चढ़के सरग निसेनी सुरूज के मति छरियागे
हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे।
बढ़े हावे मंझनिया संकलाए हे गरूआ अमरैया तरी
हर-हर डोलत हे पीयर धुंकतहे रे बैहर घेरी-बेरी
बुढ़गा ठाड़े हे बमरी पाना मन सबो मुरझागे
हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे।
भरे तरिया अंटागे रे कइसे थिरागे बोहत नरवा
बिन पानी के चटका बरत हे मनखे मन के तरूआ
चटका बरगे मनखे मन के तरूआ।
नदिया घाट घलो जाके मंझधार म संकलागे।
हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे।
घर के रांपा कुदारी खनत हावे माटी रे कि सान हर
बोहे झौंहा किसानीन देवतहे ढेलवानी रे मेंढ़ ऊपर
हां देवत हे ढेलवाती रे मेंढ़ ऊपर।
मेहनत बन के पसीना माथा ले बोहावत लागे।
हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे।
कहै भौजी कइसे जावौं तरिया रेंगत मैं जरै भोंभरा
पानी नइये खवइया बर रीता परे हे जमो गघरा
रीता परे हावै रे जमो गघरा
ढरकै कबले रे बेरा हर झटकुन कइसे रतियागे।
हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे।
नई सुमावै अब कोइली के तान हर आमा के डारा म न
गूंजत रहिथे रे झेंगुरा मंझनिया भर खार अऊ ब्यांरा म न
हां मंझनिया भर खार अऊ ब्यारां म न
लागै कबलै आशाढ़ रे भुइंया गजब अकुलागे।
हाय रे रद्दा रेंगोइया के पांव घलो ललियागे।