नइ मिलिहय, पर तंय करा सफल कुछ काम.”
किहिस घना -“”यद्यपि तंय खुश हस – आज विधायक ला डपटेंव
मगर तोर भ्रम भूल भयंकर, गारी हा कराय नइ काम.
हां, अब मोला याद आत हे – बांध बनाय आश्वासन देंव
छेरकू कर मंय रखेंव समस्या, लेकिन ओकर सुध नइ लेंव.
चलना अभि मंत्री तिर जाबो, ओकर तिर ढिलबोन सवाल
तंय हा जेन करत हस शंका, ओकर तक मिल जही जवाब”
छेरकू तिर जा घना हा बोलिस -“”जानत हवस मोर तंय मांग
बांध बनाय केहेंव मंय तोला, कतका सरक सकिस हे काम !
मोर क्षेत्र के सब मनखे मन, करत केलवली दुख ला रोत
ओमन ला उत्तर का देवंव, मोर प्रश्न के देव जुवाप ?”
छेरकू रखे जुवान अपन तिर, तइसे किसम निकालिस जल्द –
“”घना, जउन तंय बात ला पूछत, हवय सुरक्षित ओकर ज्वाप.
मंय राजधानी गेंव जउन दिन, देखे हवंव तोर भर काम –
बांध बंधे बर स्वीकृति होथय, देके जोम करे हंव मांग.
कार्यालय मं भिजा डरे हंव, ओकर होत जउन आदेश
ज.सं.वि. ले तंय स्वयं पता कर, मोर बात मं कतका सत्य !”
बाबूलाल उंहे मेंड़रावत, अधिकृत अधिकारी उहि आय
ओकर पास घना हा पूछिस, ताकि बात होवय स्पष्ट.
बाबूलाल बेधड़क बोलिस -“”मंत्री हा अभि कहि दिस जेन
ओकर बात सत्य सूरज अस, मंय तोला देवत विश्वास.”
अधिकारी के उत्तर सुनथय, घना अपन मन होत प्रसन्न –
मुड़ के फिकर बोझ हा उतरिस, हाही सरापा ले बच गेंव.
बांध हा बन – जल दिही खेत मं, उहां उपजिहय ठोस अनाज
कृषक के कंगलइ भूख मिटाहय, मोर गीत गाहंय धर राग.”
छेरकू जमों कार्यक्रम छेंकिस, पत्रकार ला पास बलैस
उंकर प्रश्न के उत्तर ला दिस, एकर बाद सभा के अंत.
कार जीप पर बइठ के चल दिन छेरकू अउ अधिकारी ।
मगर घना के तिर नइ वाहन खड़े हे चुप झखमारी ।।
डेंवा, घना ला चिथिया पूछत -“”होत शुरुकब बांध के काम
मंय जिज्ञासु सुने चाहत हंव, यदि जानत तब बता तड़ाक ?”
घना सुकुड़दुम हो के बोलिस -“”अधिकारी फोरिस नइ साफ
चल ओकर तिर पहुंच के पूछन, बांध हा बन – कब तक तइयार ?”
द्वितीय वर्ग के अधिकारी तक, बउरत हें शासन के जीप
मगर विधायक मन बिन वाहन, देखव तो शासन के नीत !
हम्मन जनप्रतिनिधि कहवाथन, जन जन तिर पहुंचे के काम
लेकिन हम सुविधा बर तरसत, कहां पूर्ण जनता के काम !
मोला क्षेत्र किंजरना होथय, मंय हा लेत किराया के जीप
खुद हा देत खर्च के रुपिया, शासन वहन करय नइ भार.”
डेंवा लाय फटफटी अड़जंग, ओमां दुनों बइठ गिन जल्द
कार्यालय तन धड़धड़ जावत, बीच राह उरकिस पेट्रोल.
गीन “पेट्रोल पम्प’ एक संघरा, फटफटी मं पेट्रोल भरैन
अब गिनना हे नगदी रुपिया, देखव कोन गिनत हे नोट !
डेंवा सोचत – बांध हा बनिहय, जमों कृषक के सिंचिहय, खेत
तब मंय काबर खर्च उठावंव, पर के भार कार मुड़ लेंव !
घना आय जनता के मुखिया, सबके उहिच हा ठेकादार
आय खर्च ला भरय उही भर, जनता करिहय जय जयकार.
डेंवा डहर घना हा देखिस, पर डेंवा देखत पर ओर
घना समझगे सब रहस्य ला, डेंवा हटत भरे बर नोट.
सोचत घना- अगर मंय टरकत, मंय हो जंहव व्यर्थ बदनाम –
जनता के धारन कहवावत, पर ओकर हित कर नइ पात.
घना निकालिस जेब ले रुपिया, पटा दीस पेट्रोल के दाम
दुनों पुन& कार्यालय जावत, आखिर पहुंच गीन गंतव्य.
बहुत लिपिक ज.सं.वि. कार्यालय, उंकर टिप्पणी बर असमर्थ
कई झन चाय पान बर खिसके, कइ झन मन मारत गप हांस.
बाहिर बेंच रखाय एक ठन, तातू भृत्य लेत हे नींद
लिपिक मंगत हें पानी फाइल, मुश्किल मं मानत आदेश.
घना विधायक ला बग देखिस, सब आलस्य भगागे दूर
सावधान होथय हड़बड़ कर, मानों सब ले करतबवान.
जमों लिपिक ला इतला देवत – आत विधायक हा इहि ओर
अपन काम हुसियार होव सब, मिलय प्रशंसा पत्र इनाम.”
लिपिक जे किंजरत एतन ओतन, कुर्सी बइठ जथंय चुप शांत
कुर्सी बइठ जउन गप छांटत, फाइल पर गाड़त हे आंख.
लिपिक चैन हा घना ला एल्हत – “”कोन विधायक ला डर्रात
एहर काय बिगाड़ सकत हे, चार दिवस बर पद ला पाय.”
बालम किहिस – “”सत्य बोलत हस, एकर तिर नइ कुछ अधिकार
ना कर सकत नियुक्ति निलम्बित, पथरा के देवता भर आय.”
ज्ञानिक हा समभाव से बोलिस – “”ककरो कार करत हिनमान
ओहर तुम्हर बिगाड़ करत नइ, देवव मान समझ इंसान.”
कार्यालय मं निंगत घना अब, अधिकारी के कमरा गीस
लेकिन बाबूलाल नदारत, ओकर मुंह दरसन नइ दीस.
घना उहें के लिपिक ला पूछिस, कहिथय चैन बला टर जाय –
“”साहब पास काम थर के थर, ओकर विस्तृत कर्म के क्षेत्र.
कल भोपाल ले वापिस आइस, मात्र रात भर लीस अराम
आज मुंदरहा निकलगे दौरा, कब वापिस सच कोन बताय !”
घना जान लिस असच बतावत, धोखा देवत मोला ।
अैस चैन पर क्रोध मगर, नइ मारिस क्रोध के गोला ।।
दूसर प्रश्न घना ला पूछिस -“”बांध बनाय एक आदेश
ओहर इहां कोन दिन आइस, कब प्रारंभ होत हे काम ?”
बालम कहिथय -“”हम नौकर अन, होय नियुक्ति सुनन आदेश
यदि आदेश आय कार्यालय, पालन बर हम हन तैयार.
बांध काम ला कोन छेंकिहय, कोन लिही आफत ला मोल
राष्ट्र विकास मदद सब देवत, कोन सकत आदेश उदेल !”
बालम दीस जुवाप अर्थ बिन, सुन के करथय ज्ञानिक रोष
पर काबर ककरो संग उलझय, स्वयं कहत रख स्थिर बुद्धि –
“”तोला मंय सच भेद बतावत- कहां के बांध कहां के आदेश
काकरा करा – कोन दिन आइस, हमला सुनगुन तक नइ ज्ञान.
यदि अधिकारी ला पूछत हव, पहुंच जाव फट उंकर निवास
अगर भेंट होवय ओकर संग, पता लगाव भेद ला पूछ.”
ज्ञानिक जउन राह फुरियाइस, घना ला जंच – आथय विश्वास
डेंवा साथ उहां ले निकलिस, पर ए बात कान मं आत.
चैन हा एल्हत हे ज्ञानिक ला – “”सब कार्यालय बोलत झूठ
मगर एक सतवंता तंय भर, राह चलत हस पर ले नेक.
कार्यालय ला तंय चलात हस, रख ईमान मान आदेश
सब के भार तोर मुड़ आथय, तोर बिगर कार्यालय सून.”
चलत घना अधिकारी तिर मं, आखिर पहुंचिस उंकर निवास
अचरज मं अंगरी ला चाबत, बाबूलाल के बंगला देख.
बोलिस घना -“”बड़े भुंइया मं, मोहक बंगला बने हे बीच
चारों तन हे बाग बगीचा, जेमां हवय फसल फल फूल.
रख रखाव मं खर्च आत कंस, ओला सहत हवय सरकार
मगर फसल फल फूल ला खावत, साहब अउ ओकर परिवार.
शासन के वेतन ला पावत, तेन भृत्य मन इंहे कमात
एक अधिकारी के सेवा बर, पाछू दउड़त कई इंसान.”
डेंवा रखथय प्रश्न घना तिर – “”कई सुविधा साहब मन पाय
तंय हा शासन के पटिया अस, कतका सुख सुविधा तंय पाय ?”
केंघरिस घना -“”अपन का रोवंव – मंय हा रहिथंव अपन मकान
दूरभाष के खर्च पटाथंव, स्वागत खर्च करत मंय पूर्ति.
जबकि जिंहा मुख्यालय होवय, यने क्षेत्र के मुख्य स्थान
उहां विधायक बर बनवावय – शासन खुद कर खर्च मकान.
काबर के हम जनप्रतिनिधि अन, कतको व्यक्ति हमर तिर आत
ओमन असमय ठइर के सोवंय, उंकर रुके बर होय प्रबंध.”
डेंवा किहिस – “”पता चलगे सच – दिया बरत पर घुप अंधियार
जेन दुसर ला सुविधा बांटत, कृषक असन अमरात अभाव.
तुम्हर हाथ मं राइ दुहाई, खुद कर लव पारित प्रस्ताव
जेन जरुरत सुविधा धर लव, तुम्हर हाथ ला छेंकत कोन .”
घना कथय नारी जुड़ाये अस – “”सत्य मान हम हन असमर्थ
अपन मांग यदि पूर्ण करत खुद, सब तन ले परिहय बद बान.
कुकरी हा अण्डा कई देथय, मगर खाय नइ खुद हा एक
गाय पियावत पर ला गोरस, लेकिन अपन पाय नइ चीख.
अधिकारी के सक्षमता सुन – कलम के ताकत उनकर हाथ
ओमन ला यदि सुविधा चहिये, सब सुविधा लेवत बिन आड़.
कतको नियम कानून बनाथंय, पूर्ण करत जे उंकरे स्वार्थ
ओकर हम रहस्य नइ जानन, तब उनकर का करन विरोध.
जनता के हित जउन मं होथय, ओकर हम रखथन प्रस्ताव
तब अधिकारी हमला छेंकत – नियम विरुद्ध होत हे काम.”
इंकर गोठ हा ठिंहा गीस तंह जावत बंगला कोती ।
घना चलत बेधड़क मगर डेंवा के कांपत पोटा ।।
डेंवा तुरुत घना ला बोलिस -“”तंय बंगला मं अइसे जात
मानों ओहर आय तोर घर, पर मंय हिरदे ले घबरात.
मंय हा सदा तोर घर जांथव, तब घुसरत बिन डर संकोच
तोर समीप जेन मन बोलत, मान घसलहा त्यागत भेव.
पर अधिकारी तिर पहुंचे बर, मोर हृदय ला धुक धुक होत
भइगे तिंही एक अंदर जा, मंय हा रुकत इही स्थान.”
डेंवा हा बाहिर मं बिलमिस, मार बहाना लपझप बोल
ओहर खुश हे जीवन बंच गिस, जइसे गरी ले बपरी मीन.
घना एक मनखे ला देखिस – ठेकादार बगस जे आय
साहब ले मिल हांसत लहुटत, लगत – अमर लिस ध्येय अभीष्ट.
घना विधायक बगस ला बोलिस -“”तंय हा दिखत प्रसन्न विभोर
काय बात हे सच सच फुरिया – पाय हवस का भगती ओल ?”
बोलिस बगस- “”ठीक समझे हस – साहब पास रिहिस हे काम
पर साहब हा झड़य छटारा, टरका के खेदिस कई बार.
मंय हा मंत्री तिर कलपेंव तंह, मंत्री डारिस डंट के दाब
आखिर साहब काम करे बर, मोला सच आश्वासन दीस.”
“”मंत्री के तंय खास व्यक्ति अस, तब ओहर दिस आशिर्वाद
तोर काम अब पूरा होहय, मौज करव अउ मजा उड़ाव.”
बाबूलाल तिर घना पहुंचिस, अधिकारी हा स्वागत देत
ओहर भृत्य हुकुम ला बोलिस -“”ऊगिस आज मोर तकदीर.
आय विधायक हा किरपा कर, ओकर खाय पिये बर लान.”
हुकुम लान नाश्ता राखिस तंह, घना हा खावत मिट्ठी चीज.
घना हंसत उद्देस्य मं आथय -“”साहब मन ला जानत खूब
आवभगत कर मीठ खवाथंय, तंह जुड़ जावत रिश्ता मीठ.
पर एकर ले घाटा खाथन, रख नइ सकन निवेदन मांग
अगर पेल के दुखड़ा रोथन, तब रिश्ता मं करुदरार.
अपन बेवस्ता मं अब आवत, मोर प्रश्न के लान जुवाप –
बांध बने कब नरियर फोरत, यने कोन दिन मुहरुत होत ?”
बाबूलाल मुड़ ला धर बोलिस -“”कहां के बांध कहां के निर्माण
मोर पास आदेश आय नइ, तब आश्वासन कहां ले देंव !”
घना अचम्भित होवत पूछिस -“”छेरकू मंत्री बोलिस जेन
तंय कोलिहा अस भरे हुंकारु, वास्तव मं सब झूठ सफेद?”
बाबूलाल रहस्य ला खोलत -“”हम अधिकारी अइसन शेर
मार दहाड़ डरावत सब ला, पर पोतकी मं जान बचात.
बन अजाद जंगल मं किंजरत, सोनकुकुर हा मारत घेर
जंगल छोड़ गांव तन भागत, ग्रामीण दउड़त धर बन्दूक.
यने बने हन हम अधिकारी, पर नइ पाय पूर्ण अधिकार
सब तन ले गुचकेला खावत, शासन रखे हवय कंस छांद.
यदि जनता के काम हा रुकथय, तब ओहर विरुद्ध चिल्लात
मंत्री तिर हम करत प्रार्थना, देवत उहू डांट नुकसान.
मंत्री हा झड़ दीस लबारी – बांध बने भेजेंव आदेश
लेकिन प्रति अप्राप्त हमर तिर, आगू कहां बढ़य कुछ काम !
यदि मंत्री ला लबरा कहितेंव, यदि कट जातिस ओकर गोठ
फोकट कष्ट मोर पर आतिस, बादर बिगर करा बरसात.
मंत्री के मंय पक्ष धरे हंव, विवश बाद बोले हंव झूठ
धोखा खाय मोर कारण तंय, तंय अब बिसर कुजानिक मोर.
जब आदेश मोर तिर आहय, तोर याद करिहंव तत्काल
काम पुरो के सांस ला लेहंव, मंय तोला देवत विश्वास.
अब मंय अपन पोल दुख खोलत – मंय कइसे होवत मजबूर –
थोरिक पूर्व आय जे मनखे, ठेकादार बगस ते आय
ओहर ठेका लीस एक ठक, ओहर काम करा दिस पूर्ण
प्रस्तुत करिस प्रमाण कागजी, पर वाजिब मं काम अपूर्ण.
भेद जान मंय करेंव निरीक्षण, मंय हा पाय शिकायत ठीक
बचे काम ला बगस पुरोवय, अइसे सोच चलेंव मंय चाल.
बिल के रुपिया काट देंव मंय, रोक देंव अंतिम भुगतान
एमां बगस कलबलागे तंह, मंत्री तिर फोरिस सब हाल.
मंत्री दूरभाष ला नेमिस, मोर साथ कर लिस सम्पर्क-
“बगस ला काबर अरझावत हव, ओकर काम पूर्ण कर देव.’
ऊपर ले दबाव जब देवत, तब मंय होवत हंव मजबूर
बगस के उद ला जरा सकत नइ, करना परत निंदनीय काम.
हिम्मत देखा काम यदि छेंकत, मोला मिलिहय दुष्फल खाय
मंत्री करवा सकत निलम्बित, स्थानांतर बर अधरात.
राजनीति सब के मुड़ नाचत, हर विभाग पर परत दबाव
तब अधिकारी कहां ले जोंगय – शासन बुता ला रख ईमान !
बोलिस घना -“”फिकर हा बढ़गे, तोर पास मंय दउड़त आय
मगर समस्या बचे पूर्व अस, डेंवा ला का देंव जुवाप !
सत्य के रक्षा बर यदि कहिहंव – अभि नइ होय बांध निर्माण
सिंचई व्यवस्था करव तुमन खुद, शासन के छोड़व विश्वास.
एमां डेंवा इहि समझिहय – हमर विधायक काम के शत्रु
जनता के सुख दुख ले भगथय, अमरबेल अस स्वार्थी खूब.
यदि मंय थाम्हत असच के अंचरा – अब बंध जहय बांध तत्काल
खेत हा पल बिरता कंस देहय, मिटा जहय जनता के भूख.
पर एकर ले काम अधूरा, धोखा खाहय जनता मोर
पहिलिच के बदनाम हवन हम, उड़ा जहय जे कुछ विश्वास.”
घना के दार भात हा चुरगे कार रुकय बरपेली ।
नमस्कार कर उहां ले रेंगिस पांव ला लेगत धीरे ।।
घना हा डेंवा के तिर बोलिस -“”जउन समस्या फंसे किसान
ओकर समाधान हा होहय, पूर्ण करे बर चलत प्रयास.
यदि बाधा आ जहय बीच मं, बांध काम तब भले अपूर्ण
ओकर दोष कहां ककरो मुड़, सफल विफलता प्रकृति हाथ.”
डेंवा किहिस -“”तोर बोली हा, करिस मोर मन ला संतोष
हमर विधायक तंय धारन अस, बपुरा सुनथस हमर गोहार.”
इही बीच मं अैस उमेंदी, जेहर पूर्व विधायक आय
जावत हे सक्षम मनसे तिर, मांगत हे आर्थिक सहयोग.
घना करा गोहरात उमेंदी -“”तंय हा जानत हस सब भेद
कुर्सी पात विधायक मन हा, पांच बछर बर गिने गुनाय.
नंगत खर्च चुनाव मं लगथय, होत कठिन डंट आय वसूल
पद छूटत तंह हालत पतला, एकोकनिक होय नइ लाभ.
इही व्यथा ला खतम करे बर, हमन बनाय एक ठक कोष
ओमा रुपिया जमा करत हन, सक्षम मन तिर धन ला मांग.
दीन हीन जे पूर्व विधायक, रोगी वृद्ध असक विकलांग
एमन ला सब दुरछुर करथंय, भात के बल्दा एल्हई ला खात.
अइसन हीन ला मदद ला देवत, हम संस्था बनाय हन तेन
यद्यपि स्वर्ग के सुख नइ पावय, पर जीवन चल सकिहय ठीक.
तोर पास मंय आय आस धर तंय ढिल स्वीकृति बानी ।
नगदी रुपिया के प्रबंध कर देखा खिसा झन खाली ।।
जउन समस्या रखिस उमेंदी, घना के मन अंदर भिंज गीस
कहिथय -“”मंय हा सेवा करिहंव, मदद ले मंय खसकंव नइ दूर.
काबर के हमरो इहि दुर्गति, कहां दिखत निÏश्चत भविष्य
होत विधायक पद हा अस्थिर, बोइर असन झरत दिन एक.
नगदी रुपिया बर अड़चन हे, ना कुछ जमा बैंक मं नोट
वेतन बाद रकम गिन देहंव, तलगस रहव बना के धैर्य.”
हटिस उमेंदी पा आश्वासन, तंहने डेंवा रखिस सवाल –
“”तंय हा रोय अपन अभि रोना, ओकर ले होवत आश्चर्य.
अपन क्षेत्र के तंय मुखिया अस, होय तोर तिर नोट सदैव
जउन मंगय तेला तंय बांटस, मगर देखाय रिता अस जेब ?”
हंसिस घना, डेंवा के भ्रम ला – “”वइसे हमन देखाथन टेस
हर सुख सुविधा पाल के रखथन, यने दिखब मं हम सम्पन्न.
मगर आंतरिक हालत पतला, लुका के रख लेथन सच भेद
दिखथय पोख चना के फल हा, पर अंदर मं मारत भोंग.
इहें हवंय पचकौड़ अउ मंगलिन, हमर ले उनकर तिर धन ढेर
दुनों बीच मं अंतर अतका – मोटहा चांउर अउ दुबराज.”
डेंवा बोलिस -“”तंय नेता अस, झूठ बात पर हस बदनाम
मगर आज सच गठरी खोलत, कठिन बाद आवत विश्वास.
हम किसान मन हा ठौंका मं, अपन ला पालत धोखा बीच
रहत भूमि – घर हेलफेल अस, तंह समझत खुद ला धनवान.
घर मं अन्न दूथ यदि होवत, तंहने कृषक बतावत टेस –
हम नइ खावन जिनिस बिसा के, पर के जिनिस घृणा के भाव.
पूछी उठा अभाव हा भग गिस, ककरो तिर नइ मांगन भीख
समझत कृषक हा खुद ला पुंजलग, कर घमंड करथय मुड़ ऊंच.
पर घातक बीमारी सपड़त, सक ले अधिक खर्च हो जात
कृषक के नारी जुड़ा जथय अउ, हर घर द्वार मं हाथ लमात.
होय किसान खूब जमगरहा, पर असमर्थ करे ए काम-
खोल सकय नइ मिल कारखाना, घूम सकय नइ विश्व सदैव.
पंच सितारा होटल रुकिहय, तुरते बिकही ओकर खेत
टी. वी. मं विज्ञापन देहय, दर ला सुन उड़ जाहय चेत.”
तभे झिंगुट सम्मुख मं पहुंचिस जेहर अड़बड़ गप्पी ।
नाम कमाय गुनत हे लेकिन श्रम बर साधत चुप्पी ।।
झिंगुट हा फट ले घना ला बोलिस -“”मंय हा चलत ध्येय रख एक
चित्रकार मंय निश्चय बनिहंव, भले बीच मं कष्ट अनेक.
लेकिन पहिली एक बात कहि – मंय सोचत के पांव इनाम
यदि शासन ले तंय दिलवाबे, काम हा चलिहय धर रफ्तार.”
किहिस घना -“”तंय बातूनी हस, सोचत हस यश नाम कमाय
पर महिनत ले भगथस दुरिहा, अपन हाथ असफलता लात.
अब ले तंय खुद के बूता कर, करव प्रदर्शन साथ प्रचार
शासन अगर देखाहय ठेंगवा, दूसर कई झन दिही इनाम.”
