सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! रूख-राई ला काटे ले अबड पाप होथे रे। फेर हमन नई मानेन। बिन आँखी-कान के जम्मों रूख-राई ला काटेन। सियान मन कहय-बेटा! रूख-राई लगाए ले संतान बाढथे रे! सही तो आय। अब के संतान मन के खाए पिए बर साग-भाजी घलाव कम होवत हे। का सोंच के हमन तइहा के बात ला नई मानेन। अब मुड घर के पछतात हन। अभी भी कुछु नई बिगड़़े हे। हिन्दी मा कहावत हवै-जभी जागो तभी सवेरा। अभी भी अगर हर आदमी अपन जीवन मा सिरिफ एक ठन पेंड लगाके अउ ओखर रक्षा करय तो भुइया हर फेर हरा-भरा हो जाही। फेर अतका होय के बाद भी हमर आँखी नई उघरत हे। हमन न खुद पेंड लगावन न अपन ला लगाए देवन काबर कि रहे बर तो भुइयाँ न हे तब रूख-राई बर कहाँ ले भुइयाँ पाबो? फेर संगवारी हो अपन घर मा जगह नई हे तो घर के बाहिर मा फेर तभे हमर कलियान होही नई तो आने वाला समय मा अतका बाढ आही के हमर धरती महतारी हर पूरेच पानी मा डूब जाही। जब हमी नइ रहिबो तब जिये के का सुख ला पाबो। केदारनाथ के बाढ ला देखिच डरेव अब का अगोरत हवव ?
सावन के महीना मा जउन-जउन पेंड लगाए के मन हवय लगा डारव। हमर संतान मन ए रूख-राई के आसीरवाद लेके फरही-फूलही। नइ तो रूख-राई के सुखाए के पहिली हमी सुखा जाब । तभे तो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! रूख-राई ला काटे ले अबड पाप होथे रे। सियान बिना धियान नई होवय। उँखर बात ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
– रश्मि रामेश्वर गुप्ता