मन के मतवार मन ला सौंपत हों
आपन गोठ
बच्चन के बानी ला सुन के मैंहर बचपन ले बया गए रहेंव, उंकर बानी के बान हर मोर हिरदे मा लागे हावय, कतको तीरथों हिटत नीए, एकरे बर तुमन ला बलाय हावौं, देखिहा आस्ते आस्ते तीरिहा, मोर हिरदे के बात हावय, ओकर तीर बने सचेत होके जाहा, कहूँ मोर हिरदे के बान तीरत तीरत कहूँ तुंहर हिरदे मा झन खुसर जाए। मैंहर अतका भारी कवि के कविता ला उधार मा ले हावौं, वो उधार ला मैंहर मोर गुरतुर भाखा, मयारू गोठ मा छूटे सके हावौं कि नीही एला तुमन जानिहा अउ बताहा।
मैंहर भटकत रहेंव ता भेटेंव बच्चन के मधुशाला।
पीके मताय ता महूँ हर बनाय एकठन मंदझाला।।
एहर कतकाकन करू कस्सा हावय नुनछूर गुरतुर,
पढ़न्तामन बने पढ़के बताहा पुस्तक मोर मंदझाला।।
सीताराम पटेल
रामनवमी 2064
27- 03- 2007
मंगलवार
1:-
गुलगुल पाका महुआ फूल के, आज बनाय हावौं मदिरा ला।
तोला पिआहॉं भरभर गिलास, मयारू मिलाके अपन मया ला।।
पहिली तोर भोग लगाहॉं मैंहर, पीछू जमोझन परसाद पांही,
सबो ले पहिली तोर पूजा ला, करत हावय ये मोर मंदझाला।।
2:-
पियार तोला संसार सरा के, पूरा निकालिहां सूरा ला।
एक गोड़ मा नाचिहा पूरा, परी बनके लेके पियाला।।
जिनगी के मंद ला तो मैंहर, कबके तोर मेर दे दे हावौं,
आज सबो कर दिहां मैंहर, तोर मेर जमो मंदझाला।।
3:-
मयारू तैं मोर मंद हावस, मैंहर तोर पियासा पियाला।
आपन ला मोर मा भर के, बनथस तैंहर मतवार लाला।।
तोला छक छलकथें मैंहर, पीयत हस मोला मस्त तैंहर,
दूनों झन एक दूसर बर, आज हामन हावन मंदझाला।।
4:-
भाव तैंहर महुवा फूल ले लेके, तीरथस कलपना के रसा ला।
कवि परी बने हावौं मैंहर, कविता मोर हावय सरस पियाला।।
लाख पिआ, दू लाख पिआ, नी होवय येहर कभू जुच्छा,
पढ़न्तामन हावा तुमन पिवोइया, पुस्तक हावय मोर मंदझाला।।
5:-
मंदझाला जाय बर घर ले , निकलथे मतवार लाला।
कोन डहर जावों कहके, अचकचाय हे भोला भाला।।
आने आने डहर बताथें जमो, मैंहर एला इसने बताथों,
एक डहर धर के जा तैंहर, पा जाबे ये मोर मंदझाला।।
6:-
गुरतुर भाव ले गुरतुर मैंहर, रोजेच बनाथों मदिरा ला।
भरत हावौं मंद ला मैंहर, अंतस के पियासा पियाला।।
ठाढ़ करके कलपना के हाथ, मइच हर ओला पीयत हौं,
आपनेच मा मैंहर हावौं, मंदपरी, मतवार अउ मंदझाला।।
7:-
रेंगत रेंगत गंवा डारेंव , जिनगी के कतका पाला।
दूरिहा आभी कहत हावैं, सबो रस्दा बतोइया हमाला।।
आघू बढ़य के हिम्मत नी होय, पीछे फिरे के नीए साहस,
कामचोर बनाके मोला, दूरिहा मा ठाढ़े हे मंदझाला।।
8:-
मूहूं मा तैंहर जपत जा, मंधरस, मंद ,मदिरा ला।
हाथ मा आभास करत जा, एकठन कलपित पियाला।।
धियान कर मन मा मीठ, सुखखान सुग्घर परी ला,