“”तुम नेता मन हा देवात हव, अपन पक्षधर मन ला लाभ
कभू हमर जइसन प्रतिभा ला, ऊंच उठाय के करव प्रयास.”
“”बीजा होय ठोसलग उत्तम, कतरो भुइंया तरी मं होय
पर आखिर मं अंकुर फूटत, बाहिर आवत भुइंया फोर.
वइसे यदि तंय प्रतिभाशाली, तोला कोन सकत हे दाब
रख ईमान काम भर ला कर, निश्चय पाबे नाम इनाम.”
झिंगुट उहां ले हट के पहुंचिस, इमला नाम बहुत विख्यात
एक सेक बढ़ चित्र बनाथय, असल प्राकृतिक जेकर रुप.
झिंगुट आय कब ओकर तिर मं, एकर ले इमला अनजान
चित्र बनावत हवय बिधुन हो, सिर्फ काम पर ओकर चेत.
ध्यान मग्न इमला ला देखिस, झिंगुट ला आलस कबिया लीस
आंखी मूंद नींद ला भांजत, काबर आय भूल सब गीस.
इमला अपन बुद्धि विकसित कर, रखिस सहेज चित एकाग्र
चित्र बना के पूरा कर लिस, जेकर दृष्य निम्न अनुसार –
“एक कृषक हा दुंगदुंग उघरा, रखे कांध पर नांगर एक
ओकर संग फुरमानुक बइला, बुता पुरोय चलत हे खेत.
बड़े फजर के टेम सुहावन, शुद्ध हवा बांटत उत्साह
डोंगरी नहक सुरुज उग आवत, चिरई उड़त हें डेना खोल.,
इमला अपन चित्र ला देखत, स्वयं मोहात वास्तविक जान
मन संतोष पात – तन फुरसुद, पके फसल ला देख किसान.
काम डहर ले आंखी हटथय, झिंगुट तनी लेगिस हे आंख
झिंगुट जगय कहि के हेचकारत, आखिर खुलिस जपर्रा के आंख.
अपन दोष ला रिहिस लुकाना, कहिथय झिंगुट खूब कर रोस –
“”मदद मंगे बर आय तोर तिर, पर तंय कहां करत हस मान !
मनसे ख्याति प्राप्त कर लेथय, ओकर नाम चढ़त जहं ऊंच
ओकर पर घमंड चढ़ जाथय, पर ला समझत बइकुफ हीन.
ज्ञान रास हे जतिक तोर तिर, मोला बांट भला कुछ अंश
चित्रकार मंय बने चहत हंव, करके मदद करा उत्तीर्ण.”
झिंगुट हा नंगत अक फटकारिस, पर इमला सब ला टरियैस
कहिथय -“”तंय हा जब जब आथस, फलल फलल करथस बस गोठ.
चित्रकार तंय बनना चाहत, काम करव रख के उत्साह
मंय हा कला मर्म समझावत, मन ले गुण ला कर स्वीकार.
चित्र बनाय जिनिस जे लगथय, ओकर नाम प्रकृया जान
चमचम वस्तुस्थिति ला जानव, तब फिर अपन लक्ष्य ला पाव.
खड़े रथय स्टैण्ड एक ठन, कार्ड बोर्ड मं ड्राइंग शीट
डिश मं ब्रश ओकर संग कई रंग, होत जरुरत जग मं नीर.
रफस्केच बनत पेंसिल मं, कभु हो सकत रबर उपयोग
तंहने फेर रंग भरे जाथय, स्थिति अउ पदार्थ अनुसार.”
इमला सूक्ष्म ज्ञान ला देवत, मगर झिंगुट के कुन्द दिमाग
बोलिस – “”तंय मोला झन समझा, अपन ज्ञान ला रख खुद पास.
बना मोर बर चित्र एक ठक, स्वयं यत्न कर लगा दिमाग
मंय कतको कोशिश ला करिहंव, मगर सफलता भगिहय दूर.”
“”दुसर भरोसा मार परोसा, पर के बिल मं करत निवास
पर तंय एदे उत्थान जानत – नींद आय नइ पार के आंख.
अगर भात ला लिलना होवय, ताकत कर मुंह खोलो ।
ज्ञान पाय बर सोचत तब तन बुद्धि ला श्रम बर जोंगो ।।
इमला सत्य तथ्य ओरियाइस, मगर झिंगुट ला लगथय लाग
बोलिस -“”मंय एला जानत हंव – भुखहा ला दुतकारत भात.
जे मनखे के बूता बिगड़त, कभु नइ पाय सांत्वना प्यार
ऊपर ले दुत्कार ला पाथय – एकर मुड़ पर कलंक निवास.
जेकर काम सफल हो जाथय, ओकर बढ़त दून उत्साह
पात प्रशंसा दुश्मन तक ले – कर्मवीर हे ए इंसान.
यदि आलोचना ला दुरिहा रख, करते सिद्ध मोर तंय ध्येय
हार ले झगड़े शक्ति मंय पातेंव, शांति हर्ष पातिस मन तोर.”
झिंगुट तरमिरा उहां ले निकलिस, मगर राह मं करत विचार –
“”मंय दूसर पर दोष लगावत, देखत रथंव पर के मुंह ओर.
लेकिन अपन शक्ति नइ जाचंव, स्वयं समीक्षा कार अभाव !
अब खुद ले विश्वास जगावंव, अंतस कमी करंव मंय दूर -”
झिंगुट लेत निर्णय भावी बर, कौंवा पर पर जथय निगाह
कुछ दुरिहा रोटी के कुटका, कौंवा चहत उठा के खांव,
चारों डहर टंहक के देखत, झझकत चमकत उला के चोंच
रोटी तिर पहुंचत अमरे बर, मगर उड़त मनखे ला देख.
आखिर हिम्मत दून बढ़ाइस, रोटी पर मारिस फट चोंच
जहां खाय के जिनिस ला अमरिस, पेड़ डार पर बइठ के खात.
झिंगुट प्रश्न राखिस कौंवा तिर – “”तंय अस डरपोकना शंकालु
तोला असफल होना चहिये, पर उद्देश्य ला खब पा लेस.
एमां गुप्त रहस्य छिपे हे, ओकर राज मोर तिर खोल
ताकि तोर अस रद्दा रेंगंव, असफलता पर विजय ला पांव.?”
कौंवा सब रोटी ला खा लिस, तंहने दीस हकन के ज्वाप –
“”पहिली शंका हटा देंव मंय, अपन शक्ति पर दृढ़ विश्वास.
पर के खोदी करना छूटिस, सिरिफ लक्ष्य पर मोर निगाह
तमे सफलता पांवला चूमिस, असफलता के कट गे नाक.”
झिंगुट सुनिस कौंवा के साहस, पूर्व के निर्णय होवत ठोस
तभे पास मं जैलू पहुंचिस, ओहर अपन कथा फुरियैस.
झिंगुट आंख फाड़त भर अचरज, लगिस धान मं बदरा ढेर
कहिथय -“”प्रकृति छल देखाय बर, करथय काम अचम्भापूर्ण.
लेकिन तंय बतात अभि गाथा, ओकर पर ओ दिन विश्वास
सांप के दांत तीक्ष्ण विष होथय, मगर होय अमृत बरसात.”
झिंगुट हा जैलू ला खब भेजिस, पंचम मनोचिकित्सक पास
जैलू अपन समस्या रखथय, लाज खुशी फिक्कर के साथ.
कहिथय – “”मंय कलपत दिन रतिहा, घर सुनसान बिगर औलाद
इच्छा मोर पूर्ण अब होवत, पर प्रकृति कर दिस उपहास.
मंय अंव पुरुष पर अमल मं हंव, लगे हवय महिना गिन पांच
लुका के रहिहंव लाज के कारन, बाहिर आहंव “निभे’ के टेम.
तोर ले मंय हा किरिया लेहंव, निभे बखत आहंव तिर तोर
तंय निपटाबे जन्म काम ला, आंच पाय झन शिशु नवजात.
वार्ता गुप्त जउन अभि होइस, लाई असन बगर झन जाय
वरना मोर हानि नइ होवय, पर बालक जाहय शमशान.”
जैलू कड़ा बात कहि रेंगिस, पंचम सुनथय धमकी क्रूर
ओहर कार्यालय ला छोड़िस, किंजरत करत बुद्धि ला शांत.
तभे मोंगरा पास ले निकलिस जेहर मुंह पर चिंता ।
बिन कोराय हे बाल तेल बिन – आंख ले ढारत आंसू ।।
मोंगरा के हालत देखिस तंह, पंचम बिसरिस खुद के दाह
खजरी ला खुजाय बर बिसरत, यदि हो जाय घाव जंगलोर.
पंचम कहिथय -“”यद्यपि हक नइ, पर के लेंगझा मं धंस जांव
लेकिन तोला देख दुखी अस, प्रश्न चलाय चहत अधिकार.
मानव सदा खुशी ला खोजत, लेकिन उदुप आत तकलीफ
तंय हा मोर पास सच फुरिया – काबर चोंई अस मुंह तोर ?”
मोंगरा के आधा दुख खेदिस, पंचम के मधुमिश्रित बोल
तरिया बीच पहुंच जावत तंह, पार होय अटकर मिल जात.
किहिस मोंगरा -“”बिपत के करलइ, अतका होय लेख साहित्य
कतको मरंय होय दुर्घटना, मगर हृदय घुसरत नइ टीस.
तंय हा आरो मोर लेत हस, तब सुन व्यथा कान ला खोल –
मोर पुत्र जे दूध ला पीयत, ओला चोरा लेग गिन कोन !
मन ला मार बंधावत ढाढस, लेकिन आत पुत्र के याद
सब घर गली खोज डारे हंव, ओकर दउहा दरसन दूर.
ओकर नाम धरे अब तक नइ, यदपि करत हंव ममता प्यार
ओकर बिगर जियइ अब मुस्कुल, तेकर कारन कहत – दुलार.
मंय आरक्षी केन्द्र जात हंव, होहय उहें प्राथमिकी दर्ज
पुलिस दिही सब किसम मदद तंह, वापिस मिलिहय मोर दुलार.”
पंचम होवत सन्न बात सुन, मुड़ ला खुजा – करत कुछ याद
घटना के सम्बन्ध ला जोड़त, समझ गीस तंह मुड़ी हलात.
कहिथय -“”मंय सलाह देवत हंव, बोंगे बिगर करव सम्मान
धीरज रख के घर वापिस जा, ककरो तिर झन कर हड़बोंग.
तंय हा थाना कछेरी झन जा, करव प्रतिक्षा महिना पांच
मिलिहय तोर दुलार हा वापिस, मंय देवत आश्वासन ठोस.”
लहुटगीस मोंगरा तुरंत पंचम ले मिलिस भरोसा ।
अब पंचम पहुंचिस मंथिर तिर शोध के करे परीक्षा ।।
मंथिर आय एक वैज्ञानिक, जउन बनावत औषधि एक
“अमर प्रसाद’ नाम हे ओकर, पिंयर रंग मंदरस अस गाढ़.
पंचम ला मंथिर हा देखिस, तंहने चहक निकालिस बोल-
“”मंय चुहाय हंव जउन पसीना, दिखत मीठ ओकर परिणाम.
अमर प्रसाद के गुण ला सुन ले – करिहय जेन दवई उपयोग
विजय मृत्यु पर हे अलखेली, यने अमर रहि जहय सदैव.
दुनिया मं कतको वैज्ञानिक, लेकिन जमों मोर ले हीन
जतका आविष्कार करे हें, मोर शोध सब ले विख्यात.”
पंचम कथय -“”घमंड बता झन, मानवता अरि अमर प्रसाद
मृत्यु रोक तंय जन्म ला मारत, करत ज्ञान के गलत प्रयोग.
परिवर्तन क्रम ला झन टरिया, एहर प्रकृति के वरदान
पतझड़ होना बहुत जरुरी, बाद पेड़ धरथय नव पान.
युवा वृद्ध मन औषधि पाहंय, तंहने उंकर मृत्यु नइ होय
पर नव शिशु मन होत अवतरित, जनसंख्या बढ़ जहय अपार.
मानव अन्न बिना लरघाहय, करे निवास मकान अभाव
जुन्ना नवा दुनों मिल लड़िहंय, टूट जहय आपुस के प्रेम.
जब बालक ला वृद्ध हा देखत, तंहने करथय ममता प्यार
तउन वृद्ध हा अमर अमरता, बालक साथ शत्रुता द्वेष.
जुन्ना मन बालक ला बकिहंय- “”एमन कार जनम धर लीन
जउन जिनिस उपयोग कर हम, अब दुश्मन मन लेहंय छीन.’
बालक मन डोकरा ला छरिहंय – “वृद्ध भूमि के भार समान
हमरे बर जे जिनिस सुरक्षित, एमन पहिलिच उरका देत.’
मंय हा अतका कहना चाहत -“”तंय हा अपन शोध ला रोक
एकर ले बढ़ जहय समस्या, ककरो नइ होवय कल्याण.’
तोला रटरट सतम जोहारेंव, तोला गड़त यथा तिरछूल
करुदवई हा जीवन रखथय, पर रोगी करुवावत देख.”
मंथिर कथय – “”जलत लकड़ी अस, मोर उच्च प्रतिभा ला देख
तोर ले मंय हा खूब गुनिक हंव, सिरी गिरे कहि करत विरोध.
तंय कतको आलोचना करबे, मोर राह पर बनबे आड़
पर मंय अपन जिद्द पर कायम, करिहंव पूर्ण अपन उद्देश्य.”
पंचम पूछिस – “”सत्य बता तंय, अमर प्रसाद होत तइयार
कतिक सफलता पाय अभी तक, श्रम बजाय कतका अउ शेष.?”
मंथिर बोलिस -“”मोर दवई हा, प्रतिशत साठ सफलता पाय
यद्यपि सब उद्देश्य पूर्ण नइ, पर प्रभाव हा आस बढ़ात
अभी के औषधि जेहर लेहय, ओहर अमराहय गुण श्रेष्ठ –
ओला कभू रोग नइ घेरय, यदि अजार ते भगिहय दूर.
कतको मरत परिश्रम करिहय, मगर थकान देंह ले दूर
मुंह के रंग चमक हा कायम, यने स्वास्थय हा बिल्कुल टंच.
मंय अभि छेरकू तिर जावत हंव, ओला देहंव अमर प्रसाद
यदि प्रसन्न छेरकू हा होवत, शासन ले देवा दिही इनाम.
मंथिर हा मंत्री तिर पहुंचिस, करत दवई के चर्चा ।
छेरकू ला औषधि दिस फिर पीयत हे ओकर मानी ।।
छेरकू कथय -“”करत मंय दौरा, शहर पहर किंजरत दिन रात
थक जाथंव मिहनत के कारन, रथय स्वास्थय हा सदा खराब.
अमर प्रसाद पिये हंव मंय अभि, अगर बताहय ठीक प्रभाव
अपन काम मं सदा उपस्थित, मिटिहय तन के चिंता रोग.
जेन आस धर के आये हस, शासन तिर करवाहंव पूर्ण
आविष्कार करेस हितवा बन, जन कल्याण धरे हस राह.
दवई – असर हा ठीक बतावत, लगत देह मं नवस्फूर्ति
मंत्री बोलिस- “”दवई हे उत्तम, मोर देह के मिटिस थकान.
आज अखण्डानंद के प्रवचन, ओकर पास जात हंव शीघ्र
स्वामी जी के दर्शन करिहंव, बनही जीवन सफल कृतार्थ.”
शहर बीच मं एक ठौर हे – जेहर आय बड़े मैदान
उहां गड़े पण्डाल बहुत ठक, रेम बांध के पहुंचिन लोग.
छेरकू गीस मंच मं चढ़ गिस, माइक ला धर हेरिस बोल –
“”तुम्मन थोरिक करव प्रतीक्षा, तंहने आत अखण्डानंद.
ओहर आय बहुत मुस्कुल मं, करके कृपा राख दिस मान
आज कथामृत पान करव अउ, जीवन अपन करव कल्याण.”
पिनकू घलो उपस्थित होइस, तंह टैड़क हा आइस पास
ओहर जब पिनकू ला देखिस, मुंह लुकाय बर करत प्रयास.
पिनकू एल्हिस -“”काबर छरकत, कार मोर ले बहुत नराज
या तंय मोला नइ पहिचानस, खोल भला तंय सत्तम राज ?
“शांतिदूत’ जहरी के दैनिक, उंहचे तंय हा करथस काम
उही पत्र के काम करे बर, पत्रकार बन के तंय आय.
अउ तंय हा ओ पत्रकार अस, कष्ट लाय हस ऊपर मोर
पिनकू हा चोरहा अपराधी – अइसे बोल धंसा तंय देस. ?”
टैड़क कथय -“”भेद हा खुलगे – तंय कर लेस मोर पहिचान
तोला फोकट जेन फंसाइस, वाकई उही व्यक्ति मंय आंव.
लेकिन मंय नंगत शर्मिन्दित, तोर साथ हो गिस अन्याय
ओकर फल ला खुद भोगत हंव – मिल नइ पावत जेवन छांव.
हमर देश ला निहू जान के, शत्रु राष्ट्र हा लड़ई उठैस
ओकर नसना ला टोरे बर, भारत के सैनिक मन गीन.
उही बखत जहरी हा नेमिस – आय देश पर बिपत अनेक
घर घर पहुंच उघा तंय चंदा, रुपिया अन्न यने हर चीज.
लेकिन एक बात सुरता रख – झन करबे तंय गबन के काम
वरना तोर हाथ पकड़ाहय, मुसटा जहय मोर तक घेंच”.
जहरी के सलाह हा जंच गिस, मंय हा गेंव बहुत झन पास
अपन हाथ ला लमा देंव तंह, एको झन नइ करिन हताश.
अपन शक्ति भर सब झन मन दिन, रुपिया कपड़ा सोन अनाज
बड़हर मन के बात पूछ झन, चंदा दीस दलीद्र समाज.
सबो डहर ले सकला गिस तंह, जहरी के भोभस भर देंव
लेकिन ओकर तिर ले मंय हा, दसकत अउ रसीद नइ लेंव.
चन्दा ला जहरी ला हड़पिस, बंगला बनवा लिस बड़े जान
जब मंय हा हिसाब लां पूछंव, मोला एल्ह करय अपमान.
छेरकू पास गेंव मंय दउड़त, लेकिन दीस कहां कुछ ध्यान
उहू खाय चन्दा मं प्रतिशत, तब फिर कहां ले देतिस ध्यान !
कब तक ले रहस्य हा छुपतिस, जगजग ले खुलगे सब भेद
मंय हां भ्रष्टाचार करेंव नइ, लेकिन पत पर परगे छेद.
शांतिदूत ले दूर भगत हंव जहरी अब नइ संगी ।
प्रात& खाथंव – लांघन संझा, भोगत आर्थिक तंगी ।।
टैड़क अपन बिपत ला फोरिस, पाठक मन अब देखव मंच
एक व्यक्ति मंच सम्हालिस, आय जेन हा ज्ञानिक संत.
पहिरे हवय लकलकी कपड़ा, मुसकावत लुभाय बर मंद
माथ लगाय त्रिपुण्डी चंदन, ओकर नाम अखण्डानन्द.
स्वामी हा सब झन ला देखिस, मानों हरत उंकर सब शोक
अपन आंख ला बंद करिस अउ, धर के राग पढ़ श्लोक-
“”भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ ।
याम्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा& स्वान्तस्थमीश्वरम् ।।
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रुपिणम् ।
यमाश्रितो हि वकोऽपि चन्द्र& सर्वत्र वन्द्यते ।।
जब श्लोक उरक गिस तंहने, धीर लगा के खोलिस आंख
हाथ हला के प्रवचन देवत, लोगन पर जमाय बर साख –
“”तुम्मन टकटक ले जानत हव – भौतिक अउ अध्यात्म मं भेद
भौतिक जिनिस सकेलत मर मर, मगर अशान्ति करत खुरखेद.
जहां देखथंव बड़हर मन ला, ओकर ऊपर आथय सोग
चकल बकल ऊपर मं दिखथंय, पर अंतस रहिथय दुख रोग.
करत रात दिन झींका पुदगा, हाय हाय मं समय हा ख्वार
मरे बाद दर भूमि ला पाथय, जतका कंगला के अधिकार.
धनवन्ता ला सब झन कहिथंय – पापी शोषक क्रूर गद्दार
रेटहा तक हा मान करय नइ, बन जाथय धरती बर भार.
मोर ठोंक ला अंतस धर लव – धन ले भूल करव झन प्रेम
खुले हृदय ले दान करव अउ, लोभ मोह ला राखो दूर.
सात्विक आध्यात्मिक अपना लो, भौतिकता ला शत्रु समान
तंहने स्वयं शांति सुख आहय, जीवन चलिहय धर के नेम”.
सन्त इही उपदेश ला देइस, जनता सुनिस कान ला टेंड़
जब प्रवचन हा खतम हो जाथय, तंहने चढ़िस चढ़ौत्री मेड़.
मनसे मन रुपिया देवत अउ, परत सन्त के धोकर के पांव
सन्त सकेलत टप टप रुपिया, देत भक्त ला आशिर्वाद.
पिनकू करत विचार अपन मन – स्वामी बने जउन इंसान
खोरबहरा ए मंय जानत हंव, ओकर साथ मोर पहिचान.
जहां संत ला पैस अकेल्ला, तंहने पिनकू करिस प्रणाम
कहिथय – “”आज धन्य मंय होएंव, सुन के तुम्हर ज्ञान उपदेश.
तुम्हर साथ मंय रहना चाहत, धरना चहत तुम्हर अस काम
लेकिन पहिली साफ बतावव – खुद के पता नाम अउ धाम ?”
बोलिस संत -“”आड़ तंय झन बन, का करबे तंय हा सब जान
रमता जोगी बहता पानी, आज इहां कल दूसर ठौर.”
पिनकू हा अगिया के बोलिस -“”मंय जानत हंव तंय अस कोन
तंय, खोरबहरा अस जानत हंव, अगर असच तब बात ला काट.
मोर पास तंय अतका फुरिया, कार बने स्वामी संत
सब ला गलत ज्ञान देवत हंस – काबर नइ छोड़स फरफंद ?”
खोरबहरा मन मं सोचिस – यदि मंय नइ भरिहंव हामीं ।
पिनकू हा सब पोल खोलिहय – मंय परिहंव बदनामी ।।
बोलिस – “”धन बिन जमों अबिरथा, मगर करेंव ओकर हिनमान
झूठ गोठ ला सब तिर फइला, रिता जेब ला ठंस भर देव.
यदि मंय ककरो तिर जातेंव अउ, रुपिया बर फइलातेंव हाथ
मोर मदद एक झन नइ करतिस, ऊपर ले चटकातिस माथ.
बहुत सोच के संत बने हंव, बकना परथय मुंह फटकार
एमां देह करय नइ मिहनत, यश धन आथय बन के धार.
छेरकू जउन कार्यक्रम रख दिस, ओहर घलो लाभ ला पात –
जनता मं चर्चित हो जाथय, पूर्ण करत हे खुद के स्वार्थ”.
