अक्ती परब सीता ल बिहावय राजा राम – परब तिहार

हमर छत्तीसगढ़ के हर परब-तिहार के अलगे महत्तम हे। इहां के जम्मो मनखे मन म भारतीयता के संस्कार ह कूट-कूट ले भराय हे। वइसे तो साल भर के भीतर रंग-रंग के परब अउ तिहार ल मानथन हमन ह, फेर ये तिहार ह हमर छत्तीसगढ़िया किसान मन बर अलगेच महत्तम राखथे। गांव के छोटकुन लइका मन पुतरी-पुतरा के बिहाव खातिर, किसान ह खेती के पहिली बऊग खातिर त सज्ञान नोनी-बाबू के दाई-ददा मन अपन घर म दू बीजा चाऊंर टीके के आस म इही ‘अक्ती’ तिहार के रद्दा देखत रथे। भारतीय नवा बच्छर के दूसर महीना म बैसाख शुक्ल पक्ष तीज के दिन जम्मो छत्तीसगढ़ म अक्ती के परब माने जाथे। इही दिन ल हमर देस के दूसरा भाग मन म घलो ‘अक्षय तृतीया’ के नाम ले अलग-अलग ढंग से मनाय जाथे।
‘अक्ती’ के तिहार ह किसान के तिहार आय। ये दिन गांव के बइगा अउ जम्मो सियान बड़े बिहनिया ले नहा-धोके गांव के जम्मो देवी-देवता के पूजा पाठ करके माता देवाला म विशेष परकार के पूजा करथे। तेखर बाद माता देवाला म राखे धान ल गांव के जम्मो किसान मन ल दोना म शीतला दाई के परसाद के रूप म बांटे जाथे। नावा झेंझरी म पूजा पाठ करके खेत म धान ल छित देथे। अऊ कोन्हो अक्ति के दिन पानी बरसगे त किसान के खुशी के का पूछना? अक्ति के दिन पानी गिरई ह खेती किसानी के हिसाब से बड़ शगुन माने जाथे।
‘अक्ती’ के तिहार ह छत्तीसगढ़ में बिहाव-संस्कार ल संपादित करे के बड़ शुभ अवसर आय। ये दिन ह अतका शुभ माने जाथे के कोन्हो भी मुर्हुत में ये दिन शादी करवाए जा सकथे। गांव म आज भी अक्ती लगिन अउ रामनवमी लगिन म बिहाव करे के रिवाज हे। छोटे-छोटे लइका मन घलो ये दिन बिहाव के नेंग-नत्ता ल सिखे खातिर पुतरा-पुतरी के बिहाव बड़ हांसी-खुशी म मढाथे अउ बिहाव के जम्मों नेंग ल पूरा करथे।
पहली इही दिन बड़ संख्या म बाल-विवाह होवत रिहीसे। फेर सिक्छा के बढ़त प्रचार-प्रसार के कारण आज बाल-विवाह के संख्या में कमी आय हे। ये हा बहुत बड़े बुराई रिहीसे जेहा अब धीरे-धीरे खतम होवथे। छत्तीसगढ़ म घलो पहली बड़ संख्या म बाल विवाह के प्रचलन रिहिसे जेहा ए गीत ले स्पष्ट पता चलथे-
‘कोरवन पाई-पाई भांवर गिंजारे
पर्रा म लगिन धराय।’
छोटे उम्मर के बिहाव ह लइका मन बर बड़ घातक होथे। बिहाव हमर लोक-संस्कृति म जीवन के जरूरी संस्कार हरे। जब लइका के उम्मर ह बिहाव करे के लइक हो जाथे त लड़का पक्ष वाला मन बहू खोजे बर अउ लड़की पक्ष वाला मन सुन्दर दमाद के आस म सगा के पता लगावत रहिथे। अउ जिंहा बरोबर रास-बरग माढ़िस ताहने बिहाव के तैय्यारी शुरू हो जाथे। गांव के जम्मो देवी-देवता, बावहन, महाराज अउ जात सगा के संगे-संग दूसर समाज के सगा मन ल घलो नेवता पठोथे। आज काली नेंवता देबर कारड छापथे, पहली सिरिफ गुड़ के एक ठन भेली अउ हरदी-सुपारी ल देके बिहाव के नेवता पठोवय। हमर छत्तीसगढ़ म ब्राह्मण ल आज भी बड़ श्रध्दा अउ आदर दिए जाथे। एखरे सेती पहली नेवता पठोवत केहे जाथे-
‘दे बावहन, लगिन चाऊर हो
भए लगिन कर बेर।’
जम्मो सगा मन के सकलाय के बाद बिहाव के एक-एक ठन नेंग शुरू हो जाथे। चऊंक पूरना अउ हरदी पिसना सज्ञान नोनी मन के हाथ म सऊंपे जाथे। गहना-गुड़ा अउ तेलई के जिम्मेदारी घर के सियानिन मन संभालथे।
नेवता हंकारी के काम ल घडीदार देखथे। मड़वा छवई के काम ह पुरुष मन के त चूल्हा-चाकी के काम ल माई लोगिन मन ह देखथे। मड़वा माटी, मायन, डोला परछई, तेल चघई, तेल उतरई, मऊ सौंपनी से लेके टिकावन तक के नेंग ल माई लोगिन मन पूरा करथे। अउ इही अक्ति परब म दू अनचिन्हार परानी मन जम्मो देवी-देवता अउ सगा-पहुना ल साक्छी मानके संगे-संग एके रद्दा म रेंगे के किरिया खाथे। नेवता हे आहू…
सरई-सइगोन के दाई मड़वा छवाई ले
भये सिरिष कर खांभ
के ये मोर दाई सीता ल बिहाव राजा राम…
रीझे यादव
टेंगनाबासा

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