सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! माटी के अबड़ मया़ होथे रे। फेर हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। संगवारी हो जब हमन छोटे-छोटे रहेन तब हमन ला प्राथमिक विद्यालय के गुरूजी बहिन जी मन परीक्षा होय के बाद पुट्ठा के घर अउ नई तो माटी के खिलौना बना के स्कुल में जमा करे बर कहय। जम्मों संगवारी मिल के माटी के रिकिम-रिकिम के खिलौना अउ साग जइसे कि भॉटा, पताल, मिरचा, फल में सुन्दर सीताफल, बीही ,केला, अनार जेखर से जउन बनय तउन बना के सुन्दर रंग में रंगा के छोटे टुकनी में रख के स्कुल में जमा करके आवत रहेन। संगवारी हो आज समझ में आथे कि ये सब के पाछू में हमर पर्यावरन ला बचाय के कतका पवि़त्र भाव रहिस हावय। आज हमन ला अपन पर्यावरन ला बचाए खातिर अपन माटी से पानी से वही लगाव वही जुड़ाव सबके मन में पैदा करे बर परही। पहिली जब कार्तिक के महिना में फूल पूजे बर जावन तब माटी के शिव-पार्वती बना के सब संगी-जहुॅरिया मिल के पूजा करन।
आज भी बहुला-चौथ अउ कमरछट के दिन माटी के मूर्ति बना के पूजा करे के विधान हावै। पहिली नरक चौदस होय कि देवारी होय करिया माटी जेला मुड़मिसनी माटी घलाव कहे जाथे लानके घर में भिंजो के बने सुन्दर दिया बना के पूजा करत रहेन। संगवारी हो जब-जब हमन माटी ला छूथन तब हमर मन में माटी से एक लगाव अउ जुड़ाव पैदा होथे। जब भी हमन खेत में, बारी-बखरी में नई तो गमला में ही पौधा लगाथन तब हमर मन ला अपार सुख के अनुभव होथे काबर कि अइसन करत समय हम माटी अउ पानी के संपर्क में रइथन। कहे गै हे कि महतारी अउ भुइयां से हमला एक बरोबर मया मिलथे तभे तो हमन धरती ला धरती महतारी कहिथन। जइसे-जइसे उमर बाढ़थे माटी से लगाव ओतके गहरा होवत जाथे। नानपन के खेलवारी कइसे भावना के जघा ले लेथे पता ही नई चलय।
धीरे-धीरे जब हम माटी ला छूथन तब लगथे के हमर काया घलाव तो माटी के बने हे अउ एक दिन हमला यही माटी में तो मिलना हे। जइसे एक माटी के मूर्ति बनाने वाला मूर्तिकार हर माटी में आकार अउ रंग भरके ओला सजीव कस नवा रूप दे देथे वइसने उपर वाला सबले बडे़ कलाकार याने भगवान हर हमर सरीर में रूप-रंग, बुद्धि अउ जीव डार के हमला कुछ दिन बर ए लोक में भेज के कठपुतरी सहीं नचावत रहिथे अउ हम ए माटी के मया में अउ दुनिया के राग-रंग में अतका बिधुन हो जाथन के एक दिन हमला ए सब ला छोड़ के फेर माटी में मिलना हे यहू ला भुला जाथन। एखरे सेती ये चार दिन ला हमला सचेत होके जीना चाही। हमन ला जिनगी भर अइसे काम करना चाही जेखर से हमर माटी से, हमर भुईयां से, हमर धरती महतारी से सदा मया अउ दुलार मिलत राहय। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता
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