खोरबहरा, पिनकू ला छोड़स, फिर आ गीस अपन स्थान
रुपिया मन ला गिन थय चुप चुप, लुका के राखिस जीव समान.
तभे हठील पहुंच गिस उंहचे, खोरबहरा ला दीस अवाज –
“”मंय अंव चुनू दउड़ आए हंव, तोर पास आवश्यक काम”.
खोरबहरा हा मन मं सोचिस – काबर चुनू मोर तिर अैस
ओकर कते बुता हा अरझिस, जेमां जोर अवाज लगैस ?”
खोल कपाट देखथय बाहिर, लेकिन हांसत खड़े हठील
फट हठील हा अंदर जाथय, मांस खाय बर कर्री चील.
खोरबहरा अचरज कर पूछिस -“”तंय काबर बोले हस झूठ
का कारन तंय इहां आय हस, मोला बता भला तंय छूट ?”
क्रूर हंसी हंस हठील बोलिस – “”तंय अस ज्ञानिक स्वामी संत
धन ले तंय हा घृणा करत हस, भौतिकता के चहथस अंत-
मगर शुद्ध भौतिकवादी मंय, प्रेम से राखत हंव हर चीज
अभी चढ़ौत्री जेन पाय हस, मोर हाथ पर रख बिन खीझ”.
खोरबहरा सकपका के कहिथय – “”रुपिया पाय कष्ट ला झेल
अपन हाथ मं करन सकंव नइ, अपन कमाय नोट ला नष्ट”.
“”मादक जिनिस के धंधा करथंव, तेकर तंय हा करत विरोध
पर तंय खुद कुराह पर दउड़त, ओकर मंय लेहंव प्रतिशोध”.
वाद विवाद दुनों मं बढ़ गिस, तंह हठील पर चढ़गे भूत
खोरबहरा पर वार करिस अउ, प्रान हरिस बनके जमदूत.
सब रुपिया ला कब्जा करके उहां ले निकलिस पापी ।
अइसन हतियारा मनसे ला कोन हा देहय माफी ।।
गीस अंजोरी – घर हठील हा, मगर कहां ओकर संग भेंट
दुकली जेन अंजोरी के बहिनी, ओकर संग मं होगिस भेंट.
दुकली ला हठील हा देखिस, फट ले आकर्षित होगीस
दुकली हा नीयत ला ताड़िस, घर ले बाहिर निकलिस शीघ्र.
सक्का पंजा चल नइ पाइस, तंह हठील छोड़िस ओ ठौर
मंय हा कथा ला छेंकत हंव कुछ, पाठक मन हा धर लव घीर.
चइती अपन राह पर जावत, मगर एक ठंव रोकिस गोड़
उही पास चकला घर एक ठक, अंदर घुसिस अपन मुंह मोड़.
लड़की मन सज संवर सुघर अक, हंस गोठियात मरद के साथ
चइती ला लड़की मन देखिन, ओकर तिर पहुंचिन धर पांत.
चइती हा ओमन ला पूछिस -“”कार करत तन के व्यापार
एमां तो इज्जत हा जाथय, जीवन तक हो जाथय ख्वार.”
माला बोलिस -“”काय कहन हम – धर के पेज खोजे हन काम
लेकिन कहुंचो ठिंहा मिलिस नइ, तब धर लेन गलत अस काम.
होत पुरुष मन क्रूर भयंकर, एकोकनिक मरंय नइ सोग
उनकर अत्याचार के कारन, हमला होत गिनोरिया रोग.”
“”मानत हंव मंय तुम्हर विवशता, युवती मन किंजरत बेकार
लेकिन एकर ए मतलब नइ, धथुवा धरव तन के व्यापार.
बुता बुता कहि चिल्लावत हव, चलव मोर संग मं अभि गांव
उहां श्रमिक के अड़बड़ कमती, तुम्मन पहुंच के काम बजाव.
यद्यपि उहां मिलन नइ पावय, सक ले बाहिर श्रम के दाम
पर भोजन अउ कपड़ा मिलिहय, अतका आश्वासन मंय देत.”
रुपा बोलिस -“”हम जानत हन – तंय बतात हस बिल्कुल सत्य
लेकिन काबर गांव मं जावन, हमरे बर ए नरक हा स्वर्ग.
खर्च सौंख हा बढ़े खूब तक, ओकर पूर्ति इहें हो पात
ए माहौल हमर बर रुचिकर, कम बेरा मं अधिक कमात.
शासन हमला धर के लेगिस, उहां कड़ाकड़ा ले बंध गेन
पर हम भाग इहां लहुटे हन, तब ले लगथय बने अजाद”.
चइती सुनिस नया व्याख्या जब, अचरज मं भर होगिस दंग
कहिथय -“”तुम गल्ती रद्दा पर, अपन हाथ होवत बर्बाद.
तब फिर तुम्मन काबर डारत – मरद गरीबी पर सब दोष
नारी जात कलंक हवव तुम, कोन मरय तुम पर अफसोस !
लेकिन मंय अतका फोरत हंव – सूरा हा मल ला डंट खाय
यद्यपि ओकर जीवन चलथय, पर वृष्टा जेवन नइ आय.
सूरा हा श्रम गर्त ले उबरय, भोजन खोजय अन्य प्रकार
इसने तुम्मन इहां ले उबरव, अपन भविष्य के करव सुधार.”
ओतकी मं हठील हा आइस, होवत खुश चइती ला देख
कहिथय -“”आज पता होइस सच – तोर चरित्र हा कतका साफ !
एकर पहिली तंय बोले हस – मंय हा दूसर ले बेदाग
मगर लुका के धंधा करथस, चोरी करथय लुकछिप काग.
लेकिन तंय हा उचित करत हस, अपन खर्च बर रुपिया सोंट
मंय प्रसन्न हंव देख के तोला, धंधा करत जउन कर ओंट.
मंय अपराध तोर अस करथंव तब मंय रखथंव आसा ।
अंड़े बखत मं मदद अमरबे – झन डबकाबे लासा ।।
चइती हा पर ला समझावत, मगर स्वयं पर लांछन आत
नाविक हा रक्षा बर जाथय, लेकिन खोवत खुद के जान.
चइती बोलिस -“”सुन हठील तंय – मोला झन धर अपन समान
मोर तोर हे राह अलग अस, तंय वापिस ले अपन जबान.”
अब हठील हा हेर कैमरा, फट फट लीस बहुत ठक चित्र
कहिथय -“”चइती, तंय हा सुन ले – मंय तोला समझत हंव मित्र.
टांठ बात ला जउन करे हस, ओला मंय कर देवत साफ
अब ए तनी मोर भर चलिहय, पहिलिच ले खोलत हंव साफ.
तोर मदद मंय जभे मांगिहंव, खत्तम रखबे बात के मान
मोर विरुद्ध चाल यदि चलबे, तब तो तोर बहुत नुकसान.
तोर चित्र मंय खींच धरे हंव, ओकर होहय गलत प्रचार
तंय बदनाम हो जबे सब तन, इज्जत गिरिहय मुड़ के भार”
चइती क्रोध गुटक के निकलिस, शांतिदूत कार्यालय अैस
उहां छेरकू अउ जहरी ला, आपुस मं गोठियावत पैस.
छेरकू बोलिस -“”काय कहंव मंय – जनता के करथंव उपकार
ओहर गुनहगरी बेअकली, मोर हइन्ता करथय झार.
लेखक औरत महिला रोगी, मतदाता मजदूर किसान
एमन होथंय देश के दुश्मन, यने होत सब ले बइमान.
“”मंय कुछ दिन पहिली विदेश गेंव
उहां अतेक ऊंचा पीढ़ी दीन के
सच बताय मं आवत लाज
उहां के जनता
अपन देश बर ईमानदार हे
अउ इहां के मनखे के चाला ला परखथंव-
ते मोर मुड़ी हा
अपने आप खाल्हे कोती निहर जाथे.
बार बार हड़ताल अउ करथंय घेरी बेरी मांग.
एमन ला देख के
मोर तन बदन मं अंगार धधक जाथय
पर आखिर कर देथंव माफ.”
एकर बाद किहिस अउ छेरकू -“”ऊपर केहेंव बात अभि जेन
ओला मन मं लुका के रखबे, एकर झन करबे कुछसोर.
अब ए डहर जउन मंय बोलत, ओला अपन पत्र मं छाप
जनता पढ़के गदगद होवय, ओकर हटय फिकर संताप –
“”शासन हा सब ला सुख देहय, बस नेता अस झाराझार
कृषक के लागा माफी होहय, युवक हड़प लेहंय रोजगार.
श्रमिक के मजदूरी हा बढ़िहय, बालक मन शिक्षा अउ खेल
अबला मन हर हक ला पाहंय, यने न्याय सब झन के साथ -”
छेरकू हा जहरी ला बोलिस -“”तंय हा जोड़ सकत अउ पंक्ति
हमर घोषणा पढ़ंय लोग तब, सब दिन अस मन राखंय भक्ति”.
जहरी खलखल हांसत बोलिस -“”वाकई तंय हस बहुत चलाक
केकरा असन चाल ला चलथस, तब कुर्सी पर सदा बिराज”.
तब पिनकू हा आके बोलिस – “”मेहरुभेजिस रचना एक
करके कृपा छाप दव एला, लिखे हवय वैचारिक लेख”.
पिनकू हा रचना हेरिस अउ जहरी डहर बढ़ाइस ।
लेकिन जहरी छेंकिस सम्पादक के चाल बताइस ।।
कहिथय -“”तंय दानी ला जानत, जे साहित्य मं हे विख्यात
ओकर छपे बहुत ठक पुस्तक, कई संस्था ले पाय इनाम.
दानी हा रचना भेजिस हे, ओला मंय देवत स्थान
जलगस ओकर रचना छपिहय, दूसर ला नइ देंव जबान.
मेहरुगांव गंवई मं रहिथय, कहां लिख सकत लेख यथार्थ
नाम कमाय अगर मन होवत, कविता छोड़ करय परमार्थ”.
पिनकू काबर उहां बिलमतिस, ओ तिर ला फट कर दिस त्याग
बाहिर मं आइस तब देखिस, युवक करत हें हक के मांग
मार अवाज युवक चिल्लावत -“”हम देवत हन कतको बांग
लेकिन शासन सुनइ करत नइ, टुकनी फेंका जथय सब मांग.
हम शिक्षित हन तभो निठल्ला, अब तक कहां पाय रोजगार !
पर मन कमा पेट ला तारत, तिसने हमूं चहत अधिकार”.
बुल्खू उही जगह मं पहुंचिस, युवक ला देखिस हालबेहाल
उंकर समर्थन करना वाजिब, तब देवत हे नेक सलाह.
बुल्चू बोलिस -“”स्वीकारत हंव – तुम्मन हेरत हव सच बोल
जउन बेवस्ता अपन बतावत, ओमां एकोकन नइ पोल.
पर एक गोठ निचट अंदरुनी – जब तक भुकरत पूंजीवाद
तुम्हर समस्या हल नइ होवय, बेकारी लुटही मरजाद.
वर्तमान शासन हा देवत – आश्वासन अटपट गोठियाय
पर सब झन के पेट हे रीता, होत हवय जन पर अन्याय.
तरहा तरहा जउन बनावत, ओकर जड़ ला कोड़ गिराव
बिगर अधर तंह भर्रस गिरिहय, सब ला मिलिहय जेवन छाय”.
नवजवान मन किरिया खाइन – शासन संग करबो संघर्ष
ठाड़ बाय नइ रहन हमन हा, जलगस नइ आहय सुख हर्ष.”
बुल्खू बोलिस – “”तुम बोले हव, ओमां मंय कुछ करत सुधार
यदि तुम्मन सुख शांति के इच्छुक, बुद्धि शांत रख करव उपाय.
शासन गलत नीति पर रेंगत, ओकर करव अवश्य विरोध
यदि जनहित मं नीति लाभप्रद, देव समर्थन द्वेष ला त्याग.
गरम खून ला मंय देखे हंव – असफलता मं होत निराश
तहां आत्महत्या तक करथंय, अपन हाथ मं बनथंय लाश.
पर सच मं एहर कायरता, शोषक ले तुम हा डर गेव
क्षणिक उत्तेजना हा आखिर मं, तुम्हर प्राण के ल ेलिस हूम.
मंय सलाह देवत अतकिच अस – होवत तुम पर अत्याचार
अत्याचार ला सहि लव बिन मन, काबर के तुम निर्बल दीन.
पूंजीपति के तिर धन रुपिया, ओहर बिसा सकत हर चीज
तुम्हर बीच के मित्र बिसा के, बना सकत हे शत्रु तुम्हार.
शासन तिर कानून नियम हे, अधिकारी जनशक्ति अपार
पत्र विचार प्रचार के माध्यम, याने शासन सक्षम खूब.
शासन पूंजीपति के संग यदि, करिहव खुले आम संघर्ष
उनकर पद उद्योग सुरक्षित, तुम्हर हो जाहय खुंटीउजार.
होगिस पश्त श्रमिक आंदोलन, श्रमिक युवक झेलिन नुकसान
हमूं उही तोलगी ला पकड़त, सब उद्देश्य हा चरपट नाश.
अपन स्वार्थ के पूर्ति करत तुम, खूब बढ़ाव शक्ति सामथ्र्य
शासन मं घुसपैठ करव अउ, पूंजीक्षेत्र तुम्हर विश्वस्त.
जब तुम शक्तिवान हो जाहव, करव शत्रु पर विकट प्रहार
तुम्हर भविष्य हा पूर्ण सुरक्षित, सबके आवश्यकता पूर्ण.”
बुल्खू हा जे शब्द निकालिस, तेला युवक सुनिन कर चेत
कतको नीति ला अस्वीकारत, पर आखिर मं इज्जत दीन.
होवत जउन संतुलित जेवन, मांस शाक मीठा नमकीन
पात शरीर जमों कैलोरी, तब पावत दीर्घायु निरोग.
ओतकी मं छेरकू हा आथय, तंह बुल्खू हा हाथ मिलैस
यदपि कुथा हे राह काम दल, पर संबंध ला राखत मीठ.
बुल्खू हा छेरकू ला बोलिस -“”शिक्षित युवक करत हें मांग
इंकर मांग पर ध्यान देव तुम, आय समस्या ला सुलझाव.
युवक किसान श्रमिक मन होथंय, अपन राष्ट्र के मुख्य स्तम्भ
अगर इंकर आवाज ला दाबत, देश उठाथय कई नुकसान.
दंगा हिंसा धार्मिक झगड़ा, आंदोलन आतंक षड़यंत्र
अनाचार विद्रोह गद्दारी, देश बंटत हे कइ ठन भाग.
शासन मं तंय हा बइठे हस, युवक के मांग ला सुन कर चेत
अपन शक्ति भर मदद ला पहुंचा, इंकर जीविका बर कर काम.”
बुल्खू के नक्सा मारे बर, खुद ला सिद्ध करत हे श्रेष्ठ
छेरकू जमों तर्क ला काटत, मात्र चलावत अपन विचार-
“”तंय हा सिर्फ बात मं बोलत, पर हम करत ठोसलग काम
युवक के भलाई होवय कहि, पारित हवय योजना चार”.
छेरकू किहिस नवयुवक मन ला – “”वास्तव मं तुम होवत नष्ट
लेकिन तुम्मन फिकर करव झन, मंय खुद भिड़ के हरहूं कष्ट.
आत दुर्ग मं मुख्यमंत्री हा, मंय जावत हंव ओकर पास
तुम्मन घलो मोर संग रेंगव, ए तिर करव समय झन ख्वार.
आय जाय बर फिकर करव झन, ट्रक बस के हम करे प्रबंध
जेवन अउ कुछ रुपिया मिलिहय, एला झन समझव फरफंद”.
छेरकू हा बरगला डरिस तंह, फेंकिन युवक मांग के डांग
छेरकू साथ भरभरा चल दिन, अपन हाथ मं मेटिन मांग.
बुल्खू पिनकू खड़े उहिच कर, बुल्खू हा बोलिस कुछ हांस –
“”छेरकू के करनी ला देखव – फट ले करिस मांग ला नाश.
हम तुम बक खा इंहे खड़े हन, छेरकू संग चल दीन जवान
गंजमिज भीड़ दुर्ग मं बढ़िहय, तंह छेरकू पाहय सम्मान.
मगर युवक मन ला का मिलिहय, हो दिग्भ्रमित रेंग दिन राह
वाजिब बात के पत ला मेटत, सुघर लगत हे गलत सलाह.
पर आखिर मं करत निरीक्षण – हमर युवक मन हा निर्दाेष
अपन भविष्य कतिक ला देखंय, जब पावत तात्कालिक लाभ.
बुल्खू हा ओ तिर ला छोड़िस पिनकू टहलत फांका ।
मींधू ला कहुं जात देख के ओहर मारिस हांका ।।
पिनकू पूछिस -“”नइ जानस का – चल दिन दुर्ग बहुत इंसान
तंय हा काबर उहां गेस नइ, इहिच शहर मं देवत जीव.
अगर तंहू हा उंहचे जाते, वाहन तक के मुफ्त प्रबंध
आनी बानी जेवन मिलतिस, ऊपर ले नगदौवा नोट ?”
मींधू हा हड़बड़ागे पहिली, गला मं रुकगे सतम जुवाप
ओहर धरे काम कुछ दूसर, उही बात ला सोचत आप.
बहुत बाद मं सोच के बोलिस -“”यद्यपि मंय हा पढ़े जवान
पर, पर ले चाला हे उत्तम, रुपिया बर देवंव नइ जान.
अन्य नवयुवक मन लालच मं, बेच सकत हें भारत देश
लेकिन मंय हा रक्षा करिहंव, जलगस तन मं जीवन शेष.”
पिनकू कहिथय -“”मान सकत हंव, तंय हा बात करत हस ठोंक
लेकिन सम्हर ओढ़ दूल्हा अस, कहां जात हस बनके टंच !
उंचहा घड़ी हाथ मं चमकत, सोन के मुंदरी नरी मं चैन
कोट अउर फूलपेंट हने हस, मटकावत चंवतरफा नैन.
याने अड़बड़ खर्च करे हस, पाय कहां के अतका नोट
मोर पास सच उत्तर ला रख, यदि नइ परत हृदय पर चोट ?”
पिनकू खूब चेंध के पूछत, पर मींधू उत्तर नइ देत
सोचत-काम बिगाडुक हा अब, भेद बताय मांस ला खात.
मींधू बात घुमाय ला बोलिस -“”सपसप करत मोर अब पेट
चल पहिली कुछ जिनिस उड़ावन, तंहने ढिलिहंव उत्तर हेट.”
पिनकू ला बरपेली झींकिस, कचरा होटल मं बइठैस
कई प्रकार के जिनिस खाय बर, कर आदेश तुरुत मंगवैस.
खाद्य पदार्थ हा जहां आगे, पिनकू टप टप झड़कत माल
मींधू अउ दूसर मन हांसत, देख के ओकर कंगलइ हाल.
बालम कथय -“”आज देखत हन – यह तो बिकट हदरहा जीव
जिनिस भगावत तइसे ओइरत, एकोकनिक धरत नइ धीर.”
मींधू अउ दूसर मन छोड़िन, अपन प्लेट मं बहुत समान
पर पिनकू हा जमों गपक दिस, अन्न के झनिच होय हिनमान.
फत्ते हा मींधू ला पूछिस – “”कहां के पेट मंहदुर ला लाय
मोला तो असभ्य अस लगथय, जीवन उच्च जिये नइ आय ?”
पिनकू छरिस -“”जिनिस यदि छोड़त, जनता संग मं धोखा घात
हमर देश के कतको मनसे, पेटभरहा भोजन नइ पात
तुम अनाज ला नष्ट करत हव ओला छोड़ के जूठा ।
इही टेस के कारन मारत भूख रोग हा जूता ।।
फत्ते खुद ला ऊंचहा मानत, तब ओला चढ़गे कंस क्रोध
पिनकू के दर्जा गिराय बर, सब ला सुना के डांटत खूब –
“”वह रे राष्ट्रभक्त परमार्थी, बहुत दिखात नेक सिद्धान्त
होटल के तंय निकल कलेचुप, वरना तोर अवस प्राणान्त”.
पिनकू हा फत्ते पर बखलिस -“”मंय ताकत मं बहुत सजोर
तोला रचका खेद सकत हंव, मार सकत हंव नक्सा तोर.
पर फोकट के झगरा बढ़िहय, इहां आय हें अउ कई लोग
उंकरो शांति भंग हो जाहय, तब मंय रहि जावत चुपचाप.”
अैस उमेंदी संग मं कंगलू, अउ गोबरुजुगबती सुहान
एमन हा अनाथ लइका एं, जीयत भूख बिपत ला ताप.
किहिंस उमेंदी हा कचरा ला -“”तंय जानत हस परिचय मोर
मंय पहिली के आंव विधायक, मांगे के आदत हे मोर.
पलिही मंय हा वोट ला मांगव, उही सुभांव करत हंव मांग
मोर साथ लइका आए हें, एमन हा असहाय अनाथ.
इंकरे बर होटल मं जाथंव, जिनिस मांगथंव जूठा शेष
अदमी मन के कपड़ा मंगथंव, ताकि ढांक ले खुल्ला देह.
तोर ले तक मंय रखत अपेक्षा – जूठा जिनिस ला कर दे दान
एकर ले कई लाभ हो जाहय, तोर होय नइ कुछ नुकसान.
जेन जिनिस हा फटका जाथय, पर अब नइ होवय बर्बाद
बच्चा मन के पेट भराही, एमां तोर जसी जयकार.”
कचरा हा अकचका के बोलिस – “”तंय हा फभे के लाइक बोल
मंय जूठा ला कइसे देवंव, मोला ब्यापत बुरा कनौर.”
“”बेरी बेरी दउड़ के आहंव, जिनिस मांगहूं आरुग साफ
मोला देख घृणा तंय करबे, आखिर मं करबे इन्कार.
जेन जिनिस मंय हा मांगत हंव, सक्षम के फेंके के आय
पर अभाव मं जेहर जीयत, ओकर बर एहर बहुमूल्य.
जे पर के फेंके के लाइक, ओहर इनकर बर स्वीकार
तंय हा आनाकानी झन कर, हरहिन्छा दे जूठा चीज.”
“”तंय बोलत तेला मानत हंव, उठा लेग मनमाफिक चीज
पर झन होय मोर नकमरजी, एकोकनिक आय झन आंच.”
बालक मन जूठा ला सकलिन, उंकर हृदय होगिस खुश खूब
किहिस उमेंदी ला फत्ते हा – “”मंय हा शर्मिन्दित हंव आज.
हम्मन टेस टास मारे बर, प्लेट मं छोड़त खाय के चीज
एक डहर हम जेवन फेंकत, दूसर तन भुखहा हें लोग.
यदि मनखे हा खुद सुधरय अउ, करय चीज के सदउपयोग
तब एकोझन भूख मरय नइ, सबके पेट रही दलगीर.”
फत्ते हा रुपिया ला हेरिस, ओला कचरा ला पकड़ैस
बोलिस -“”तंय हा बांथ दे बढ़िया, स्वादिल जिनिस मीठ नमकीन.
