जब समाज मं शांति हा बसथय शांति पात जिनगानी।
दुख शत्रुता अभाव भगाथय उन्नति पावत प्रानी।।
मारपीट झगरा दंगा ले होवत कहां भलाई।
मंय बिनवत हंव शांति ला जेहर बांटत प्रेम मलाई।।
लगे पेड़ भर मं नव पाना, दसमत फूल फुले बम लाल
लगथय – अब नूतन युग आहय, क्रांति ज्वाल को सकत सम्हाल!
अब परिवर्तन निश्चय होहय, आत व्यवस्था मं बदलाव
पर मंय साफ बात बोलत हंव – नइ दुहरांव पूर्व सिद्धान्त.
याने महाकाव्य मं मंय हा, होन देंव नइ हत्या खून
जीवन जीयत बड़ मुश्किल मं, तब बढ़ जाय ऊन के दून.
रस वीभत्स लहू शव हत्या, यदि देखे बर किरिया खाय
पढ़ लव रामायण महाभारत, आत्मा ला कर लव संतुष्ट.
दू ठन विश्व युद्ध देखे हन, मुड़सरिया मं तीसर युद्ध
हत्या कथा फेर यदि लिखिहंव, देहूं कहां शुद्ध साहित्य?
बर्लिन के दीवार हा टूटिस, तब मंय घलो रखत विश्वास-
क्रांति हा शांति ला धर के आहय, ककरो जीव हानि नइ होय.
धनसहाय हा मन मं सोचत – नौकर मन हा छोड़िन काम
मोर दुवारी तक नइ झांकत, दूर ले देख के मुंह टेंड़ियात.
परे खार मं सब बिरता हा, फल मन हा पक के तइयार
बिना श्रमिक कोन लू के लानय, खार मं अन्न हा होत खजार.
अपन स्वार्थ के पूर्ति करे बर, मंय हा चलव एक ठक चाल
अगर झुके ले काम सधत हे, एमां कहां कटत हे नाक !
तुरुत गरीबा ला बलवाथय, अैस गरीबा ओकर पास
धनवा ओकर स्वागत करथय, मुंह मं प्रसन्नता ला लान.
कहिथय -“”बइठे बर नइ आवस, हम अउ तुम बचपन के मीत
हवय तोर बर हिरदे फरिहर, मोर बात पर कर परतीत.”
परिस गरीबा हा अचरज मं – धनवा हा शोषक बटपार
कुकुर असन पर ला दुतकारय, खेदय तुरुत डेरौठीपार.
कइसे गिरगिट अस रंग बदलत, मिट्ठी मधु अस ढिलत जबान
लगथय – एमां स्वार्थ घुसे हे, तभे मोर होवत सम्मान.
“”जीवन भर मं अभी अचानक, कइसे करे मोर तंय याद
काय बात हे खोल के फुरिया, एको कनिक कपट झन राख.”
रखिस गरीबा वाक्य कड़ा अस, ताकि वजह हा सम्मुख आय
धनवा के दिल बान हा परगे, पर बोलत हे स्थिर बुद्धि-
“”नौकर मन ला उभरा के तंय, काम छोड़ा के बइठा देस
मोर विरुद्ध चाल रेंगत हस, काबर करत मोर संग रार ?
परे खार मं ठाहिल बिरता, गरुवा मन राहिद उड़ियात
वन के पशु बिरता पर घोण्डत, चिरई घलो खावत हें फोल.
याने जेन अन्न सकलातिस, कतको झन के रखतिस प्राण
तेहर ख्वार खार मं होवत, एहर कहां बुद्धि के काम !”
“”लाख बखत समझाएन तोला, लेकिन कहां देस तंय ध्यान
जहां क्रांति के आगी बरथय, सहना परत बहुत नुकसान.
मितवा, मोर सलाह मान तंय, सुम्मतराज ला कर स्वीकार
ओकर तिरस्कार नइ होवय, मंझनकुन जे आवत लौट.”
“”तुम्हर असन यदि मिहनत करिहंव, रहन सहन यदि आम समान
मोर कोन इज्जत ला करिहय, पल पल मं पाहंव अपमान ?”
“”मानव मानव भेद कहां कुछ, धनवा तंय चल सबके साथ
समता सिवा राह नइ दूसर, विश्व शांति बर औषधि एक.
कर पतियारो बिगर उदेली, तज हुम्मसही झगड़ा रार
वरना तोर घलो उहि दुर्गति – जइसे क्रूर जार परिवार.”
धनवा करत विचार अपन मन – यदि ओरझटी करत मंय खूब
तब नुकसान मोर खुद खत्तम, तेकर ले मंय अब नंव जांव.
जब विपरीत वक्त हा आवय, मानव सहय वक्त के मार
समय खराब सरक जावय तंह, अपन बात राखे इंसान.
“”एक के का चलिहय सौ सम्मुख, चलिहंव तुम सुझाय जे राह
बिरता ला सकेल के लानव, राखव खावव एक सलाह.
तंय समझाय मरत ले मोला, अंतस भींगगिस सब बात
सुम्मत राज ला मंय स्वीकारत, मोर बात पर कर विश्वास.”
धनवा हा जब अइसे बोलिस होत प्रसन्न गरीबा ।
सोचत – लउठी नइ टूटिस पर मरगे बिखहर डोमी ।।
ओतिर ला अब तजत गरीबा, कहिथय ग्रामीण मन के पास-
“”एको कतरा लहू गिरे बिन, होगिस सफल जमों उद्देश्य.
धनवा रजुवा गिस सामिल बर, चहत कमाना सब संग जूट
खार के बिरता कार बोहावय, चलव अन्न ला लानव काट.
ओला मींजन कूटन सब मिल, तंहने रखन सुरक्षित ठौर
जे मनसे ला होय जरुरत, ओहर अन्न लेग के खाय.”
अब ग्रामीण फसल काटे बर, झाराझार होत तैयार
तभे करेला के सांवत हा, अैस गरीबा तिर तत्काल.
कहिथय -“”शुभ संदेश देत हंव – नेवता नेवते बर मंय आय
दसरूके शादी हा निश्चित, अब संबंध टूट नइ पाय.
मरिस अंजोरी तेला जानत, ओकर बहिनी दुकली जेन
ओकर जोड़ जमत दसरूसंग, तंय हा समझ गोठ ला साफ.
दसरूतुंगतुंगाय पहिलिच ले, पर दुकली हा परगे सोच –
“”मंय हा सदा शहर मं रहिथंव, खटक पाय नइ कुछुच अभाव.
याने जेन जिनिस आवश्यक, जमों जिनिस के तुरुत प्रबंध
आवागमन दवई अउ शिक्षा, सब के पूर्ति यने सब टेम.
लेकिन गांव अभाव मं जीयत, नइ पावन आवश्यक चीज
आवागमन दवई अउ शिक्षा, इंकर कमी देवत तकलीफ.
पर आखिर दुकली हा सोचिस – गांव रथय तेहू इंसान
उंकर साथ जिनगी ला काटंव, दुख ला समझ के सुख भण्डार.
मोर राह पर पर तक चलिहय, तंह परिवर्तन आहय गांव
हमर उंकर मिहनत ले होही, नरक असन हा सरग समान.”
कथय गरीबा ला सांवत हा -“”दुकली हा करलिस स्वीकार
अपन वाक्य पर कायम रहिहय, दिही सदा दसरू ला साथ.
जमों भार हे तोरे ऊपर, दसरू के नइ अन्य सियान
चट मंगनी पट शादी करके, लहुट जबे तंय अपन निवास.”
परिस दुसन्धा बीच गरीबा, हां या नइ – उत्तर नइ देत
आखिर अपन चलिस सांवत संग, सनम के मुड़ बोझा ला खाप.
बोलिस -“”देख सनम तंय जानत – धनसहाय हे स्वार्थी जीव
अपन काम ला पूर्ण कराथय, ठेंगवा ला देखात हे बाद.
तंय हा जागरुक अस रहिबे, आय सुरक्षित जमों अनाज
एकोकनिक हानि झन होवय, रखत जुंड़ा ला खांद मं तोर.”
जहां सनम हा स्वीकृति देइस, होत गरीबा हा निÏश्चत
ओहर जावत नवा करेला, सांवत घलो चलत हे साथ.
एमन जब दसरू घर पहुंचिन, आमा लीम के मड़वा छाय
घर के आगू बांस गड़े हे, छेना अरसा राखे गूंथ.
दिखत बरत अस घर कुरिया हा, पंड़री पिंवरी छुही पोताय
कतको चित्र खिंचे मिथिया भर, होवत ग्रामीण संस्कृति गान.
दसरू के तिर गीस गरीबा, दसरूहोवत खुश अंधेर
“अड़े काम कइसे निपटावन ? सुम्मत बांधत दुनों मितान.
