बहारे बटोरे गली खोर ला।
रखे बड़ सजाके सबो छोर ला।
बरे जोत अँगना दुवारी सबे।
दिखे बस खुसी दुख रहे जी दबे।
गरू गाय घर मा बढ़ाये मया।
उड़े लाल कुधरिल गढ़ाये मया।
मिठाये नवा धान के भात जी।
कटे रात दिन गीत ला गात जी।
बियारी करे मिल सबे सँग चले।
रहे बाँस के बेंस थेभा भले।
ठिहा घर ठिकाना सरग कस लगे।
ददा दाइ के पाँव मा जस जगे।
बरे बूड़ बाती दिया भीतरी।
भरे जस मया बड़ जिया भीतरी।
बढ़ाले मया तैं बढ़ा मीत जी।
हरे गाँव गँवई मया गीत जी।
जीतेन्द्र वर्मा”खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)
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