मंय अनाथ मन ला का देवंव, मोर डहर ले अतकिच भेंट
कहिथंय – पर के मदद करइ मं, धन हा बढ़त ऊन के दून.”
कचरा हा समान ला बांधिस, लइका मन ला पकड़ा दीस
फत्ते हा पिनकू ला देखत, ओकर आंख कृतज्ञ के भाव.
फत्ते हा होटल ले निकलिस, गीस उमेंदी बालक साथ
अब आगू कोती का होवत – ध्यान लगा के देखव हाल.
मींधू हा कचरा तिर अमरिस, झट हेरिस चरपा अस नोट
रुपिया के गड्डी ला देखिस, पिनकू हा चाबत हे ओंठ.
अचरच भर मन अंदर सोचत – यहू दूसरा अस बेकार
कहां ले पाइस अड़बड़ रुपिया, पता चलत नइ कुछ सच सार !
दूनों झन होटल ले निकलिन, तंह मींधू हा हेरिस बोल –
“”मोर बात झन बुरा मानबे, मंय बोलत हंव अंतस खोल.
तोर साथ ला मंय छोड़त हंव, अरझे हवय एक ठन काम
ओला मंय हा अब निपटाहंव, रुकन पांव नइ खमिहा गाड़.”
पिनकू किहिस -“”उहिच मंय सोचत, मंय हा घलो बिलम नइ पांव
तोर ले पहिली झप खसकत हंव, कतको बुता करत हें खांव.”
पिनकू हा मींधू ला छोड़िस, ओ तिर ले खसकिस कुछ दूर
कोन्टा लुका अपन मन सोचत -“अब रहस्य के पता लगांव.
मींधू कहां ले रुपिया पाइस, ओकर काय अरझगे काम
सत्य बात के पता लगाय तब, मन के शंका लिही अराम.’
दूसर तन मींधू हा सोचत – कते डहर ले पिनकू अैस
दुनिया भर के भेद ला पूछिस, सच बताय मोला चमकैस.
पर ओकर ले मंय चलाक हंव, हटा देंव जतका अस विघ्न
अब मंय फिक्कर ले दुरबाहिर, होहय बुता पूर्ण निर्विघ्न.
ओकर काम ला पाठक सुन लव – हवय शहर मं नलघर एक
नल ले फइलत उहां के जल हा, उही ला पीथंय जीव अनेक.
मींधू तिर मं तीक्ष्ण जहर हे, जहर ला जल मं करिहय मेल
जतका मनसे पानी पीहंय, उंकर खतम जीवन के खेल.
मींधू सावधान बन तरकत, पहुंच गीस नलघर के पास
गलत बुता करना ते कारन, ऊपर तरी होत हे सांस.
तीक्ष्ण जहर ला हेर लीस अउ, आगू तन के करिस उपाय
ओतकी मं पहुंचिस पिनकू हा, मींधू पास बम्ब अस धांय.
मींधू के विष ला टप झटकिस, कहिथय – “”एहर काय मितान
लगत – खाय के जिनिस धरे हस, चल तो भला दुनों झन खान.
अरे अरे मंय गल्ती बोलत, उत्तम चीज तोर भर आय
तभे खाय के तोरेच हक हे, तब तंय हा बस स्वयं गफेल.”
पिनकू हा विष ला खावय कहि, मींधू डहर लेगथय हाथ
मींधू हा पंचघुंच्चा घुंचथय, किसनो कर बचाय बर जान.
पिनकू बोलिस -“”काबर भागत – तंय हा धरे हवस का चीज
एकर ले का रउती करबे, सच सच बता अपन उद्देश्य ?”
मींधू हा सब भेद खोल दिस -“”मंय हा जहर रखे हंव साथ
एला जल मं मेल दुहूं तंह – पटपट मर जाहंय सब जीव.
सच बिखेद ला मींधू फोरिस, तंह पिनकू हा छोड़िस सोग
मरते दम मींधू ला दोहनत, ओहर हवय घलो ए जोग.
पिनकू छरिस -“”काय पाते तंय मनखे के कर हत्या ।
काकर बुध ला मान चलत हस खोल मोर तिर सत्तम ।।
मींधू हंफरत हलू निकालिस -“”तंय जानत हस जीवन मोर
मंय हा शिक्षित पढ़े युवक अंव, मगर काम बिन किंजरत खोर.
इही बीच मं एक विदेशी, मोर पास पहुंचिस चुपचाप
ओहर बोलिस – “”मंय हा हरिहंव, तोर जतिक अस दुख संताप.
मंय तोला रुपिया देवत हंव, पर तंय उठा एक ठक काम
पानी मं विष मिला बेहिचक, रखिहंव गुप्त तोर जे नाम.”
मंय घोखेंव -“”चहत हंव मंय हा – बढ़िया शासकीय पद एक
यदि मोला रुपिया मिल जाहय, तंहने पटा दुहूं फट घूंस.
फिर नौकरी तो खत्तम मिलिहय, भरभर बर जाहय दुख फूस
आय विदेशी तेकर मानों, तभे लक्ष्य आहय खुद दौड़.”
रुपिया ला गिन दीस विदेशी, बढ़िस बिकट लालच के रोग
ओकर बात मान के मंय अभि, काम अनर्थ करत बिन सोग.”
पिनकू बोलिस – “”अर्थ पाय हस, ओकर ले मोला नइ अर्थ
बता विदेशी के छैंहा ला, वरना भगा जहय ठंव छोड़”.
मींधू हा स्वीकार करत नइ, ओहर फंसे कड़क दू ओर
खाई कुआं दुनों जब संघरा, कते कते तन लेगय गोड़.
आखिर मींधू हुंकी ला भर दिस – “”बने के बिगड़य भावी मोर
कहां विदेशी चुप बइठे हे – चल बतात हंव ओकर धाम”.
दूनों झन थाना मं चल दिन, उहां हे अगमा थानेदार
जहां शत्रु के भेद ला खोलिन, अगमा के नटिया गे आंख.
थानेदार चटापट दउड़िस, आरक्षक दल धर के साथ
जहां लुका के हवय विदेशी, उंहचे दबिस दीन तत्काल.
खतरा देखिस जहां विदेशी, खसके बर होवत हुसियार
लेकिन ओहर तरक सकिस नइ, नरी ला धरलिस थानेदार.
जब कमरा के जांच हा होइस, मिलिस उहां पर नोट अपार
गांव देश के नक्शा मिलथय, एक सेक घातक हथियार.
अगमा हा खखुवा के पूछिस -“”तंय हा इहां आय हस कार
मींधू ला चलवात कुरद्दा, अपन भेद ला सच सच खोल ?”
“”मंय ए देश आय एकर बर – भारत देश मचय खुरखेद.
शासन के विरोध जे करथय, जे अशांत द्रोहिल कंगाल
ओला हम बनात आतंकी, ओकर मदद करत हर हाल.
आंतकी मन हमर मानथंय, तोड़ फोड़ कर लेथंय जान
इही समस्या ले निपटे बर, भारत देश के जाथय जान.
वाजिब उन्नति होन पाय नइ, अधर मं लटकत जमों विकास
तंहने भारत देश हा होथय, अन्य देश के आर्थिक दास”.
अगमा हा खखुवा के बोलिस -“”चल संग मनुखमार जासूस
थाना मं फिर अउ बोकराहंव, मरते दोंगर रहस्य ला पूछ”.
पिनकू अउ मींधू ला बोलिस – “”तुम पकड़ाय शत्रु ला आज
तुम्मन हव तारीफ के काबिल, होत हवय भारत ला नाज.
मानव के हित करय जउन हा, हम चाहत हिम्मती जवान
मुड़ हा ऊपर होत गरब मं, तुम्मन देशभक्त इंसान”.
थानेदार ला पिनकू बोलिस -“”जनता के जीवन बच गीस
ओमां मोर हाथ नइ थोरको, बस मींधू भर करिस कमाल.
एहर अपन साथ मं लेगिस, याने बना सहायक एक
बरदी के चरवहा हा रखथय, मदद करे बर टेचा एक”.
थानेदार विदेशी मन गिन ओ तिर छोड़ के थाना ।
मींधू पिनकू काबर रुकतिन परगे पांव बढ़ाना ।।
“”मंय हतियारा लालच मं पर, जोंगे रेहेंव क्रूर के काम
लेकिन तंय हा बीच मं आके, छेंक देस होवत अनियाव.
अउ उपरहा मोर रक्षा बर, करत प्रशंसा रख के तर्क
वाकई तोर मोर मं अंतर, अमृत विष मं जतका फर्क”.
मींधू हा धथुवा के बोलिस, तंह पिनकू हा पारिस बेंग-
“”मोला चढ़ा अकास झनिच तंय, झन कर अभिच प्रशंसा नेंग.
वरना तोला फंसा दुहूं मंय – तंय हड़पे हस नंगत नोट
ओकर भेद खोलिहंव सब ठंव, तंहने फइल जहय हर ओंठ.
तोर राह हा ठीक के गल्ती, अपन कर्म के चहत हियाव
बइसाखू व्याख्याता तिर चल, उही हा करही सही नियाव.
साहित्य क्षेत्र मं आय समीक्षक, लेख सुधारत करके वार
पर यथार्थ घटना जे घट गिस, ओकर पर का रखत विचार ?”
एमन बइसाखू तिर पहुंचिन, मिलगे उंहचे बालक एक
बइसाखू के पुत्र ए छबलू, ओकर गाल चिकोटी देत.
एमन फोरिन पूर्व के घटना, बइसाखू व्याख्याता पास
बइसाखू हा बात समझ के, सोचत देखिस ऊपर अकाश.
मींधू पर ललिया के भड़किस – “”तोर काम ले आवत शर्म
ककरो प्रान ला जबरन छिनना, कहां आय मानव के धर्म !
मगर खुशी ए बात के होवत – जग मं बांच गीन निर्दाेष
अब ले ठीक चाल रेंगे कर, सदा रखे कर कायम होश.
गलत काम कर नोट पाय हस, याने करे हवस अपराध
पर मंय तोला क्षमा देत हंव, अब पूरा कर खुद के साध.
सांप के विष जीवन ला हरथय, कांटा हा गड़ सुख हर लेत
पर कांटा ले कांटा निकलत, विष औषधि बन जीवन देत.
घूंस खवा के झटक नौकरी, अउ जनता के कर उपकार
शोषक द्रोहिल ले टक्कर कर, तब निवृत्ति दोष के भार”.
मींधू बोलिस – “”तंय बफले हस, बुरा लगिस पर मिलही लाभ
व्यासी बखत धान मुरझाथय, मगर बाद उमछावत तान”.
मींधू तिर मं मिठई हे थोरिक, ओला खाय छबलू ला दीस
छबलू मार गफेला खावत, पर ला कुटका तक नइ दीस.
पिनकू हा मींधू ला बोलिस -“”छबलू ला पटाय हस घूंस
शुभ मुहूर्त के कारण मिलिहय, तोला अवस शासकीय काम”.
सब झन हंसिन खलखला तंहने पिनकू नापिस रस्ता ।
आगू तन के दृष्य देख के रहिगे हक्का बक्का ।।
लगे चुनू के हाथ मं बेली, दू आरक्षक ओकर साथ
पिनकू पूछिस -“”दंग होत हंव, तोर अभी के हालत देख.
ककरो ऊपर दुख आथय तब, करथस मदद हड़बड़ा दौड़
कभू गलत रद्दा नइ रेंगस, देत नियम कानून ला साथ.
मगर आज का जुरुम करे हस, लगे हवय का धारा ठोस
आखिर काय बात ए वाजिब, अपन समझ के फुरिया साफ ?”
कलपिस चुनू – “”नेक मनखे हा, अपन ला बोलत निश्छल नेक
ओकर पर यकीन नइ होवय, दुश्चरित्र के लगथय दाग.
तइसे निरपराध हंव मंय हा, पर प्रमाण बर मुश्किल होत
मगर तोर ले अतका मांगत – मोर व्यथा पर कर विश्वास.
खोरबहरा के हत्या होगिस, दूसर व्यक्ति करिस अपराध
पर अधिनियम हा मोला धांधत, मोर मुड़ी पर डारत दोष.
“तीन सौ दो’ धारा हा पकड़त, तब हथकड़ी लगे हे हाथ
मोर खिलाफ दर्ज हे प्रकरण, न्यायालय मं मोर बलाव.
मंय अब तक विश्वास रखे हंव, जब वास्तव मं मंय निर्दाेष
मोला दण्ड मिलन नइ पावय, छेल्ला घुमिहंव इज्जत साथ”.
पिनकू बोलिस -“”निरदोसी हस, यदि तंय दण्ड मुक्त हो जात
तंय हा दूध भात ला खाबे, हमर हृदय के खिलही फूल.
पर तंय धोखा मं झन रहिबे, सावधान रहिबे हर टेम
अपन ला सुरक्षित राखे बर, पहिलिच ले प्रबंध कर लेव.”
तभे अैन सुखमा अउ नीयत, ओकर साथ एक ठन भैंस
सुखमा पूछिस -“”पहिचानत हव – एहर आय सुंदरिया भैंस ?”
चुनू अपन विपदा ला भूलिस, कहिथय – “”मंय हा जानत खूब
एहर दुर्घटना मं घायल, अब तब छुटतिस एकर प्रान.
बपरी के उपचार करे बर, तोर पास हम धर के गेन
अब भैंसी के तबियत उत्तम, घोसघोस ले मोटाय हे देह.”
सुखमा बोलिस -“”तुम्हरे कारन, बपरी हा जीयत हे आज
बिगर पुछन्ता के यदि होतिस, खुरच खुरच के देतिस जान.”
पिनकू हा सुखमा ला बोलिस -“”तंय हा करे हमर तारीफ
ओकर ले हम गदगद होवत, मगर चुनू के दुर्गति देख –
मरत रथय के जीव बचाथय, अउ असहाय के टेकनी आय
खुद हा निरपराध हे तब ले, फंसगे हत्या के अपराध.”
सुखमा बोलिस – “”दंग होत हंव – वाकई होय गलत अनियाव
जे मनसे ईनाम ला पातिस, ओला कार मिलत हे दण्ड !
पर मोला विश्वास अभी तक – चुनू करे हे हित के काम
ओकर फल मं अच्छा मिलिहय, सब प्रकरण हो जही समाप्त.”
सब झन अपन राह पर रेंगिन, पिनकू हा सुन्तापुर गांव
ओला जहां सनम हा मिलथय, पूछत हवय गांव के हाल –
“”खूंटा गाड़ गांव मं रहिथस, तब तंंय समाचार ला बोल
तोर ददा के तबियत कइसे, ओकर हालत ला सच खोल ?”
सनम किहिस – “”मंय दुख का रोवंव, दुख हा आवत धर के रेम
सुख ला हांका पार बलावत, पर आखिर होगेंव बर्बाद –
केकती नामक गाय रिहिस हे, उही गाय गाभिन हो गीस
ओला देख ददा ला फूलय, केकती के कंस जतन बजाय.
बोलय -“”गाय बियाही तंहने, देहय दूध कसेली एक
मोर गली नाती बर बढ़िया – पिही पेट भर मिट्ठी दूध.
हम्मन खाबो खीर सोंहारी, तब ले बचिहय कतको दूध
ओकर दही मही बन जाहय, तंहने हेर सकत हन घीव.
पर दुर्घटना इही बीच मं, केकती ला बघवा धर लीस
जहां ददा हा खभर ला अमरिस, गाय पास पहुंचिस तत्काल.
शेर हा गाय ला धरे जम्हड़ के, पीयत हवय सपासप खून
ओला जहां ददा हा देखिस, एकर घलो उबलगे खून.
अपन शक्ति भर लउठी तानिस, शेर ला मारत हेरत दांव
कतका मार शेर हा खावय, ददा उपर कूदिस कर हांव.
शेर ले मनसे के कम ताकत, बघवा लीस ददा के जीव
ओकर पहिली बच नइ पाइस, गाभिन गाय के तलफत जान.”
पिनकू हा दुख मान के कहिथय – “”वन के पास करत हम वास
होत हमर बर अति दुख दायक, जीयत जीव बनत हे लाश.
वन्य जीव मन नंगत बाढ़त, एकर ले खतरा बढ़ गीस
फसल मनुष्य अउ पशु ला मारत, निर्भय किंजरत उठा के शीश.
लकड़ी कटई बंद हे कड़कड़, र्इंधन बर लकड़ी नइ पात
वन के पास बसत हन हम्मन, मात्र पेड़ देखत रहि जात.
पर्यावरण के रक्षा खातिर, खूब उपाय करय सरकार
मगर हमर तकलीफ ला देखय, वरना वन तिर रहई बेकार.”
कहिथय सनम -“”एक ठन अउ सुन – दुखिया अउ गरीबा के हाल
दुनों एक संग जीवन काटत, रेंगत गली उठा के भाल.
अंकालू ला खुशी नइ पाइस, मृत्यु लेग गिस करके टेक.
हवलदार ला तंय जानत हस – गिरिस कुआं मं भर्रस जेन
ओकर खूब इलाज चलिस हे, पर बन गीस काल ले ग्रास.
पोखन खड़ऊ मं चढ़के रेंगिस, ओला जिमिस धनुष टंकोर
घटना के संबंध मं होवत – अटपट बात गली घर खोर.
मनसे मन चुप चुप गोठियावत – देवारी हा आगिस पास
टोनही मन के जिव करलावत, तभे पांच झन बनगे लाश.
अब टोनही मन पांचों झन ला, बना के रखिहंय रक्सा भूत
तंह जीयत ला भूत धराहंय, जीव घलो लेहंय कर नेत.”
पिनकू कुछ मुसका के बोलिस -“”घर ला लेत अंधविश्वास
एकर होत विरोध खूब जम, तभो ले आखिर बनथन दास.
एकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी ।
सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि के मानी ।।
एकर बाद चलिस पिनकू हा, देखत हवय गांव के काम –
परब देवारी तिर मं आवत, मनसे मन के बंद अराम.
देवारी के अड़बड़ बूता, ककरो उल नइ पावत ओंठ
मांईलोगन मन भिड़ पोतत, फूल उतारत भिथिया कोठ.
दूसर दिन पिनकू के संग मं, मेहरुके फट होगिस भेंट
पिनकू हा रचना ला हेरिस, कर दिस मेहरुके अधिकार.
कहिथय -“”तोर स्तरीय रचना, रखे जउन मं उच्च विचार
ओला जहरी हा लहुटा दिस, छापे बर कर दिस इंकार.
एकर ले तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराश
तंय भविष्य मं रचना लिखबे, या लेखन ला करबे बंद ?”
मेहरुहंस के उत्तर देथय -“”करत कृषक मन कृषि के काम
मिहनत कर नंगत व्यय करथंय, पर फल मं पावत नुकसान.
पर कृषि कर्म ला कभु नइ छोड़य, चलत राह पर कर उत्साह
साहस करके टेकरी देवत, तभे विश्व ला मिलत अनाज.
उही कृषक के तिर मंय बसथंव, तब उत्साह रखत हंव पास
कतको रचना लहुट के आवत, मगर दूर मं रहत निराश.
सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग ला छोड़ चलत हें राह
समय विचार बदल जाथय जब, तब ओला करथंय स्वीकार.
चर्चित अउ परिचित लेखक ला, सम्पादक मन स्वीकृति देत
उनकर रचना ला नइ जांचंय, भले लेख होवय निकृष्ट.
सम्पादक के कुर्सी पावत, तंहने खुद ला समझत श्रेष्ठ
श्रेष्ठ लेख ला टुकनी फेंकत, साहित्यिक कृति करथंय नष्ट.
साहित्य मं परिवर्तन आथय, तउन ले सम्पादक अनभिज्ञ
लेखक जउन करत परिवर्तन, ओहर खावत हे दुत्कार.”
मेहरुहा ठसलग गोठिया के, उहां ले सरके करिस प्रयास
पिनकू पूछिस -“”कहां चलत हस, मोर पास कुछ समय तो मेट ?
देवारी हा लकठा आगे, जावत शहर फटाका लाय
नंगत असन बिसा के लाबे, हमूं ला देबे धांय बजाय.”
मेहरुकिहिस -“”मोर ला सुन तंय – मंय खैरागढ़ जावत आज
घुरुवा मन के चलत अदालत, ओकर अंतिम निर्णय आज.
एकर पहिली बल्ला मालिक, घुरुवा मन के बनिन गवाह
मुजरिम मन हा बच जावय कहि, ओमन बोल के हेरिन राह.
मेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन – बिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथ
एमन अब खैरागढ़ जावत, बपुरा मन असहाय अनाथ.
न्यायालय के तिर मं पहुंचिन, खेदू संग होगिस मुठभेड़
खेदू ला बिसनाथ हा पूछिस -“”साफ फोर तंय खुद के हाल.
तंय अपराध करे हस कइ ठक, न्यायालय का दण्ड ला दीस
कतका रुपिया के जुर्माना, कतका वर्ष के कारावास ?”
खेदू बफलिस -“”अटपट झन कह, तुम्हर असन मंय नइ अभियुक्त
मोर बिगाड़ कोन हा करिहय, मंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त.
छेरकू हा आश्वासन देइस ओला कर दिस पूरा ।
जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा ।।
यने राज्य शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला मोर
न्यायालय हा धथुवा रहिगे, मोर उड़त सब दिशा मं सोर.”
बिरसिंग कथय -“”समझ ले बाहिर, जब तंय वास्तव मं अभियुक्त
अर्थदण्ड अउ जेल मं जातेस, पर हरहा अस किंजरत मुक्त.
हम निर्दाेष हवन सब जानत, तभो ले फांसत हे कानून
हम्मन निर्णय मं हा पावत – इही सोच तन होवत सून.”
घुरुवा मन के समय अैस तंह, न्यायालय के अंदर गीन
इनकर निर्णय ला जाने बर, कतको मनसे भीतर गीन.
मोतिम न्यायाधीष उपस्थिति, मुजरिम मन कटघरा मं ठाड़
इंकर हृदय हा धकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़.
हरिन डरत हे देख शिकारी, मछरी डरत देख के जाल
टंगिया देख पेड़ थर्राथय, हंसिया ले भय खात पताल.
न्यायाधीष हा निर्णय देइस – “”हाजिर हें अपराधी जेन
तुम पर चार लगे हे धारा, जेहर एकदम कड़कड़ ठोस.
पांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिस, एमन दुनों सिद्ध नइ होय
तब आरोप मुड़ी ले बाहिर, दण्ड करन पावत नइ बेध.
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए अपराध प्रमाणित होय
हर अभियुक्त जेल ला भोगव – गिन दू साल माह बस तीन.
अजम वकील सन्न अस रहिगे, अभिभाषक कण्टक मुसकात
मुजरिम मन कारागृह जावत, जेला “नरख’ कथंय सब लोग.
न्यायालय ले निकलिस मेहरु, मिलिन बहल बेदुल दू जीव
बेदुल हा खेदू ला खोजत, अपन साथ रख पसिया पेज.
मेहरुचहत बात कुछ कहना, पर बेदुल के पर तन ध्यान
आखिर मं खेदू हा मिल गिस, ओकर बढ़े भयंकर रौब.
