कारतिक महीना के महिमा

हमर हिन्दू पंचांग के हिसाब ले बच्छर भर के आँठवाँ महीना कारतिक महीना हा हरय जउन ला जबर पबरित महीना माने जाथे। कारतिक महीना के महत्तम बेद पुरान मन मा घलो हावय। हमर भारतीय संसकिरति मा समे के गिनती चंदा के चाल ले बङ पराचीन परमपरा के रूप मा भारत मा चले आवत हे। बाहिर परदेस मा समे के गिनती हा सुरुज नारायण के गती उपर चलथे। हमर पुरखा मन चन्दा ला हमर पिरिथवी के सबले लकठा एकठन अगास के पिन्ड जान के समे के गणना बर सबले बढिया साधन मानीन। चन्दा के चाल उपर बच्छर भर के बारा महीना के रचना करे गीस। बच्छर के आँठवाँ महीना कारतिक महीना हा सबले सुग्घर अउ पबरित महीना कहाथे। ए बात के साखी सास्त्र मन हा घलो हावंय। कारतिक महीना हा मनखे के सरी जरूरत ला पुरोथे। सुग्घर सुवासथ , उछाह, उरजा,परवार के बिकास अउ देबी देवता मन के असीस, किरपा हा कारतिक महीना मा बङ जलदी मिलथे। कारतिक महीना ला मनखे मन के मोक्छ के मुहाँटी घलो कहे जाथे। मोक्छ के इच्छा रखईया मन हा कोनो आसा ले भगवान के अराधना करईया मनखे के सरी आस अउ अकान्छा हा परभू किरपा ले पूरन होथे अउ सदगती मिलथे। इही सदगती हा मोक्छ कहाथे अउ इही मोक्छ के असल अवसथा होथे। कारतिक महीना मा परभू सेवा ले मनखे ला सबो सुख सान्ती ला पाये बर जादा मउका अउ संभावना मिलथे। इही महीना मा सुग्घर सुवासथ पाये बर भगवान धनवंतरी के पूजा अरचना के सोनहा समे मिलथे। यम देवता के मान गउन करके अपन बर लम्बा अवरदा पाये के बेवसथा इही महीना मा हावय। इही पबरित महीना मा देबी लछमी के पूजा पाठ के परब देवारी सबो बर धन दोगानी के बरदान पाये बर आथे। इही वो महीना हरय जेमा चार महीना ले सुते सब देव धामी मन हा उठथे-जागथे। इही सुग्घर देव जागरन के बेरा हा देवउठनी या जेठउनी कहाथे। देवता मन के जागरित होय ले सरी संसार भर के सरी सुभ काम बुता बर सुभ समे के सुरूवात हो जाथे। कारतिक महीना मा भगवान श्रीहरि के अराधना अउ पूजा अरचना करना चाही,विष्णु हा चार महीना के योगनिद्रा ले जागे रथे। सबो बुता के सफलता बर देवता मन के किरपा अउ असीस के अङबङ जरुरत परथे जउन देवता मन के जागरित अवसथा मा ही पूरा हो पाथे। भगवान विष्णु के जागे ले संसार भर के कलयान के दुवारी खुल जाथे। इही महीना मा घर के नारीसक्ती याने गृहलछमी मन घर भर मा माटी के दीया बार के भगवान ले अपन घर परवार बर सुख, सान्ती, समरिद्धी के बरदान मांगथे। कारतिक महीना ए परकार किरपा अउ आसीरबाद पाये के सबले सुग्घर पबरित महीना हरय।
कारतिक महीना के धारमिक अउ अधियातमिक महत्तम घलाव अब्बङ भारी हावय। इही महीना मा कारतिक पुन्नी के दिन भगवान विष्णु के मछरी अवतार होय रहीस। मछरी अवतार हा मनखे मन ला पानी मा रहईया जीव मछरी असन परिइस्थिति ले लङे के प्रेरना देथे। मछरी हा सरल अउ सहज होके परिइस्थिती संग अपन तालमेल बइठार के जीथे। अइसने जिनगी मनखे घलो जीयय इही बात मछरी अवतार के सार हे। कारतिक पुन्नी के दिन भगवान विष्णु हा मछरी अवतार धरीन अउ भगवान शिवशंकर हा इही दिन त्रिपुर नांव के राक्छस के बध करे रहीन। त्रिपुर राक्छस हा मनखे के तीन दोस काक्ष,क्रोध अउ लोभ के प्रतीक हरय। मनखे ला अपन ए तीनो दोस के नास करत रहना चाही। एखरे सेती कारतिक महीना के जादा महत्तम हावय जेमा सुवासथ उपर सबले जादा जोर देगे हावय। ए महीना हा सुवासथ के संगे संग सक्ती अउ भक्ती ला बढाय के पबरित सोनहा समे होथे। मनखे हा कारतिक महीना मा सक्ती अउ भक्ती के भन्डार ला आगर छलकाय के ठउका मउका होथे।भक्ती के संग सक्ती पाये के सही समे इही महीना हा होथे।
कारतिक महीना के पाँच करम अउ बेवहार ले अपन मनमरजी आसीरबाद ला पाये के सबले बढिया मउका होथे। कारतिक महीना मा पाँच आचरन ला अपन बेवहार मा संघेर के भगवान विष्णु अउ लछमी देबी ले तन,मन अन अउ धन के बरदान मांगे जा सकथे। सुख, समरिद्धी अउ सुवासथ के सुग्घर दुवार कारतिक महीना मा ही खुलथे। मनमरजी सुफल होय बर कारतिक महीना मा ए पाँच आचरन ला बेवहार मा जरूर उतारना चाही।




