हमर भारत देश कई ठिन राज हवय जिहां नाना प्रकार के किस्सा कहिनी फूल कस महमहावत, मइनखे मन के गुन सब्बो कर्ता बगरावत रइथे…। यही कर्रा महाराष्ट्र के सिवाजी महराज के एक ठिन किस्सा आप मन बतावत हवंव। एक के गोठ हे सिवाजी के एक झन सेनापति हर कलियान के किला लरई जीत गिस। अतंक परकार के संपति ओखर हाथ आइस के वोहर कूल के कृपा होगे रहय। तइहा के बेरा जीते राजा सेनापति संपति अस्त्र शस्त्र के संगे संग उहां के रानी अउ दासी घला भेंट स्लरुप मिलय। सेनापति वो रानी के सुंदरता देखके मोहा गे अउ अन राजा देहे खातिर अपन संग ले आनिस…।
सिवाजी के महल में राजा अपन दरबार मंतरी, सेनापति अउ दरबारी मन संग गोठियावत बतरावत रइथे..। उहां पहुंच के सेनापति कइथे महराज पुराना किला ने मैहर एकठिन अब्बड़ सुग्गर जीनिस लाने हंव तुउर वोला स्वीकारा..। अउ बोहर डोला बइठे कुवारी कनिया कती अंगठी बता दिस। सिवाजी महराज अपन आसन ले उिठन अउ ओला मेर आके झूलत परदा टार के देखे लागेन…। अनेक सुग्गर नोनी लइका देखके महराज लजा गिन अउ तुरुत अपन मुड़ तरी कर लिस। अउ कइथे… कास..। हमर महतारी घला अतेक सुग्गर होतिस हमु हमर महतारी कस सुग्गर होतेन। अब सेनापति कुति मुंह करिन अउ कइथे कस सेनापति तहर अतेक दिन मोर संग हे तभो ले मोर सुभाव नई जान पाय.. मैहर दूसर के दाई-बहिनी अपन महतारी कर जान थंव.. जा ऐला जिहां ले लाने हस उहां छोर के आ…। आज के बेग अइसन कहां देखे बर मिलथे…। जगा जगा दाई बहिनी, महतारी मन के हील हुज्जत करत छोकरा पिला मन जहां तहां किंजरत, अपन जात चिन्हावत मसर मोटी करत मिल जाथे। जब तक हमन अपन दाई बहिनी के इज्जत नई करबो तब तक हमर देस विकास नइ करही…। आज जगा जगा महतारी, के अपमान देखे बर मिलथे…। एहर हमन सब्बो मइनखे के अपमान हे…। गली, सड़क मोहल्ला अउ इसकुल जावत लइका मन संग छेड़छाड़ अउ सासारिक सोसन अब रोज के गोठ हो गे हवय। एला रोकव…।
परसंग: महिला अपराध
लता राठौर
बिलासपुर
(दैनिक भास्कर ‘संगवारी’ ले साभार)