मोला नीक लागे जी,हमर भासा-बोली ।
पुरखा के सिरजाये,हंसी अउ ठिठोली ।।
मोला नीक लागे जी………..
गुरतुर मिठास हावै,बोली अउ जुबान मा।
कतको परदेशिया, रिझगे गा ईमान मा।।
बोली छत्तीसगढ़िया ,भरे मिठ झोली ।
मोला नीक लागे जी……………
बनत हावै भासा जी, छत्तीसगढ़ राज म।
करबो बोली-बात,सरकारी काम-काज म।।
हमर भासा ले भरही , सरकारी खोली ।
मोला नीक लागे जी…………….
हमर भासा में दया-मया,परेम ह बरसथे।
सिधवा होथे मनखे,इंहा परदेसी लपकथे।।
घुल-मिल के सबो भाई ,रहिथे हम जोली।
मोला नीक लागे जी…..
बोधन राम निषाद”राज”
स./लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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