अउ बाढ़त जा रेंगोइया, तोला दूरिहा नी लागे मंदझाला।।
9:-
मंद ला पीए के पियास रहय, जब मंधरस मदिरा ला।
होंठ के चुमई मा रहय, ललाइत सुग्घर पियाला ला।।
धियान करे मा बनही, संगी सिरतोच मंदपरी हर का,
नी रहय मंद पियाला परी, तोला मिलही सुग्घर मंदझाला।।
10:-
सुना मंद के छलछल छलछल, गघरी ले गिरत हे पियाला।
सुना तुमन छनछन छनछन, परी रेंग रेंगके बांटथे मदिरा ला।।
बस आ गा, दूरिहा नी हावय, बांचे हावय आप चार पांय,
चहकत हावय सुन मतवारमन, कहरत हावय मंदझाला।।
11:-
थाली जइसने बाजथे, चूमथे पियाली ला पियाला।
दिल मा नगाड़ा बाजथे, परी रेंगथे छमछम छमाला।।
भट्टीवाला के कड़कई हर, दिल मा डर जनमात हावय,
महुआ रस ले मंद के महक, अउ बढ़ात हावय मंदझाला।।
12:-
मेंहदी रचाय कोंवर हाथ मा, लाली मदिरा के पियाला।
अंगठी मा मूंदरी डारय, सोन साही हावय मंदबाला।।
पाग पैंजनी अउ जामा नीला, डटे डाट हावय मतवार,
सतरंगी ला हचुर्रा बलाथे, आज मोर रंगीली मंदझाला।।
13:-
हाथ मा आय के पहिली, नाज दिखाही पियाला।
होंठ मा आय के पहिली, नखरा दिखाही मंदमाला।।
अड़बड़ इंकार करिही , सोनपरी आय के पहिली,
मतवार झन घबरा जाबे, पहिली मान करिही मंदझाला।।
14:-
लाली मदिरा के धार लपट साही, झन किहा एला जुआला।
उफनती मदिरा हावय एहर, झन किहा एला दिल के छाला।।
पीरा निसा हावय मंद के, बीते के सूरता परी हावय,
पीरा मा मजा जेहर पाही, आही ओहर मोर मंदझाला।।
15:-
संसार के जुड़ाय मंद साही, मतवार नी हावय मंदमाला।
संसार के जुड़ाय पियाली, मतवार नी हावय पियाला।।
डबकत मंद डबकत पियाली मा, जरत करेजा के कविता हे,
जरे बर जेहर नी डराही, आही ओहर मोर मंदझाला।।
16:-
बोहात मंद देखा देखा, लपट उठात हावय मंदमाला।
देखिहा छूते छूअत ओहर, ओंठ जराही पियाला।।
ओंठेच नीही सबो देंहे जरही, मतवार ला दू बूँदी मिलही,
इसने मन के मतवार मनला, आज बलात हे मंदझाला।।
17:-
धरम गरंथ ला सबो जरा दारिस, हावय जकर अंतर के जुआला।
मंदिर , मस्जिद अउ गिरजा सबला, टोर डारिस जेहर मतवाला।।
पंडित मोमिन पादरी मन के , फांदा ला जेहर काट डारिस हावय,
कर सकत हावय ओकरे आज, सुआगत ये मोर मंदझाला।।
18:-
जेहर तरसत होंठ ले, नी चूमिस हावय मंदमाला।
खुसी के कांपत हाथ ले, नी छूइस मंद के पियाला।।
हाथ धरके लजकुरही ला, आपन तीर नी तीरीस जेहर,
बिरथा सूक्खा उोरस जिनगी के , वोहर मंधरस मंदझाला।।
19:-
बनही पुजारी मयारूक परी, सफ्फा गंगाजल मंदमाला।
बिना रूके फेरत रिही, मंद पियाला के ओहर धनमाला।।
अउ ले ले अउ पी ले, इ मंतरा के जाप ला करत रिही,
मैंहर शिव के मूरती बनंव, मंडिर होवय इ मोर मंदझाला।।
20:-
बाजिस नीही मंडिर मा घंटी, नी चेघिस मूरती मा माला।
बैठिस आपन घर मा मोमिन, देके मस्जिद मा ताला।।