जमों भार मितवा पर गिस – अब दसरूदुलहा राजा ।
दिन बुड़गे तंह चुलमाटी गिन संग धर दफड़ा बाजा ।।
माटी कोड़त मार के साबर, चिंता अपन परानी साथ
बेलबेलही टूरी मन हंस हंस, भड़त जंहुरिया के धर खांध-
“”तोला साबर धरे ला
तोला साबर धले ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन तोलगी ला तीर, धीरे धीरे
तोला माटी कोड़े ला
तोला माटी कोड़े ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन मेंछा ला तीर, धीरे धीरे
तोला माटी जोरे ला
तोला माटी जोरे ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन पागा ला तीर, धीरे धीरे
तोला माटी बोहे ला
तोला माटी बोहे ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन कनिहा ला तीर, धीरे धीरे…”
जहां इहां के रुसुम हा उरकिस, वापिस होथंय बार मसाल
भितरी “चोरहा तेल’ चढ़ाइन “मुड़ा लाय’ के थोरिक बाद.
“तेल मैन’ होथय दूसर दिन, दुलहा नहा लीस जल साफ
पर्रा पर बइठार किंजारिन, मितवा मन दुलहा सम्हरात.
मुड़ पर “मौर’ झूल दरपन के, गला मं सुंतिया – काजर आंख
अदक नवा कुरता अउ धोती, मन चोरात हे वर के रुप.
दुलहा सजा के इज्जत देवत, खड़ा करिन एक परछिन ठौर
दिया बरत करसी ला लानिन, तिरिया मन संउपत हें सौर –
“”पहिरव दाई ओ सोना कइ कपड़ा
ओ सोना कइ कपड़ा
संउपउ दाई मोर हंसी के मौर.
हमरे दाई हा बड़े ओ अजूबिन
दाई बड़े ओ अजूबिन
मंगथे ओ दाई दूध के धार
दे तो दाई- दे तो दाई अस्सी ओ रुपिया
के सुन्दरी बिहन बर जाऊं
तोर बर लाहूं दाई रंधनी – पोरसनी
के मोर बर लाहंव जनम सिंगार
गोबर हेरइबे दाई पानी भरइबे
छूट जही दाई के दूध के उधार
सुंदरी सुंदरी दाई तुम झन रटिहव
के सुंदरी के देसे बड़ दूर
चढ़े बर कथे दाई लिली हंसा घोड़वा
के सुंदरी ला लानव बिहाव
एक गोड़ मारो बेटा रइया रतनपुर
कि दुइ गोड़ मारो बेटा दिल्ली सहर
खड़े खड़े पांव पिरागे, पिरागे माथे के मौर
धोतियन फिलगे न कुरथन फिलगे माथे के मौर
पहिरव दाई – पहिरव दाई
ओ सोना कइ कपड़ा – ओ सोना कइ कपड़ा
संउपउ दाई मोर हंसी के मौर…।।
अब तड़तड़ी बरतिया जाये, कपड़ा सम्हर होत तैयार
वृद्ध युवक बालक मन जावत, सब के मन मं बड़ उत्साह.
नांदगांव मं गीस बरतिया, देखे बर जुटगे भिड़भाड़
बाजा सुन घेरिन चंवतरफा, लोरत गिद्ध मांस के पास.
शहर के बेलबेलहा टूरा मन, इंकर बुगई चुटचुट खन दीन
युवती मन हा तंग करे बर, नंगत भड़त मुड़ी ला जोर –
“”आमा पान के बीजना हालत डोलत आये रे ।
किसबिन के बेटा हा बरात लेके आये रे ।।
करिया करिया दिखथस बाबू
काजर कस नइ आंजे रे
दाई ददा ऊपर चल दिन
घर घर बासी मांगे रे.
तरिया तिर के पटुवा भाजी
पटपट पटपट करथय रे
गांव करेला के टूरा मन
मटमट मटमट करथंय रे
आती गाड़ी जाती गाड़ी
गाड़ी मं लानेंव सूत रे
हमर दुलहा डउका ला
ले जाये कउनो धर के…।।
इही मंझोत अैस बइसाखू, गोठियावत दसरू के साथ –
“”दुखम सुखम निपटा लेबे भइ, बपरी दुकली दीन अनाथ.
एकर भाई जेन अंजोरी, जेकर जीव व्यर्थ चलदीस
यदि एला कुछ विपदा मिलिहय, तंहने दुख मं वृद्धि अपार.”
दसरू कथय -“”एल झन मोला, मंय खुद हा नइ जीव विशेष
हम अउ दुकली अन एके अस, एक दुसर के करबो मान.
दुकली के सलाह मंय सुनिहंव, ओकर बर हे साफ विचार
अगर बीच कुछ खट्टा पांजी, करबो खतम सतम ला पूछ.”
इंकर बीच मं अैस गरीबा, बइसाखू ला कहिथय हांस –
“”दसरू के मन उड़त रुई अस, लुकलुकात हे करे बिहाव.
तंय उमंग मं बाधा झन बन, मंय हा ठेलहा अस निÏश्चत
मोर साथ तंय गोठिया मन भर, मोर प्रश्न के उत्तर लान-
अपन कथा फुरिया थोरिक अस, कइसे चलत तोर परिवार
नांदगांव के मुख्य खबर तक, टैड़क चइती के कहि हाल ?”
बइसाखू हा उत्तर देथय -“”बढ़िया चलत मोर परिवार
अपन नौकरी फिर पाये हंव, जमों जुरुम ले मंय आजाद.
चइती टैड़क नंदले जेमन, मरत ले भोगिन आर्थिक कष्ट
ओमन काम चलावत संघरा, मुद्रणकल के ऊंकर पास.
जतका लाभ प्रेस मं आवत, जमों श्रमिक मन खावत बांट
उहें छपिस मेहरू के पुस्तक, रुके काम पूरा हो गीस.
ग्राम के लेखक मरथंय रुरघुर, उंकर नाम जग ले मिट जात
ओमन ला अब करे प्रकाशित, करत इहिच संस्था हा काम.
ओहर सब तन पता लगाथय, लेखक मन के करथय खोज
उंकर सरत रचना सहेजथय, पुस्तक छाप करत उद्धार.”
धन्यवाद अब देत गरीबा -“”भूखा ला जेवन मिल जाय
मरत बिमरहा ला औषधि अउ, झुक्खा खेत ला जल के धार.
चइती मन जे काम करत हें, ठंउका मं ओहर उपकार
गांव के लेखक अब उत्साहित, उंकर कलम धरिहय रफ्तार.”
मेहरू के पुस्तक जे छपगे- क्रांति से शांति हे जेकर नाम
ओकर प्रति बइसाखू तिर हे, दीस गरीबा ला झप हेर.
बोलिस -“”तंय मेहरूला कहिबे – ओकर पुस्तक छपगे जेन
पुस्तक के मंय करत समीक्षा, चिभिक लगाके लिखिहंव लेख.
यदि रचना के स्तर उत्तम, तर्क साथ करिहंव तारीफ
यदि रचना के स्तर नीचे, मंय हिन के लिख दुहूं विरुद्ध.
पर मेहरू विचलित झन होवय, पक्ष विपक्ष तभो ले लाभ
बीज छिंचत सीधा या टेड़गा, मगर भूमि ले जामत पेड़.”
चुटपुट चुटपुट करत गरीबा, बइसाखू तिर रखिस सवाल-
“”मींधू ला पढ़ाय हस तंय हा, जीवनकथा ला जानत साफ.
पहिली गलत राह पर रेंगिस, बाद बनिस हे थानेदार
तंय निर्दाेष आस नभजल अस, तेला बेली तक पहिरैस.
पर हठील अस जन दुश्मन संग, मींधुच हा टक्कर ला लीस
अउ समाज के हित के खातिर, निज जीवन ला करिस शहीद.
अतका बढ़ा कथा मंय बोलत, एकर अर्थ समझ ले साफ
मंय हा कठिन प्रश्न लानत हंव, तंय उत्तर ला ढिल निष्पक्ष-
मींधू नेक- कर्म के उत्तम, नायक अस गुण अनुकरणीय ?
या ओकर सब काम गलत हे, खलनायक दुर्गण के खान ?”
बइसाखू हा सोच मं परगे, फिर देवत हे उत्तर ठोस-
“”मींधू पहिली जनता के अरि, मगर बाद जनता के मित्र.
चलिस काव्य मं गलती धारा – नायक बनिस एक झन व्यक्ति
ओकर होय प्रतिष्ठा पूजा, कवि मन लिखिन गीत यशगान.
दूसर व्यक्ति बनिस खलनायक, ओकर करिन बुराई खूब
पर ए लेखन दोष से लबलब, होत दिग्भ्रमित भावी वंश.
सच मं हर मनसे हा होथय – गुणी अवगुणी योग्य अयोग्य
कर्म वक्त स्थान परिस्थिति, परिवर्तन इनकर अनुसार.
एक व्यक्ति नायक नइ होवय, ना सदगुणी न मानव श्रेष्ठ
ओकरो तक मं दोष बुराई, आलोचना के लाइक काम.
दूसर खलनायक नइ होवय, ना अवगुणी न नीच खराब
ओकरो तक मं गुण अच्छाई, तारिफ लाइक ओकर काम.”
पैस गरीबा प्रश्न के उत्तर, ओकर जिज्ञासा हा शांत
मिहनत करिन दूनों झन मन मिल, तेकर मिलिस उचित परिणाम.
बातचीत हा सरलग रेंगत, तेमां परगे फट ले आड़
बाहिर तन मनखे चिल्लावत, ओतन भागत पल्ला छोड़.
