भुईया दाई करत हे गोहार
भुईया दाई करत हे गोहार
छोड़ के झन जा भैईया शहर के द्वार
ये नदिया-नरवा, ये रूखराई
तोला पुकारत हे मोर भाई
चिरई-चिरबुन मया के बोली बोलत हे
तुरह जवई जा देख जिहाँ खऊलत हे
गाँव के बईला-भैईसा, गया-गरूवामन
मया के आसु रोवत हे
हमर जतन कराईया हा
शहर मा जाके बसत हे
भुईया दाई ला छोड़के
मनखे हा शहर डहर रेगत हे
आज के लईकामन खेती-खार ल छोड़त हे
पढ़-लिख के शहरिया बाबू बने के सपना देखत हे
गाँव ला छोड़ शहर मा जाके बसत हे
नौकरी पाये के खातीर भुईया दाई ला बेचत हे
जम्मो मनखे हा शहर के सपना देखत हे
येला देख भुईया दाई करत हे गोहार
छोड़ के झन जा भैईया शहर के द्वार
हेमलाल साहू
बहुत बढिया कविता लिखे हो हेमलाल साहू जी | एकर बर आप ल बहुत बहुत बधाई |
आप ल बहुत बहुत धन्यवाद भैया जोन हमार रचना ल पसंद करेव । जय जोहर
आपको भी बहुत बहुत धन्यवाद महेन्द्र देवागन जी।
छत्तीसगढ़ के सिरतोन पीरा ल लिखे हच संगवारी …बढ़िया रचना हे…गाड़ा-गाड़ा बधाई…..जय जोहार
हेमलाल भाई अपन whatsapp के नंबर ल दुहु का
आपको बहुत बहुत धन्यवाद भैया। लेकिन मैं वाट्साप नी चलावा भाई।
बहुत मार्मिक रचना हे, बधाई हो
बहुत बहुत धन्यवाद जो आपमन रचना ला पसंद करेव विजेन्द्र कुमार वर्मा जी। जय जोहार