बईसाख के अंजोरी पाख के पुन्नी के दिन ल बुद्ध-पुन्नी काबर कहे जाथे ? त एखर उत्तर म ये समझ सकत हन के आज ले लगभग अढ़ई हजार बछर पहिली इही दिन भगवान बुद्ध ह ये धरती म जनम धरके अईस, अउ पैतीस बछर के उमर म इही दिन ओला पीपर रूख के नीचे म बईठे रहिस त ओखर तपस्या के फल माने सच के गियान ह अनुभव म अईस, अउ इहीच्च दिन अस्सी बछर के उमर म वो ह अपन देह ल छोड़ के ये दुनिया ले चल दिस| तब ले बौद्ध धरम म ये दिन के बड़ महिमा हे | हिंदु धरम म घलो ये दिन ल बुद्ध पुन्नी के रूप म मनाय जाथे, काबर के भगवान बुद्ध ल हिंदू धरम म होय चोबीस अवतार में एक ठन अवतार के मान मिले हे|
भगवान बुद्ध ह सिद्धार्थ नाव धर के राजा शुद्धोधन अउ रानी महामाया के घर जनम धरीस, कुछ दिन बाद रानी महामाया ह अपन सरीर ल छोड़ के भगवान घर चल दिस, तब सिद्धार्थ ल ओखर मौसी मां गौतमी ह पालीस, ते पा के सिद्धार्थ ल गौतम नांव मिलिस| जनम के बाद एकझिन साधु-महात्मा ह राजा ल बताय रहिस हे के तोर लईका ह या तो बहुत बड़ परतापी राजा बनही या बहुत बड़े गियानी महात्मा| तब ले राजा ह गौतम ल महात्मा झिन बनय कहिके बड़ सुख म पालीस, अउ वोला साधु-महात्मा के संग झन मिलय अउ कोनो भी परकार के दुख के कारन ले ओखर सामना झिन होवय ये बात के बड़ धियान रखिस| गौतम जब सोलह बछर के होईस त ओखर राजकुमारी यशोधरा संग बिहाव कर दिस, कुछ बछर म राहुल नांव के एकझिन लईका घलो होगे, बड़ सुख म दिन बीतत रहिस हे, फेर होनी ल कोन टाल सकत हे, एकदिन गौतम ह घोड़ा-गाड़ी म अपन राज म घूमे बर निकलिस त का देखथे एकझिन बीमरहा आदमी ह कल्हरत रेंगत जावत रहे, त वो ह सारथी ल पूछथे, ये कोन हरे अउ ये ह काबर कल्हरत हे, त सारथी ह बताथे के ये आदमी ल बीमारी घेर लेहे अउ दरद म कल्हरत हे, र्सोंच म परगे के का महुं बीमार परहूं महुं ह दरद म कल्हरहूं, थोरकिन देर म एकझिन बुढ़वा आदमी ल देखिस, ओखर बारे म सारथी ले जानिस, अउ सोंचे ल धरलिस के का महुं ह बुढवा होहूं, ओखर बाद एकठन लास ल देख डरिस, तब सोंचिस के का महुं ह मर जहूं, अंत म एकझिन साधु ल देखिस, त अपन सारथी ल फेर पूछिस, ये कोन हरे, त सारथी कहिथे- ये ह साधु-महात्मा हरे, जे ह जीवन के सच ल जाने खातिर अपन घर बार ल छोड़ के तपस्या करे म लगे हाबय, तब गौतम ह सारथी ल पूछिस त का सहीं म ये साधु मन ल सच के पता चल जथे? त सारथी ह हां कहि देथे| अब गौतम ह रात दिन इही सोंच म रहय के ये सरीर ह एकदिन खतम हो जही, ये चकाचक जिनगी, ये जेन भी दिखत हे, सबो एकदिन खतम हो जही, ये सब झूठ हरे जेन दिखत हे, त जीवन के सच का हरे ? अईसनें सोंचत सोंचत एक दिन सच ल पाय खातिर घर-परवार ल छोड़ के