पसीना ओगार के मेंहनत करथे
दुनिया ल सिरजाथे
रात दिन मजदूरी करथे
तब मजदूर कहाथे ।
नइ खाये वो इडली डोसा
चटनी बासी खाथे
धरती दाई ल हरियर करथे
माटी के गुन गाथे ।
घाम पियास ल सहिके संगी
जांगर टोर कमाथे
खून पसीना एक करथे
तब रोजी रोटी पाथे ।
बिना मजदूर के काम नइ चले
दुनिया ह रुक जाही
जब तक मेंहनत नइ करही त
कहां ले विकास हो पाही ।
महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
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