मनखे मन जुरियाय तिंकर तिर, अपन शक्ति के मारत डींग
दमऊ के टोंटा ला चपके बर, दफड़ा करथय खूब अवाज.
खेदू किहिस -“”खूब मंय चर्चित, दैनिक पत्र मं छपगे नाम
मंय हा कतको जुरुम करे हंव, कई जन के मारे हंव जान.
भाजी भांटा ला पोइलत तब – आत्मा मं न कसक न पीर
मनसे ला नंगत झोरिया के, मंय पावत हंव नव उत्साह.”
ओ तिर खड़े हवंय जे मनखे, क्रूर कथा सुन आंख घुमात
उनकर रुआं खड़े होवत डर, मन मन कांपत पान समान.
ठेपू कथय -“”बिकट मनसे हस, तंय हस मित्र निघरघट जीव
गोल्लर अस अंड़िया के रेंगत, सब ला रखत कांरव मं दाब.”
बेदुल के अब कान पिरावत, खेदू के सुन क्रूर घमंड
बेदुल के नकडेंवा चढ़गे, ओहर सवा सेव बन गीस.
खेदू ला भन्ना के पूछिस -“”तंय अस कोन करत का काम
मंय हा चहत तोर सच परिचय, ताकि तोर जस हर ठंव गांव ?”
खेदू कहिथय – “”पिया चुके हंव, मोर शक्ति ला सब के कान
पर अब गर्व साथ खोलत हंव, मोर सिंहासन कतका ऊंच !
मंय करथंव अपराध बेहिचक, मोला जम्हड़ लेत कानून
पुलिस अदालत प्रकरण चलथय, खेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड.
पर मंय साक्षी ला फोरत हंव, या धमकी झड़ खेदत दूर
जब आरोप सिद्ध नइ होवय, मंय निर्दाेष प्रमाणित होत.”
खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना ।
आखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा ।।
भड़किस – “”रोक प्रशंसा ला अब, अति के अंत होय के टेम
पांप के मरकी भरत लबालब, तभे हमर अस लेवत जन्म.”
खेदू के टोंटा ला पकड़िस, अपन डहर झींकिस हेचकार
भिड़ के शुरुकरिस दोंगरे बर, सरलग चलत मार के वार.
कृषक हा बइला ला गुचकेलत, डुठरी ला कोटेला दमकात
बेदुल हा खेदू ला झोरत, यद्यपि अपन हंफर लरघात.
खेदू ला भुइया मं पटकिस, ओकर वक्ष राख दिस पांव
खेदू ला बरनिया के देखत, खुद के परिचय साफ बतात –
“”मरखण्डा ला मंय पहटाथंव, हत्यारा के लेथंव प्राण
शोषक के मंय शोषण करथंव, मंय खुश होवत ओला लूट.
न्यायालय समाज पंचायत, शासन साथ पुलिस कानून
एमन अपराधी ला छोड़त, यने दण्ड देवन नइ पांय.
तब मंय हा जघन्य मुजरिम ला, अपन हाथ ले देवत दण्ड
ओकर नसना रटरट टूटत, मंय मन भर पावत संतोष.”
मनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, मगर करत नइ बीच बचाव
चलत दृष्य के करत समीक्षा, चम्पी तक हा झोंकिस राग –
“”खेदू हे समाज के दुश्मन, पथरा हृदय बहुत हे क्रूर
ओकर दउहा मिटना चहिये, तब समाप्त जग अत्याचार.
बेदुल असन बनंय सब मनसे, जेन करत एक तौल नियाव
अपराधी ला दण्डित करथय, दीन हीन ला प्रेम सहाय.”
तब मेहरुहा बहल ला बोलिस – “”फोर पात नइ अपन विचार
पक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, दूनों बीच कलेचुप ठाड़.
अनियायी के भरभस टूटय, अत्याचार के बिन्द्राबिनास
पर समाप्त बर कते तरीका, भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप.
अपराधी शोषक परपीड़क, पापी जनअरि मनखेमार
इनकर नसना ला टोरे बर, दण्ड दीन – जीवन हर लीन.
तउन क्रांतिकारी ईश्वर बन, सब झन पास प्रतिष्ठा पैन
उनकर होत अर्चना पूजा, कवि मन लिखिन आरती गीत.
पर एकर फल करुनिकलगे, गलत राह पकड़िन इंसान
हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूना, शासन करिस अशांति तबाह.
जइसन करनी वइसन भरनी, पालत अगर इहिच सिद्धान्त
बम के बदला बम हा गिरिहय, राख बदल जाहय संसार.”
आगी हा जब बरत धकाधक, रोटी सेंके बर मन होत
बहल के मन होवत बोले बर, हेरत बचन धान अस ठोस-
“”आग ला’ अग्नि शमन दल, रोकत, रुकत तबाही होवत शांत
तइसे नवा राह हम ढूंढन, तब संभव जग के कल्याण.”
झंझट चलत तउन अंतिम तंह, दुनों विश्वविद्यालय गीन
उहां रिहिस ढेला कवियित्री, तेकर साथ भेंट हो गीस.
ढेला उंहचे करत नौकरी, पाय प्रवक्ता पद जे उच्च
ओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं दाब.
ढेला हा मेहरुला बोलिस -“”मोर नाम चर्चित सब ओर
दैनिक पत्र हा स्वीकृति देथय, कई ठक पुस्तक छपगे मोर.
दिखत दूरदर्शन मं मंय हा, मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छाय
देत समीक्षक मन हा इज्जत, साहित्य मं प्रकाशित नाम.”
गांव के लेखक आय बहल हा, चुपे सुनत ढेला के डींग
जतका ऊंच डींग हा जावत, उसने बहल के फइलत आंख.
जब ढेला हा उहां ले हटगिस, बहल अैस मेहरुके पास
पूछिस -“”ढेला जे उच्चारिस, ओमां कतका प्रतिशत ठीक ?”
मेहरुकथय -“”किहिस ढेला हा, तेन बात हा बिल्कुल ठोस
शिक्षा उच्च पाय मिहनत कर, संस्था उच्च पाय पद उच्च.
पर अचरज के तथ्य मंय राखत, जीवन पद्धति राखत खोल –
संस्था परिसर रहत रात दिन, पुस्तक संग संबंध प्रगाढ़.
अपन ला प्रतिष्ठित समझत हें, जन सामान्य ले रहिथंय दूर
उंकर पास नइ खुद के अनुभव, पर के पांव चलत हें राह.
कथा ला पढ़ के लिखत कहानी, पर के दृष्य विचार चुरात
समय हा परिवर्तित हो जावत, तेकर ले ओहर अनजान.
भूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देत
अपन समय ला पहिचानय नइ, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ !”
मेहरुबात चलावत जावत, तभे बहल ला मारिस रोक –
“”जेन काम दूसर मन करथंय, उहिच काम तंय तक धर लेस.
उच्च विशिष्ट जउन मनसे हे, उंकर होत आलोचना खूब
उंकरेच बाद प्रशंसा होवत, आखिर चर्चित उंकरेच नाम.
सिंचित भूमि मं किसान मन हा, डारत बीज लान के कर्ज
उहिच भूमि मं करत किसानी, नफा होय या हो नुकसान.
भूमि कन्हार जमीन असिंचित, एला देख भगात किसान
फसल होय झन होय तभो ले, निष्फलता के अर्थ लगात.
दीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काम
मगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज.”
मेहरुबोलिस – “”ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान –
रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस !
टी. वी. अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के रिहिस विचार
उहां तोर का बूता निपटिस, होगिस का पूरा उद्देश्य ?”
बहल किहिस – “”मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवास
मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास-
हंसिया श्रमिक कमावत खेती, पर भरपेट अन्न नइ पाय
हम्मन गंवई मं बसथन तब तो, साहित्य मं बुझावत नाम.
लकर धकर मंय गेंव रायपुर, रचना धर साहित्यिक काम
लेकिन उहां पूछ नइ होइस, अउ उपरहा कटागे नाक.
मंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अंदर जाय रुकत हे पांव
केन्द्र के रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात.
मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह –
“”तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस मीठ.
कहिबे -“”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर
इहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम.”
कार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, मन ला करके पक्का ।
देख कार्यक्रम अधिधाशी हा, मारिस बात के धक्का ।।
“”जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखत मात्र
का विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान ?”
ऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाण
लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान.
मंय बोलेव – “”रहत हंव मंय हा, अटल गंवई हे गोदरी गांव
कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला लाय.
पहिली भेजे हंव रचना कइ, मगर मुड़ा नइ गीस जवाब
तब मंय हार इहां आए हंव, मोर प्रार्थना सुन लव आप –
आकाशवाणी ले चाहत हंव, अपन नाम सब तन बगराय
बिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय आय.”
साहब हा बरनिया के बोलिस -“”कान टेंड़ सुन सही सलाह
लेखक लइक तोर नइ थोथना, दरपन देख लगा ले थाह.
सांगर मोंगर अड़िल युवक हस, गांव लहुट के नांगर जोंत
काम असादी के बदला मं, श्रम करके झड़ गांकर रोंेठ.”
हंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब !
गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब ले ओहर देत सुगंध.
मंय बोलेंव – “”नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लात
मंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात.
बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचान
धर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया के बेधत बान.
कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा मन साथ
जन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज ?
जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नाम
पर उमेंद ला कोन हा जानत, ओकर रचना गिस यम धाम.
छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हाल
ओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल !”
मोर कथा ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल –
“”तोर असन कतरो लेखक ला, मंय हा रखत दाब के कांख.
हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धाम
गांव लहुट के काम बजा तंय, लेख जाय यमराज के धाम.
छोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता ।
वरना बुढ़ना ला झर्राहंव, करिहंव तोर हइन्ता ।।
साहब ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्त
बिच्छी हा चटपट झड़काथय, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत.
मंय हा उहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकान
जहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान.
ओहर किहिस – “”आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च.
साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च.
राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यान
इंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान.
हम्मन इही पास मं रहिथन, जानत साहब मन के पोल
ओमन चाय पान बर आथंय, आपुस मं गोठियाथंय खोल.”
ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के बाद –
दानी के कहना ला सुन लव, जे मनसे के जतका साद.
कृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाज
रचना के नामे ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज.
उबली जे ठौंका ला बोलिस, ओकर मंय पा लेंव प्रमाण
दानी के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय.”
एकर बाद बहल अउ बोलिस – “”दानी करथय नगर निवास
जमों क्षेत्र मं पात सफलता, चढ़े हवय साहित्यकाश.
लेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्त
हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त.”
मेहरुकथय – ठीक बोलत हस, होत शहर साधन सम्पन्न
टी. वी. रेडियो पत्र प्रकाशन, संघ समीक्षक नाम इनाम.
उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नाम
लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम.
लेकिन एकर ए मतलब नइ, हम्मन छोड़ देन फट गांव
कर्म करत हम मांग ला राखन, उहू कर्म हो प्रतिभावान.
न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्ट
उंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट.
क्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, क्रांति हवय मालिक के नाम
ओहर पत्र मोर तिर भेजिस – तंय हा रचना लिख धुआंधार.
पूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, ओला मंय हा देहंव मान
सबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, मंय देवत हंव सत्य जबान.”
अतका बोल किहिस अउ मेहरु-“”दीस भरोसा क्रांति हा जेन
पुस्तक मोर प्रकाशित होहय, पर नइ पाय झूठ के वार.”
मेहरुबहल बात ला छेंकिन, अउ “दरबार हाल’ मं गीन
लेखक मन तिर एमन अमरिन, अपन अपन परिचय ला दीन.
उहां मिलापा दानी सन्तू, छन्नू ढेला साथ बिटान
सातो बइसाखू परसादी, हवंय काव्य के गुणी अनेक.
दानी टेस बतावत जेकर रुतबा सब ले ऊंचा ।
दूसर लेखक हवंय निहू अस – छरकत पूरा घूंचा ।।
जहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, दानी कथय -“”मित्र सुन लेव
आज जगत मं बहुत समस्या, ओकर पर कइ ठक तकलीफ.
२६१
तुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, देव समस्या ऊपर ध्यान
जेन विषय पर सोच डरे हव, ओला इहां राख दव खोल.”
सन्तू कथय -“”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचार
बम घातक हथियार बने हें, उंकर होय अब खुंटीउजार.
छोटे राष्ट्र देश बड़का हें, ओमन भुला जांय सब भेद
बड़े पलोंदी दे नान्हे ला, सग भाई अस राखंय प्रेम”
मेहरुकिहिस – “”करंव नइ चिकचिक, मगर मोर बस इही सलाह-
“”यथा बाग मं फूल बहुत ठक, एक साथ खिल पात पनाह.
इसने साहित्यिक बगिया मं, जमों विधा मन भोगंय राज
पावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, शहराती ग्रामीण समाज.”
सातो कथय -“”जगत सब बर हे, सब प्राणी हें एक समान
मानव पशु पक्षी अउ कीरा, सब के देह एक ठन जान.
कोई ककरो करय न हत्या, दूतर ला झन बांटय पीर
मानव सबले बुद्धिमान हे, तब दूसर के जान बचाय.”
लेखक मन हा सुन्ता बांधिन, दानी ला अध्यक्ष बनैन
उहां जतिक अस नगरीय लेखक, लेखकसंघ के पद ला पैन.
मेहरु बहल गांव के लेखक, भतबहिरा अस पद नइ पैन
यद्यपि एमन तर्क ला राखिन, लेकिन चलन पैस नइ टेक.
मेहरुकिहिस -“”लेख मं देथव – जम्मों झन ला सम अधिकार
लेखक संघ मं भेद रखत हव, हमला खेदत हव चेचकार.
गांव के अन्न शहर मं जाथय, शहर गांव ला देत समान
उसने शहराती देहाती, आपुस मं बांटंय पद मान.”
एकर बाद खाय बर बइठिन, बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थ
एमां सब ला मिलिस बरोबर, होइस पूर्ण सबो के स्वार्थ.
बहल हंसत मेहरुला बोलिस – “”लेखक संघ के बैठक होय
हमर पुकार भले झन होवय, लेकिन पहुंच जबो हम दोंय.”
मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “”मिलिस खाय बर स्वादिल चीज
तेकर लालच तोला धरलिस, तब आबे का बिगर बलाय ?”
“”हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ हा करिहय पूछ
खूब अंटा के डोरी बनथय, अलग अलग जे नरियर बूच.”
एकर बाद रात करिया गिस, तंहने होइस नाटक एक
“दयामृत्यु’ नाटक के नामे, लेखक ए सुरेश सर्वेद.
दया मृत्यु
पात्र परिचय
प्रोफेसर अनूप – आकाश का मित्र
आकाश – सेफ्टी लाइफ नामक यंत्र का निर्माता वैज्ञानिक
नीलमणि – वैज्ञानिक
प्रेमपाल – वैज्ञानिक
ऋषभ – क्राचीद का विद्वान सदस्य
प्रणव – बेल्ट बम दबाकर वैज्ञानिकों को हताहत करने वाला
आसुतोष – अस्पताल में आकाश की देखरेख इनके ही जिम्मा होती है.
सुमन – आकाश का अधिवक्ता
अमर – शासकीय अधिवक्ता
नागार्जुन – न्यायाधीष
मासुस के – समीर, चन्द्रहास, मृणाल
अन्य सदस्य
प्रपात – अल्जीमर रोग से पीड़ित व्यक्ति
डा. महादेवन – आकाश को दयामृत्यु देने ही इन्हें आदेश मिलता है. इसमें ये असफल रहते हैं.
बालक – डॉ. महादेवन द्वारा अस्पताल से लाया अनाथ बालक
विश्वास – क्राचीद का सदस्य
अन्य – जीप चालक, नर्स.
नाटक प्रारंभ
(प्रोफेसर अनूप के निवास के सामने वैन आकर रुकता है. वैन चालक नीचे आकर दरवाजा खोलता है. वैज्ञानिक आकाश नीचे आते हैं- चालक वैन का दरवाजा बंद कर देता है. वैज्ञानिक आकाश प्रोफेसर अनूप के निवास में प्रवेश करते हैं.
अनूप चिंता में डूबे हैं- जूतों की आवाज उनके कानों में घुसती है. वे दृष्टि उठाकर देखते हैं. सामने आकाश को पाते हैं.)
प्रो.अनूप – (हड़बड़ाकर) आ-आप ……….. !”
आकाश – आप तो ऐसे चौंक रहे हैं मानों कानों में विस्फोट हो गया हो.”
अनूप – (बनावटी मुस्कान होठों पर बिखेर कर) अरे नहीं. मैं कहां चौंका हूं! (सोफे की ओर संकेत करते हुए) बैठिये.”
आकाश – (सोफे पर बैठते हुए) छद्य मुस्कान होठों पर बिखेर लेने से चेहरे की परेशानी खत्म नहीं हो जाती.”
अनूप – आपका तात्पर्य, मैं परेशान हूं?”
आकाश – चेहरे की भाषा तो यही बताती हैं. परेशानी का कारण मुझे भी ज्ञात हो जाये तो इसमें बुराई क्या है?”
अनूप – वर्तमान में मादक द्रव्यों का उपयोग सीमा से अधिक किया जा रहा है. प्रतिभाएं इसके चंगुल में फंसकर नष्ट हो रही हैं. कल मेरे कालेज का एक छात्र और इसकी बलि चढ़ गया.”
आकाश – छात्र छात्राओं को मादक द्रव्यों के दुष्परिणाम ज्ञात हैं. इसके बावजूद वे इसका विरोध करने की अपेक्षा उपयोग करते हैं. इसमें हम कर भी क्या सकते हैं. प्रोफेसर!”
अनूप – आप तो दायित्व से मुंह मोड़ रहे हैं. जिन छात्र-छात्रओं को मैंने करीब से देखा है. जिनकी प्रतिभाओं को परखा है, उन्हें अपनी आंखों के सामने नष्ट होते देखूंगा तो मन में हलचल होगा ही न!”
आकाश – आपकी पीड़ा मैं समझ रहा हूँ.”
अनूप – सिर्फ समझना ही पर्याप्त नहीं है आकाश साहब. इस पर अंकुश लगाना आवश्यक है.(थोड़ा रूककर) सोचता हूं- जिस तरह आप “सेफ्टी लाइफ’ बना रहे हैं. जिसके उपयोग से वह बम की उपस्थिति का संकेत तो देगा ही. वह अपराधी का पता बतायेगा. साथ ही विस्फोटक वस्तु को निष्क्रिय कर देगा ……… ऐसे ही किसी औषधि का उत्पादन क्यों नहीं किया जाता! जिसके उपयोग से व्यक्ति मादक द्रव्यों से घृणा करने लगे.”
आकाश – इस पर भी कहीं न कहीं शोध हो रहा होगा. प्रोफेसर, मेरे “सेफ्टी लाईफ’ बनाने की जानकारी आपके सिवा और किसे हैं?”
अनूप – मैं आपके इस व्यवहार से हैरान हूं. आप मानवहित का काम कर रहे हैं. मगर इसे प्रकाश में नहीं लाना चाहते. आखिर क्यों?”
आकाश – मैं कार्य पूर्ण करके अपने वैज्ञानिक मित्रों को दिखाकर दंग कर देना चाहता हूं…….! और हां, आपसे उम्मीद है- आप भी इसकी चर्चा अन्यत्र नहीं करेगें.”
अनूप – आपके विश्वास को मैं टूटने नहीं दूंगा. (थोड़ा रूककर) अरे, मैं तो बातों में उलझकर आपको पानी तक के लिये भी नहीं पूछा…….. चाय चलेगी न?”
आकाश – (सोफे से उठते हुए) अरे नहीं. मैं अभी जल्दी में हूं. चाय पानी खाना पीना फिर कभी होता रहेगा.”
अनूप – आप इतनी शीघ्रता में क्यों हैं! कहीं जाने की योजना है क्या?”
आकाश – विज्ञान भवन में वैज्ञानिकों की बैठक है. वहां उपस्थिति आवश्यक है.”
अनूप – तब तो मैं आपको रोकूंगा नहीं. संभव है- वहां कोई महत्वपूर्ण शोध पर चर्चा हो………।”
आकाश – तो मैं चलता हूं. फिर मुलाकात होगी.”
अनूप – (अनूप भी उठ खड़े होते हैं) चलिये, मैं आपको बाहर तक छोड़ आऊं.”
दोनों बाहर आते हैं. आकाश वैन की ओर बढ़ते हैं. अनूप गेट के पास खड़े रहते हैं. आकाश वैन में जा बैठते हैं. चालक वैन को आगे बढ़ा देता है. वैन विज्ञान भवन के आगे आकर रूकती हैं. आकाश नीचे आते है. वे विज्ञान भवन में प्रवेश करते हैं. वे “सभागृह’ में पहुंचते हैं. वहां अनेक वैज्ञानिक उपस्थित हो चुके हैं. आकाश अपनी कुर्सी पर जा बैठते हैं. इस बैठक के सभापति वैज्ञानिक नीलमणि हैं. वे सभापति की कुर्सी पर बैठे हैं.
नीलमणि – (सभा को सम्बोधित करते हैं) मित्रों, हमने स्कड प्रक्षेपास्त्रों को आकाश में ही नष्ट करने “पेट्रियट’ का आविष्कार किया हैं. “मेटल डिटेक्टर’ बमों की उपस्थिति की जानकारी दे देता हैं. मगर वर्तमान में तार पेट्रोल और बेल्टबम का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा हैं.
आतंकी अपनी कमर में बेल्टबम बांधता हैं. सभा में जाता हैं. बटन दबा देता है. विस्फोट से लाशें बिछ जाती हैं. मेरा विचार है कि हम ऐसे यंत्र का निर्माण करें जो बमों की उपस्थिति की तत्काल जानकारी दे. साथ ही बम निष्क्रिय भी हो जाये. वह अपराधी को पकड़ने मे सहायता करें…….।”
प्रेमपाल – मित्रों, नीलमणि का मन्तव्य विचारीणीय है. वास्तव में हमें इस पर गभ्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिये.”
(वैज्ञानिक आपस में सलाह मशविरा करने लगें हैं मगर आकाश की होठों पर मुस्कान उभर आयी है.)
दृष्य परिवर्तन
(यह है क्रातिकारी चीता दल नामक संस्था का अडड़ा. अल्मारियों में रायफल, बेल्टबम, तारबम इत्यादि विध्वंशक रखे हैं. एक स्थान पर टेबल कुर्सियां हैं. कुर्सी मे ऋषभ बैठे हैं. उनके हाथ मे कलम हैं. सामने टेबल पर कागज रखा हैं.
अल्मारी के पास प्रणव खड़ा बेल्टबम बांध रहा हैं. ऋषभ की दृष्टि उस पर टिकी हैं. वे प्रणव के कार्य को ध्यान से देखते हैं)
ऋषभ – (प्रणव से) प्रणव, मैं जानता हूं- आप कहां जाने की तैयारी कर रहे हैं. मगर आप जो करने जा रहे हैं, मेरी दृष्टि में उचित नहीं.”
प्रणव – (बेल्टबम कमर पर कंसते हुए) क्यों उचित नहीं! मैं भी तो एक वैज्ञानिक हूं. मैने भी शोध किया है. मगर मुझे सदैव उपेक्षित ही तो किया गया न!”
