एक दिन कुम्हार ह माटी ल सानके चिलम बनावत रहिसे। चिलम बनावत-बनावत जाने कुम्हार ल काय सुझिस कि ओहा ओ चिलम ल मिझार दिस अउ ओ माटी ल सानके चाक ऊपर चढ़ा के मरकी बनाय लागिस। चाक ऊपर माटी ल चघाएच रिहिसे कि माटी बोले लागिस-“मेहा माटी बनके धन-धन होगेव कुम्हार बाबू तोर जय होवय”। कुम्हार माटी ल पूछिस कि तय कइसे धन-धन होगेव कहिथस वो माटी?
ता माटी कहिस कि “मोला चिलम कहुं बनाये रहितेस कुम्हार बाबू त खुद जरतेस अउ दूसर के छाती ल घलो जरोतेस। अब तय मोला मरकी बनाबे त खुद जुड़ाबे अउ मोर मरकी के जउन पानी पिही तेखरो छाती ल जुड़वाबे। कुम्हार के आँखी म माटी के गोठ ल सुन आँसू भर गे अउ ओ दिन ले ओहा चिलम नइ बनाय के प्रन लेहे हे।
सुनिल शर्मा “नील”
थान खमरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
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