सिरपुर के पुन्नी घाट मा, जन सुनवाई के होय,बइठका ह समापन होइस। सब अपन ,अपन गांव, घर जाय लगिस।पेशवा शासक के पैेरोकार अपन अपन घोडा म सवार हो के दर, दर रइपुर निकलगे। पुन्नी संघ के जम्मो सदस्य मन ,घासी के तीर म आ गे । चारो मुुडा ल, घेर के गोलियावत हे । अउ दीया म ,बतर कीरी बराबर सब झिकावत हे ,एक के ऊपर एक झपावत हे ।घासी म तो ज्ञान हे, विज्ञान है ,ध्यान हे, सुलझे हुए सियान हे ।सब मनखे ह का ? जीव, जंतु ह, घलो जेमा ज्ञान के परख हे, सकलावत हे ।अउ सब के सब कुछ न कुछ पूछे बर उल्फुलावत हे ।
धनमत ह कहिथे …..गांव, गरीब ,किसान ,जीव ,जंतु अउ जहान बर ,तोर सोच, विचार अउ भाखा, बानी ह, हमर मन के दिल दिमाग म, एक हलचल पैदा कर देहे ।हिरदे म,
खलबली मता दे हे ।कि हमु मन, ये देश ,दुनिया अउ ब्रम्हाण्ड म धन, धरा अउ धाम ल ,सत संस्कृति अउ संस्कार ल ,कइसे सिरजावन, अउ कइसे ये ला जन जन म बगरावन।
सगन ह कहिथे …….. घासी ! तोर मुख मंडल ल देखे सेे तो मोला अइसे लगथे।कि तेंह तो सत के एक अखंड बरत मशाल अच।जेकर तीर म जे ह ओध जही ,अंजोर म जे ह जगजगा जही ओ ह दूरिहा ल ही ओकर हिरदे के बाती ह बर के उहू ह, एक मशाल हो जही ।
केंवरा ह कहिथे ……अउ इही मशाल के अंजोर म देश, दुनिया अउ ,सारा जहांन ह जगजग ल उजियार हो जही । फेर सब सफा, सफा दिखे लग ही ।अउ सतनाम के रस्ता ह झके लग जही ।जेमा चल के सब सुखे सुख जिनगी जिहि ।
बसंता ह कहिथे ………ये पुनिया दीदी,ये पुनिया दीदी ,घासी ल हमन सब ल ,एकक झन ल चिन्हवा । जब जब हमन ल ,येकर संग मांगे पर पडही, तब तब हमर एक्के भाखा म, दाउड के आही ।
सुखवंतीन ह कहिथे …… पुनिया दीदी ! कल ये घासी ल, हमर घर बइठारे बर लाहू । चिन्हे जाने रइही तबहे तो कभु इंकर घर चल देबो त बइठ ,उठ कइही ।नइते डेरउठी च, ल कोन अव कहि दीही, खडे च रहि जबो।
सब के सब अपन अपन घर म ,बइठारे बर बुलाय लग गे ।कोनो कहिथे ….. कल के पेज पानी हमर घर राइही ,पुनिया दीदी घासी अउ सफुरा ल तोला हमर घर लाय बर लगही।
कोनो कहिथे …हमरो घर आ जही अपन गोड के धूर्रा ल झर्रा दीही। हमरो घर ह पबरित हो जही ।
कोनो कहिथे …हमरो घर एक कौंरा खा लिही अउ एक घूंट पानी ल पी ली ही ।
कोनो कहिथे …..हमर घर नइ खाही ते ,बइठ के तो आ जही, हमरो मन ह थिर हो जही ।
कोनो कहिथे …….हमन का खवा पिया सकबो बहिनी, एक लोटा पानी ल तो पुरबो ।
कोनो कहिथे ….हमरो घर आ के ,अंगना ल खूंद दीही बहिनी।