ऋषभ – संवादहीनता के कारण हम उपेक्षित रहे. इसका तात्पर्य यह नहीं कि हिंसात्मक कार्य को श्रेय दें.”
प्रणव – ये आप नहीं, आपकी कलम की शक्ति बोल रही है. आप वैचारिक लेख लिखते हैं. मसलन- दयामृत्यु कब-किसे दिया जाये! मादक द्रव्यों पर कैसे पाबंदी लगाया जाये! देश को बंटने से कैसे रोका जाय! मगर आपके उत्कृष्ट विचारों को किसने सराहा? (थोड़ा रूककर) मेरा कहा मानिये और न्यायालय को उड़ा दीजिये.”
ऋषभ – माना कि हम “क्राचीद’ के सदस्य हैं. मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हम हिंसात्मक कार्याें को ही श्रेय देते रहें.”
प्रणव – (ऋषभ के पास आकर) अब आदर्श की बातें मुझे समझ नहीं आती. और न समझने का प्रयास करूंगा. (दरवाजे की ओर कदम बढ़ाते हुए) मैं तो चला अपना कार्य करने…..।”
प्रणव बाहर आता है. जीप में सवार होता है. और जीप सड़क में दौड़ाने लगती है. जीप “विज्ञान भवन’ के सामने आकर रूकती है. प्रणव जीप से नीचे आता है. वह विज्ञान भवन में प्रवेश करता है. सभागृह मे वैज्ञानिक सलाह मश्विरा में संलग्न हैं. प्रणव सभागृह में पहुंचते ही “बेल्टबम’ का बटन दबा देता है.
एक जोरदार धमाके के साथ बेल्टबम फट जाता है. धमाके की आवाज बाहर आती है. बाहर तैनात “सुरक्षा सैनिक’ सभागृह की ओर दौड़ते है.
सभा गृह में पांच वैज्ञानिकों के अंग क्षतविक्षत हो गये हैं. नीलमणि की टांगें और भुजाएं शरीर से अलग हो गयी हैं. प्रणव स्वयं कई टुकड़ों में बंट गया हैं. कुछ वैज्ञानिकों को सामान्य चोटें आयी हैं. वे कराह रहे हैं. आकाश के शरीर में कई छर्रे घुस गये हैं.
एक सैनिक अस्पताल फोन लगाता हैं. विज्ञान भवन की ओर एम्बुलेंस दौड़ती है. उसमें घायल और बेहोश वैज्ञानिकों को भरा जाता है. उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता हैं. उनका उपचार किया जाता है.
आकाश को आपरेशन थियेटर में लाते हैं. वे बेहोश हैं. उनके शरीर से छर्रे निकालते हैं. कार्यपूर्णता पर उन्हें “एसी’ रूम में रखा जाता है.
आकाश चेतनावस्था में आते हैं. वे कराह उठते हैं. नर्स उनके पास दौड़कर आती हैं.
आकाश – सिस्टर, असहनीय पीड़ा हो रही हैं……..!”
नर्स – आप लेटे रहिये. मैं डाक्टर को बुलाकर लाती हूं.”
(नर्स, डाक्टर आशुतोष को बुलाकर लाती है)
आशुतोष – (होठों पर मुस्कान लाकर) आपका जीवन अब खतरे से बाहर है. आज शाम ही आपको “प्राइवेटवार्ड’ में अटेच कर दिया जायेगा.”
आकाश – ये सब तो ठीक है डाक्टर, मगर पीड़ा……..!”
(नर्स इंजेक्शन भरकर लाती है. आशुतोष उसे आकाश को लगाते हैं.)
आशुतोष – अब इससे आपकी पीड़ा कम हो जायेगी. (नर्स से) सिस्टर, आप इनका विशेष ध्यान रखेंगी. समय पर दवाइयां देती रहेंगी.”
नर्स – यस सर……….!”
दृष्य परिवर्तन
(आकाश को प्राइव्हेट रूम में रखा गया है. वे पीड़ा से कराह रहे हैं. डॉ. आशुतोष आते हैं. सुई लगाते है. नर्स दवाई देती है. आकाश उसे खाते हैं.)
आकाश – डाक्टर साहब, आखिर ये कब तक चलेगा- जब भी पीड़ा उठती है. इंजेक्शन दवाइयां दे देते हैं. औषधि के प्रभाव तक पीड़ा दबी रहती है. खत्म होते ही पुन& बलवती हो जाती है.”
आशुतोष – आप धैर्य रखें. आप शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हो जायेंगे.”
आकाश – यह आश्वासन तो आप दो माह से देते आ रहे हैं. मगर न पीड़ा खत्म हुई न स्वास्थय लाभ मिला है. मैं तो ऊब गया हूं डाक्टर, इंजेक्शन और दवाइयों से (थोड़ा रूककर) मैं जानता हूं डाक्टर, मेरे कोमल अंगों में घाव बना है. उनका भर पाना असम्भव है. आप मात्र मुझे आश्वासन के बल बूते पर जीवित रख रहे हैं………..!”
आशुतोष – आप व्यर्थ भ्रम में हैं. देखना आप पूर्ण स्वस्थ होकर रहेंगे.”
आकाश – भ्रम में मैं नहीं, आप हैं, मेरा जीवन अंधेरे में है उसमें आप जीवन की ज्योति जलाते हैं…….! डाक्टर, मेरा कहा मानिये. और सांत्वना रूपी औषधि का प्रचार करना छोड़ दें. क्योकि आपके सांत्वना से विश्वास जग उठता है कि अब में स्वस्थ हो जाऊंगा. मगर मैं ही नहीं आप भी जानते हैं कि आप मुझसे विश्वास घात कर रहे हैं. आप ये छल प्रपंच का लिबास निकाल फेंके. मेरा उपचार करना छोड़ दें. ताकि मैं चैन के साथ मर तो सकूं………..!”
(उसी वक्त अधिवक्ता सुमन आती है. वह आकाश के निकट जाती हैं. डाक्टर आशुतोष बाहर चले जाते हैं.)
आकाश – (सुमन से) आप आ गयी सुमनजी, अब न्यायालय जायेंगी न……!”
सुमन – हां, आज आपके आवेदन पर बहस है.”
आकाश – आपसे मेरा एक ही निवेदन है- मुझे “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाने का अथक प्रयास करेंगी.”
सुमन – आप निश्चिंत रहिये. मैं आपको “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाकर रहूंगी.”
आकाश – हां सुमनजी, यह आवश्यक है, मुझे एक शोध करना हैं. इसके लिये मैं जीना चाहता हूं. मगर पीड़ा ने मुझे मृत्यु स्वीकारने विवश कर दिया है.”
सुमन – न्यायालय का समय हो गया है. मैं निकलूं?”
आकाश – हां, आप अवश्य जायें. मैं किसी भी हालत में मरना चाहता हूं. मुझे “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाइये.”
(सुमन अस्पताल से निकलती हैं. वह स्कूटर में सवार होती हैं. स्कूटर सड़क पर दौड़ने लगता है.
(डॉ. आशुतोष अपने कार्यालय में बैठे हैं. उनके कानों में आकाश की आवाज अब तक गूंज रही हैं.)
आवाज – मेरा जीवन अंधकार मय है डाक्टर, कृपया उसमें आश्वासन की ज्योति न जलायें. आप सांत्वना रूपी औषधि का प्रचार करना छोड़ दे. आप मुझे धोखा न दें…. धोखा न दें……!”
(उसी समय नर्स प्रवेश करती है.)
नर्स – (आसुतोष से) सर…………!”
(डॉ. आसुतोष आवाज से बाहर आते हैं. नर्स की ओर देखते हैं.)
नर्स – सर, आकाश पुन& पीड़ा से व्यथित हो गये हैं. उन्हें सम्हाल पाना कठिन हो रहा है……!”
आशुतोष – (खीझकर) उन्हें मरने दो………!”
नर्स – (अवाक आशुतोष को देखती है) ये आप क्या कह रहे हैं सर?”
(आशुतोष झेंप जाते हैं. वे उठकर नर्स के साथ हो लेते हैं.)
दृष्य परिवर्तन
(न्यायालय में अधिवक्ताओं, पक्षकारों व अन्य लोगों की भीड़ है. न्यायाधीष नागार्जुन अपनी कुर्सी पर बैठे हैं. अधिवक्ता सुमन और अमर पैरवी करने उपस्थित हैं.)
अमर – (न्यायाधीष से) सर, अधिवक्ता सुमन ने न्यायालय में आकाश का आवेदन प्रस्तुत किया है. उसमें दर्शाया गया है कि आकाश को “दयामृत्यु’ दी जाये. मगर मेरी दृष्टि में “दयामृत्यु’ को मान्यता नहीं देनी चाहिये.”
सुमन – सर, शासकीय अधिवक्ता अमर ने कहा कि दयामृत्यु को मान्यता नहीं देनी चाहिये. मगर क्यों? वे सभी बातें स्पष्ट रूप से बतायें!”
न्यायाधीष – (अमर से) हां, आप अपनी बात स्पष्ट कीजिये- दयामृत्यु की मान्यता का विरोध का कारण बताइये?”
अमर – सर, दयामृत्यु को मान्यता देने से व्यक्ति छोटे छोटे रोंगों से मुक्ति के लिये मृत्यु मांगने लगेगा. दूसरा रूप यह भी है कि चिकित्सक असाध्य रोग से ग्रसित व्यक्तियों एवं वृद्धों को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी से हटेंगे.”
सुमन – सर, शासकीय अधिवक्ता का तर्क ग्राहय है. पर जिसका जीवन मृत्यु से बदतर हो. जिसका वर्तमान और भविष्य कष्टों के सागर में डूबा हो, सर ऐसे पीड़ित व्यक्ति को “दयामृत्यु’ का अधिकार मिलना ही चाहिये. (कुछ दस्तावेज न्यायाधीष को सौंपते हैं) सर, ये डाक्टर की रिपोर्ट है. इसमें आकाश से संबंधित सारे तथ्य स्पष्ट रूप से लिखे हैं.”
(न्यायाधीष नागार्जुन दस्तावेज को गंभीरतापूर्वक पढ़ते हैं. अधिवक्ता अपने अपने स्थान पर जा बैठते हैं.)
न्यायाधीष – न्यायालय ने अधिवक्ताओं के तर्क सुने. दस्तावेजों का अध्ययन किया. न्यायावय स्वयं आवेदक की स्थिति का अवलोकन करेगा. तत्पश्चात निर्णय दिया जायेगा.”
(न्यायाधीष कुर्सी से उठ खड़े होते हैं. अधिवक्ता सुमन और अमर के साथ जीप में सवार होते हैं. जीप न्यायालय परिसर से निकलकर सड़क पर दौड़ने लगती हैं. जीप अस्पताल के स्टैण्ड में रूकती हैं. न्यायाधीष नागार्जुन, सुमन और अमर जीप से नीचे आते हैं.)
सुमन – (न्यायाधीष से) सर, इधर आइये.
(वे प्राइवेट रूम के पास जाते हैं कि उनके कानों में क्रंदन की आवाजें गूंजती हैं. न्यायाधीष रूककर सुनते हैं.)
आवाज – डाक्टर, आप मुझे स्वस्थ नही कर सकते फिर मेरा उपचार क्यों करते हैं. डाक्टर, पीड़ा असहय हो गयी. आहा- ओहो…..। अब मुझे इंजेक्शन मत लगाइये. मुझे गोलियां मत दीजिये (पीड़ायुक्त आवाज) मुझे चैन से मरने दीजिये.”
(न्यायाधीष, सुमन की ओर उन्मुख होते हैं.)
न्यायाधीष – ये पीड़ायुक्त आवाज किसकी है?”
सुमन – सर, ये कारूणिक आवाज आकाश की है.”
न्यायधीष – क्या वे इतने पीड़ित हैं कि स्वयं मृत्यु मांगें.”
सुमन – हां सर, आप अपनी आंखों से देख लीजिये.”
(सुमन बाहर रुक जाती हैं)
(वे आकाश के कक्ष मे प्रवेश करते हैं. आकाश पीड़ा से कराह रहे हैं. डाक्टर आशुतोष सुई में दवाई भरने संलग्न हैं. आकाश, न्यायाधीष और अधिवक्ताओं की ओर प्रश्न दृष्टि से देखते हैं.)
आकाश – (आशुतोष से) डाक्टर साहब, ये कौन हैं- यहां क्यों आये हैं.?”
(आसुतोष सुई में दवाई भर लेते हैं. वे आकाश के पास आते हैं.)
आसुतोष – ये आपसे मिलने आये हैं.
आकाश – लोग उससे मिलने आते हैं. जो मृत्यु के पास पहुंच गया हो या जीवित हो……। पर मैं तो बीच में लटका हूं डाक्टर. पीड़ा असहनीय हो गयी है. मुझे कब तक बेहोशी की सुई दे देकर जीवित रखेंगे?
आसुतोष – अब आप शीघ्र स्वस्थ हो जायेंगे.”
आकाश – कभी नहीं. मेरे स्वास्थय में सुधार आ ही नहीं सकता. आप सुई की दवाई फर्श में चिपक दें. मेरे शरीर में मत लगाइये.”
(आकाश पीड़ा से कराहते हैं. इससे न्यायाधीष का ह्रदय दहल जाता है. आसुतोष, आकाश को सुई लगाने का प्रयत्न करते है.)
आकाश – आप मुझे सुई देना ही चाहते हैं. न- तो जहर की सुई दीजिये. मुझे मृत्यु दीजिये मृत्यु. मैं पीड़ा युक्त जीवन नहीं जीना चाहता.”
(डाक्टर इंजेक्ट कर ही देते हैं.)
आकाश – आखिर आपने सुई लगा ही दी न डाक्टर!”
(कहते कहते आकाश बेहोश हो जाते हैं. डाक्टर के चेहरे पर परेशानी और चिंता के भाव हैं.)
न्यायाधीष – (आसुतोष से) डाक्टर साहब, आप तो अत्यंत परेशान दिख रहे हैं.”
आसुतोष – जी हां, में आकाश की पीड़ित जिन्दगी से परेशान हूं. समझ नहीं आता- इन्हें कब तक आश्वासन की आशा बंधाता रहूं.”
न्यायाधीष – आप का परिश्रम सफलता लायेगा. आकाश शीघ्र स्वस्थ होकर रहेंगे.”
आसुतोष – सतत उपचार के बावजूद आकाश की स्थिति पूर्ववत है. मुझे नहीं लगता कि उन्हें पीड़ा से मुक्ति मिलेगी.”
न्यायाधीष – आप एक चिकित्सक होकर निराशावादी बातें कर रहें हैं.?”
आसुतोष – सत्यंता का संबंध निराशा से नहीं हैं.”
न्यायाधीष – अर्थात आकाश की स्थिति सुधर नहीं सकती. उन्हें पीड़ा युक्त जीवन जीना ही पड़ेगा?”
आसुतोष – हां, मेरे अनुभव का यही निष्कर्ष हैं.”
न्यायाधीष – (स्वयं से) याने आकाश को पीड़ा से मुक्ति दिलाने मुझे ही कुछ न कुछ उपाय करना होगा. (आसुतोष से) अच्छा डाक्टर, अब हम निकलते हैं.”
(न्यायाधीष, अमर और सुमन बाहर आते हैं. वे जीप में बैठते हैं.)
न्यायाधीष – (जीप चालक से) आप मुझे मेरे बंगने में छोड़ दें.”
चालक – यस सर.
(जीप सड़क पर दौड़ती हुई न्यायाधीष के बंगले के आगे रूकती हैं. न्यायाधीष नीचे आते हैं.)
न्यायाधीष – (अधिवक्ताओं से) आकाश के आवेदन पर कल निर्णय दिया जायेगा.”
अधिवक्ता – यस सर.
(जीप आगे बड़ जाती है. न्यायाधीष अपने बंगले में प्रवेश करते हैं.)
दृष्य परिवर्तन
(एक कमरे में अनेक व्यक्ति हैं. ये मानव सुरक्षा संघ (संक्षिप्त नाम-मासुस) के सदस्य हैं. जब भी कोई गंभीर समस्या पर विजार करना होता है तो ये एकत्रित होकर निदान के लिये रास्ता निकालते हैं.)
चन्द्रहास – (सदस्यों से) मित्रों, क्रांतिकारी चीता दल याने क्राचीद की कार्यप्रणाली किसी से छिपा नहीं. वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये हिंसा करता हैं. उनके हिंसात्मक कार्य का निशाना आकाश जैसे वैज्ञानिक बने. आकाश कितना दुखद जीवन व्यतीत करें- अंतत& उन्हें दयामृत्यु की अनुमति मांगने न्यायालय की शरण लेनी पड़ी. न्यायालय ने उनकी पीड़ा को अनुभव किया. और आकाश को दयामृत्यु की अनुमति दे दी.”
समीर – (चिंतित स्वर में) लेकिन अब क्या होगा! न्यायालय ने ऐसा निर्णय देकर उचित नहीं किया. सेफ्टीलाईफ के निर्माण का कार्य अधूरा है. आसाश की मृत्यु के बाद उसे कौन पूरा करेगा…..!”
चन्द्रहास – हां समीर. आपकी चिंता उचित है. सेफ्टीलाईफ मानवहित को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा हैं. और उसकी पूर्णता के लिये आकाश का जीवित रहना आवश्यक है.”
समीर – इसका अर्थ हमें आकाश को जीवित रखने कोई न कोई रास्ता निकालका पड़ेगा.”
प्रताप – लेकिन न्यायालय ने दयामृत्यु का निर्णय दे दिया है. यहां तक कि डा. महादेवन को इसके लिये आदेश भी मिल चुका है.”
चन्द्रहास – समस्या गंभीर है.
दृष्य परिवर्तन
(डा. महादेवन तैयार होते हैं. वे दर्पण के सामने खड़े होते हैं. दर्पण में उनका प्रतिरूप उपस्थित होता है.)
प्रतिरूप – तो डा. साहब, आप आकाश को मृत्यु प्रदान करेंगे ही न?”
(डॉ. की खीझ बढ़ जाती है)
डा.महादेवन – हां, न्यायालय का मुझे आदेश मिला हैं. मैं आदेश का निरादर करके अपना भविष्य अंधकार में नहीं डाल सकता.”
प्रतिरूप – आप आकाश का उपचार करके स्वस्थ करने से तो रहे! हां, उन्हें मृत्यु प्रदान आसानी से कर सकते हैं. क्यों सही है. न डाक्टर!”
(डा. की खीझ बढ़ जाती है.)
डा.महादेवन – हां, मैं आकाश को मृत्यु प्रदान करूंगा. इसमें कोई अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकता.”
प्रतिरूप – आप कर भी क्या सकते हैं.! आप डाक्टर का कर्म करके आकाश के प्राण बचाते. लेकिन आप तो जल्लाद बन गये हैं जल्लाद. और इसके अंतर्गत आकाश के प्राण हरेंगे ही.”
(डा. खीझ कर प्रतिरूप पर पत्थर दे मारते हैं. दर्पण टुकडों में बंट जाता है. उसमें डा. के कई प्रतिरूप उपस्थित होते हैं. वे सभी के सभी अटटहास करते हैं. डा. कमरे से बाहर हो जाते हैं. तभी एक बालक सौरभ उनके पास आता हैं.)
सौरभ – पापा, आप अस्पातल जा रहे है.”
(डा. महादेवन, सौरभ के सिर पर स्नेह का हाथ फेरते हैं. उनकी आंखों के सामने उस दिन का दृष्य उपस्थित हो गया- जब एक महिला अस्पताल में आयी. वह गर्भवती थी. उसने एक बालक को जन्म दिया और उसे छोड़कर भागगयी. प्रात& अस्पताल में शोर मच गया.)
नर्स – (डा. महादेवन से) डा. साहब, पलंग नं. आठ की महिला नवजात शिशु को छोड़कर भाग गयी.”
(डा. महादेवन पलंग के पास आये. बालक निद्रा में था. उसके मासूम चेहरे को देखकर डा. को प्यार आ गया. उन्होंने बालक को स्पर्श किया. बालक ने आंखे खोलकर उनकी ओर देखा)
नर्स – सर, यह बालक कितना सुंदर है! अब यह अनाथ हो जायेगा.”
डा.महादेवन – यह अनाथ नहीं होगा. इसका पालन पोषण मैं करूंगा.”
(डा. महादेवन बालक को उठा लेते हैं……। अब डा. पूर्व की यादों से बाहर आते हैं)
सौरभ – पापा, आप कहां खो गये थे. आप मुझे प्यार क्यों नहीं करते. आप तो सदैव दूसरों का उपचार करते हैं. उनके प्राण बचाते हैं.”
(डा. महादेवन स्नेह का हाथ फेरकर आगे बढ़ जाते है.)
अस्पताल का दृष्य
(डॉ. महादेवन अस्पताल में प्रवेश करते हैं. आकाश पलंग पर सोये हैं. उनके पास “मृत्यु मशीन’ रखी हैं. डा. महादेवन वहां प्रवेश करते हैं. आकाश उनकी ओर देखते हैं. डॉ.महादेवन को लगता है कि आकाश उनसे कह रहे हैं)
आवाज – आइये डॉ. साहब, आपका स्वागत है. आप उपचार करके मेरी पीड़ा खत्म नहीं कर सके तो मृत्यु प्रदान करने आ गये. आइये, मुझे मृत्यु स्वीकार है. आज से आप डाक्टर लोग यह तो नहीं कहेंगे कि हम दूसरे ईश्वर है. मरते हुए को प्राण देते हैं.”
डा.महादेवन – (आकाश की ओर कदम बढ़ाते हुए मन ही मन) आपको जीवन से मुक्ति दिलाने का आदेश न्यायालय ने दिया है. मैं उसके आदेश का पालन करुंगा ही.”
(डा. महादेवन आकाश के पास पहुंचते हैं. वे मृत्यु मशीन का बटन दबाने हाथ बढ़ाते हैं. मगर उनके हाथ कांपने लगते हैं)
डा.महादेवन – (स्वयं से) अरे, अनायास मेरे हाथ को क्या हो गया। वह मृत्यु मशीन के बटन को क्यो नहीं दबा सका. मेरा ह्रदय इतना अधिक क्यों धड़क रहा है. मेरी शक्ति पल पल क्षीण क्यों हो रही है.?”
(डा. महादेवन बटन पर उंगली रखते हैं. उनकी उंगली कांपने लगती हैं. माथे पर पसीना उभर आता है. आकाश, डाक्टर के हावभाव को देखते है.)
आकाश – (डॉ. को साहस देते हुए) डा. साहब, आप शीघ्र कीजिये. बटन दबाइये. मृत्यु मशीन आपको आमंत्रित कर रही है. आप पराजय मत मानिये. डा. साहब, आप शीघ्र कीजिये.”
(मगर डॉ.महादेवन बटन दबाने में असमर्थ हो जाते हैं. वे बटन से हाथ खींच लेते हैं)
आकाश – (कलरव करते हैं) आप हार क्यों मान रहे हैं. मुझे मृत्यु चाहिये. मुझे मृत्यु दीजिये.”
