मोबाईल हास्य कबिता

एक दिन
मे ह लेड़गा भईया ल कहेंव
सुन गा भईया
मोर घर जा
मे ह मोबाइल ल
भूला गें हंव
ओला घर ले धर के ला
ऐला सुन के
वो ह दौड़त-दौड़त
मोर घर गीस
घर के मोहाटी मा
मोर बाई ल बइठे पाईस
मोबाईल के बदला मा
मोर बाई ल धर के आईस।

हरखराम पेंदरिया
श्रीराम मंदिर रोड
महासमुन्द (छग)

आरंभ मा पढव : –
शताब्दि की चयनित कहानियों में डॉ.वर्मा की भी कहानी
पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’

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3 Thoughts to “मोबाईल हास्य कबिता”

  1. मोर बाई ल धर के लाईस,

    हा हा हा हा
    बने होसियार लइका रिहिस्।:)

  2. मजा आगे ग भैया
    एक बेर साहब अपन नौकर ल कहिस जा रे घर ले मोर अटैची ल ले के आबे
    नौकर साहब के अटैची—-साहब के अटैची —– साहब के अटैची कहत जावत रहिस बीच म हपट के गिर गे
    साहब के—-साहब के—- डईकी साहब के डईकी ले आनिस
    हेमन्त वैष्णव

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