एक बीता पेट बर

परउ परिनिया
दूनों परानी ।
धरे बासी
चटनी पानी ।
कोड़े फेंके
ढेला ढेलवानी ।
पेरथें जांगर
तेल कस घानी –
एक बीता पेट बर ।
तिरवर मंझनिया ,
तपत घाम ।
भूंजत भोंभरा
लेसत झांझ ।
पेलत झेलत
कूदत डंगोवत ।
लहकत डहकत
तलफत झकोरत –
एक बीता पेट बर ।
टूटगे कनिहां ,
हाय राम ।
सुख हे सपना
दुख के काम ।
बुधरू बुधनी
बेटा -‌ बेटी ।
उघरा नंगरा
मांगे रोटी –
एक बीता पेट बर ।

-गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा

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6 Thoughts to “एक बीता पेट बर”

  1. Hemlal Sahu

    बहुत ही बढ़िया रचना बधाई हो जय जोहार

    1. h.s.dewangan

      abhi sirf yaado me hai ye

  2. sunil sharma

    सुग्घर रचना देवांगन जी…बधाई हो

    1. h.s.dewangan

      mere baaboojee kee kavitaa hai
      yah

  3. शकुन्तला शर्मा

    सुघ्घर कविता । एक बित्ता पेट बर , जिनगी ल पेरत – पेरत , जिनगी ह सिरा जाथे फेर जीते – जियत मनखे के तृष्ना हर कभु नइ सिरावय । बहुत – सुन्दर वर्णन करे हावय ग । मार्मिक – कविता ।

    1. h.s.dewangan

      mor babooji ke kavita aay !aap la pasand aais tekar bardhanyavaad 1

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