एमन सोचत – मनखे मन काबर चिल्लावत भारी ।
चलव वास्तविक पता लगावन काय होत अनहोनी ।।
चलिन गरीबा अउ बइसाखू, पहुंचिन एक जगह बिन बेर
उहां मुख्यमंत्री हा हाजिर, ओहर फंसे कष्ट के बीच.
ओकर चारों तन हें मनखे, ओमन करत बिकट घेराव
मनखे मन हा क्रोधित नंगत, डेंवा उनकर मुखिया आय.
उहां हवय उद्योगी मंगलिन, घना बगस अउ बाबूलाल
पत्रकार अधिकारी जनता, हाजिर शहराती ग्रामीण.
डेंवा किहिस मुख्यमंत्री ला -“”तुम नेता मन धोखाबाज
अपन मान धन पद राखे बर, बोलत रथव रटारट झूठ.
छेरकू मंत्री ला जानत हस, ओहर करिस वायदा एक
बांध बनाय दीस आश्वासन, लेकिन अब तक काम अपूर्ण.”
शांति साथ मुख्यमंत्री बोलिस -“”छेरकू हा निकलिस गद्दार
देश के गुप्त रहस्य ला बेचिस, करे हवय विश्वास के घात.
ओकर पोल हा टकटक खुलगे, जब आइस पकड़ाय के टेम
छेरकू दूसर देश भगागे, कहां बसत तेहर अज्ञात.”
डेंवा भभक जथय गुस्सा मं, रोष बढ़ा के कहिथय जोर –
“”तुम नेता मन स्वार्थी होथव, अपन लाभ बर बेचत देश.
जनता ला तुम उभरावत हव – काम करव रख सत ईमान
पर खुद गलत राह रेंगत हव, कथनी करनी मं कइ भेद.”
शांति साथ मुख्यमंत्री बोलिस -“”जे मनसे पर हे सब दोष
ओहर इहां उपस्थित नइये, तोर बात जावत बेकार.
तंय हा गारी देवत हस भिड़, उग्र करत हस अपन दिमाग
एकर ले सब काम हा बिगड़त, आय समस्या हल नइ होय.
तुम्मन बांध बनाये चाहत, एकर बर हम करन उपाय
शासन ले देवात मंय रुपिया, अपन कोष के रुपिया देत.
मनखे प्रमुख इहां पर हाजिर, धन ले सक्षम जे इन्सान
ओमन घलो मदद ला देवंय, उंकर पास मं जतका शक्ति.
जतका अस ग्रामीण पधारे, सब झन करव अर्थ सहयोग
एकर बर टरके झन बेरा, काम करव तुम तातारोस.”
“चेक’ मुख्यमंत्री हा फाड़िस, पहिली शुभ मुहूर्त कर दीस
ओकर पाछू सब झन रेंगिन, रुपिया दीन शक्ति अनुसार.
रुपिया दिस उद्योगी मंगलिन, एकर बाद किहिस रहि धीर –
“”हम्मन हा उन्नति पाये बर, रुपिया जोड़त हन दिन रात.
जनता हमर नमूसी करथय, बना देत शोषक गद्दार
स्वार्थी – खून चुसइया – लुटेरा, करत हमर पर कइ आक्षेप.
बात शत्रुता के सुनथन तब, हमला घलो चढ़त हे रोष
तंहने श्रमिक हा भूख मरय कहि, हम्मन करत क्रूर अस काम.
तुम्मन अभी मदद मांगे हव, हम कर देन अर्थ के दान
हमर साथ यदि मधुर मिलापा, हम हा तुम्हर अभिन्न मितान.
तुम मनसे अव – हम मनसे अन, मन ला बांट के राखन प्रेम
आज असन यदि मिट्ठी कहिहव, तुम्हर मांग हम करबो पूर्ण.”
तभे मुख्यमंत्री हा देखिस, बाबूलाल हे दुखी उदास
ओला अपन पास बलवाथय, करिस निलम्बन रद्द तड़ाक.
बोलिस -“”तंय हा रेहे निलम्बित, मगर अपन पद पर फिर बैठ
बांध के काम ला पूरा करवा, लेकिन एक बात रख याद-
भ्रष्टाचार भूल झन होवय, सब रुपिया के सद उपयोग
अगर काम हो जात सफलता, हमर तुम्हर जस होहय खूब.”
बाबूलाल कथय हर्षित मन – तोर बात मोला स्वीकार
मंय-डेंवा-ग्रामीण जतिक अस, मिलजुल के करबो सब काम.
एमां सबके अर्थ लगत हे, सब के तिर मं रहय हिसाब
तब फिर गलत काम नइ होवय, बांध बने के काम हा पूर्ण.”
जावत हे मुख्यमंत्री वापिस, डेंवा चलिस गांव के ओर
पलटिन बइसाखू अउ गरीबा, ओमन गिन शादी के ठौर.
किहिस गरीबा, बइसाखू ला -“”हम नेता पर डारत दोष
पर सब नेता एक असन नइ, होथय अंतर उंकरो बीच.
छेरकू मंत्री स्वार्थ पूर्ति बर, बेचिस देश के इज्जत शान
जे जनता देइस ऊंचा पद, छेरकू उही ला धोखा दीस.
मगर मुख्यमंत्री ला देखव – उहू व्यक्ति हा नेता एक
रुके काम ला पूर्ण करावत, जनता ला देवत हे साथ.”
बइसाखू सच तथ्य ला राखिस -“”नेता ला कहिथन बइमान
लांछन डार निकालत गल्ती, करत बुराई अवगुण खान.
नेता मंत्री जनप्रतिनिधि मन, होथंय शांत धीर गंभीर
उंकर बुराई निंदा होथय, पर ओमन देवंय नइ ध्यान.
ओमन ला बेकलाम कहव अउ, जाव मदद बर नेता पास
लेकिन ओमन नइ दुतकारंय, देवत मदद रंज ला भूल.”
इंकर बात मं आड़ परत अब, बढ़त चलत मनखे के भीड़
दूल्हा ला मोहाय अस देखत, ओमन ला नइ घर के याद.
जमों बरतिया ला परघाइन, दिन जेवनास उंकर धो – गोड़
सारी हा “लाल भाजी’ खवाइस, भांटो हा हारिस सब होड़.
फेर बरतिया मन जेवन लिन, पतरी पर रख खाद्य पदार्थ
रीति रिवाज चलत सादा अस, सुघ्घर अक बिहाव के नेंग.
वर वधु ला बइठारिन संघरा, अपन शक्ति तक टिकत टिकान
पंखा झलत मांई लोगन मन, गाना गावत उंकर जबान-
“”हलर हलर मड़वा हालय ओ दाई
खलर खलर दाइज परय
सुरहिन गैया के गोबर मंगइले दाई
खूंटी धर अंगना लिपइ ले ओ
गजमोतियन कर चौंके पुरइ ले ओ दाई
सोने के कलश जलइ ले ओ
कोन देवथे धेनु गाय ओ
कोन टिकथे कनक थारी ओ
दाई तोर टिकथे अचहर पचहर
दाई भइया देवथे धेनु गाय ओ
ददा टिकथे मोर लिली हंसा घोड़ा दाई
दीदी भौजी टिकथे कनक थार ओ…।।
वर वधु मन अब भांवर किंजरत, दुकली रेंगत चांटी चाल
दसरू मांग भरिस दुलहिन के, सात बचन ला हृदय सम्हाल.
वर वधु के कारण मं होगिस, गांव शहर मं मधुर मिलान
इंकर बीच मं प्रेम मिलापा, देश के सरलग मान विकास.
दुकली हा ससुरारे जावत, ओकर बिदा के आगे टेम
हितू पिरीतू मन हा कलपत, रोवत हें आंसू ला ढार.
उहां करुण रस स्वयं उपस्थित, सुख के अवसर तक हे साथ
दुकली सुसकत मइके त्यागत, पति के साथ चलत ससुरार.
नांदगांव ले छुटिन बरतिया, रुकथंय पहुंच करेला गांव
बचे रिवाज ला तड़के निपटा, कुटुम मीत मन वापिस गीन.
कथय गरीबा हा दसरूला -“”तुंगतुंगाय तंय करे बिहाव
तंय अउ दुकली एका होए, तुम्मन अब सितराव जुड़ाव.
यदि मंय अंड़ के रुक जावत हंव, तुम्हर प्रेम मं परिहय आड़
तेकर ले मंय लहुट के जावत, उंहचो अड़े गंज अक काम.”
पप्ची-करी के लाड़ू-अरसा, दसरू लैस बांध उरमाल
दीस गरीबा ला हर्षित मन, मित्र ला एल्हत खुलखुल हांस-
“”जेन कलेवा मंय अभि देवत, तंय रखबे दुखिया के हाथ
तंय बिहाव मं डंट खाये हस, रोटी झन जाये मुंह तोर.”
हवय गरीबा के मन हा खुश रेंगिस धर के रोटी ।
सुन्तापुर मं पहुंचिन तंहने आवत हे थर्रासी ।।
सब ग्रामीण दउड़ के आइन, सब तन घेर के होथंय ठाड़
ओमन धरे अस्त्र धरहा कइ, क्रोध ले कांपत लदलद देंह.
आंख लाल पुतरी मन किंजरत, ऊपर तरी बिरौनी नाक
भीड़ बीच ले कातिक आथय, दीस गरीबा ला रट मार.
