सुकवि बुधराम यादव के रचना “डोकरा भइन कबीर ” (डॉ अजय पाठक के मूल कृति “बूढ़े हुए कबीर” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक ठन बड़ सुघर रचना-
नवा साल म
सपना तुंहर
पूरा होवय, नवा साल म !
देस दुवारी म सुरुज बिकास बरसावय
संझा सुख सपना के मंगल गीत सुनावय
अक्षत रोली
दीया अउ चंदन, लेहे थाल म!
कल्प रुख म नवा पात मन सब्बर दिन उल्होवंय
सकल मनोरथ फल सिरजे बर भुइंया उरबर होवय
फूल फुले होवंय
रुखुवा के सब डगाल म!
लइकन मन के चेहरा म मुसकान ह छावय
अउ सरलगहा नवा सरग के कती उड़ावंय
झन सब उलझंय
दुरमति मन के कुटिल चाल म !
डर भय ले दुरिहा धरती अउ रहय गगन ह
नदिया परिपूरन, परदूबन परे पवन ह
समता के उत्तर ह
समावय हर सवाल म !
बुधराम यादव, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
09755141676