आज के समय म वर्तमान म जियइया मनखे कमती देखे बर मिलथे, सब बड़े-बड़े सपना ले के चलत हावंय अउ वो सपना म अपन वर्तमान ल खतम करत हावंय। कई झन लइका मन डॉक्टर इन्जिनियर बने के चक्कर म बारवीं के रिजल्ट ल खराब कर देथें अउ ड्राप ले के दू-तीन साल तक परीक्छा देतेच्च रहिथें, कखरो चयन हो जथे, कतको झन रुक जथें। सपना ह सपनाच्च रहि जथे।
बहुत दूरिहा के सोचबेत अइसने होथे। मनखे ल अपन वर्तमान ल देखना चाही, उही म जीना चाही। कहिथे न ”सरग देख के गगरी फोरत हे” हाना ह अइसने नइ बने हावय। बदली ल देख के बरसात आगे कहिके हंड़िया ल फोर देथें। फेर बरसात ह दूरिहा रहिथे। थोरक वर्तमान के बारे म सोचतिन त जुड़ पानी घलो मिलतिस, बरसात के आत ले तो रुकना चाही। बड़े-बड़े सपना देख-देख के आज के युवा मन बेरोजगार होवत जात हें। अपन आस-पास ल देखव अउ जेन जगह मिलय उही जगह सिक्छा प्राप्त करव। वइसने जेन जगह नौकरी मिलत हावय उही ल पहिली अपनावव बाद म थोरिक ऊपर चघव। धीरे-धीरे अपन आप ऊंचाई म पहुंच जहू। वर्तमान ह सच आय उही ल अपनावव।
-सुधा वर्मा