जिनगी ल बचाव भइया : जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’ के कबिता

जिनगी बड़ कीमती हे बचाव भइया
रही-रहिके मुंहू म आगी झन लगाव भइया
तुहर पर्डरा दांत होही बिरबिट करिया
गुटखा, तम्बाकू झन खावव भइया
बड़ मेहनत करके सकेले हाबे पुरखा मन
धनहाल धुंगिया म झन उड़ावव भइया
बेरा ले पहिली हो जहू तुमन डोकरा
अतेक जादा झन इतरावव भइया
ये सबो नसा के गलत परभाव हरे
ताव म अतेक झन चिचयाव भइया
तुमर बढ़िया रहूं तब रही हमर राज
देस, समाज अउ हमर गांव भइया
मान लो ये अड़हा सुकुमार के बात ल
मऊत ल झटकुन झन बलाव भइया
ठन-ठन ले सुक्खा तरिया होगे भाटो
मोर मया के किसानी परिया होगे भाटो
आगी फेकत हे सुरूज अलकरहा
पकलू टूरा निच्चट करिया होगे भाटो
जबले अइस नवा-नवा मसीन
तबले बइला मन कोड़िहा होगे भाटो
कतका सकेलो पिरीत के कोदो ल
टूटहा झेझरी, चरिहा होगे भाटो
देख तो कइसे आंखी देखावत हे मोला
काली के टुरा मोर जहुरिया होगे भाटो।

जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’
चौबेबांधा राजिम

आरंभ मा पढव : –
राजीव रंजन जी के उपन्‍यास अंश
अपनी अपनी संतुष्टि

Related posts

One Thought to “जिनगी ल बचाव भइया : जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’ के कबिता”

  1. jindagi ke radda dkhaiya kavita hare ye ha .. aisan kavita bahunt kam milathe ..

Comments are closed.