साहित्य म भ्रस्टाचार




हमर देस म कोनो छेत्र नइ बांचे हे जिंहा भ्रस्टाचार नइये। राजनीति म भ्रस्टाचार ह तो काजर के कोठी कस होगे हे। जेन राजनीति म जाथे वोकर उप्पर करिया दाग लगथेच। भ्रस्टाचार के पांव ह दूसर छेत्र म घलो पड गे हे। साहित्य छेत्र जिंहा अब तक मनीसी, चिंतक, साधु-संत जइसन मन के बोलबाला रिहिस आज उहां नकलची अउ भ्रस्ट लोगनमन के दबंगई चलत हे। दूसरमन के किताब ल अपन नांव ले छपवइया मन के घलो कमी नइये। छत्तीसगढ के साहित्य जगत म घलो अइसन होवत हे। पंडित मुकुटधर पांडेय, पदुमलाल पुन्नालाल बक्सी, आर.डी. तिवारी, लोचन परसाद पांडेय, डा. बल्देव मिस्र जइसे विभूति मन के माटी म आज काकर मन के बोलबाला हे येला सहज म देखे जा सकत हे।
सरकार ह अइसन मन ल भाग्यबिधाता बना दे हे जउन मन ये देवता भुइंया ल बाहिर वाले मन बर चरागन बनाके छोड दे हें। राज्योत्सव के कारयकरम मन म इहां के विभूति मन के उपेक्छा, तिरस्कार, भेदभाव कोनो नवा बात नोहय। बारम्बार अवाज उठाय के बाद सरकार के कान म तको नई रेंगत हे। राज्य पुरस्कार म बंदरबांट होथे, तेनो ल सबो जानत हें। परदेस म साहित्य म भ्रस्टाचार के चलत ए खेल ह कब रुकही? ऐला कोन रोकही? कभु रुकही के नई, तेला सरकार जानंय या फेर भगवान !

रामेश्वर वैष्णव
प्रोफेसर कालोनी, रायपुर



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