बग ले बरिस गरीबा आंखी, संख असन उड़गे बुध चेत
करा अउ कीरा हा कर देथय, हरियर खेत ला चरपट नाश.
“”मोला उमंझ आत नइ थोरको, तुम काबर हव खूब नराज
मोर दोष का- काय कुजानिक, फोर देव तुम बिल्कुल साफ ?”
मंगिस गरीबा सच उत्तर तंह, ग्रामीण मन होथंय कुछ शांत
हगरूहा गुस्सा मं धधकत, तेहर फोरत साफ रहस्य –
“”तंय गोल्लर अस छेल्ला किंजरत, बर बिहाव के लड़ुवा खास
सुन्तापुर मं जे बांचे हन, बिना अन्न जल करन उपास !
हमर भलाई ला करबे कहि, माने हवन तोर विश्वास
पर कर्तव्य भूल के किंजरत, लगथय – एमां कपट के दांत.
तंय अनुपस्थित ते बेरा मं, धनवा करिस काम बेकलाम
अपन भविष्य के खुशियाली बर, हमर भविष्य ला करदिस नाश.
धनसहाय के खेत गेन हन, बिरता ला हम लाय सकेल
मींजकूट के अन्न सिधोये, पर ए बीच झपागे आड़.
धनवा हा कोतल संग धमकिस, झटक के लेगिस जमों अनाज
ओकर कब्जा अन धन पर हे, हम बइठे हन जुच्छा हाथ.
धनवा हा मेंछा ला अंइठत, डकहर सुखी हें ओकर साथ
बाड़ा अंदर छुपे सुरक्षित, अन्न झटक के भोगत राज.”
सनम हा गरीबा ला बोलिस, मीठ शब्द पर जहर समान –
“”मानव ला कुकर्म करना तब, निज चरित्र के करत सुधार.
जब विश्वास सबो तन जमथय, तंहने चलत कुचाल के राह
खुद ला रक्षित अस राखे बर, पर हा गिरे रचत षड़यंत्र.
जनता होय दिग्भ्रमित कहिके, तंय जोंगे जनहित के काम
पर अब भक ले धोखा देवत, पर परखे हन तोर कुनीत.
खुद के दोष छिपाये बर तंय, मोला बनवा देस सियान
तंय निर्दाेष प्रमाणित होवत, बद्दी हा चढ़गे मुड़ मोर.
खेल कबड्डी गदबद होवत, दू दल “चंदा सूरज’ नाम
चन्दा दल हा खेल ला हारत, उहां बचे सुकलू बस एक.
सुकलू हा खुडुवाये जावत, सूरज दल के अंदर गीस
पकड़िन सूरज दल के मनखे, तंह सुकलू गिर गीस जमीन.
सुकलू घंसलत आगू बढ़थय, पहुंचिस मांई डांड़ के पास
खब ले मांई डांड़ ला छूथय, ओतको बखत चलत हे सांस.
जतका सूरज दल के मनखे, तेमन मर के हारिन खेल
चन्दा दल हा विजयी होगे, जेहर पहिली पावत हार.
हम्मन खेलत हवन कबड्डी, पर धोखा आखिर छिन पाय
विजय पाय बर रखे भरोसा, तेकर गला हार के हार.
जे धनवा हा खेल ला हारत, तेहर गप ले अमरिस जीत.
आखिर छन मं भूल करे हन, ओकर दुष्फल भोगत आज.”
सुन बिखेद ललियात गरीबा, पर सम्हाल के रखिस विवेक
अपन साथ मं भीड़ ला धरथय, चलथय पूर्ण करे बर टेक.
करिस गरीबा वाकई गल्ती, ऐन वक्त पर डिगगे पांव
कतको सुदृढ़ तर्क ला राखत, पर ओहर बदरा अस धान.
सिरिफ काम हा बाचे हे अभि, जेन प्रमाणित करिहय सत्य
जब सब तर्क हार जाथय तब, मात्र कर्म हा आथय काम.
धनवा पास गीन एमन तब, धनवा बइठे ठसका मार
डकहर सुखी चिपट तिर बइठे, मानों आय हितू गोतियार.
कथय गरीबा हा धनवा ला -“”मोर पास तंय हुंकी भरेस
जतका चीज गांव मं हावय, ओमां सबके सम अधिकार.
लेकिन अपन बचन टोरे हस, जमों अनाज अपन घर लाय
अपन राज तंय फेर चला झन. चल वापिस कर सबो अनाज.”
धनवा रखे कलेचुप बोली, डकहर सुखी कूदगें बीच
धनवा ला बांचय कहि एमन, अपन वक्ष ला पहिले लात.
डकहर कथय -“”करिस धनवा हा, अपन चीज ला निज अधिकार
पर के चीज चोरा नइ लानिस, का अधिकार मंगे बर चीज ?”
बोलिस सुखी -“”अगर भूखा हव, तब तुम लेगव मांग अनाज
दान चहत तब तक ले जावव, या लेगव लागा बिन ब्याज.
पर धनवा के सब पूंजी पर, तुम्मन अगर चहत अधिकार
हमर रहत तक हे कठिनाई, मुश्किल काम हाथ झन लेव.”
धनवा के अनियाव ला जांहा, डकहर सुखी बताइन ठीक
मेहरू ओकर अर्थ समझगे, जानिस सब अंदर के भेद.
मेहरू सब ग्रामीण ला बोलिस -“”धनवा चलत गलत अस चाल
जतका दोष मात्र ओकर पर, दण्डित करव जउन मन होय.
लेकिन डकहर सुखी हें घालुक, देखत हवंय अपन भर स्वार्थ
धनसहाय ला दीन पलोंदी, जन्नविरुद्ध करा दिन काम.
लपटे रथय पेड़ पर बेला, पेड़ के ओहर रक्षक गार्ड
जलगस बेला पूर्ण सुरक्षित, पाये पेड़ अभय बरदान.
पेड़ कटाये यदि सोचत हव, बेला पर तुम करव प्रहार
बेला कटा अलग हो जाहय, तंहने पेड़ गिरा लव काट.
डकहर सुखी हवंय तलगस ले धनवा के दम दूना ।
यदि ओकर पर हमला होवत कोतल दिहीं पलोंदी ।।
पहिली डकहर सुखी ला झड़कव, उंकर हाल ला कर दव पश्त
तब धनवा पर वार ला मारव, निश्चय काम सफल निर्विघ्न.”
हवय गरीबा के तिर पुस्तक – क्रांति से शांति तक जेकर नाम
ओला मेहरू ला संउपिस अउ, हिरदे शुद्ध करिस तारीफ –
“”तंय जे नीति बताये हस अभि, ओहर हवय ठोस गंभीर
मंय इनाम मं पुस्तक देवत, तंय हर्षित मन कर स्वीकार.”
मेहरू जे रद्दा ला फोरिस, सब ग्रामीण समझगें अर्थ
ओमन डकहर सुखी के तिर गिन, कुचरे बर मुहरुत कर दीन.
जेहर पावत ओहर मारत, जे पावत ओमां रचकात
मारत तेहर हंइफो हंफरत, खावत मार के हाल खराब.
डकहर सुखी केंघरगे तंहने, बुतकू करिस उंकर तिर प्रश्न –
“”तुम जनता संग मरे जिये बर, किरिया खाय रेहेव प्रन ठोस.
लेकिन का आकर्षण खींचिस, धनवा पास फेर तुम आय
तुम्मन काय लाभ पावत हव, जे लेवत धनवा के पक्ष?”
गुनिस सुखी यदि भेद लुकावत, लिंही गंवइहा मन हा जान
तेकर ले सब तथ्य ला उगलन, अपन दुनों के जीव बचान.
किहिस सुखी -“”तुम सब जानत हव, धनवा से भागन हम दूर
ओकर ले नाता हा टूटिस, जनता संग जुड़गे संबंध.
पर धनवा पथभ्रष्ट करे बर, हमला दीस बहुत ठक लोभ
बोलिस – मोर पक्ष तुम लेवव, मंय देहंव कतको ठन लाभ.
मोर पास जतका चल अचला, लाये हंव जे उठा अनाज
सब ला बांट लेत हम तीनों, तुम दूनों तक हो हकदार.”
धनवा हा लालच दिस तंहने, सरन गिरे हन ओकर पांव
मगर लाभ मं कुछ नइ पावत, उलट परत थपरा भरमार.”
डकहर सुखी ला हगरूबोलिस -“”तुम दुर्गत अपमानित होय
पहिली के रद्दा पर चलिहव, या बदले बर रखत विचार !
हम सब अपन जमों पूंजी ला, फट कर देन गांव अधिकार
गांव के हम अन गांव हमर ए, मिटगे भेद गांव ग्रामीण.
तइसे तुमन हमर संग चलिहव, या फिर धरिहव दूसर राह
प्रश्न के उत्तर देव तड़ाका, ताकि लेन हम निर्णय ठोस.”
डकहर सुखी भविष्य ला समझिन, अंदर हृदय से हेरिन बात-
“”हमला गिधिया के झन पूछो, बात करे बर हम असमर्थ.
लेकिन हम अतका बोलत हन – हम ग्रामीण के लंहगर आन
जेन डगर ग्रामीण हा चलही, घिलर जबो हम अपने आप.
याने जन के साथ जिये बर, दूनों खड़े हवन तैयार
जे कानून गांव बर बनही, हम करबो हरदम सिवकार.”
