खेती म हावय सब सुख – कहिनी

सीताराम हर एक दिन शहर गीस घूमे बर, शहर के हालचाल जाने बर सीताराम शहर पहुंचगे। बढ़िया-बढ़िया घर-कुरिया, पांच तल्ला छै तल्ला। सब ल देखिस घूमत-घूमत सीताराम ल भूख लागिस खोजत-खोजत एक ठन बढ़िया होटल म गिस पेट भर रोटी-भात खाइस। होटल वाला ल पूछथे, कस गा भइया, के रुपया होइस? होटल वाला सेठ कइथे, तोर एक सौ पचास रुपया होइस बबा। सीताराम अकबका गीस अउ कहीस कस मालिक मैं तो अतेक कन खाय नइयों, फेर अतका पइसा कइसे होइच। होटल मालिक कईथे- देख बबा, आजकल खाए-पीए के भाव नइए। ये तोर पंखा, फ्रिज, ए.सी. लगे हावय तेकर भाव आय। कस भइया होटल वाला, ये जतका बड़े-बड़े दुकान हावय तेन सब अइसने अपन दुकान वाला मन पंखा, कूलर लाइट सबके किराया जोड़त होही। होटल वाला हर सीताराम ल बताथे। सुन ग बबा, ये बड़े-बड़े दुकान बनत हे तेमा कई करोड़ के खर्चा आथे त ये पइसा ल कोन दीही। ये घर हर थोरे उगलही ओकर सेती सब समान बेचथें तेकरे संग अपन घर पंखा, कूलर, ए.सी. सबके किराया जोड़थें। सीताराम हर होटल मालिक ल फेर पूछथे, कस जी, ये कपड़ा, होटल सबके भाव हर तो ठीक हे। फेर आलू, गोंदली, लसुन के भाव हर काबर बढ़त हावय। सीताराम ल होटल वाला हर समझात कइथे- देखजी बबा, तैं तो गांव के रहइया तोर गांव म आलू, गोंदली के खेती होथे धन नहीं। सीताराम होटल वाला ल बताइस के हमर गांव म आलू के खेती नई होवय थोर बहुत गोंदली अपन खाय पीये बर बोथें।
होटल मालिक हर सीताराम बबा ल बताथे सुने बबा, आज हमर पूरा भारत में आलू, गोंदली के खेती 100 झन मनखे म तीन चार झन मनखे बस करत हावयं। बाचे-खुचे सब मनखे बिसा के खात हावय त अइसने म भाव बाढ़ही धन घटही। आज हमर भारत म बड़े-बड़े व्यापारी हावयं तेन मन सब आलू, गोंदली, लसुन अपने गोदाम म भर के रख देथें। तेकरे सेती आलू, गोंदली, लसुन के भाव बढ़ जाथे। सीताराम हर होटल वाला ल बताथे सुनत हावस सेठ मैं सोचथव के मोर गांव के सब खेत-खार बेच के मैं शहर म बस जातेंव अउ बढ़िया जीवन जीतेंव।
होटल वाला सेठ हर सीताराम ल समझाथे- सुन बबा, तैं गांव म हावस त ठीक हावस। उहां के हावा-पानी बढ़िया रइथे फेर साग-भाजी वाला बात आगे त तोर गांव म थोक बहुत साग -भाजी के खेती करते होही। सीताराम हर होटल वाला सेठ ल कइथे शहर हर शहर होथे इहां सब चीज मिलथे। होटल वाला सेठ हर सीताराम ल बताथे सुन बबा इहां कोई अपन नोहय। इहां जान के सब अंजान होथें अउ फेर इहां कुछु चीज सोझे म नई मिलय। इहां सब के टैक्स पटाय बर लागथे। घर के पानी के अउ फेर तोर साग-भाजी वाला बात जेतका तोर गांव म भाव हे तेतका हमर शहर म हावय। अउ इहां गाड़ी, मोटर के मारे खराब हवा सांस म भर जाथे जेकर ले पेट फूले-फूले लागथे आय दीन मुड़ पीरा लगे रइथे। तइसना शहर म तै बसहां कइथस। सीताराम हर होटल वाला के गोठ ल सुनथे त ओखर आंखी भर जाथे कुछु अऊ गोठयाय नई सकय। होटल वाला हर सीताराम ल कइथे सुनजी बबा आज पइसा हर भगवान आय तोर खेत खार ल झन बेच। तैं बढ़िया खेती-बाड़ी कर। दू चार झन बनिहार कर येमा सब सुख हावय। पइसा हर पइसा कमाथे जाने बबा। सीताराम होटलवाला के गोठ ल सुन के घर वापिस आ जाथे अउ खेती बाड़ी करे के सोचथे।
श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू,बलौदाबाजार

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