(डॉ. महादेवन बाहर निकल जाते हैं.)
आकाश – (जोर जोर से चीखते हैं.) डॉ. साहब, ये आपने क्या किया- रूक जाइये. मुझ पर दया कीजिये. मुझे मृत्यु प्रदान कीजिये……।”
(आकाश चीख चीखकर बेहोश हो जाते हैं.)
दृष्य परिवर्तन
(मासुस के सदस्य आपस में विचार विमर्श करने संलग्न हैं कि एक सदस्य मृणाल प्रवेश करती हैं. उनके चेहरे पर प्रसन्नता की आभा है)
चन्दहास – मृणाल, आप इतने प्रसन्न क्यों दिखायी दे रही हैं.?”
मृणाल – समाचार सुनेंगे तो आप भी प्रसन्नता से खिल जायेंगे.”
चन्द्रहास – यहां हम समस्याओं में उलझे हैं और आप प्रसन्नता की बात कर रही हैं.!”
मृणाल – डॉ. महादेवन अपने कार्य में असफल हो गये.”
सभी सदस्य – क्या, आप सच कह रही हैं?”
मृणाल – हां, वे मृत्यु मशीन का बटन नहीं दबा सके. वे निलम्बित कर दिये गये हैं. उनके बदले डॉ.सुरजीत को आदेशित किया गया है.”
समीर – इसका तात्पर्य हमें भरपूर समय मिल गया.”
मृणाल – हां समीर, पूरा पूरा समय मिला हैं. हमें अपना कार्य शीघ्र निपटाना होगा.”
चन्द्रहास – मगर कार्य का प्रतिपादन कैसे किया जाय-समझ नहीं आ रहा हैं?”
मृणाल – हम आकाश का अपहरण क्यों न कर लें?”
चन्द्रहास – मगर यह अपराध है. जबकि “मासुस’ अपराधिक कर्म को स्वीकार नहीं करता.”
मृणाल – हम आकाश का अपहरण फिरौती लेने थोड़े ही करेंगे. यह अपहरण अपराध नहीं कहलायेगा.”
प्रताप – मृणाल का कहना उचित है. एक उपाय मैं सुझाता हूं- आप आकाश का अपहरण कर लें. मैं उनके स्थान पर सो जाऊंगा. इससे डॉ. सुरजीत के कार्य में अवरोध उत्पन्न नहीं होगा. और आकाश जीवित भी बच जायेंगे.”
मृणाल – तात्पर्य, आकाश को बचाने आप को मृत्यु शैया पर सुला दें.”
प्रताप – नि&संदेह.
मृणाल – एक के प्राणरक्षार्थ. दूसरे को मृत्यु का ग्रास बनाने का प्रावधान “मासुस’ की संहिता में नहीं है”
प्रताप – मैं “मासुस’ के विचारों का आदर करता हूं. मेरी चेतना दिन प्रतिदिन लुप्त होती जा रही है. और वह दिन दूर नहीं जब मेरी चेतना पूर्णत& लुप्त हो जायेगी. मैं महत्वहीन हो जाऊंगा. मानवहित के लिये मेरा जीना उतना आवश्यक नहीं, जितना कि आकाश का.”
चन्द्रहास – (सभी सदस्यों से) क्यों मित्रों, क्या हम प्रताप के प्रस्ताव को स्वीकार लें?”
सभी सदस्य – प्रताप का विचार उचित है. हमें उनके विचार का स्वागत करना चाहिये.”
चन्द्रहास – तो इस कार्य में विलंब करना उचित नहीं.”
(मासुस के सदस्य आकास को उठा लेते हैं. उनके स्थान पर प्रताप सो जाते हैं)
(आकाश अचेतावस्था में हैं. मासुस के सदस्य उनके इर्द-गिर्द बैठे हैं. वे आकाश की चेतना लौटने की प्रतीक्षा में हैं. आकाश आंखे बंद किये ही बड़बड़ाते हैं)
आकाश – पानी पानी.
(चन्द्रहास ग्लास में पानी डालते हैं)
चन्द्रहास – (आकाश से) लीजिये पानी. मुंह खोलिये.”
(आकाश मुंह खोलते हैं. चन्द्रहास पानी डालते हैं. आकाश पानी को गुटकते हैं. प्यास बुझती हैं तो मना कर देते हैं. चन्द्रहास ग्लास रख देते हैं.
थोड़ी देर बाद आकाश आंखे खोलते हैं. सामने अपरिचितों को देखकर चौंक पड़ते हैं)
आकाश – (उठने का प्रयास करते हुए) आप लोग कौन हैं- मैं तो अस्पताल में था. मुझे यहां किसने लाया?”
चन्द्रहास – आप लेटे रहिये. हम गलत व्यक्ति नहीं हैं. हम “मासुस’ के सदस्य हैं.”
आकाश – मैंने इस संस्था का नाम सुना है. मगर आपने मुझे यहां क्यों लाया?”
चन्द्रहास – मृत्यु से मुक्ति दिलाने.
आकाश – आप लोग अनभिज्ञ नहीं होंगे- मैंने स्वयं मृत्यु चाहा था.”
चन्द्रहास – मगर हम आपको असमय मरने नहीं देना चाहते.”
आकाश – पीड़ित जीवन ने मेरे जीने की लालसा खत्म कर दी है.”
चन्द्रहास – अब हम आपकी पीड़ा को खत्म कर देंगे. और जीने की लालसा को बढ़ा देंगे.”
आकाश – असम्भव, बड़े बड़े डाक्टर असफल रहे तो आप लोगों को सफलता मिलना संभव नहीं.”
चन्द्रहास – हम अपने कर्माें पर विश्वास रखते है. अपनी विधि से उपचार करते हैं. और असंभव को संभव बनाने का प्रयास करते है. अंतत& जीत हमारी ही होती है.”
आकाश – मैं एक बार फिर कह रहा हूं- मेरी बात मानिये. मुझे मरने दीजिये.”
चन्द्रहास – नहीं…… न हम आपको मरने देंगे ओर न ही “सेफ्टी लाईफ’ के कार्य को अधर में लटकने देंगे.”
आकाश – (आश्चर्य से) अरे, सेफ्टी लाईफ के संबंध में आप जानकारी रखते हैं. लेकिन आपको किसने बताया?”
(उसी समय प्रोफेसर अनूप आते हैं)
अनूप – मैंने बताया
(अनूप को देखकर आकाश आश्चर्य में पड़ जाते हैं.)
आकाश – प्रोफेसर आप……..।”
अनूप – हां मित्र, मैं प्रोफेसर अनूप. मैंने अपना निश्चय तोड़ा- इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं.”
आकाश – क्या आवश्यकता थी- आपको वचन तोड़ने की?”
अनूप – यदि मैं वचन बद्ध रहता तो आपका जीवन, मृत्यु में परिवर्तित हो जाता.”
२६५
आकाश – क्या आपको भी विश्वास है कि “मासुस’ मुझे स्वस्थ कर देगा?”
अनूप – नि&संदेह.
आकाश – यदि मासुस इसमें असफल रहा तो?”
अनूप – असफलता का कोई कारण नहीं है.”
मृणाल – तो आप अपने मित्र के विचारों से सहमत हो गये न आकाश?”
(आकाश स्वीकृति में सिर हिला देते हैं. मासुस अपनी विधि से आकाश का उपचार करना शुरू कर देता है.)
दृष्य परिवर्तन
(आकाश सोफे पर बैठे हैं. मृणाल उनके पास आती हैं. उनके हाथ में दवाई भरी सुई है.)
आकाश – मृणाल, अब सुई लगाने की क्या आवश्यकता है! मैं तो “मासुस’ के कारण पूर्ण स्वस्थ हो गया हूं?”
मृणाल – (आकाश की बांह में सुई लगाते हुए) अनावश्यक सुई तो लगाऊंगी नहीं. आपको इसकी आवश्यकता है. इसीलिये ही लगा रही हूं.”
(इसी समय चन्द्रहास, अनूप सहित अन्य सदस्य प्रवेश करते हैं. उनके चेहरे पर प्रसन्नता की छाप है)
चन्द्रहास – (मुस्करा कर आकाश से) क्यों आकाशजी, अब तो आप को हमारे कार्य पर विश्वास हुआ न?”
आकाश – हां, अब तो मुझे सुई से डर लगने लगा है.”
चन्द्रहास – आप तो बांह में लग रही सुई से भय खाने लगे है. फिर मृत्यु मशीन की सुई को कैसे सहन करेंगे- मृत्यु मशीन की सुई तो सीधा हृदय को बेधती है?”
आकाश – अब मृत्यु मशीन की आवश्यकता नहीं है.”
चन्द्रहास – इसका तात्पर्य अब आप मृत्यु से कतराने लगे?”
आकाश – जब जीने के लिये अवसर मिल गया है तो जी लिया जाय.”
(आकाश हंस पड़ते हैं. साथ ही “मासुस’ के सदस्य भी)
आकाश – मासुस की तरह क्राचीद भी एक संस्था है. उसके सदस्य प्रतिभावान हैं. विद्वान हैं. मगर दोनों की कार्यप्रणाली में अंतर है.”
मृणाल – क्राचीद की कार्यशैली हिंसात्मक है. हिंसा कभी हितकर कार्य नहीं कर सकता. हिंसक व्यक्ति समाज को हितैषी बनने के बदले शत्रु बन जाता है. और इसीलिये क्राचीद की कार्यप्रणाली का मासुस विरोध करता है. हिंसक कितना भी प्रतिभावान क्यों न हो मगर उसे लुक छिपकर रहना पड़ता है. इसलिये वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में असफल रहता है. हम तो “क्राचीद’ से भी अपेक्षा करते हैं. कि वह हिंसा का त्याग करे. समाज के हित में कार्य करे.”
(आकाश, मृणाल के विचारों से प्रभावित होते हैं.)
आकाश – वास्तव में मासुस के विचार प्रशंसनीय हैं.”
मृणाल – और कार्य प्रणाली?’
आकाश – अनुकरणीय है. मैं मासुस के कार्य और विचारों का आदर करता हूं. अब देखना- सेफ्टी लाईफ को मैं पूर्ण तैयार करके दिखाऊंगा.”
(सभी सदस्य एक साथ तालियां बजाते हैं)
दृष्य परिवर्तन
(डा. महादेवन का निवास. वे चिंतामग्न बैठे हैं कि घंटी बजती है)
(वे दरवाजे की ओर बढ़ते हैं. कि घटी पुन& बजती है.)
डॉ.महादेवन – (ऊंची आवाज से) मैंने घंटी की आवाज सुन ली. मैं मरा नहीं. अभी जीवित हूं.”
(वे दरवाजा खोलते हैं. सामने प्रोफेसर खड़े मुस्करा रहे है, डॉ. हड़बड़ा जाते है.)
डॉ.महादेवन – प्रोफेसर साहब, आप…………।
प्रोफेसर – हां, क्या अंदर आने नहीं कहेंगे!
डॉ.महादेवन – क्यों नहीं. आइये न.
(दोनों भीतर प्रवेश करते हैं. वे सोफे पर बैठते हैं.)
प्रोफेसर – आप बहुत खीझे हुए दिखाई दे रहे है!
डॉ.महादेवन – हां प्रोफेसर, आपको क्या मालूम- किसी की जीविका छिन जाती है तो उसकी क्या स्थिति होती है.
प्रोफेसर – मैं आपकी पीड़ा समझ रहा हूं डॉ.”
महादेवन – बस इतना सांत्वना तो सभी देते हैं.”
प्रोफेसर – मैं आपको सांत्वना देने नहीं आया. मैं आपको जीविका दिलाने आया हूं.”
महादेवन – आखिर आप कहना क्या चाहते हैं?”
प्रोफेसर – न्यायालय ने आपको आकाश को दयामृत्यु देने नियुक्त किया था. उसमें आप असफल हो गये. इसे कर्यव्यहीनता माना गया. और आप निलम्बित कर दिये गये.”
महादेवन – हां
प्रोफेसर – डॉ. सुरजीत ने अपना कार्य पूर्ण किया. इसके लिये वे पदोन्नत हुए.”
महादेवन – हां
प्रोफेसर – मगर यथार्थ में डॉ. सुरजीत ने भी अपना कार्य नहीं किया.”
महादेवन – (आश्चर्य से) आखिर आप कहना क्या चाहते हैं. मुझे साफ साफ तो बताइये!”
प्रोफेसर – दरअसल डॉ. सुरजीत ने जिस व्यक्ति को दयामृत्यु दी वे आकाश नहीं अपितु प्रताप थे. और वे मासुस के सदस्य थे.”
महादेवन – इसका तात्पर्य आकाश जीवित हैं. और जीवित हैं तो आप उनके रहने के स्थान को जानते होंगे?”
प्रोफेसर – हां अवश्य.
महादेवन – तो प्रोफेसर, मुझे आकाश ही न्याय दिलवा सकते हैं. मुझे उनके पास ले चलिये.”
प्रोफेसर – मैं आपको ले जाने ही आया हूं.
महादेवन – फिर देर क्यों कर रहे है. शीघ्र कीजिये.”
(दोनों जीप में बैठते हैं. जीप सड़क पर दौड़ता है)
प्रोफेसर – आकाश ने सेफ्टीलाईफ नामक यंत्र का आविष्कार किया है. वह मानव जीवन के लिये रक्षा कवच है.”
डॉ.महादेवन – अच्छा.
प्रोफेसर – हां (चालक से) दाहिना मोड़िये. वो पीला बिल्ड़िग है न वहीं जीप रोकना.”
चालक – जी हां.
(जीप दाहिना मुड़कर बिल्ड़िग के सामने रूक जाता है. दोनों जीप से नीचे आते हैं. बिल्ड़िग की ओर कदम बढ़ाते हैं.)
प्रोफेसर – इस यंत्र की खूबी है कि यह बमों को निष्क्रिय करने में पूरी तरह समर्थ है.”
डॉ.महादेवन – अच्छा.
प्रोफेसर – हां (एक कक्ष में प्रवेश करते हुए) आइये.
(दोनों भीतर प्रवेश करते है. सामने आकाश को पाकर डॉ.महादेवन के पांव ठिठक जाते है. वे चकित होकर आकाश को देखते हैं.)
आकाश – ठिठक क्यों गये डाक्टर. आइये. बैठिये.”
(डॉ. महादेवन सोफे पर बैठ जाते हैं)
आकाश – डॉ. साहब, मै आपका आभारी हूं (सेफ्टीलाईफ को दिखाते हुए) मैं आपके ही कारण इस यंत्र का आविष्कार कर सका.”
डॉ.महादेवन – मगर इसके बदले मुझे क्या मिला-मेरा वर्तमान और भविष्य गर्त में चला गया न!”
आकाश – मैंने इस गर्त से उबारने ही आपको बुलाया है.”
डॉ.महादेवन – आपका तात्पर्य?
आकाश – मैं न्यायलय में इस सेफ्टीलाईफ को दिखाऊंगा. और आपको न्याय दिलाऊंगा. आप मेरे साथ न्यायालय चलिये.”
(डॉ.महादेवन और आकाश जीप में बैठते हैं. जीप सड़क पर दौड़ता है)
दृष्य परिवर्तन
(क्राचीद का अडडा. ऋषभ कमर में बेल्टबम बांधता है. वह निकलने लगता है कि विश्वास कहता है)
विश्वास – ऋषभ, आप कहां चले?”
ऋषभ – मैं न्यायालय का सर्वनाश करने जा रहा हूं. आज बेल्टबम का प्रयोग वहीं करूंगा.”
विश्वास – आप विद्वान हैं. प्रतिभावान लेखक हैं. फिर भी आप सर्वनाश करना चाहते हैं.”
ऋषभ – हां, मेरी विद्वता मेरी प्रतिभा की पहिचान आपको है. मगर कानूनविदों को नहीं (अंतिम क्रांति-नामक पुस्तक की ओर संकेत करते हुए) आप तो जानते हैं- मैंने इस “अंतिम क्रांति’ पर दयामृत्यु के संबंध में लिखा है. मगर इसे किसी ने नहीं सराहा. उल्टा अवहेलित की.”
विश्वास – आपकी पुस्तक और आपके विचारों का निरादर हुआ इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि आप न्यायलय को ही उड़ा दें. आप अपराधिक कर्म पर अंकुश लगाइये.”
ऋषभ – हूंह. यही भाषण मैंने प्रणव को पिलाया था. उसने कहा था- न्यायलय को उड़ा दो. तब मैंने धैर्य पर बल दिया था. सोचा था- देर सबेर मेरी प्रतिभा का मूल्यांकन होगा. मगर संवाद हीनता आड़े आयी. अब तो मेरे पास एक ही रास्ता है- न्यायालय का सर्वनाश करना.”
(ऋषभ झटके के साथ आगे बढ़ जाता है)
दृष्य परिवर्तन
(न्यायालय – यहां अधिवक्ता. पक्षकार साक्षी और अन्य लोगों की भीड़ है. आकाश, डॉ.महादेवन के साथ न्यायालय में प्रवेश करते हैं. इसी क्षण सेफ्टीलाईफ की लालबती जलने लगती है. आकाश के कदम रूक जाते हैं)
डॉ.महादेवन – आकाश जी, आप रूक क्यों गये?”
आकाश – सेफ्टीलाईफ संकेत दे रहा है कि यहां कोई खतरा है.”
डॉ.महादेवन – खतरा लेकिन कैसा खतरा?
(डॉ.महादेवन सिहर उठते है. वे भयभीत दृष्टी से इधर-उधर देखते हैं. सेफ्टीलाईफ की पीलीबती जल उठती है)
आकाश – यहां कोई बेल्टबम पहनकर आया है. वह न्यायालय को तबाह करना चाहता है.”
(आकाश एक बटन को दबाते हैं. वे एक व्यक्ति की ओर संकेत करते हैं. वह ऋषभ है. आकाश सेफ्टीलाईफ का दूसरा बटन दबाते हैं.) अब देखना-ऋषभ का बेल्टबम निष्क्रिय हो जायेगा.”
महादेवन – क्या सच?
आकाश – हां
(ऋषभ बेल्टबम का बटन दबाता है. मगर सेफ्टीलाईफ के कारण वह निष्क्रिय हो जाता है. ऋषभ बेल्टबम के बटन को पुन& जोर जोर सो दबाता है, मगर वह नहीं फटता. ऋषभ परेशान और गुस्से से भर जाता है. अचानक उसकी दृष्टि आकाश पर जाती है. आकाश मुस्करा रहे हैं. ऋषभ को क्रोध पार कर जाता है. वह किटकिटाकर आकाश की ओर दौड़ता है. आकाश चिल्ला उठते हैं)
आकाश – इसे पकड़ो. इसके पास बेल्टबम है.”
(न्ययालय में भगदड़ मच जाती है. ऋषभ प्राणबचाकर भागने का प्रयास करता है. मगर तब तक वहां की पुलिस उसे दबोच लेती है. उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है. आकाश को सामने पाकर न्यायाधीष नागार्जुन आश्चर्य मे पड़ जाते हैं)
न्यायाधीष – आप.
आकाश – हां मैं आकाश.
न्यायाधीष – मगर आपको तो?
आकाश – मुझे दयामृत्यु दे दी गयी थी……. आप यही कहना चाहते हैं न! मगर “मासुस’ ने मुझे मरने नहीं दिया.”
(सेफ्टलाईफ न्यायाधीष को सौंपते हुए) जिसका उपलब्धि यह है.”
न्यायाधीष – यह क्या है?
आकाश – यह सेफ्टीलाईफ है. इसके कारण ही बेल्टबम निष्क्रिय हो गया. अपराधी पकड़ा गया. न्यायालय बर्बाद होने से बच गया.”
(उसी समय ऋषभ अपनी “अंतिम क्रांति’ पुस्तक को न्यायाधीष को सौंपते है)
ऋषभ – (न्यायाधीष से) सर, इसमें अनेक गंभीर विषयों पर वैचारिक लेख लिखे गये हैं. इसमें “दयामृत्यु’ पर भी चर्चा की गई है- कि किस व्यक्ति को किस परिस्थिति में दयामृत्यु का अधिकार दिया जाय.”
न्यायाधीष – अच्छा.
ऋषभ – हां सर, (थोड़ा रूक कर) सर, मैं एक प्रश्न करना चाहता हूं?”
न्यायाधीष – कहो.
ऋषभ – सदा से एक नियम चला आ रहा है- मेरी तरह अपराधी पकड़ा जाता है. उस पर न्यायालयीन कार्यवाही होती है. और उसे दण्ड दिया जाता है. क्या यह प्रथा चलती ही रहेगी?”
न्यायाधीष – नहीं, वर्तमान में विश्व की न्यायपालिकायें अनिश्चय की स्थिति में हैं. कि दयामृत्यु को मान्यता दी जाये या नहीं! इस पर तुम्हारा लेखन है. सेफ्टीलाईफ ने अपनी प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया. अब उसकी योग्यता को कौन अस्वीकार सकता है! (अंतिम क्रांतिपुस्तक की ओर संकेत करते हुए) वैसे ही यदि यह पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल रही तो इसका सम्मान होकर रहेगा.”
नाटक ला लेखक मन देखिन, टकटक खोल के राखिन आंख
जरत ह्रदय हा इरखा कारन, उंकर गिरत लेखन के साख.
दानी अंदरूनी मन सोचत- अब आगू आवत ग्रामीण
हमर साथ मं टक्कर लेवत, खोज लीन साहित्यिक रीढ़.
मेहरू बहल उंहे चुप सुतगिन, कार रात मं कहुंचो जांय!
बड़े फजर होइस तंह मेहरू, सुन्तापुर बर करथय कूच.
अपन गांव मं पहुंचिस मेहरू, तंह कातिक संग होगिस भेंट
खैरागढ़ के व्यथा ला कहिदिस, कुछ नइ रखिस लुका के पेट.
कातिक हा मेहरू ला छोड़िस, परब के बारे करत विचार-
“”देवारी हा भेद बढ़ाथय, मानव बीच परत हे सन्द.
जउन हा पहिली मानिस होही, भेद के दीवारी तिवहार
ओहर रोइस के सुख मानिस, चुप लुकाय हे एकर भेद.
जगमग दिया बरत एक घर मं, पर के घर मं घुप अंधियार
एक आदमी कोंहकोंह खावत, दूसर हा रहि जात उपास.”
फूलबती हा तिर ले निकलिस, जेन धरे प्रेतिन के रूप
छुही पोताय नाक मुंह मुड़ पर, मुसकावत कातिक ला देख.
कातिक फूलबती ला देखत, जमों फिकर ला तिरिया दीस
दुनों बीच मं गोठ चलत हे, याने चलत प्रेम के गोठ.
“”ए टोनही”- काये गा टोनहा”- तिर आ बैठ”- बता का काम?”
“”तड़फत हंव”-मन मड़ा कुछेच दिन”-“”चल अभिघर-“”होहंव बदनाम.”
कातिक हा मुसकावत बोलिस-“”होइस अभी जेन सम्वाद
एहर हमर दुनों झन के नइ, हम्मन नकल करे हन आज.
दुखिया अउर गरीबा दुन्नों, टोनहा टोनही मं बदनाम
उंकर बीच मं चलतिस ताना, तब सम्वाद कमातिस नाम.”