डकहर सुखी निहू बन गिन तंह, सब ग्रामीण होत हें शांत
बन्जू राखे तथ्य लुका के, करना चहत बात ला साफ.
बन्जू बोलिस -“”मंय हा पहिली, निहू बने बर किरिया खाय
अर्पण करे अपन धन ला मंय, लेकिन आय दिखावा मात्र.
कपट विचार रखे रेहे हंव, यदि धनवा के दिखिहय जीत
जे धन ला सुपरित दे देहंव, ओकर करिहंव वापिस मांग.
पर स्पष्ट हाल देखत हंव – क्रांति सफल होवत ए वक्त
अब जनता हा विजय ला पावत, तब जनता ला देवंव साथ.
याने जे धन ला संउपे हंव, कभू करंव नइ ओकर मांग
सुम्मतराज समर्पित मंय हंव, अपन बचन मं खत्तम ठाड़.”
मेहरू बोलिस -“”हम जानत हन – तंय हा चले पूर्व जे चाल
तोर चाल ला नष्ट करे बर, हम जनता मन कड़क सतर्क.
लेकिन आज उचित जोंगे हस – रख ईमान देत हस साथ
एकर ले तंय दुख नइ पावस, सब मनसे मन हितवा तोर.”
बन्जू के रटघा हा टूटिस, आगू बढ़त क्रांति के पांव
धनसहाय पर रइ हा आवत, सब ग्रामीण खड़े हें घेर.
बोइर के गुठलू के अंदर, छुपे चिरौंजी हा चुपचाप
मगर चिरौंजी हा नइ निकलत, एकर बर बस इहिच उपाय.
पथरा ला गुठलू पर पटकव, गुठलू कइ कुटका बंट जाय
निकल चिरौंजी बार आवय, ओला झड़कव लेके स्वाद.
धनवा के मरुवा ला पकड़िन, दोंयदोंय झोरत ग्रामीण
धनवा लोझम परिस खाथंय खस, गिरगे दन्न ले बन बेहोश.
लेकिन धनवा हा मर जावत, चरपट होवत सब उद्देश्य
आखिर धनवा के रक्षा बर, अपने मन भिड़ करत उपाय.
धनसहाय के रक्षा होवत, देवत हवा छितत जड़ जूड़
लहू हा थम के दरद हा भागय, जोख के देवत दंवई निंघोट.
धनसहाय के चेत हा लहुटिस, सब तन देखत आंख नटेर
तब मनबोध ला लान गरीबा, रख दिस धनसहाय के गोद.
धनवा अपन पुत्र ला देखत, ओकर मुंह के “ऊंमा’ लेत
मानों – कभू पुत्र नइ देखिस, तइसे करत हृदय भर प्यार.
“”सब के साथ मरे जीये बर, खाके कसम करे स्वीकार
पर टेटका अस रंग बदले हस, अपन बात ला काटे कार.?”
किहिस गरीबा तंहने देखत धनवा फार के आंखी ।
अपन पुत्र के मुंह ला देखत देवत प्रश्न के उत्तर ।।
“”मोर ददा मोरे बर छोड़िस – घर भुंइया धन गरुवा गाय
अपन बिन्द बर मंय सकलत हंव, सोन मचुलिया मं सुत खाय.
यदि शत्रुता भंजाये चाहत, मोर देह के निछ लव चाम
पर बेटा ला सुखी बनाना, एक पिता के वाजिब काम.”
“”मानव के रिपु पुत्र हा होथय, करे हवय अध्यात्म बखान
छुद्र स्वार्थ के पूरा खातिर, पिता के सब यश सत्यानाश.
अपने अंश समझ सब झन ला, कर अर्पण अन धन बिन शोक
जीयत तोर मान पत होहय, मरे बाद गाहंय जस तोर.”
कई उल्थना गरीबा हा दिस, धनवा ला अड़बड़ समझैस
लेकिन नठे बुद्धि मं ओकर, एक शब्द तक घुस नइ पैस.
“”भगवत गीता शिक्षा देवत – अगर अधिक मन पावत लाभ
तब कमती के रांड़ बेचावय, अइसन काम मिलत हे पुण्य.”
बोल गरीबा हा मनसे संग, धनवा के लेवत हे जान
इही बीच फगनी हा आथय, बोलत सब तिर करुण जबान –
“”बन के निहू करत हंव बिनती – भले हमर अन धन ला लेव
मगर पुत्र एंहवात बचा दव, जीवन हमर अमर कर देव.”
फगनी जहां कल्हर के बोलिस, करिस गरीबा हा विश्वास
फगनी ले आश्वासन मांगत, खुद के पक्ष करे बर ठोस –
“”धनवा के जब लेत संरोटा, तंय हमरो सरियत ला मान
जतका अस आड़ी पूंजी हे, कर दव तुरुत गांव के नाम.
तुम्मन कहिके पल्टी खावत, तब अभि लिखव प्रतिज्ञा पत्र –
सबके संग तुम जीहव मरिहव, अपन सबो धन गांव ला देत.
लीस गरीबा उंकर हाथ के हस्ताक्षर ला लौहा ।
बनिन गवाह ग्रामवासी मन – ताकि होय झन नाही ।।
मनसे मन धनवा ला बोलिन – हम तोला देवत विश्वास
तोर भविष्य बिगड़ नइ पावय, ना कभु तोर फधित्ता होय.
जिये अभी तक जइसन जिनगी, ओकर ले स्तर हा ऊंच
तोर पुत्र मनबोध के सब हक, दूसर असन सुरक्षित जान.”
धनवा के अन धन जतका अस, होगे जमा गांव अधिकार
धनवा ला समझा के रेंगिन, बइठिन नइ मेड़्री ला मार.
मनखे मन उन्नति बर भिड़गें, तिरिया मरद करत हें काम
एकोकन कसरहिल मरत नइ, सबझन हर्षित खुशी मनात.
जतका ठक हे टेपरी डोली, ते मत्थम बहरा बन गीस
फूट जाय मुड़ मेड़ के कारन, पर अब रुकगे झगरा रार.
ट्रेक्टर गाड़ा कई ठक फांदे, भर भर पथरा मुरमी लात
ठंवठंव पटक चलावत धुम्मस, मुख्य सड़क अस गली बनात.
जे डोली हा जल बिन सुक्खा, होय सिंचइ कहि होत प्रबंध
जेन जगह मं रहय अंधेरा, उहां रगाबग होत प्रकाश.
सुन्तापुर के प्रगति हा होवय – मनखे सुंट बंध जोंगत काम
इंकर शक्ति ला जांचे खातिर, बेर तिपत कंस गड़िया खाम.
टिरटिर घाम फजर मं कहलत, भोंभरा तिपत लकालक झांझ
मृगतृष्णा जल बहत मंझनिया, लू के कारन व्याकुल सांझ.
थपथपाय मुड़ गोड़ पछीना, छिनछिन मं लग जावत प्यास
अबड़ दंद कपड़ा नइ भावत, गर्मी ऋतु हा करत हताश.
उठत भनन भन धुंका बंड़ोरा, धर के कागज कचरा धूल
उमठत रात नींद तंह छटपट, भुसड़ी चुटचुट चाब जगात.
दावाअगिन लगे जंगल भर, बांस घांस लकड़ी बर जात
वन्यजीव डर भड़भड़ भागत, आय उंकर बर दुख के टेम.
हगरू हा खपरा ला छावत, ओला धरथय खरीेअजार
कोथा फूलत देवत पीरा, तन फूलत जस कोंहड़ानार.
बुतकू ओकर हालत देखिस, मदद करे बर खब ले अैस
अउ कतको झन दउड़त पहुंचिन, काबर के नइ कुछ मिनमेख.
बला चिकित्सक ला करवाथंय – ओकर बने दवाई ।
हगरू उत्तम औषधि पाथय – रोग हा भागिस पल्ला ।।
हगरू हा बुतकू ला बोलिस -“”मंय कहना चाहत सच गोठ
जेन व्यवस्था हम लाये हन, ओकर पाय सुखद परिणाम.
पहिली असन व्यवस्था होतिस, मानव के रिपु पूंजीवाद
तब मरहा बर कोन हा करतिस – रुपिया दवइ समय बर्बाद !
सुम्मत राज हवय जनपोषक, मोला सत्य रुप अब भान
एकर थरहा जामे जग भर, सब झन पावंय सम सम्मान.”
बुतकू हा तरिया तन जावत, गरमी उखम करे बर शांत
ओकर संग मेहरूमिल जाथय, दूनों रेंगत हंस गोठियात.
अपन डेरौठी धनवा मिलथय, जेहर बइठे धर के गाल
ओहर चिंता मं चूरत हे, भूले हे बाहिर के दृष्य.
मेहरू मन तरिया मं पहुंचिन, बुतकू कहिथय हेरत मैल –
“”धनवा काबर हुंकय भुंकय नइ, जस रेंगय नइ जब्दा माल.
पहिली एकर राज चलय तब, पड़र पड़र मारय आदेश
दानी उपकारी पालक अस, करय दिखावा कई ठन ढोंग.
ओ मनखे ला अब का होगे, खुद विचार के अंदर खोय
हम्मन ला टकटक ले देखिस, लेकिन नइ हेरिस कुछ गोठ ?”
