मोर छत्तीसगढ़ के भुंइया

मोर छत्तीसगढ़ भुंइया के,कतका गुन ल मैं गांवव |
चन्दन कस जेकर माटी हाबे,मैं ओला माथ नवांवव ||
ये माटी म किसम किसम के, आनी बानी के चीज हाबे |
अइसने भरपूर अऊ रतन, कोनो जगा कहां पाबे ||
इही में गंगा इही में जमुना, इही में हे चारो धाम |
चारों कोती तेंहा किंचजरले, सबो जगा हाबे नाम ||
आनी बानी के फूल इंहा, महर महर ममहावत हे |
हरियर लुगरा धान के पाना, धरती ल पहिनावत हे ||
आनी बानी के रिती रिवाज, दुनिया ल लुभाथे |
गुरतुर बोली इंहा के संगी, सबला बने सुहाथे ||
कहां जाबे ते काशी मथुरा, कहां जाबे कुंभ के मेला |
सबो धाम तो इंहा हाबे, सबले बढ़िया राजिम मेला ||

Mahendra Dewangan

महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया (कवर्धा)
मो. 8602407353

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4 Thoughts to “मोर छत्तीसगढ़ के भुंइया”

  1. Hemlal Sahu

    बहुत ही सुन्दर रचना देवांगन जी बधाई हो

  2. Mahendra Dewangan Maati

    हमर रचना ल पढ़ेव अऊ पसंद करेव एकर बर धन्यवाद हेमलाल साहू जी |
    अइसने मया बनाय रखहू | जय जोहार

  3. बहुत सुन्दर रचना हे

  4. BEDRAM SAHU

    आप मन के रचना हा सिरतोन मा बड सुग्घर हे गा संगवारी गुरतुर बोली मा मिसरी घोराए हे आप मन के बानी मा

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