गांव नता मं भउजी लगथय, ते झरिहारिन आइस पास
किहिस-“”खोज ले लान देरानी, कब तक ले रहिबे बिपताय!
किंजरत गली कुंवरबोंड़का अस, उमर तोर हे करे बिहाव
यदि टूरी नइ चाहत तोला, लुगरा पोलखा पहिर सुएम.”
कातिक बोलिस- मंय सोचत हंव- मिल जातिक मुड़ढक्की रोग
पोथी पतरा देखा डरे हंव, लेकिन कहां मिलत हे जोग!
वइसे एक नजर में हे जेकर पर रखत भरोसा ।
जेहर साथ दिही जीवन भर कभू नइ दिही धोखा।।
झरिहारिन अउ बात बढ़ाइस-“”देवर, तंय हा धीरज राख
हरहिन्छा आसिस देवत हंव- तोर मुड़ी मं लगिहय मौर.”
“”तोर बात हा सत्तम उतरय, एकदम तूक मार तो दांव
अगर सफलता हम अमराबो, तोर धोकर के परबो पांव.”
“”खाल्हे गिरत निहू बन के तुम, डारत मोर मुड़ी मं भार
एक खुंटा मं बंध के रहिहव- सुक सनिचर पंड़री बुधवार.”
झरिहारिन, फूलबती ला पूछिस- “”तंय हा बता गोठ सच छूट
मोर परन हा पूरा होहय, या फिर जाहय रट ले टूट?”
फूलबती हा कुछ नइ बोलिस, ठेंगवा देखा के धर लिस राह
कातिक घलो खेत तन जावत, मन मं भरे मया उत्साह.
धनहा खेत मं कातिक किंजरत, मन मं खुशी ह्रदय मं हर्ष
धान के कद हा हवय नरी तक, महमहात हे ओकर फूल.
हवा देखावत मया धान पर, जूड़ हवा मं झूलत धान
एहर खाय जिनिस ए तब तो- एकर मान सबो ले ऊंच.
खेत जांच के कातिक लहुटिस, धनवा तिर फोरत सब हाल-
“”मालिक, धान फंसे हे कंसकंस, खूब अन्न मिलिहय ए साल.
बदरा झुण्डा के निसनाबुत, लाम गरा दाना मन पोख
मेड़ पार मं धान फंसे हे, मंय हा बोलत हंव बिन फोंक.”
धनवा भड़किस- “”तंय दोखहा हस, का होवत यदि गसगस धान
बनी भुती कतको नापे हन, ओमां कभू रखे हस ध्यान!
तोल मुंहू देखब मं असगुन, अंखफुटटा अस फट लू देस
पर के उन्नति ले तंय जलथस, तंय खुद पाथस कलकल क्लेश.”
कातिक हा ओतिर ले खसकिस, धनवा के सुन गुहरा गोठ
क्रोध के कारण बोल सकिस नइ, चुप रहिगे बस चाबत ओंठ.
बइला खाथय मार पेट भर, तभो रहत मालिक के पास
कातिक हा धनवा के घर गिस, हारत हे जीवन के होड़.
धनसहाय हा घर मं अमरिस, देखत हे नौकर के काम
पर के कुरिया अरन बरन पर, खुद के घर हा चकचक साफ.
धनसहाय के पुत्र एक झन, ओकर नाम हवय मनबोध
ओहर टुड़ुग टुड़ुग रेंगिस तंह, धनवा फट ले मारिस रोक.
पुचकट ला पुचकार के बोलिस-“”तंय झन कर मिहनत के काम
मंय अनसम्हार धन सकले हंव, ताकि पास तंय सुख आराम.
सोन के मचली मं सोय रहिबे, दुनों हाथ मं करबे खर्च
अंटा जहय तरिया के जल तक, पर धन मोर उरक नइ पाय.”
कपट गोठ मनबोध का समझय, कातिक तिर बालक हा जात
ओला धनवा अधर उठालिस, मुंह ला चूमत प्रेम जतात.
कातिक तन इंगित कर कहिथय-“”तंय नइ जानस एला।
दिखब मं सुधुवा लेकिन रखथय मन मं कपट के भेला।।
धनवा हा बालक ला लेगिस, कातिक हगरू तिर गोठियात-
“”देखव बड़हर मन के आदत, हम गरीब ऊपर अंटियात.
हे मनबोध अभी नानुक अस, तेला देत कुजानिक पाठ
प्रेम ज्ञान के राह देखातिस, पर पीटे बर देवत सांट.
सांपनाथ के नांगनाथ हा, बालक ला बतात हे चाल
पर ओ बखत मरत ले रोहय, जब भावी मं आहय काल.”
हगरू किहिस-“”रहन ते भइया, धनवा ला नइ परय दलेल
ओकर तिर पूंजी के ताकत, ओकर ले रहिबो कर मेल.”
“”इही चाल ला चलिन ददा मन, कोलिहा असन हुंकारू दीन
हम्मन उंकरों ले अउ कोतल, तब धनवा पनही झड़कात.
अगर भविष्य बनाय चहत हन, शोषक ले हम टक्कर लेन
तब हकिया के छोड़ के रहिहय, लहू चुसे बर भंइसा जोंख.”
ओतकी मं फगनी हा आइस, नौकर मन के झिकिस लगाम-
“”काली हवय परब सुरहुत्ती, लेकिन बचे गंज अक काम.
जलगस परय नइ कोर्रा लउड़ी, तुम्मन कहां हलावत देह
बुता बचे तेला उरका दव, तब छुट्टी मिलिहिय घर जाय.”
नौकर मन मुंह ला चुप रखथंय, अधरतिया तक काम बजैन
उंकर पेट होवत हे सपसप, घर मं अमर के जेवन पैन.
सुरहुत्ती के दिन धनवा हा, बात करत फगनी के साथ-
“”लछमी पूजा हे संझाकुन, पूजा बर सब जिनिस सकेल.
लक्ष्मी मानपान ला पाथय, उंहचे छाहित होथय सोज.
जउन नेम ले रहत उराठिल, घुघुवा हा खावत हे खोज”
धनवा हा कातिक ला बोलिस-“”पूजा बर का करे प्रबंध
यदि लछमी के स्वागत करबे, तभे खतम दुख के अनुबंध.”
कातिक किहिस-“”एल्ह झन ठाकुर, लछमी हमर बाच हे बैर
ओकर इज्जत करन सकन नइ, तब लछमी हा काबर आय!
अटब हार वाले ला चिन्हथय, ओला दर्शन देथय दौड़
लछमी के सेवा तंय करथस, तब सुख ला पाहय मन बोध.”
“”तंय हा मोला मुरूख समझ झन, मंय समझत तोर भाषा व्यंग
तंय कसरहिल करत दूसर पर, आंख फुटत पर के धन देख.
एकर फल ला दंय खुद पावत- तोर पास हर जिनिस अभाव
रांयरांय कर जिनगी काटत, पर नइ मिलत सुखद परिणाम.
धनवा हा कातिक पर घुड़किस, तंह सकलिस पूजा बर चीज
ढरकिस बेर सांझ हा आगे- शुरू होत पूजा के खेल.
धनवा के घर बजत फटाका, दगदग दिखत हवय घर द्वार
अंधियारा के नाम बुतागे, रगबग बरत घीव के दीप.
कातिक हा मन मं सोचत हे- काबर दुवाभेद के खेल
घिव के दिया बरत धनवा घर, हमर इहां नइ अरसी तेल.
धनवा कथय- घिव हा गुन देथय, एकर खाय भोगाथय देह
थोरिक मंहू चोरा के खावंव, तंहने बन जाहंव बलवान.
एक दिया भर घीव चोराइस उहां ले छरकिस लउहा।
तात घीव हा गोड़ मं गिरगे उबलिस चकचक फोरा।।
कातिक हा करला के केंघरत, ओकर बढ़त जलन अउ दाह
दाईददा के नामे सुमरत, कउनो करय मदद ला दौड़.
सुखी हा जम्मों दृष्य ला देखिस, मगर मदद ले जीव हटैस
धनसहाय के कान ला फूंकत, बढ़ चढ़ के चुगली ला खैस.
बोलिस-”आय हवय सुभ मुहरूत, धन सुख खुशी आय के टेम
लेकिन नीयत खोर कातिक हा, अशुभ काम ला करदिस आज.”
धनवा हा घटना ला जानिस, कातिक पर बतात हे क्रोध
अपन डहर कातिक ला झींकिस, धान के पैर कलारी चोख.
लोर के उपटत गाल ला मारिस, चिन्हा दिखत हे टकटक लाल
ओन्हारी के कुंड़ चिरथय तब, ओकर चिन्ह दिखत हे साफ.
धनवा बकिस-“तिजऊ के अंसअस, जान पाय नइ लहू-प्रभाव
सोमना ला कतको चतरावत, पर ओकर जड़ रहिथय खेत.
तोर सइत्ता छुटत रिहिस हे, मंगते घिव मुंह ला फुटकार
एक किलो अस देतेंव मंय खुद, ओकर संग मं नोट हजार.”
धनवा अब पूजा मं भिड़थय, आगे सुभ मुहरूत के टेम
पूजा मं फगनी संग बइठिस, खेलत पास पुत्र मनबोध.
नवा नवा कपड़ा पहिरे हें, महमावत हे अत्तर सेन्ट
सम्हरे हे मनबोध सुघर अक, दिखत हवय जस नंदी बैल.
लछमी चित्र हवय आगुच मं, गहना मन हा रखे परात-
सुर्रा खोपिया तितली खोटला, टिकली बारी फुली बुलाक.
कोपरबेला हंसली पुतरी, बंहुटा सुंतिया पिन संग गोफ
अंइठी करधन तोड़ा चुटकी, गहना अतिक बात नइ फोंक.
लछमी मं चढ़ात दूनों झन, नरियर मिठ फल चांउर दूब
आंख मूंद के मिट का जाथंय, बिनती करिन दुनों झन खूब.
सुखी उपस्थित हवय कलेचुप, देखत सिरिफ मुआ अस बांध
धनवा के पूजा ला जांचत, ओकर अक्कल हा भट जात.
सुखी झकनकागे जब पाइस- एक पसर भर मिठई-प्रसाद
खाइस तंह ओंड़ा दलगिरहा, धान बढ़त पाके जल खाद.
बोलिस सुखी-“”कहां पाये हंव, आज उड़ाय जेन मंय चीज
मंय हा हांका पार के बोलत- रहिहंय सदा इहिच दहलीज.
ए जग मं कतको मनसे हें पर नइ पीयंव मानी।
तंय हा छाहित हवस मोर पर नइ चढ़ात हंव पानी।।
एकर बाद सुखी हा सल्टिस, धनसहाय ला चढ़ा अकास
जेन काम कोतल मन करथंय, करत प्रशंसा सबके पास.
सनम हा तड़ ले सुखी ला बोलिस-“”तंय लुहाय चुगली कर आज
कातिक ला पकड़ाय तिंही भिड़, पाय एवज मं काय इनाम?”
“”गांव के रददा चतरावत हंव, तुम झन लेव चोर के पक्ष
अइसन मं पर जहय संधाड़ा, छाती तान घूमिहिय चोर.”
सुखी के तर्क ला सनम हा काटिस-“”हवय कोन ला बद के साध
लेकिन धन के भेद के कारन, मनसे हा करथय अपराध.”
“”अतका बात बोल दूसर तिर, मंय जानत पुंजलग के रंग
उंकर विरूद्ध अगर हम जावत, टंगिया गिरिहय खुद के अंग.
दीन के खटला भउजी होथय, बंड के औरत बहिनी आय
हागे कुला छोटे मधुमक्खी, भांवर ला सब झन डर्रात.
पिरपिटटी ला खेदत लइका, चिचिया भागत डोमी देख
हरिना के तन हाथ ला फेरत, पर धिधियात बाध ला देख.”
“”भांवर के मंदरस निकलत हे, जहर के औषधि तक बन जात
बघवा हा सरकस मं नाचत, बंड हगत जब हक मर जात.”
अधरतिया के नर नाही मन, झड़ी के घर बाजा घर गीन
गउरा गउरी रखे हे उंहचे, परघावत इज्जत के साथ.
गउरा गउरी ला मुड़ पर रख, गउरा चंवरा के तिर लैन
फूल हा कुचरे रखे उहां पर, देव ला चंवरा मं पधरैन.
माटी के देवता मन मोहत, चमकत हे सनपना के भीथ
मेमरी सिलियारी गोंदाफुल, सब तन बरत रगबगा दीप.
देव के भांवर रखे हे करसा, करसा मं उतरे हे फूल
भीतर भरे फरा अउ मुठिया, लइका हेर के खावत झूल.
बाजा बजत देव मन नाचत धर के सांकर बाना।
खांद पकड़ के नारी मन चांउर छित गावत गाना।।
(१) गौरा गीत
गौरा जागो मोर गौरी जागे
जागे शहर के लोग ।
झाई झुई झुले झरे, सेजरी बिसाय
जागो जागो मोर गांव के गौंटिया
जागो जागो मोर ढौलिया बजनिया
जागे ओ गंवइहा लोग
बैगा जागे मोर बइगिन जागे
जागे ओ शहर के लोग ।
(२) फूल कुचरना
एक पतरी रैनी भैनी राय रतन ओ दुर्गा देवी
तोरे सीतल छांव माय चांउर चौंकी चंदन पिढ़ली
जैसे गौरी के होथय मान तुम्हारे
जइसे टेढ़ा डार जइसे
परवा छछल गाई डार
एक पतरी रैनी भैनी राय रतन ओ दुर्गा देवी
तोरे सीतल छांव माय चांउर चौंकी चंदन पिढ़ली
गौरी के होथय मान- जइसे गौरी हो मान तुम्हारे
जैसे कोरे धान
कोरे असन डोड़ही पर्रा छछलगे फूल………।
दू पतरी रैनी भैंनी राय रतन ओ दुर्गा देवी
तोरे सीतल छांव माय चांउर चौंकी चंदन पिढ़ली
गौरी के होथय मान – जैसे गौरी हो मान तुम्हारे
जइसे कोरे धान
कोरे असन डोड़ही पर्रा छछलगे फूल………।
(३) जोहार गीत
जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता,
सेवर लागौं मैं तोर ।
ठाकुर देवता के मढ़ि ला छवायंव,
झुले ओ परेवना के हंसा ।
हंसा चरथे मोर मूंगा ओ मोती
फूलै ओ चना के दार
धरती पृथ्वी के मढ़ि ला छवायंव
झुले ओ परेवना के हंसा
हंसा चरथे मोर मूंगा मोती
फूले चना के दार
(४) डड़ैंय्या गीत
लाले लाले बरसा लाले हे खमारे
लाले इशर राजा छोड़वा संवारे
सिकही लबेदा मारे इशर राजा
बेला गिरै सहनाई
नदिया भितर झिल मिल टेंगना
जाइ धरइ अस मोतिन के अंचरा
छोड़ो-छोड़ो रे टेंगना हमरो अचंरा ला
जाइ धरई जस मोतिन के अंचरा……..।”
(५) अखरा गीत
दे तो दाई दे तो दही मं मोला बासी
अखरा खेलन बर जैहों ओ दाई
अखरा अखरा बाबू तुम झन रटिहौ गा
अखरा में बड़े बड़े देवता रे भैया
अखरा खेलत बाबू ददा तोर बीत गे
पैदा लेवत बाबू दाई तोर बीतगे
न तोर ददा बाबू न तोर दाई गा
कोन तोर आड़ी ला पुरोही गा भैया
तिहीं मोर ददा दीदी, तिहीं मोर दाई ओ
तिहीं मोर आड़ी ला पुरोबे ए दीदी
तिहीं मोर अखरा मं दिया बार देबे ओ
के कोसे के अखरा सो लाये
कै कोसन के फेरे रे भैया
दस कोसन के अखरा सो लाये
बीस कोसन के फेरे रे भैया ।
(६) विसर्जन
एक पतरी चढ़ायेन गौरी, खड़े हो बेलवासी ।
आमा आमा ला पूजेन गौरी, मांझे चौरासी ।।
रौनिया के भौनिया रंग परे कस्तुरिया ।
आगू आगू राम चले, पाछू मं भौजइया ।।
रथिया काटिन कर जगवारी, परब देवारी लगगे आज
हूम दीन गउरा गउरी मं, दुन्नों ला मुड़ मं बोहि लीन.
देव ला ठंढा करना हे अब, जनसमूह तरिया मं गीस
उंहे देव ला ठंढा कर दिन, तंहने करत सफइ के काम.
मनसे मन हा डुबक नहावत, हेरत हवंय देह के मैल
गन्दा कपड़ा मन ला धोवत, साबुन तिली चिरचिरा राख.
मनसे अपन ठिंहा मं लहुटिन, अड़बड़ काम के आय तिहार
गरूवा मन नइ लगत थिरबहा, दउड़त गली बोरक्की मार.
रंधनी के तिरिया मन सोचत- समझ आत नइ रांधन काय
पास परोसी ला पूछत हें-“”काय साग रांधत हव आज?
कोंहड़ा कोचई जिमीकांदा हे, तेमां अमसुर मही डराय
एमन आज सुहाथय नंगत, तभे परब हा होवत पूर्ण.”
कोंहड़ा कोचई जिमीकांदा ला, कहुंचो ले कर लीन प्रबंध
ककरो मन हा काबर टूटय, सब घर रांध करिन तैयार.
अउ पकाय ताकत के पुरती- बरा सोंहारी भजिया खीर
अपन पेट भर जिनिस उड़ाइन, संहरावत खुद के तकदीर.
मांईलोगन लिखपोहना धर, ननचुनिया के कोरत बाल
पर ओमन ला कुछ नइ भावत, भगना चहत गुंडी तन जल्द.
गायगरू के पूजा होवत, खिचरी खवा परत हें पांव
सोहई ला बांधत बरदीहा हा, लेवत हें ठाकुर के नाम.
कृषक के कोठी ऊपर ओमन, गोबर लोंदी मारिन खींच
अन धन हा दिन दूना बाढ़य- मन ला खोल देत आशीष.
चार बजिस तंहने मनखे मन, बइगा चंवरा तिर सकलैन
चेतलग मन पोटास मन्सिर भर, गचकुण्डी ला धांय बजैन.
एक बछर मं एक देवारी, सबके मन मं हवय उमंग
पुरसारथ भर सम्हरें सबझन, एको झन नइ जड़ग बड़ंग.
नान्हे लइका कंधा पर चढ़, जगर बगर देखत सबकोत
बजत फटाका मन हा भड़भड़, लइका झझक के रोवत खूब.
नवयुवती मन सम्हर खड़े हें, कान मं खोंचे दवनापान
आंख मं काजर गोड़ मं माहुर, मुंह मं दाबे बंगला पान.
हे घुमियार देवतिर तिरिया, इहां आय घर तारा ठेंस
अपन सखी संग बात चलावत- आज तो हंस के कर ले गोठ.
उनकर ले थोरिक दुरिहा मं, डोकरा मन कनिहा धर ठाड़
बेलबेलहा मन कंहु बिजरावत, कुबरी लउठी सर्र घुमात.
ओतकी मं राउत मन आइन, बाजा बजत नचत हें झूम
बइगा चंवरा परकम्मा कर, कांछा ढोंलग देत हें हूम.
आंखी काजर मुंह मं बंसरी, तेंदू खैर के लउठी हाथ
गोड़ पयजना संग मं घुंघरू, कनिहा भर कउड़ी के हार.
मोर पंख के गांथे खोपड़ी, राउत मन के देखव शान
साजू छाती बंहा मं बंहिका, रखे हें गघरा ऊपर तान.
एक जगा मं ठाड़बाय नइ जइसे कतला रोहा।
लउठी धर के पिचरिंग कूदत कांख के पारत दोहा।।
कालीदह मं कुदे कन्हैया तोड़े पताल के ताला।
उचक गेंद पताल मं धंसगे सोचय पृथ्वी वाला।।
पत्थर चुन चुन महल बनाया लोग कहे घर मेरा।
ना घर तेरा ना घर मेरा चिड़िया करे बसेरा।।
अंचरा चिरचिर फेंके सीता मांई
झोंके बीर जटायू
तीन लोक में है कोई जोइधा रख रखे बिलमाई.
राम नाम के लूट है लूट सकै तो लूट।
अंतकाल पछतायेगा प्राण जायेगा जब छूट।।
बृन्दाबन के कुन्जगलिन मं लम्बा पेड़ खजूर।
चढ़ने वाला चढ़गया संगी, उतरे तो ब्रज दूर।।
सब के लउड़ी रींगी चींगी मोर लउड़ी कुसुवा ।
पाँच कउड़ी मं डउकी लानेंव उहू ला लेगे मुसुवा ।।
अड़बड़ दिन के पावन संगी मुख दर्शन को आय हो ।
अइसन देवारी नाचो संगी जीव रहे के जाय हो ।।
राउत नचत बढ़त आगू तन, मनखे रेंगत उनकर साथ
भांवर मं दुलहिन हा चलथय, चांटी चाल चलत हें पांव.
नाच डहर सब के सुरता हे, सतिया छुटत देख अब लेंव
अगर एक झन अगुवा जावत, पर हा बाढ़त धक्का मार.
कोलकी गली जउन तिर अभरत, तिरिया मनबर अड़बड़क्लेश
लेकिन कुराससुर ला घंसरत- बाद मं दे लेहव उपदेश.
चिरई हा वापिस खोंधरा आथय, सुरूज जात घर करके काम
कमल फूल हा डोंहड़ू बनथय, महानगर के रद्दा जाम.
गरूवा चारा चर के आथंय, जब होथय दिन रात मिलान
उही बखत देहाती पहुंचिन, राउत नाच देखत दइहान.
गोबर के गोरधन जंगल हे, संहड़ादेव के बिल्कुल पास
उत्ती बुड़ती हे गोरस जल, जेहर आरूग यने के नीक.
धान के बाली रूमझुम होवत, सिलियारी मेमरी मन साथ
जमों खोंचाय गाय गोबर मं, ओमन अति सुन्दर रूपसात.
एक बरन गइया के बछरू, जेकर चिलक लेत मन मोह
पूजा करा सोहई बंधवा लिस, खिचरी झड़क नचावत गोड़.
गोरधन डोंगरी ला उझारदिस, बछरू हा गदफद कर कूद
बाग बगीचा रंउदा चरपट, भुंइया घुसगे पानी दूध.
गरूवा मन सकला ठाढ़े हें, ओमन ला लानिन ए पास
ओमन गोबरधन ला खूंदिन, मनसे मन हा खुशी मनात.
सब ग्रामीण दउड़ के आइन, गोबरधन ला धरलिन हाथ
एक दूसरा माथ मं टीकिन, भूल शत्रुता करलिन भेंट.
आपुस मं गोबरधन बदथंय छोटे परिस बड़े के पांव
एक दूसरा हाथ ला पकड़िन, सबझन लहुदिन खुद के छांव.
होईन अभी दूध पानी अस बिसरिन मारा मारी।
शांति के बंसरी बज ही जग मं तब पबरित देवारी।।
(… ६. तिली पांत समाप्त …)
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