पतरिका म नवां परयोग (मोर जानकारी म) के रूप में भगत सिंह सोनी जी द्वारा अनुवादित कविता ल पढेंव, भगत सिंह सोंनी जी ह छत्तीसगढ के वरिष्ठ साहित्यकार आय । उमन अपन भावना के सुन्दर संप्रेषण अपन रचना मन म करथें जउन म छत्तीसगढ के स्वावभाविक सहजता ह फलियार के नजर आथे । संकलित ‘दूर देस के कबिता’ मन के हिन्दी म अलगे महत्व हो सकत हे फेर छत्तीसगढी भाखा अउ परम्परा म अइसन कबिता के गहिरी सोंच हा लउहा ले हबरात नई दिखे । हिन्दी जइसे गहिरी असहज कबिता अभी छत्तीसगढी म जन जन के जघा चिटिकन गियानी मन बर ही हो सकत हे । रामचरित मानस ले लेके आल्हा उदल अउ कबिरा के भजन तक छत्तीसगढ में जनप्रिय होये के कारन उखर सहजता ये । अइसन कबिता ला समझे बर दिमाग म जोर डारे ल परथे । अनुवादित साहित्य छत्तीसगढ म पहिली भी आये हे फेर ओमा रहस्य अउ गहिरी बात नइ हे, मैं छत्तीसगढी साहित्य ला अतका महाशास्रीय अउ गंभीर नइ देखना चाहंव जेखर ले ओला सामान्य जनता पढ समझ झन सकय । छत्तीसगढी साहित्य। अधिसंख्यक गवईहां ‘मन’ ले उदगरित साहित्य ये ।
येमा संकलित दूसर कबिता में प्रो.अनिलकुमार भतपहरी के कबिता जंगल राज ह अभी के समें के ठउका बरनन ये, रचना सुघ्घर लागिस । संकलित कहिनी मन म डा.परदेसी राम वर्मा के कहनी ‘बुडगे सूरूज’ ला पढ के आंखी ले आंसू चुचवाय लागिस, वर्मा जी कहनी लिखे म गुनीक हें, गांव समाज के बरनन उंखर कलम ले पढना साच्छात वो कहिनी ला आंखीं के आघू सनीमा जइसे देखना होथे । कहिनी म छत्तीसगढ के अभी के परिस्थिति म तुरकहिन जमीला बी, मेहरूनिन्सा अउ मराखन सजर के गांव म आपसी भाईचारा अउ परेम के चिरइया मन ला आज गांवों गांव नवा उमजे रामू के लउठी ले बिदारे के उदीम अउ जात पात के बिलगाव कईसे समावत हे तउन ला बने सुघ्घर बताये हे । कहिनी ‘पिंजरा’ म निशीत कुमार पाण्डेय जी हा सुआ के माध्यम ले परानी परानी के निस्वारथ मया ला सुघ्घर गांव के परिवेस म प्रस्तुत करे हें । कहिनी ‘कछेरी’ म अशोक नारायण बंजारा ह गांव म अरोस परोस म होवत झगरा लडई लुकी लगा के बाढत अउ परेम म पोटारत माढत बताये हे । कहिनी ‘संझा पूजा’ म प्रो. बांके बिहारी शुक्ला हा तइहा के किस्सा ल अतेक लेवना मिला के गुरतुर प्रस्तुत करे हे कि मुनगाडीह के मरारिन अमीला के बडका हिरदे के मया म छत्तीसगढी सुन्दरी परगट हो गए हे ।
संकलित रामकुमार वर्मा जी के ‘बबा के बरा’ नाटक ह मरनी हरनी म दुब्बर ले दू असाढ कस परिवार समाज ला खवई देवई संग कलेवा देवइ के प्रथा ला बंद करे के बढिया संदेसा देथे । रामकुमार जी अपन रचना मन म संदेसा पक्ष ला सदेव परबल रखथें जउन म उमन सुफल होये हें । आघू संपादक महोदय अपन निबंध म धीर गंभीर बात ला डॉ.गीता पटनायक के पुस्तक ‘लोकगीतों की दुनिया’ के बारे म लिखत गठिया के धरे के बात कहिंथे – ‘रचना के संग पाठक, अध्येता ल रमन करना चाही।’ आघू विद्याभूषन मिश्र के कबिता संग्रह ‘फूल भरे अंचरा’ के जम्मा पहलू के निरवार हमर भाखा के विद्वान डॉ. चित्त रंजन कर जी हा अइसन करें हें जेखर ले एक ठन पाठ के दू पाना म जम्मे संग्रह ला पढे के मजा भर देहें हें ।
संकलित बियंग म दुरगा परसाद पारकर ह बने शव्द शिल्पी आंय उंखर बियंग ‘जय हिन्द गुरूजी’ नारी परानी के उखलहा संउख अउ परोसी के डाह म सीतल पानी डारथें । संगें संग हरिहर वैष्णव जी के लछमी जगार ल छत्तीसगढी म अनुवाद के संपादक महोदय के सरलग प्रयास बहुत सुन्दर हे काबर कि ये हर हमर धरोहर ये, हिन्दी, हल्बी, अंग्रेजी संग अब ये ह हमर छत्तीसगढी भाखा म घलो जीवंत हो जाही ये बात के हमला खुसी हे ।
छत्तीसगढी भाखा के रंगबिरंगी फूले महमहावत फुलवारी ले छांटे निमारे सुघर गमकत फूल पाना के ये पूजा के टुकनी छत्तीसगढ दाई के अनमोल भेंट ये । बख्शी जी के बारे म लोगन कहिथें कि ओमन अपन सरस्वती के संपादन काल म कतको लेखक कबि मन के रचना ला अपन संपादन कला ले परिष्कृत कर दीन । कतको हतास लेखक मन ला साहित्यकार जगत म ससक्त रूप ले उठा दीन, मोर समझ म संपादक के इही आसिरवाद ले साहित्य फलथे फूलथे । संपादक नंदकिशोर तिवारी जी छत्तीसगढी साहित्य के अइसनहे बाना धरइया संपादक यें, इनला गाडा गाडा बधई ।
छत्तीसगढी लोकाक्षर, अंक 42,
जुलाई-अगस्त-सितम्बर 2008, संपादक – नंदकिशोर तिवारी
संपर्क – विप्र सहकारी मुद्रणालय मर्या.,
तहसील कार्यालय के बाजू में, नेहरू चौंक, बिलासपुर (छ.ग.)
प्रति अंक – 25/-, वार्षिक – 100/-, आजीवन – 1100/-
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संजीव तिवारी