बसंती ह अपन गोसइन बुधारू ल समझात रहिथे के – तेंहा रात दिन दारू के नशा में बुड़े रहिथस। लोग लइका घर दुवार के थोरको चिंता नइ करस ।अइसने में घर ह कइसे चलही ।दारू ल छोड़ नइ सकस ?
बुधारू ह मजाक में कहिथे – मेंहा तो आज दारू ल छोड़ देंव वो।
बसंती चिल्लाथे — कब छोड़े हस, कब छोड़े हस ? फोकट के छोड़ देंव कहिथस ।
बुधारू – अरे आज होटल में बइठे रेहेंव न,आधा बाटल दारू ल उही जगा छोड़ देंव ।
बसंती — हाँ तेंहा तो हरिसचंद दानी हरस ।ओइसने छोड़े ल नइ कहात हों।तोर पीयई खवई ल बाईकाट बंद करे ल कहात हों।
बुधारू – मेंहा दारू पीये ल छोड़हू त सरकार के घाटा हो जाही वो।अऊ ओकर साथ कतको झन के रोजी रोटी बंद हो जाही वहू ल तो सोंच।
बसंती – तोर दारू छोड़े से का सरकार के घाटा होही ? अऊ काकर रोजी रोटी बंद हो जाही ? तेंहा हमला जादा बुद्धु झन बना।
बुधारू – अरे सरकार ह तो जगा जगा दारू भट्ठी खोलत हे।एकर से तो ओकर आमदनी होथे अऊ उही पइसा ल जनता करा बांटथे।
जब आदमी दारू पीये बर छोड़ दिही त होटल अऊ ठेला वाला मन के रोजी रोटी बंद हो जाही ।वो बिचारा मन काला कमाही अऊ का खाही ?
बसंती के दिमाग खराब हो जाथे अऊ जोर – जोर से चिल्ला – चिल्ला के कहिथे – तोला सबके फिकर हे , फेर डऊकी लइका के फिकर नइहे ।काकर घाटा होही अऊ काकर फायदा होही तूही ल संसो हे।अइसे कहिके बाहरी ल धर के बुधारू डाहर दऊड़ीस।
बुधारू ह जान डरिस के बसंती ह अब जादा गुसियागे अब मोला नइ छोड़े।वोहा पल्ला मार के घर से भागीस ।
ओकर मन के कलर – कलर ल सुन के सुधा, दुलारी, लता, चंद्रकला ,शकुन सबो परोसी मन सकलागे अऊ पूछथे – का होगे बहिनी काबर लड़ई झगरा होवत हो वो ?
बसंती – का दुख ल बताबे बहिनी।मोला तो अब अइसने में मर हर जांहू तइसे लागत हे।
सुधा – काबर मरबे बहिनी।का बात ए तेला बने फोर के बता।
दुलारी – बता बहिनी अपन दिल के बात ल बताय ले मन हलका हो जाथे ।
बसंती – हमर घर के सोनू के बाबू ल कहिथो वो।रात दिन पी खाके आथे अऊ अइसने झगरा मताथे।कुछु समझाबे त भासन दे ल लग जाथे ।
लता — जब ले गाँव में दारु भट्ठी खुले हे ,इहीच हाल हे वो।हमरो घर के ह आज पइसा नइ रिहिसे त एक ठन बटकी ल बेच दीस वो।
बात ह निकल गे त बतावत हो बहिनी कोनों ल झन बताहु वो।
शकुन – ए पीयइया खवइया मन के इहीच हाल हे वो।हमरो घर तो चार दिन होगे काम बुता में गे नइहे ।बस संगवारी मन संग पी खाके गुलछर्रा उड़ावत हे।साग बर तक पइसा नइ बांचे हे बहिनी।
चंद्रकला – उही हाल तो हमरो घर हे बहिनी ओकर मारे तो धोये चांउर ह नइ बाचत हे वो।जब ले दारू भट्ठी खुले हे ,बड़े ते बड़े नान – नान लइका मन तको पीये ल सीख गे हे वो।
सुधा – हौ सही बात ए बहिनी।नान नान रेंमटा मन ,जेकर छटठी बरही ल हमन करे हन ते मन ह आज हमीं ल आंखी देखावत हे।
दुलारी – अब अइसने में बात नइ बने बहिनी।हमी मन ल कुछु करे बर परही।तभे बात बनही ।नही ते गाँव के गाँव पूरा बिगड़ जाही ।
लता – हमन सबो बहिनी आजे गाँव के सबो बहिनी दीदी ल सकेलथन अऊ दारू भट्ठी ल बंद करवाथन ।गाँव में जुलुस निकालबो, धरना देबो अऊ जे आदमी ल पीयत देखबो वोला डंडाच डंडा मारबो ।तभे चेतही।
सबो कोई – बने कहात हस बहिनी , चलो गाँव के मन ल बलाबोन ।
सबो कोई मिलके गाँव के मन ल सकेलिन अऊ एक ठन सामाजिक संगठन “महिला क्रांति सेना ” बनाइस ।
वो मन ह गाँव में जुलुस निकालिस अऊ दारू भट्ठी में जाके बइठगे ।जेन भी दारू ले बर आय वोला डंडा देखाय।
काकरो हिम्मत नइ चलीस तीर में आय के ।दूसर दिन पूरा रोड ल घेर के बइठगे मोटर गाड़ी के आना जाना बंद होगे ।
ए बात ह सरकार तक पहुंचिस । पुलिस, सिपाही, कलेक्टर,नेता, मंत्री आगे अऊ ओमन ल समझाय लागिस।
तब लता दीदी ह बोलीस – जब तक ए दारू भट्ठी ह बंद नइ होही , तब तक हमन इंहा ले नइ टरन ।चाहे कुछु हो जाय।
सब माइलोगिन मन जोर जोर से नारा लगाय ल धर लीन-दारू भट्ठी बंद करो, दारू भट्ठी बंद करो।
तब सब ल सांत कराये गीस अऊ तुरते दारू भटठी ल बंद करे के आदेश निकालीस ।तब सब माईलोगिन मन ऊंहा ले उठीन।
अइसने संगठन ल गाँव – गाँव में बनाना जरूरी हे।नारी सक्ती जगाना हे – दारु भटठी बंद कराना हे । ए नारा ल गाँव गाँव में फैलाना हे। तभे सरकार के आंखी उघरही अऊ दारू भट्ठी ह बंद होही ।
प्रिया देवांगन “प्रियू”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम ( छ ग )
मो नं 9993243141
Email — priyadewangan1997@gmail.com
बहुत बढ़िया कहानी