हमेसा बर निकल जथे, अउ जंगल म जा के पुरा छै-बछर कठिन तपस्या करथे, अईसनहे एकदिन वो ह पीपर रूख तरी बईठे रहिथे, तब वोला जीवन के यथार्थ सच के गियान हो जथे, जेला संबोधि घलो कहे जाथे, अउ तब ले वोखर नांव ह गौतम ले गौतम बुद्ध पर जथे| सच के गियान ल पाय के बाद मानव जाति के कल्यान खातिर अपन अनुभव ल पुरा दुनिया म बगराय बर घुमथे| वोखर गियान के खास महिमा ये हे के वो ह जेन बात ल आज ले अढंई हजार बछर पहिली कहे रहिस हे, वो ह आज घलो सोला आना खरा उतरथे | ओखर अनुसार सच के गियान ल यदि पाना हे, त ये संसार म चार ठन सच्चाई हे, जेला मान के चलना परही- १, संसार म दुख हे, २, ये दुख के कारन- अंतस के चाहना अउ जलनखोरी हरे, ३, ये दुख ह अब्बड़ अकन हे, ४, ये दुख ले दुरिहाय के उपाय घलो हे|
ये चारो सच्चाई ल अनुभव म लाये बर भगवान बुद्ध ह हमन ल जउन उदीम करे बर कहे हे, वो हे- अस्टांग मारग म सरलग चलना| अस्टांग मारग म सार बात ये कहे हे- हमेसा सम-स्थिति म अपन सोंच ल रख के चलव, या हमेसा बीच के रद्दा ल अपनावव, माने- न तप म अति करव अउ न ही संसार ल भोगे म अति करव|भगवान बुद्ध ह आगे कहिस- ये बीच के रद्दा म चलत चलत अहिंसा,दया, सेवा अउ हमेसा सच बोलना ह हमर जीवन के परम धरम होना चाही, तभे सच के गियान ल अनुभव म लाये जा सकत हे | ये रद्दा म सिरिफ दुए परकार के साधक ह फेल होथे, १-जेन ह रद्दा म चले बर सुरूवाते नइ करय, २- जेन ह रद्दा म चलत चलत बीचे म रद्दा ल छोड़ देथे|
भगवान बुद्ध ल जब कोनो ये पुछ दय के- का दुनियां म भगवान हे ? तब वो ह चुप राहय, जवाबेच नइ दय, येमा ओखर सोंच ये राहय के जेन बात के उत्तर ल समझाये नइ जा सकय ओखर उत्तर देत समय चुप रह जाना चाही, इही जवाब ह अईसन सवाल के सबले बढ़िया जवाब होथे| लेकिन कई झन ओखर चुप रहई ल देख के ये कहि देथे के बुद्ध ह भगवान ल नइ मानत रहिस हे| फेर असलियत म अईसन बात नइ हे, भई जे चीज ह इंद्रिय गियान के पहुंच ले बाहिर हे ओला इंद्रिय मन ले कईसे जाने जा सकत हे|
भगवान बुद्ध के बताय रद्दा ह आज घलो सोला आना खरा हे, काबर के वो ह साधक के बुद्धि म जमे जम्मो कचरा ल सफाई करत करत बुद्धि ल निरमल बना देथे, या कहे के बुद्धि ल तरक ल तरक ले काटत काटत तरकतीत म पहुंचा देथे, जिहां सच के गियान ह बगबग ले साधक के अनुभव म आ जथे| कहे जाथे के भगवान बुद्ध के समय म बांकी बुद्ध के मुकाबला सबले जादा मनखे मन सच के गियान के अनुभव ल पईन| आज के जुग ह घलो घोर बुद्धि के जुग हे, त यदि आज के मनखे मन भगवान बुद्ध के बताय रद्दा म चलही त ये तय हे के जीवन के परमसुख सच्चा गियान ल पाय म बड़ असानी होही|
ललित वर्मा “अंतर्जश्न”
छुरा