मेहरू हा उत्तर ला देवत -“”राज करिस जेकर आदेश
जेहर बाघ असन गुर्राये, खुद ला समझय पर ले ऊंच.
मगर व्यवस्था हा बदलिस तब, दूसर अक ओकर अधिकार
सामन्जस्य स्थापन मुश्किल, तब चिंतित बइठे गुम खाय.
ओकर घांस जहां मर जाहय, जीवन यापन अन्य समान
पहिली के हालत ला हंसही, वर्तमान के करही मान.”
दतुवन के चीरी ला बीनिन, साफ करिन आगी मेंे लेस
करिन साफ बहबिरित घंठोधा, जस साबुन मं धुलथय देंह.
फिर दूनों झन रगड़ नहाइन, घर तन लहुटिन तरिया छोड़
धनवा बइठे अब ले ओ तिर, अपन पुत्र मनबोध ला पाय.
मेहरूबुतकू तिर ले निकलिन, पर धनवा हा नइ दिस ध्यान
काबर के ओहर मनगभरी, सोच सिन्धु मं डुबकी लेत –
“”मंय जेला दपका के राखंव, धनवा नाम सुनत डर्राय
पर अब उल्टा धार बोहावत, उंकरो मान जतिक हे मोर.
मोर टुरा तक हे असुरक्षित, ओकर भावी हे अंधियार
तब दूसर मनखे के वंशज, काबर पावय सुख आनंद !
दुश्मन के निसनाबुत करिहंव, आगी ढिल के करिहंव राख
सुम्मतराज के लक्ष्य हा बरही, ओकर संग मं दुश्मन जेन.”
जब मनबोध के नींद हा परगे, पलंग सुता दिस चुम पुचकार
तंहने ओ कमरा मं जाथय – जिहां रखे घातक पेट्रोल.
धनवा हा पेट्रोल ला बोलिस -“”तंय हा थोरिक धीरज राख
तोर मदद मंय खत्तम लेहंव, होही पूरा मन के काम.
तोला सबके घर मं छिचिहंव, माचिस बार के ढिलिहंव आग
गांव के अन धन अउ दुश्मन मन, तोर कृपा ले जर के राख.
अधरतिया के बेरा आहय, मनसे देखत सपना मीठ
ऊंकर जीवन ला बारे बर, मंय हा करिहंव तोर प्रयोग.”
फगनी शौचकर्म ले लहुटिस, धनसहाय ला भोजन दीस
अपन घलो जेवन ला करथय, एकर बाद दुनों सुत गीन.
धनवा हा फगनी ला कहिथय -“”लउठी बम विध्वंशक चीज
जहर अस्त्र फांसी के फंदा, यद्यपि एमन हें निर्जीव.
पर मंय इनकर आंव प्रशंसक, एमन करत गजब उपकार
मनखे हा सजीव ताकतवार, मगर इंकर नइ पावत पार.”
फगनी हा अचरज मं कहिथय -“”जेन जिनिस के नाम गिनाय
ओमा नाश करे के ताकत, एमन मनसे के रिपु आंय.
लेकिन तंय हा करत प्रशंसा, तोर बुद्धि हा आज खराब
मोर पास तंय सत्तम फुरिया, तोर हृदय मं काय विचार ?”
धनसहाय हा हंस के रहिगे, उत्तर ला मन मं रख लीस
खुद हा सोय के ढचरा मारत, फगनी हा सच मं सुतगीस.
थोरिक रात निकल जाथय तंह, फगनी मरथय कंस के प्यास
ओहर पलंग ले उठके जावत, आधा नींद जगत हे आध.
धधमिंध उदुप उही कमरा गिस, जिंहा मड़े घातक पेट्रोल
घुप अंधियार हवय ते कारन, दिख नइ पावत हे कुछ चीज.
आखिर मं माचिस ला बारिस, तब होगे दुर्घटना एक-
बस पेट्रोल के तिर मं पहुंचिस, पकड़िस आग भभक्का मार.
“हाय दई अब जीव हा जाहय, यहदे धरिस भर्र ले आग’
फगनी चिल्ला बोम मचावत, संख असन उड़ियागे चेत.
ओतन धनवा हा जागत हे, अटपट घोखत दसना लेट-
“”बइरी मन सूरज नइ देखंय, ओकर पहिली मटियामेट.”
धनवा हा गोहार ला सुनथय, दउड़त गिस फगनी के पास
जहां उहां के हालत जांचिस, ओकर होगे सुन्न दिमाग.
धनवा हा फगनी ला पकड़िस, घर के बाहिर झप आ गीन
बोरोर बोरोर दुन्नों चिल्लावत, ताकि खबर फइलय सब ओर.
सुन ग्रामीण झकनका उठगें, परगे भंग परत जे नींद
छोड़ सुतई पागी ला सकलिन, धनवा के घर तिर मं अैन.
संइमो संइमो मनसे होवत, पेड़ ऊपर ऊगत कइ पेड़
एमन इहां खबर ला पूछत, ओतन बढ़त अगिन के रुप.
पूछिन -“”तुम काबर नरियावत, तुम पर आय कते तकलीफ
का दुर्घटना हा अभि घटगे, सुनन हमूं हा ठोंक बिखेद ?”
धनसहाय हा दीस इशारा – देखव तो घर कोती ।
आगी हा धक धक बाढ़त हे नभ ला छूवत जोती ।।
दुखिया बती घलो आये हे, फगनी तिर मं रखिस सवाल-
“”मंय हा सब झन ला देखत हव, पर अनुपस्थित हे बस एक.
तोर पुत्र मनबोध कहां हे, ओहर अभि नइ असलग तोर
ओला लान मोर तिर झपकुन, मंय हा देहंव मया सनेह.”
एला जब फगनी हा सुनथय, होगिस तुरुत सुकुड़दुम सांय
बेटा ला भूले हे अब तक, तेकर खब ले आइस याद.
हे मनबोध घरे के अंदर, ओकर हालत जानत कोन !
ओहर अब तक बचे सुरक्षित, या ओकर पर दुख के गाज !
“”हमर चाल मं कीरा परगे, घर मं छूटे हे प्रिय पुत्र
लकर धकर हम बाहिर आये, पर मनबोध के नइये ध्यान.”
बही असन फगनी हा बोलिस, दउड़त जावत अंदर ओर
धनवा घलो हाल जानिस तंह, पगला अस रोवत चिल्लात-
“”मोर पुत्र हा सुख ला भोगय, ओकर भावी हो आनंद
स्वार्थ पूर्ति बर करेंव लड़ाई, जग ला बना डरे हंव शत्रु.
उही पुत्र ला मंय भूले हंव, ओहर जूझत आग के बीच
मुंह देखाय के लाइक मंय नइ, ठंउका मंय अंव निष्ठुर क्रूर.”
धनवा हा अंदर पहुंचे बर, शक्ति लगावत उदिम जमात
मगर भीड़ हा पति पत्नी ला, अपन पास राखत हे रोक.
मनखे मन ला कथय गरीबा -“”धनवा के अभि व्यग्र दिमाग
अइसन मं यदि काम ला धरिहय, मिलिहय असफलता परिणाम.
सावधान रहि मंय घुसरत हंव, रखहू तभो मोर तुम ध्यान
मंय मनबोध ला लात सुरक्षित, एमां भले बिपत मंय पांव.”
दीस गरीबा पहिली इतला, जाय चहत हे भितर मकान
आगी ले भिड़ टक्कर लेतिस, तभे सनम आगुच मं अैस.
हाथ ला छितरा रद्दा रोकत -“”तंय जानत हस जमों बिखेद
मोर बाप के नाम फकीरा, सोनू हा धनवा के बाप.
धनसहाय के बाप हा लूटिस, मोर ददा ला सिधवा जान
दूसर वंश आय धनवा हा, शोषण करिस हमर श्रम बुद्धि.
तंय मनबोध के रक्षा चाहत, ओहर धनवा के औलाद
ओहर भावी वंश ला लुटिहय, पुत्र गली पर अत्याचार.
याने मंय सफ्फा बोलत हंव – होइस हमर आज तक लूट
हमर वंश अब होय सुरक्षित, ओकर शोषण हा रुक जाय.
मोला भले क्रूर समझस तंय – पर मनबोध के तिर झन जाव
ओकर अगर प्राण जावत हे, सुख पाहंय भावी संतान.”
सुनत गरीबा सांय हो जाथय लेकिन करत समीक्षा ।
वाजिब मरम ला समझिस तंहने तथ्य के पीयत मानी।।
किहिस गरीबा -“”मंय मानत हंव, करत हवस तंय बोली ठोंक
लेकिन मोर गोड़ नइ लहुटय, मंय जावत मनबोध बचाय.
यदि मनबोध के जान हा जावत, निश्चय होत कलंकित काम-
शांति के घर के दरवाजच मं, पुजवन होवत बाल अबोध.
हमर हाथ ले हिंसा होवत, अतिथि वंश धरही ओ राह
हिंसक उग्र आतंकी बनिहय, केंवरी हाथ गरम अस खून.
मंय मनबोध बचा के लाहंव, भावी वंश परय ए छाप –
कठिन प्रश्न के उत्तर लानय, शांति अहिंसा के रस मेल.
