मोर मन के मजूर
चले आबे नरवा करार म।
नईं हे कोनों या मोरों सहारा,
संग म जाथे तीर के जंवारा
हॉ या तै हा आबे जरुर
मोर मन के मजूर।
नई सुहावै अन-पानी,
कइसे के चलही जिनगानी।
हौं या तैं आबे जरूर
मोर मन के मंजूर।
घरे म बइठ के सोचत रहिथौं,
अंचरा म आंसू पोंछत रहिथौं।
हॉ या तै आबे जरूर
मोर मन के मंजूर।
मरकी ल धर के सिरतोन मैं जाहूं,
आभा मार के तू हीं ल बलाहूं।
हॉ या तै आबे जरूर
मोर मन के मंजूर।
स्व.कुसुम ठाकुर गण्डई से प्राप्त
झांपी से साभार