एक गाँव में एक झन बुधारू नाम के मनखे राहे ।वोहा बचपन से अलाल रहे।ओकर दाई ददा ह ओला इस्कूल जाय बर अब्बड़ जोजियाय ।त बुधारू ह अपन बस्ता ल धर के निकल जाय,अऊ चरवाहा टूरा मन संग बांटी भंवरा खेलत राहय।छुट्टी होय के बेरा में फेर बस्ता ल धरके अपन घर आ जाय ।
बुधारू ह जइसे – जइसे बाढ़त रिहिस ओकर आदत ह बिगड़त जात रिहिस ।वोहा अपन संगवारी मन संग लुका – लुका के बिड़ी अऊ गांजा पीये ।तम्बाकू अऊ गुटखा घलो खाय।कोई कोई लइका मन ह ओकर ददा ल घलो बताइस ।ओकर ददा ह बुधारू ल अपन आदत ल सुधारे खातिर बहुत समझाइस ।फेर बुधारू ह कहां सुधरने वाला हे ओकर तो आदत बिगड़गे रिहिस ।
अब बुधारू ह बिड़ी गांजा अऊ गुटखा खाय बर अपन घर से पइसा तक चोराय बर धर लिस।
काबर रोज रोज फोकट में कोन खवाही ।एक दू बार ओकर ददा ह पइसा काबर चोराथस कहिके दू चार राहपट मारे तक।त ओकर दाई ह लइका जात ए बाद में सुधर जाही कहिके छोड़ा देवे।
धीरे धीरे बुधारू ह जवान होगे फेर ओकर आदत ह नइ सुधरिस।अब तो वोहा बड़े चोरी करे ल धर लीस ।ओकर दाई ददा ह बुधारू के बिहाव कर दीस अऊ अपन डऊकी लइका ल पोस कहिके अलग बिलग कर दीस ।
अलग बिलग होय ले बुधारू के ऊपर जिम्मेदारी बढ़गे ।अब ओला चिंता होय लागिस।फेर कभू काम तो करे नइ रिहिस तभो ले काकरो काकरो घर रोजी में जाय अऊ दार चांउर बिसा के लाय ।ओकर बाई तक ह कमैलिन राहे ।वहू ह अपन काम बुता में जाय अऊ घर के खरचा चलाय।
बुधारू के कमई ह अइसने राहय ।कभू मन लागे त जाय नही ते घूम के दिन ल पहा दे।पुराना आदत ह कहा ले छुटही ।बीच बीच में चोरी करे के आदत बनेच राहे।मउका देख के काकरो न काकरो घर के रूपया पइसा ल चोरा लेवे।
ओकर बाईं ह तक ओला बहुतेच समझाय के चोरी झन करे कर।मेहनत करके पइसा लाबे तीही ह पुरही ।ओतका बेर बुधारु ह हव हव कहिके बात ल टाल देवे।
एक दिन बुधारू के बाई चमेली ह बुधारू संग नंगत ले झगरा होइस, अऊ कहिस के हमर बेटी ह अब बाढ़गे हे । सगा सोदर देखे बर घलो आवत हे । तेहा अपन आदत ल नइ सुधारबे त मेहा अपन मइके जावत हो तेहा कुछु कर।
अतका बात ल सुनिस त बुधारु के चेत चढ़गे ।वोहा अपन बाइ ले माफी मांगीस अऊ कहिथे के आज से मेहा कोनों गलत काम नइ करो।तेहा घर छोड़ के मत जा।रोज काम बुता में जाहूं अऊ सुघ्घर बेटी के बिहाव करबोन ।
अब बुधारु अऊ ओकर बाईं काम बुता म जाय अऊ घर के खरचा चलाय अऊ थोर थोर बचत भी करे।
समय ह निकलत गीस ।बेटी बर बढ़िया सगा आइस अऊ बात ह तक पक्का होगे।बुधारु अऊ चमेली दूनो झन बिहाव के तैयारी करे लागिस।बेटी बर बढ़िया सोना चांदी के गहना गुथा लिस।अऊ जतका सामरथ रिहिस ओतका समान लीस।
दूनो झन बने खुस रिहिसे के बेटी के बने बिहाव हो जाही त हमू मन गंगा नहा डारबो।चिंता फिकर ह दूर हो जाही ।सगा सोदर सब घर नेवता हिकारी होगे ।बिहाव के बाजा बाजत राहे।अऊ सब झूम झूम के नाचत राहय।
काली जुवार बर बारात ह अवइया हे।सब तैयारी ह पूरा होगे रिहिस ।
अचानक बुधारु के बाई ह अलमारी कोती देखिस त अलमारी ह एक कनिक खुले बरोबर दिखिस।ओहा लकर धकर जाके अलमारी ल खोल के देखिस त ओकर होश उड़गे।सब गहना गूंथा अऊ रूपिया ह चोरी होगे रिहिसे ।ओहा जोर जोर से छाती पीट पीट के रोय लागिस।सब आदमी सकलागे।बुधारु ह आ के देखिस त उहू ह फूट फूट के रोय लागिस।
आज ले दे के करजा बोड़ी करके गहना गूंथा ले रेहेन ।सब चोरी होगे ।बुधारू ल तो जइसे सांप सूंघ गे रिहिस।ओकर मुंहू ले तो बोली नइ फूटत रिहिसे ।
चमेली के तो रो रो के बुरा हाल होगे रिहिसे ।वोहा मुरछित होके गिरगे ।सब आदमी मन ह ओकर मुँहू म पानी छीत के होस मे लाइस ।रोवइ के मारे ओकर बुरा हाल होगे रिहिस ।
बुधारु ह चमेली ल समझाय बर धरीस त चमेली ह कहिथे।ये सब तोर करनी के फल आय।आज हमन भुगतत हन । तेहा पहिली अइसने गलत काम नइ करतेस ते हमरो घर कहां ले चोरी होतीस ।
अइसे बोलत बोलत ओहा फेर अचेत होगे।
बुधारू ह तक दुख के मारे बोल नइ सकत राहे ।ओहा अपन पीरा ल कोन ल बताय।
आज ओला मने मन बहुत पछतावा होवत राहय अऊ मन मे सोंचे लागिस के आज मोला अतका दुख होवत हे ।मेहा जेकर घर चोरी करंव उहू मन ल तो अतकेच दुख लागत रिहिस होही।मेहा ओकर मन के पीरा ल नइ समझ पाय रेहेंव ।हे भगवान आज मोला अपन करनी के फल देखा देस ।अइसे सोच के फफक फफक के रोय लागिस।
– महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
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माटी भाई जी पछतावा कहिनी बहुत बढ़िया है,ओला दूसर के दुःख के अहसास तो होथे