1~दीया के दान -कारतिक महीना के पहिली पंदरा दिन के रतिहा हा सबले घनघोर करिया रथे। श्रीहरि के जागे के पहिली पंदरा दिन दीया के दान करे ले हमर जिनगी मा कभुच दुख पीरा के अंधियारी नइ आवय।हमर दसा मा सुधार होथे,जिनगी के रद्दा हा मा अंजोर ले भर जाथे।

2~तुलसी पूजा – कारतिक महीना मा सती बिन्दा याने तुलसी के पूजा के अब्बङ महत्तम हावय। भगवान विष्णु हा तुलसी के हिरदय मा सालिकग्राम के रूप मा समाय रथे। सुवासथ ला समरपित ए कारतिक महीना मा तुलसी पूजा अउ तुलसी दल के प्रसाद ग्रहन करे ले सरेस्ठ सुवासथ के प्राप्ति होथे।

3~भुँईयाँ मा सुतना – भुँईयाँ मा सुते ले मनखे के सुख,सुबिधा मा रातदिन परे रहे के आदत मा थोरिक दिन बर छुटकारा मिलथे। भुँईयाँ मा सुते ले उत्त्म सुवासथ लाभ मिलथे। सबो प्रकार के सारीरिक अच मानसिक बिकार भुँईयाँ मा सुते ले दुरिहाथे।

4~ब्रम्ह आचरन के पालन -ब्रम्ह आचरन के बेवहार के अर्थ हे- कोनो भी अइसन आचरन,करम या बेवहार करे बर स्वयं ला प्रेरित करते रहना चाही जेखर ले प्रभू के प्रति प्रेम कभू कमती झन होवय। अइसन आचरन ले अपन आप ला बचा के रखंय जेमा काखरो कोनो प्रकार ले अहित झन ह़ोवय।

5~दार खाये के मनाही -कारतिक महीना मा कोनो भी प्रकार के दार मन ला रांधे-खाये के मनाही हे। दार मन हा गदेलहा होथे बङ बेरा मा पचथे, एखर सेती ए महीना भर मा सधारन हल्का फुल्का जलदी पचईया भोजन करना चाही।ए उदिम हमर सुवासथ बर फाइदा करथे।
वइसे तो सबो रितु अउ महीना के अपन अपन बिसेस महत्तम होथेफेर कारतिक महीमा के घातेच महत्तम हावय।कारतिक महीना हा भगवान विष्णु ला समरपित हावय। ए पबरित अउ सोनहा समे हा सरद पुन्नी के रतिहा बैभव लछमी के पूजा ले सुरु हो के असनांद अउ दान के परब पुरा महीना भर चलथे।
तिरथधाम मा बदरीनाथ,भगवान मा विष्णु अउ महीना मा कारतिक महीना सरेस्ठ हे। ए बात के प्रमाण पुरान मन मा घलो बताये गेहे। बेद पुरान मन मा कारतिक महीना के महीमा के बखान करत कहिथें- महीना मा सबले उत्तम कारतिक महीना हावय। जइसे सतजुग असन कोनो जग नइ हे,बेद असन कोनो सास्त्र नइ हे अउ गंगा कस कोनो पबरित नइ हे, अइसने कारतिक महीना असन कोनो सरेस्ठ अउ सुभ फलदायी महीना नइ हे। मास,मंद-मउहा हा तो तियागेच के जीनिस हरय फेर कारतिक महीना मा एखर मन के तियाग सुवासथ अउ धन दुनो ला पोठ करथे। कई बच्छर के तपसिया अउ तियाग बरोबर फल कारतिक महीना भर मा सत, ईमान, बरजना अउ पूजा-अरचना ले सुभ फल मिलथे। बच्छर भर के पुन्य प्रताप कारतिक महीना भर मा पाये जा सकथे। कारतिक महीमा अनुसार सरेस्ठ करम हा सरेस्ठ फलदायी खच्चित ह़ोथे।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक ~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9200252055
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