आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।।
रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,,
परमारथ असल देथे।।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।1
रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी।।
मत कभु टँगिया,आरी,कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।2
रुख-राई ला देख बादर,
बरसथे उछला आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर।।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।3
रुख-राई ला बचाव संगी,
पेड़ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी।।
बिनास ला बेवहार मा उतार झन।
पर हित ‘अमित’ पालनहार बन।।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।4
परकीति के पयलगी पखार लन।।।।
कन्हैया साहू “अमित”
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