जबले बने हे रूखराई .चिरई चुरगुन,
तबके मैं निवासी अंव !
हव मैं आदिवासी अंव,
हव मैं आदिवासी अंव !!
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सभ्यता के जनम देवइया,
बोली भासा ल सिरजाए हंव !
जम्मो संस्कृति के मैं उपजइया,
पर आज असभ्य कहाए हंव !!
बघवा भालू मोर संगवारी,
मैं रहइया जंगल झाड़ी के !
सबले जुन्ना हमर संस्कृति,
मैं पुजइया बन पहाड़ी के !!
मही तो नरवा झोरी डोंगर,
भुईंया मही मटासी अंव…। हव मैं…..
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रहन सहन ल देख के मोर,
पढ़े लिखे मन हांसत हे !
मिठलबरा मनखे दोगला मन,
बिकास के नाम म फांसत हे !!
महल के करिया सपना देखाके,
कुंदरा ल मोर बारत हे !
झूठ मूठ के उदिम लगाके,
जंगल ल उजारत हे !!
मोर जिन्गी ह होगे पीरा,
तुंहर बर मैं हांसी अंव…।
हव मैं……
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झन डारव अंगरी मुंह मा,
निदियाये .सुते बघवा के !
गुस्सा ल घलो जगावौ झन ,
मनखे निच्चट सिधवा के !! कतको पांव उखाड़े हन,
बड़े बड़े सिंघासन के ! मिरचा झार ल चिख डरे हन,
गुत्तुर गुत्तुर भासन के !!
तुमन हरव जी छप्पन भोग,
मैं आज भी कोदई के बासी अंव…।हव मैं…
राम कुमार साहू
सिल्हाटी(स.लोहारा)
कबीरधाम
9977535388
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