कोनो कहिथे …..हमन का मान ,गउन करे सकबो ?, मुंह के सुग्घर बोली ,भाखा ल तो दे सकबो । इही मुंह ह ,आ कहिथे। इही मुह ह, जा कहिथे ।
सबके दया ,मया ,पियांर, पिरीत ल देख के कोनो ल बिहनिया, कोनो ल मंझनिया ,कोनो ल संझा, अलग अलग बेरा म, अपन अपन घर नेवता, हिकारी करे के पारी बंधा डरिस
पुनिया दीदी ह कहिथे ,…
ठीक हे , रे मोर बहिनी हो । तुंहर बात ल कइसे नइ मानहू ।मोर दुलउरीन सफुरा अउ घासी ल सबके घर बइठारे बर लाहूं ,अउ एकक झन ल चिन्हाहूं।सब अपन ,अपन मन के शक ,सुभा अउ गियान ,गुन के बात ल पूछ लुहू ।उहू ह कुछू कांही पूछही, तेला तुहू मन बता दुहू।उहू ह इंहा कांही खोजे बर आय हे ।का जनी ? कोन जंगल, पहार म, जीव,जन्तु अउ जिनावर म ,घास पूस मा साजा ,बीजा, देवदार म ,कण ,कण म या जीव जगत चराचर म ।का जनी ? काकर हिरदे से , बोली भाखा से ,देखे से, सुने से ओकर खोज ह ,मन के दउड ह, थिरथार हो जही ,शांत हो जही ।
चलव चलव ,अपन अपन घर चलव बहिनी हो रतिया ह बाढत हे……. ….पुनिया ह कहिथे। त बसंता ह ,ओकर हाथ ल पकड के रोकत कहिथे …..पुनिया दीदी !ये हमर संगी सहेली के मजमा ह ,छोड़न नइ भावत ये । त चलव, एक गीत गा लेथन, नाच लेथन ,गुनगुना लेथन ,अउ मया के एक्के ठो गठरी म सब के सब बंधा लेथन।सब खुश हो जथे।गोल झूम जथे।अउ घूम घूम के नाचत हे ,गावत हे…… ………
पुन्नी के रात हे ,
नदिया के घाट हे ।
मिल जुल के रहिबो संगी ,
रतिया बीते जात हे।
सुख सोहर गुठियालव दीदी,
दुखे बिसरात हे ।।1।।
चलव मया पिरीत के अइसे बंधना,
घर घर म बांध देबोन ।
भोजली ,जंवारा ,गजामूंग
अउ महपरसाद बदवाबोन।
मित मितानीन अउ सहनइन,
संगी सहेली कहिबोन ।।2।।
चलव, आवव बहिनी हो ,
मिल के गावव दीदी हो।
सुख सोहर गोठियालव संगी हो,
इही म दुख बिसरात हे ।
पुन्नी के रात हे ,
नदिया के घाट हे ।
मिलजुल के रहिबो बहिनी ,
रथिया बीते जात हे ।
करिया ,गोरिया अउ परदेशिया ,
एके दुआरी म आही।
धरम, करम ,भय ,भेद मिटा के ,
एके थारी म खाही ।
सत ,अहिंसा ,प्रेम ,दया ह
सबके मन म सुहाही।।3।।
चलव आवव बहिनी हो ,
मिल के गावव दीदी हो ।
सुख सोहर गुठियालव दीदी हो ,
इही म दुख बिसरात हे ।
पुन्नी के रात हे ,
नदिया के घाट हे।
मिल जुल के रहिबो संगी ,
रतिया बीते जात हे ।
अइसे गावत, हंसत ,खिलखिलावत , मिल ,भेट करत,मत भूलाहू ,हमरो सुरता राखे राइहू काहत सब ल पुनिया दादी ह जय सतनाम ,जय सतनाम के जय जोहार करत घासी , अंजोरी अउ सब अपन अपन गांव ठांव म चले गिस ।
* जयसतनाम *
भुवनदास कोशरिया
भिलाईनगर
9926844437