अब बिहाव कथे, लगा के देख

केहे जाथे कि जन्म बिबाह मरन गति सोई, जो विधि-लिखि तहां तस होई । जनम अउ मरन कब, कहां अउ कइसे होही ? भगवान हर पहिली ले तय कर दे रथे । वइसने ढ़ंग के बिहाव कब, कहां अउ काखर संग होही ए बात के संजोग भगवान हर पहिली ले मढ़ा दे रथे । फेर अइसन सोच के घर मं बइठे रेहे ले काम नइ चलय । दाने – दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम कहिके चुप बइठे रहिबे तब दाना तोर पेट मं नइ जावय । नसीब के दाना ल पेट मं डारे बर हाथ मुंह चलाय बर परथेच । जोड़ी – जांवर उपर ले लिखा के आय रथे कहिके कहूँ कोती आबे जाबे निही तभो नइ बनय । दस जगा आय जाय बर परथे तभे सगा सजन बनथे । बहुत कम भागमानी रथें जेन मन के एके घांव के आय जाय ले या निते घर बइठे सगा आथे अउ चट मंगनी पट बिहाव घला हो जाथे अइसन लाखों मं एक हो सकथे ।

आदमी हर सोचथे आन अउ होथे आन । समधी सजन अपन बराबरी निहिते ओखर ले बड़हर मं बनाहुं कहिके सोंचथे फेर आज के बेटा-बेटी मन पढ़त-लिखत, नौकरी-चाकरी करत अपन-अपन जिनगी के संगवारी खोज लेथें अउ बालेबाला कोट बिहाव, जयमाला बिहाव घला कर डारथें । ये हालत मं कुल मं कलंक लगा दीस कहिके ओ बहु बेटा ले मुंह मोर के अपन परवारिक जिनगी मं जहर घोरे मं कोई फायदा नइये । जब हमर धरम नीति हर कहि दे हावय कि जोड़ी जांवर भगावन घर ले लिखा के आय रथे तब एमा मलाल करे के कोई बात नइए । आजकाल के टूरा टामका मन फिल्मी स्टाइल मं एक दुसर ले पिंयार मया मं समाजिक परवारिक बंधन के सेती फैल खाथें तहां एक दूसर बर जिये मरे के किरिया खाय हन कहिके आत्महत्या करथें । येहू मन ल सोचना चाही कि जोड़ी जांवर तो उपर वाला तय करे हावय । हमर सोचे ले का होही अइसन सोच के अपन आप ल अकाल मऊत ले बचाना चाही ।

एक ठन हाना हावय – घर कथे बना के देख, अउ बिहाव कथे करके बता अब ये हाना मं थोकुन सुधारे के जरूवत हावय । अब बोलना चाही बिहाव कथे तैं लगा के देख । अब बिहाव करना बड़े बात नई होय अब बिहाव लगाना बड़े बात होगे हावय । बातचीत पक्का होगे, लड़की ल पईसा धरा के आगे, गुड़ नरियर खा डारिन अउ फलदान होगे तभो ये मत सोचव के बिहाव लगगे । लड़की वाला ल इंकार करना रथे तहाँ कतकोन ओखी मढ़ाके, बहाना गढ़ के लड़का वाला के रस ल टोर देथे लड़का वाला के चेत हर दईज डोल कोती रथे । देखथे कि दाईज डोल कमसल हावय तहाँ रास बरग नइ माढ़त हावय कहिके लड़की वाला के मुंह ल तोप देथे । दूनों कोती ले तन – मन-धन के सौदा पटगे तहां रास बरग नइ माढ़य तभो ले वर वधु के चालू नाव अउ ओहूं मे नइ माढ़य तब नाव ल बदल के रास बरग ल मढ़ा डारथें ।

(२)

पहिली जमाना मं संबंध जोरे के पहिली खानदान, अचार-विचार, संस्कार देखे जावय, अब लड़की वाला मन खेतखार, मकान, दुकान, नौकरी अउ पईसा देखथे । दुल्हा के चाल चलन चुल्हा मं जाय । लड़का वाला मन लड़की के रंग, कद, काठी अउ दईज डोल ल देखके संबंध जोड़थें । चरित्र धन ल आज दुनो पार वाला नइ देखंय – सोचंय । बिहाव होय के बाद दमान्द हर दरुहा, जुआरी हावय कहिके पता चलथे तब लोगन लड़की के नसीब मं उही लिखाय रिहीस, तब हम का करबोन । काखरो पेट मं कऊनो थोरे खुसरे रथे । सब बने बने दिखीस तब हम बेटी ल ओखर घर हारे हावन कहिके अपन लड़की उपर होवत अत्याचार के जिम्मेदारी ले भागना चाहथें । एखर कलपना ल एक न एक दिन भोगेच बर परही । बहु हर कुकाट निकलगे तब लड़का वाला मन घला ‘दिखे बर चाम सुन्दर पादे बर ढमक्का’ कहिके अपन जिम्मेदारी ले बांच नइ सकंय । ये सब लफड़ा ले बांचे बर ‘पानी पीये छान के, अउ सजन बनाय जानके’ के रस मं रेंगना चाही ।

पहिली लोगन लड़का वाला के जमीन ल महत्तम देवंय, अउ जमीन के संगे संग लड़का के नौकरी-चाकरी,रोजगार-धंधा देखे जाथे । आज बिहाव लगाना मुसकिल काम आय । लोगन देखावाबाजी मं चुकुल होवत हावंय । संबंध जुड़े के पहिली दुकानदारी करत रथे । लड़का स्टेशनरी दुकान खोले रथे अउ देखे बर जाबे तब दुकान ले जादा देखे जाय रथे तिंखर जेब में कलम खोंचाय रथे । बिहाव होय के चार छै महीना के गे ले सटर गिर जाथे । तब लड़का के बाप हर सफई देवत किंजरत फिरत रथे कि धंधा बने चलत रिहीस जलन खोरी मं जादू करदीन । जादा खोदा-खादी करबे तब सीधा बहू कोती बात ल ओधावत ओला बद्दी लगावत कहि देथें । कि बहु कुलछनी आय, एखर पांव धरते हमर घर छुत समागे, हाय हमागे । बिहाव के लगत ले लड़का-लड़की देखे बर अवई-जवई मं अउ सगा आथें तिंखर खवई-पियई मं घला एक बिहाव के खरचा हो जाथे । फटफटी के दु चार ठन टैर टीव घंसाके नावा फिट हो जाथे फेर लड़की-लड़का फिट-फाट होबे नइ करय । कतकोन झन निरास होके कुंअर बोड़का -कुंअर बोड़की जिनगी पहाय बर घला सोच डारथे । नसीब ल दोस घला दे डारथे कि हमरे नसीब मं कानी-खोरी, कनवा-खोरवा घला नइ लिखइस । कतकोन झन खुसमिजाजी मन तेरे नसीब मे मै हूँ कि नहीं, मेरे नसीब में तू है कि नहीं । अइसन गावत गुवात अपन समय ल हांसत हांसत पहा देथें ।

बन्धु राजेश्वर राव खरे

अयोध्या नगर, शिव मंदिर के पास

महासमुन्द (छ.ग.)पिन – ४९३४४५

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