कहां नंदा गे सब्बो जुन्ना खेलवारी मन

Sushama Pathakपहिली चारों मुड़ा लइका मन के कोलाहल सुनात रहै संझा के बेरा घर ले बाहिर निकलते तहां जगा-जगा झुण्ड के झुण्ड लइका खेलत दिख जावै। अब तो लइका मन बाहिर खेले सफा भुला गिन अउ कहूं थोर बहुत खेले बर बाहिर जाहीं बेट बाल धर के किरकेट खेले बर। आजकल ठंडा के दिन कोनो-कोनो मेर बेडमिंटन खेलत घलो दिख जाथें। घर भीतरी खेले बर आजकल लुडो, केरम, सांप सीढ़ी, जइसे साधन हावय फेर ओला खेलय कोनो नहीं। आजकाल के लइका मन दिनभर टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल जइसे जिनिस भुलाय रथें। स्कूल-कॉलेज ले आही तहां घर घुसरे मुड़ गड़ियाय लेपटाप अउ कम्प्यूटर चटके रथे। येला हम मानत हन कि ये जिनिस मन के आय ले मनखे के काम हर कतका आसान हो गए। एकर पढ़ाई-लिखाई कतका उपयोग हावय, लेकिन ओला कोन समझत हे कि लइका ओमा कतका काम के काम करत हे कि कुरिया घुसरे-घुसरे ओकर दुरुपयोग करत गेम खेलत अपन समय बरबाद करत हे। छोट-छोट लइका मन घलो अपन दाई-ददा के मोबाइल धरे गेम खेलत रथें। अउ टीवी कार्टून देख-देख के एके झन अकेल्ला हांसत रथें।
पहिली के सब्बो जुन्ना खेल कहां नंदागे। हमर पहिली के जुन्ना खेल तो कतेक हावय फेर दू-चार ठन गिनाय ले सब्बो खेल आप मनके सुरता जाही गिल्ली डंडा, बांटी-भौंरा, पिट्‌ठुल, नदी पहाड़, रेसटीप, कोसम्पा भई कोसम्पा अब आप मन अपन सब्बो जुन्ना खेल के सुरता आय लागिस होही। फुगड़ी छत्तीसगढ़ के परमुख खेल आय। घरघुदिंया बना के पुतरी-पुतरा के खेल सबो नोनी मन कतका मगन रहैं। सीताफल के बीजा, कनेर के फर के बीजा अउ इमली के बीजा जेला चिचोला कथे घलो खेल खेले जाय। ताश पचीसा अउ कौड़ी के खेल गरमी के बड़े बेरा कइसे बीत जाय पता नई चलै। शारीरिक बिकास के लिए खेलना बहुत जरूरी हे। बाहिर दउड़-दउड़ के खेले से शारीरिक अउ मानसिक बिकास होथे।
पहिली के मनखे खूब खावंय खूब खेलय सब पचा डारै स्वस्थ रहैं। अब के मनखे आनी-बानी के जिनिस बाहिर खाथे घर बइठे सब्बो काम करत हे। फुस-फुस बीमार परत हे। कहां नंदा गे पहिली के सब्बो खान-पान, जुन्ना खेल। अब तो मोबाइल, फेसबुक जइसे जिनिस के रेलमपेल।

सुषमा पाठक ‘रानू’
बिलासपुर
(दैनिक भास्‍कर, बिलासपुर ‘संगवारी’ ले साभार)

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2 Thoughts to “कहां नंदा गे सब्बो जुन्ना खेलवारी मन”

  1. शकुन्तला शर्मा

    हहो ! सुषमा बने कहत हस , जुन्ना पँचवा , पच्चीसी , नून , आऊ फुगडी सबो खेल – खेलवारी – मन नंदावत हे – पचीसी खेलबो नून खेलबो अऊ खेलबो फुगडिया ।
    फुगडी – हर नंदावत – हावय सुन ओ ननंदिया ॥
    आबे – आबे – नान – बाई – मचे – हे फुगडिया ।।

  2. हेमलाल साहू छत्तीसगढ़िया

    सही कहे दीदी तोर बार मा निमगा सच्चाई हे

    आज कल के लाइका मन भुलगे पहली के खेलमान ल
    पहली खोखो, पत्रगाढ़ी , कबडि , आखमुंदा, गीली डांडा,

    घंडीमुंडी , नदी पहाड़, चेरा , डंडा कोलाल ये सब नन्दा गे

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