सरला शर्मा का यह छत्तीसगढ़ी उपन्यास अपनी विशिष्ट शैली के कारण पठनीय है। यह उपन्यास यात्रा- संस्मरण का पुट लिए हुए सास्कृतिक-बोध के लिए आधार-सामग्री प्रदान करता है। छतीसगढ़ की सास्कृतिक चेतना का स्वर उपन्यास के पात्रों, स्थलों और उसकी भाषा में गूंजता दिखाई देता है। इस उपन्यास में शासन के स्तर की अनेक योजनाओं का प्रचार-पसार है तो दूसरी ओर गाँवों के समग्र विकास का सपना भी है। इस सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश की कुछ झलक भी इसमे प्रदर्शित है।
छत्तीसगढ़ की जांज़गिरी मिठास इस उपन्यास की भाषा का प्राण-तत्व है। उपन्यास के पात्रों के साथ घुल मिलकर पाठक छतीसगढ़ के रतनपुर, बिलासपुर और मल्हार के साथ- साथ संपूर्ण छतीसगढ़ को जीता है ।
इस सास्कृतिक चेतना के उत्सव में यह उपन्यास पाठक को अपनी आत्मीय सहभागिता के लिए आहवान करता है ।
-डॉ. सुधीर शर्मा
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