धनसहाय ला तंय झन घबरा, अब नइ करन सकय नुकसान
जमों डहर ले ओहर घिरगे, करन सकय नइ अत्याचार.
बुझत दिया हा अति तेजी बर, ओकर बाद चुमुक बुझ जात
धनवा हा अंतिम लाहो लिस, होत खतम ओकर वर्चस्व.
मोर बात ला तंय सुन ले- सबझन साथ बुता तंय आग
यदि आगी हा गांव मं बगरत, सब कलंक चढ़िहय मुड़ तोर.”
क्रांति के बाद शांति लाये बर, साथ देखाय अहिंसक नीति
चलत गरीबा आगी कोती, अंदर घर मं करिस प्रवेश.
आगी हा धधकत हे धकधक, कुहरा धुआं भरत हे नाक
देंह भुंजावत गिरत पसीना, मगर गरीबा शक्ति लगात.
कठिनाई संग लड़त गरीबा, अमरिच गे बालक के पास
पर मनबोध हिलत ना रोवत, परे खोंगस जइसे मृत लाश.
टप चिपोट धर हटिस गरीबा, बालक ला धरे प्राण समान
अड़चन टरिया पांव बढ़ावत, कतको बिपत सकिस नइ रोक.
भीड़ के तिर आ जथय गरीबा, गश खा गिरगे बालक साथ
मनखे दउड़ उठा लिन झटपट, ताकि बिपत हा झन बढ़ जाय.
तिरिया मन हा भिरे कछोरा, अगिन बुझावत जल ला लान
पानी हा यदि कमती होवत, कइ मनखे लानत हें दौड़.
सनम के मुंह ले बहत पछीना, देहं हा थक के चकनाचूर
लेकिन भिड़ के आग बुझावत, दूसर ला देवत उत्साह.
आखिर आगी चुमुक बुझागे बढ़ नइ पाइस ज्वाला ।
सुन्तापुर हा बचिस सुरक्षित तब खुश हें नर नारी ।।
अब मनबोध गरीबा मन के, जखम खतम बर चलत उपाय
अैस चिकित्सक खबर अमर के, करत दुनों झन के उपचार.
पात दवई मनबोध गरीबा, खावत दवई नियम के साथ
थोरिक दिन मं स्वास्थय हा लहुटिस, दरद खतम मिटगे सब घाव.
फगनी सत्य तथ्य ला जानिस, धनवा रखे रिहिस पेट्रोल
गांव साथ अरि ला भूंजे बर, रचे रिहिस षड़यंत्र कठोर.
फगनी हा धनवा ला बोलिस -“”ठंउका मं तंय अड़बड़ क्रूर
गांव नष्ट बर तंय सोचे हस, पर ए बात रखे हस याद-
इही गांव मं हम तक रहिथन, हम्मन साथ मं बर के राख
यदि पर बर खोधरा कोड़त हन, ओमा जाहय हमरो जान ?
मंय हा आग लगाये हंव तब, अैस कलंक मुड़ी पर मोर
मंय षड़यंत्र ला कुछ नइ जानंव, लेकिन मुड़ पर चढ़गे पाप.
पर ग्रामीण के कर्म ला परखव – जेला हम मानत हन शत्रु
ओमन मृत्यु के गाल मं जावंय, उंकर विरुद्ध चले हन चाल.
हमर पुत्र मनबोध ला ओमन, आगी ले रक्षा कर लैन
दुख के समय मदद ला बांटिन, ओमन आंय भला इंसान.
तंय हा क्रूर हठी मनखे अस, तोर मोर अब नइ संबंध
मंय मनबोध ला साथ मं लेगत, बासा करिहंव अन्ते ठौर.”
फगनी हा मनबोध ला पकड़िस, रेंगिच दिस धनवा ला छोड़
ओहर दुखिया के घर चलदिस, अपन बिपत ला फोरिस साफ.
दुखिया हा फगनी ला रख लिस, इज्जत देवत मीठ जबान
कुछ दिन हा इसने बीतिस तंह, फगनी मं आवत बदलाव.
एक रातकुन नींद ला लेवत, देखत हे सपना मं दृष्य-
धनवा आये हे ओकर तिर, पश्त दिखत हे जेकर हाल.
धनवा बोलिस -“”साथ अभी चल, मोर कुजानिक ला तंय भूल
तोर सलाह सदा मंय सुनिहंव, मंय तोला देवत विश्वास.”
फगनी हा झटकारिस तंहने, धनवा हा चलथय अउ चाल-
फट मनबोध ला कबिया लेथय, अपन साथ मं धर के जाय.
फगनी हा मनबोध ला झटकिस, ओला रखे स्वयं के पास
ऊपर दृष्य स्वप्न मं देखत, पर वास्तव मं घटना और. –
फगनी हा मनबोध ला पकड़े, कबिया रखे लगा के जोर
तब मनबोध कल्हर के रोवत, ओकर तन भर भरगे पीर.
दूसर कमरा मं दुखिया मन, दुखिया इहां दउड़ के अैस
फगनी ला हेचकार उठाइस, अउ मनबोध ला देवत स्नेह.
दुखिया हा फगनी ला पूछिस -“”रोवत कार तोर मनबोध
तंहू दिखत हस बेअकली अस, काय बात तंय फुरिया साफ ?”
फगनी मुंह ला करू बनाथय, फुरिया दिस सपना के हाल
कहिथय -“”जेकर संग नफरत हे – धनवा सपना मं दिख गीस.
मंय हा ओला छोड़ डरे हंव, टूटे हे अब ओकर साथ
ओकर ले मतलब नइ मोला, ओकर पास कभू नइ जांव.”
दुखिया थोरिक हंस के बोलिस -“”मोर बात झन मान खराब
धनवा साथ करत तंय झगरा, ओला मानत शत्रु समान.
पर धनवा हा तोरे दिल मं, ओकर करत सदा तंय याद
नर नारी मं जे आकर्षण, ओहर सत्य प्राकृतिक आय.
मोर सलाह समझ ले तंय हा – तुम धनवा संग फिर जुड़ जाव
पहली के गल्ती ला भूलव, एतन बरय प्रेम के दीप.
तुम दूनों मनबोध के पालक, ओहर जीवन मं सुख पाय
ओकर भावी हा बन जाये, तुम दूनों के करतब काम.
नेक सलाह दीस दुखिया हा, फगनी हा करलिस स्वीकार
धनवा तिर जाये रजुवागे, उंकर जुड़त हे फिर संबंध.
बड़े फजर हा खुशी ला लाथय, करत गरीबा उत्तम काम
फगनी अउ मनबोध ला धरथय, धनवा के घर मं चल दीस.
धनवा हा परिवार ला देखिस, हर्षित होत खुशी भरपूर
बनत गरीबा के आभारी, मानत हे ओकर उपकार,
कथय गरीबा हा धनवा ला -“”तुम्हरे से हे इरखा खूब
तुम्मन लड़ लेथव सोसन भर, तंहने फिर हो जाथव एक.
एक दुसर ले हटके रहिथव, तुम्हर बीच मं होत वियोग
पर खिंचाव आकर्षण रहिथय, आपुस बीच करत हव याद.
तंहने तुम्मन फिर मिल जाथव, होवत हवय मिलन संयोग
मन के कपट शत्रुता मिटथय, होवत नवा प्रेम संबंध.”
गीस गरीबा हा निज घर मं, दुखिया के करथय तारीफ-
“”तंय हा जे उपाय जोंगे हस, ओहर सच मं हित के काम.
धनवा ठीक राह पर लगगे, ओहर लीस अपन ला पांग
ओकर सब बकचण्डी उरकिस, बिख के दांत बिना हे सांप.
अब ओकर परिवार हा जुड़गे, एकर बर तंय करे प्रयास
धनवा अगर एक झन रहितिस, बदला बर रचतिस षड़यंत्र.
धनवा जिम्मेदारी पाइस, ओहर बिधुन अपन बस काम
अपन राह पर आहय जाहय, डिगन पाय नइ ओकर पांव.
वास्तव मं एहर सच होवत, फगनी धनवा मन हें एक
ओमन सब संग काम ला जोंगत, छोड़ दीन अब अंड़ियल टेक.
“ग्राम विकास समिति’ बनवाये, सुन्तापुर मं होत चुनाव
उम्मीदवार सबोतिर जावत, फोर बतात अपन सिद्धान्त.
आखिर मं चुनाव हा होथय, ओकर निकलिस सच परिणाम
जेन सदस्य विजय ला अमरिन, ओकर नाम निम्न अनुसार –
डकहर कातिक हगरू गरीबा, झरिहारिन केंवरी धनसाय
यद्यपि एमन विजय ला पाये, पर घमंड ला राखत दूर.
धनवा हा सदस्य निर्वाचित तब कातिक ला गुस्सा ।
धनवा खड़े कलेचुप लेकिन कातिक देवत गारी ।।
बखलिस -“”अब तक ले धनवा हा, राज करिस जनता ला डांट
ओकर पास चलिस नइ ककरो, सब मानिन ओकर आदेश.
पर अब सुम्मतराज के युग हे, नवयुग के स्वागत के टेम
नवा नियम कानून बनावव, राज चलाय नया सिद्धान्त.
याने जे मनखे मन पहिली, कष्ट झेल के प्राण बचैन
ओमन अब सुख सुविधा पावंय, कांटा गड़न पाय झन गोड़.
