देवउठनी एकादशी अऊ तुलसी बिहाव

मास में कातिक मास, देवता में भगवान विष्णु अऊ तीरथ में नारायण तीरथ बद्रीकाश्रम ये तीनो ल श्रेष्ठ माने गे हे। वेद पुरान में बताय गेहे की कातिक मास के समान कोनो मास नइ हे। ए मास ह धर्म ,अर्थ, काम अऊ मोक्ष के देने वाला हरे। ए मास में इसनान, दान अऊ तुलसी के पूजा करें से बहुत ही पुन्य के पराप्ती होथे। कातिक मास में दीपदान करें से सब पाप ह दूर हो जाथें, अइसे बताय गेहे। असाढ़ महिना के अंजोरी पाख के एकादशी के दिन से देवता मन सुतथे अऊ कातिक महिना के अंजोरी पाख के एकादशी के दिन सुत के उठथे। एकरे पाय एला देवउठनी एकादशी कहिथे। देव उठनी एकादशी के दिन से ही जतका मांगलिक काम ह रुके रहिथे वो सब ह शुरू हो जाथे। जइसे- बिहाव, मुंडन, घर परवेश आदि।
आज के दिन ही तुलसी विवाह होथे, घरों घर चांवल के आटा से चउक पुरथे। अऊ तुलसी -बिसनु के पूजा करें जाथे। लइका मन खूब फटाका भी फोरथे।। एला एक परकार से छोटे देवारी के रुप म मनाय जाथे। वइसे भी तुलसी पऊधा के हमर जीवन में बहुत महत्व हे। तुलसी पउधा ह चौबीसों घंटा आक्सीजन देथे अऊ स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक हे।




तुलसी विवाह के कथा- तुलसी विवाह के एक कथा हे की पराचिन काल में जालंधर नाम के एक राक्षस रहिस। वोहा बहुत ताकतवर राहे अऊ देवता मन ल बहुत परेसान करे ओकर बाई वृंदा ह बहुत पतिवरता अऊ धर्म के पालन करने वाली रिहीस ओकरे परभाव के कारन जालंधर के कोनों कुछु बिगाड़ नइ सकत रिहिसे।
जालंधर के उपद्रव से परेशान होके देवता मन भगवान बिसनु कर बहुत अरजी विनती करीस। तब भगवान बिसनु ह वृंदा के सतीत्व ल भंग करे के योजना बनाइस। वोहा ओकर पति के रुप में गीस अऊ वृंदा के सतीत्व ल भंग कर दीस। जइसे ही वृंदा के सतीत्व भंग होइस वइसे ही जालंधर मारे गीस।
जब वृंदा ल ए बात के पता चलीस त वोहा बहुत घुस्सा होगे, अऊ भगवान बिसनु ल सराप दीस के तेंहा मोर साथ छल करके पति वियोग दे हस वइसने तंहू ह पतनी के वियोग में तडपबे। तोला मिरतयु लोक में जनम ले ल परही। अइसे बोल के वृंदा ह अपन पति के साथ में सती होगे। जे जगा सती होइस वो जगा तुलसी के पउधा जाग गे।
एक अऊ परसंग में आथे के – वृंदा ह ए सराप दीस के तेंहा मोर सतीत्व ल भंग करे हस , जा तंहू ह पथरा बन जबे। भगवान बिसनु ह बोलीस – हे वृंदा ये तोर सती धरम के परभाव हरे के तेंहा तुलसी बन के हमेसा मोर संग रहिबे। जे नर नारी आज के दिन हमर बिहाव करही वोला बहुत पुन्य मिलही अऊ परम धाम में जाही। ओकरे पाय बिना तुलसी दल के सालिकराम या बिसनु जी के पूजा ल अधूरा माने जाथे।
बोलो तुलसी महरानी की जय।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम ( छ. ग )
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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