खतम खजाना गौटिया मन के, गिरगिस गढ़मन के दीवार,
रिहीन बने बने मतवार मन, खुल्ला रिहीस इ मंदझाला।।
21:-
बड़खा बड़खा परिवार मिटही, रोवोइया नी होही एको पाला।
हो जाही महल सुनी ओकर, नाचत रहें जिहां परीबाला।।
राज उलट जाही राजामन के, भागलछमी हर सूत जाही,
जमे रिहीं इहां मतवारमन, जागत रिही इहॉं मंदझाला।।
22:-
संसार मा सबो दिन कहाइस, बुरा बॉंका मतवार पियाला।
छैल छबीली ,रंगीली परी, अलबेला हावय मतवार लाला।।
ठीक नी हावय पटही काहां ले, मंदझाला अउ संसार के जोड़ी,
रोजेच संसार खतहा घूनहा, नावा दूलही मोर मंदझाला।।
23:-
पीए बिना जेहर मदिरा ला, खीख किही ओहर मतवाला।
पीए के पीछू ओकर मुंहू मा, पड़ जाही बड़काकन ताला ।।
दास द्रोही दूनोंझिन हावय, जीत मदिरा के पियाला के,
बिस्वबिजेता बनके संसार मा, आय हावय मोर मंदझाला।।
24:-
सबो मिटा जाही बने रिही, सुग्घर परी अउ जम काला।
सूखाही सबो रस बने रिही, महुआ अउ महुआ के माला।।
धूमधाम अउ ठेला मेला के, जगहा जमोहर सुन्ना रिही,
जागत रिही बिना रूके मसान, जागत रिही मंदझाला।।
25:-
हरिहर रहय मंदझाला, संसार मा पड़ जाए पाला।
उहां मुहरम के करिया छंइहा, इहां होरी के जुआला।।
सरग ले सिद्धा आय हावय, भुंइया के दुख का जानही,
पढ़े मरसिया संसार सबो, ईद मनाथे मंदझाला।।
26:-
एक बच्छर मा एकेच घा, जरथे होरी के जुआला।
एकेच घा होथे जुआ बाजी, बरथे दीया के माला।।
संसार के मन कोन्हों दिन, आके देखा मंदझाला मा,
दिन मा होरी रात देवारी, रोेजेच मनाथे मंदझाला।।
27:-
बने रेहे महुआ रूख हर, जेकर ले बनत हे मंदमाला।
बने रेहे कोंहार माटी, जेकर ले बनथे मंद के पियाला।।
बने रेहे वो मंद के पियासा, अघाय जेहर नी जानत हे,
बने रेहे सबो मतवार मन , बने रेहे हामर इ मंदझाला।।
28:-
नी जानंव कोन मनखे, आइस बनके मतवार लाला।
कोन अनचिन्हार परी ले, जेहर मंद ला पीला पाला।।
जिनगी पाके मनखे पीके, मस्त रहंय एकरे खातिर,
सबो ले आघू संसार मा आइस, पाइस ओहर मंदझाला।।
29:-
बने बने समझा मोला, बने बने रइथे मंदबाला।
मंगल अमंगल का जानय, मस्ती मा हावय मतवाला।।
संगी मोला बने बने झन पूछा, मोर मंदझाला मा आके,
झन किहा जयराम मिलके, किहा तूमन जय मंदझाला।।
30:-
सूरज बनही मंद बेचोइया, सागर गघरी, पानी मंदमाला।
बादर बनके आही परी, भुंइया बनही मंद के पियाला।।
झरी लगाके झरही मदिरा, झरझर झरझर झरझर झरझर,
नर fबंयार बंद बनके मैंहर पींहा, चमास हावय मंदझाला।।
31:-
लीलम चंदैनी ले सजे अगास, बन जाएं मंद के पियाला।
सिद्धा करके भर दीही ओमा, सागर जल मंद माला।।
मत्त पवन परी बनके, होंठ मा छलका छलका जाही,
बिछाय रहय सागर तीर साही, संसार बनय इ मंदझाल