बनंय उही मन गांव के मुखिया, उंकरे चलय नियम कानून
बोली उंकर कटन झन पावय, खुशदिल बइठंय आसन ऊंच.
धनवा के चुनाव खारिज हो, ओकर पद हा होय समाप्त
हमर गोड़ मं धनवा बइठय, ओहर करय हमर सम्मान.”
मेहरू कथय -“”अनुभवी धनवा, ओकर गुन के मिलिहय लाभ
ओकर ठीक सलाह ला मानन, हम नइ मानन गलत सुझाव.
अपन राज हम पाये हन अभि, करत घमंड बतावत टेस
निर्णय गलत हमन ले सकथन, काम बिगड़ रुक जहय विकास.
जहां गलत निर्णय हम लेवन, धनवा हा मारय फट रोक
धनवा अउ हम सब दल दिल मिल, काटन गांव के बिपदा दोख”
नेक गोठ हा भींजिस तंहने, कातिक करिस तथ्य स्वीकार
नवा व्यवस्था के रक्षा बर, मिहनत करत देंह ला गार.
इही बीच मं पिनकू आथय, टहलू बोधनी संग मं अैन
हिरदे ले स्वागत होवत हे, एकोकन दुरछुर नइ होत.
पिनकू मेटाडोर ला लाये, जेहर ओकर खुद के आय
मेटाडोर मं बइठे अब तक, मुसकावत डकहर ला देख.
डकहर हंस पिनकू ला कहिथय -“”उतर भला तज मेटाडोर
भेंट होत हे कतको दिन मं, चल गोठियाबो दिल ला खोल.
अब हम तुम सब एके अस अन, कपट भेद दुश्मन अस दूर
अपन बिपत ला तंय हा फुरिया, कष्ट सुने बर हम तैयार.”
पिनकू मेटाडोर ले उतरिस, डकहर तिर जा हेरिस बोल-
“”मनसे हा कहुंचो रहि सकथय, खा पी सकथय महिनत जोंग.
मगर गांव मं बसना चाहत, अब नइ चहत जांव अउ ठौर
मोला इहां काम का मिलिहय, जेवन मिलिहय का भरपेट ?”
डकहर बोलिस -“”तंय शिक्षित हस, गांव चहत हे गुन ला तोर
अब हमला उन्नति करना हे, करबे मदद लगा के बुद्धि.”
पिनकू मेटाडोर बिसाये, शासन तिर ले लागा मांग
गांव पटाहय अब कर्जा ला, मेटाडोर गांव के होत.
टहलू बोधनी ठाढ़े ते कर केंवरी हा गिस लौहा ।
उंकर साथ हंस के बोलत हे बिसरे पूर्व के गुस्सा ।।
कथय बोधनी हा केंवरी ला -“”हम कमाय बर मुम्बई गेन
उहां कमाय गजब मिहनत कर, वास्तव मं कुहकुह थक गेन.
पर अब विवश हवन निर्बल अस, इहां बिलम सकथन कुछ माह
जे रुपिया गठिया लाये हन, ओमां हवय हमर अधिकार.
रुपिया फेंक अनाज बिसाबो, कुछ दिन मं सब नोट खलास
तंहने हम फिर मुम्बई जाबो, करबो उहां मरत ले काम.”
कथय बोधनी हा केंवरी ला -“”बचे हवय जतका अस उम्र
इंहचे रहि के जीना चाहत, हम नइ चहत जान अउ ठौर.
मगर हमर नइये घर डोली, ना मितवा न सहायक एक
तब हम वापिस मुम्बई जाबो, उंहचे छुटही हमर परान.”
केंवरी किहिस -“”अतिक रोवत हस, खुद ला समझत निहू लचार
तंय पहिली के व्यथा ला बोलत, शोषण भेद करय जब राज.
पर अब जनता राज चलावत, सब झन पाय अपन अधिकार
सुन्तापुर मं तुम्हरो हक हे, तुम बस सकथव खमिहा गाड़.
मुम्बई जाय जरुरत नइये, इंहचे कमा पेट भर खाव
फगनी दुखिया मन सुख पावत, ओतका सुख तुम्मन तक पाव.”
बोधनी टहलू पा आश्वासान, लग थिरबहा बिलमगें गांव
अपन काम ला पूरा जोंगत, लेत दुनों झन सुख के लाभ.
सुन्तापुर मं हांका होवत – सुन लव गांव के सब इंसान
तुम्मन खुद शासक जनता अव, करतब कर अमरव अधिकार.
जतका काम के भाग ला पावत, पूरा करव चिभिक के साथ
भ्रष्टाचार अगर तुम करहू, तब निश्चित पाहव दुख दण्ड.
जतका अस उत्पादन होवय, याने काम जतिक अस होय
ओतकिच के सच विवरण देवव, ताकि होय अवगत सच तथ्य.
अगर कागजी घोड़ा दउड़त, विवरण देवत निरवा झूठ
सुन्तापुर हा धोखा खाहय, ओकर लक्ष्य भविष्य हा नाश.
यदि आर्थिक स्थिति हा बदतर, तब फल हा मिल सकत खराब
श्रम कर सुम्मतराज ला लाये, अपन हाथ करिहव बर्बाद.”
अब कवि सुम्मत राज के बोलत बिल्कुल सत्य प्रशंस।
मनखे गांव उहिच हें लेकिन फूटत सुख के कन्सा ।।
उहां न शोषक अउ ना शोषित, ना पूंजीपति ना कंगाल
सब हक पाये एक बरोबर, जमों निभावत निज कर्तव्य.
भ्रष्टाचार कहां ले होवय, ओकर सब चुहरी हा बन्द
यदि चिटको अस घपला होवत, होत नियम मं तुरुत सुधार.
यदि मनखे पर रोग झपावत, ओकर हंसा ला चुन खाय
लेकिन तुरुत दवई मिल जावत, तंहने बच जावत हे जान.
शिक्षा पाय के मन नइ होवत, पर शिक्षा के उचित प्रबंध
सब मनखे मन कड़कड़ शिक्षित, तर्क रखत तेहर सच ठोस.
एको अदमी भूख मरत नइ, एको झन नइ बिगर मकान
सब कोई खाये बर पावत, सब झन घर मं करत निवास.
गांव बीच मं गउराचंंवरा, जे वाजिब मं पबरित ठौर
ओतिर बइठे हें मनखे मन, हेरत मन के जमों बिखेद.
धनवा अंतस खोल के बोलिस -“”मंय हेरत सच बोली।
मंय पहिली के पुंजलग मनखे खुद ला समझंव ऊंचा।।
सोचंव – सुम्मतराज हा आहय, गांव के हक मं सब धन मोर
तब नइ होवय मोर प्रतिष्ठा, सब सुख सुविधा तुरुत खलास.
पर शंका बादर अस छंटगे, सुम्मतराज जमों सुख देत
आवश्यक हा पूरा होवत, जीवन चलत सुखी निÏश्चत.
कातिक हगरू के संग बइठत, उंकर असन करथंव मंय काम
मोर देह हा पुष्ट जनाथय, श्रम ला देख भगत सब रोग.
पहिली अउ अभि मं जे अंतर, ओला मंय फोरत हंव साफ
उहिच आन मंय अउ दूसर मन, पर व्यवहार व्यवस्था भिन्न –
पहिली सब ला डर्हुवा धमका, अपन बात के स्वीकृति लेंव
पर अब वाजिब तर्क ला रखथंव, तब मनसे मन मानत तथ्य.
पहिली पर के हक ला लूटंव, पर के हक के अन ला खांव
पर अब अपन भाग पर रखथंव, राजबजन्त्री निज अधिकार.
भय ला देखा लबारी बोलंव, कपट चाल चल इज्जत पांव
निश्छल वाक्य प्रेम रखथंव अब, सद आदत ले पावत मान.
सुम्मतराज के नामे ला सुन, घृणा क्रोध कर हलय शरीर
पर अब ओकर जस गुन गावत, भ्रम के जल बहिगे धर धार.”
नेक गोठ हिरदे मं भींजिस, तंह ग्रामीण करिन स्वीकार
अपन व्यवस्था ला संहरावत, सुम्मत राज पात जयकार.
तब मुसकात गरीबा आथय, जेकर खांध गली मनबोध
एमन पुत्र सनम – धनवा के, पाठक याद करव सच शोध.
जेमन छत्तीस असन बइठतिन, लेकिन अब नइये कुछ भेद
रोटी बांट दुनों झन खावत, झींकत हें गरीबा के बाल.
भीड़ ला मुसकत कथय गरीबा -“”तुम्मन करत अपन तारीफ
मगर लगत कनुवासी मोला, सच के पता लगत कर देर.
हम्मन अभी काम जोंगन अउ देवत रहन परीक्षा ।
जब मनबोध गली बढ़ जाहंय – करहीं सत्य समीक्षा ।।
सुन्तापुर मं खुशी हे तइसे सुख पावंय हर प्राणी ।
दारभात हा चुरगे तब कवि छेंकत अपन कहानी ।।
१०. राहेर पांत समाप्त
एवं
गरीबा महाकाव्य की पूर्ण समाप्ति
गरीबा महाकाव्य के राहेर पॉत ल बहुत बढिया लिखे हावस ग ! बधाई ।