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सांच ल आंच काय हे जेन मेर गलत दिखते तेला बोले बर पड़ही, जेन ह हमर छतीसगढ़ के माटी के अपमान करही, जेन ह ईहाँ के मया ल लात मारही अऊ जेन मनखे ह ईहा के जर जमीन जंगल के सत्यानाश करे बर उमड़े हे तेने ह हमर बईरी ये। वोहा कभू हमर हितवा नई हो सकय, फेर सोचथव आज के समे म सब अपनेच सुवारथ में डूबे हाबय, कमे देखे अऊ सुने बर मिलथे छतीसगढ़ भुईयां के पीरा ल समझईया । अभिच देख ले मनखे मन अपन रद्दा निकाले बर खसवा कुकुर नईते परदेशिया मन के तलवा चाटे बर अगुवाय रहिथे, एक समे रिहिस ईहा के संसकिरती, मेला मड़ई, तीज तिहार हरेली, आनी बानी के खेल खो खो, कबड्डी, रेस टीप, गिल्ली डंडा, फेर नाचा, सुआ, ददरिया, गम्मत, लिल्ला ह कतेक निक लागय । हमन खुदे अपन धरोहर ल नई बचा सकत अन, कुछ दिन में ईहू ह नदा जही तईसने लागत हे ।
गाँव में पहिली घरों घर गाय गरु छेरी पठरु दिखय तेनो ह नदागे, वोकर जगा ल जबर जबर कुकुर मन ले डारिस । पहिली तो कम से कम एकात कुकुर अईसने राहय जेन मनखे गलत करय तेला हबकीदय, अभि के जतका जबर जबर कुकुर हे वोमन जी हुजूरी अऊ तलवा चटई में बने मगन हे । हबकनहा कुकुर तको नदागे, सावन के अंधरा ल जैईसे हरियरे हरियर दिखथे वईसने पीछलग्गू मनखे ल मुखिया के बात ह सहीच लागथे । चाहे वो मुखिया ह कतको भ्रष्ट राहय, माने ओकर खिलाफ आवाजे उठाय के ताकते नईये तईसने बरोबर, त अईसन पीछलग्गू ले तो बने हरबोलवा राहय जेन ह बिहनिया बिहनिया गाँव के चऊक के रूख में चढ़के चिल्लाय के ताकत तो रखय । चाहे वो ककरो गुन गाय बर चिल्लाय या फेर कोनों ल गारी देबर चिल्लाय, आज उहू हरबोलवा ह कहा भगागे । अब ओकर जगा ल गरकट्टा मन लेले हे ये गरकट्टा मन नई चिल्लावय सीधा सीधा अपन सुवारथ बर ककरो गर ल रेत देथे, ये सब ल देख के लागथे ईही हरे का दू सीढ़ियां बिकास के चढ़ई ।
एक समे मोर बबा ह काहय अरे बाबू पढ़ई लिखई करे कर बने, नचई कुदई ले पेट नई भरय, मोर धियान खाली नाचा गम्मत में जादा राहय । त बबा ह एक हाना सुनावय नक्टा मन नाचथे अऊ बेशरम मन ह ताल मिलाथे । त मोर जी ह अगियासी लागजय तहा ले मेंहा सोजे सोज बोल दव डोकरा नितो, अपन गौटी रुदबा ल अपनेच करा रख तेहा छतीसगढ़ के कलाकार के असली बईरी अस, आज मेंहा सोचथव मोर बबा ह सही काहय । काबर ईहा एक ले बढ़के एक कला के पुरोधा मन अपन जवानी में अपन परवार के पेट ल तको नई भर सकत रिहिस हे, खेती खार ल बेच बेच कला ल सिरहोईस फेर बुढ़त काल म गुमनामी के अंधियारी कुरिया में जिनगी ल खपा दिस । कोनों सुध लेवईया नई मिलिस, फेर अब के समे मा देखले कला राहय या मत राहय आगू पीछू अंधरा मन के गुणगान करके मटका भर दे तोला पद्म श्री तको मिल जही । त समे समे के बात रहिथे आज भले कला मत राहय, बस जी हुजूरी के कला सुवारथ बर बहुते बड़ेकजान कला ये । जेन ह जतके करही ओतके बड़े तमगा अऊ रुतबा मिलही, एक ठन अऊ बात काहय पहिली बाबु रे अपने रद्दा म आबे अऊ अपनेच रद्दा म जाबे ।
पहिली तो सब बने अपनेच रद्दा म आवय अऊ जावय, आज के समे अईसन हे तेहा अपने रद्दा म रेंगबे तभो ले दूसर ह जान बुझके झपाय बर पड़थे बतरकिरी असन । नानपन के एक अऊ सुरता आथे, पहिली गाँव गाँव में संझा कुन मुंधियार होतिस तहाँ ले बमभोला मन सुग्घर तमूरा ल बजावत गाँव के गली गली म घंटा भर समे ले रीनचीन रिनचिन धुन बजावत फेरी लगावय । फेरी के धुन सुने बर घर ले दऊड़ के गली म निकलन, फेर ओकर पहनावा ल देख के डर्रा तको जान, सोचन ये ह चोरहा लबरा ते नई होही केईके । आज समे अईसे आगे हे माईलोगन मन ह मुंधियार होईस तहाँ ले दस बीस झिन ह लऊठी ल धर के रोज गाँव के गली गली दारू पियईया मनखे पकड़े बर रात भर घुमत रहिथे । रात के समे मा घर से गाँव के गली म निकलिस येहा का कम बड़े बात ये । बुरई के तो नाश करे बर निकलिस हे, एक ठन अऊ बात बबा के सुरता आवत हे, जुन्ना सीमेंट कारखाना माड़र के जिहा ले मोर बाबु के नऊकरी के कागज आय रिहिस हे, बाबु ह बोलिस बबा ल, नऊकरी करे बर जाहू ग । अतका ल सुन के बबा ह भड़क गे, तोर करा खेतीखार हे जेकर सोर बाड़ी बखरी नई राहय तेने ह दूसर के नऊकरी ल बजाथे, फेर अपन हाना ल सुनाय बर धर लिस, उच्चतम किसानी मध्यम बैपार नीच करे पर के नऊकरी सुनले रे बाबु गंवार । ईहू बात ह आज के समे म नई जमत हे, मेंहा तो कईहू हर्रा लगय न फिटकरी रंग चोखा बरोबर आय आज नऊकरी ह, उच्चतम नऊकरी मध्यम बैपार सबले नीचा हे जेन करे किसानी के काम, काबर गाँव में किसनहा मनखे के कोनों पुछईया नईये न तो वोकर मेहनत के वाजिब दाम मिलय,न तो अपन परवार के पेट भर सकय, न अपन लईका लोग ल बने पढ़ा लिखा सकय बस करजा के बोझ में दिनोंदिन लदत जात हे । अऊ आत्म हत्या करे बर मजबूर होवत हे त भैय्या हो जेन ह हमर भूईयां के भगवान के बारे में नई सोचय,बिकासे के नाम लेके जर जमीर जंगल के ओकर बोली लगावत हे वोहा तो हमर हितवा नई हो सकय ।
विजेंद्र वर्मा “अनजान”
नगरगाँव (जिला-रायपुर)