मानुख ल अपन मन के आस्था ल प्रकट करे बर कोनो से पुछे के जरूरत नइये। जइसन मन म आवथे तइसन रकम ले अपन सरधा ल भगवान म अरपन करव। काबर की भक्ति ह साधन करे ले मिलथे। सिरिफ इही बात के धियान राखव कि कोनो ह साधन के आड़ म अनहोनी झन करै। एक झन अनहोनी करही त साव उपर घलोक कांव कांव होही इकरे सेती साधन ल सेत होके करिहव त जादा बने रही।
आस्था अउ भक्ति ल इज्ञान बिज्ञान कुछु काहय फेर पुजा पाठ धरम करम ह इंसान ल इंसान ले जोड़थे ये बात तो खंचित हे। आजकाल दू चार झन परतितहा मनसे मन साधना भक्ति ल घलो अंधविस्वास की देथे। मोला तो लगथे ये परतितहा मन पासत रिथे के कब कोनो कमजोरहा मनखे मन धरम करम के काम करय जेमा हमन अडंगा डारबो किके। अब तो परततिहा समिति वाला मन से लुका के पुजा पाट करे बर परही तइसे लागथे। डर लागथे न अंधविस्वास बगरावथे किके थाना कछेरी ले जही तव। टोनही-टमारिन, मरी-मसान, झाड़-फुक, तक तो ठीक हे फेर कोनो ह हूम जग देवथे तेनो ल अंधविस्वास कही त उही मन बताए देव धामी के पुजा पाठ करे के बिधी बिधान ल।
काबर कि हमन छोटे मोटे गांव गोहड़ी के रहईया मानुख आन अउ अपने विधी विधान ले देवधामी के जग रचथन। सहरिया मन सरिक ज्ञान विज्ञान ल तो नइ जानन फेर अतका तो जानथन कि कते आस्था आए अउ कते ह अंधविस्वास। पतियाव चाहे झन पतियाव तैतिस कोती देवी देवता होथे अउ चौरासी लाख योनी म जनम होथे किके पुरोहिते मन किथव। ये बात म कतका सिरतो कतका लबारी के भेद ल गुना भाग करइया मन खोजत रहा फेर कोनो के मन ल हूदरे के कोनो ल अक्तियार कोनो ल नइये।
आस्था होवे चाहे अंधविस्वास फेर धरम करम ह मनखे ल मनखे बने के मउका देथे। अब देखना हमर गावं के भगेला ह मंद मउहा वाला आदमी आए चोबिस घंटा निसा म रिथे। घर के fचंता न लोग लइका के fचंता। भगेला के ये बेवहार ह ओकर घर परिवार ल मुड़िया मेट करथे। भगेला मे लाख बुराई हे फेर साल के अट्ठारह दिन गांव भर बर देवंता बरोबर हो जथे। ओ अट्ठारह दिन ह चइत अउ कुवार के नौ नौ दिन आय। माता देवाला म आस्था अउ भक्ति के अखंड जोत बरथे। माता देवाला के माई जोत ल भगेला ह अपन छाती म बोहे रिथे। निर्जला उपस राखे माता कर का मनौती मांगथे तेला ओे भगेला जाने अउ माता जानही। माता के दरवार म सेउक मन जस गाथे। जस म घलो अलग अलग पार होथे जइसे सत्ती पार, दंतेस्वरी पार, कंकालीन, रातमाई, ठाकुर देव, सोनfचंराज, गोसइपुसई, दुलहादेव, गोलाचरण, देवदुलरवा आदि जस गान के माध्यम ले सेउक मन माता के सेवा बजाथे। ये सबो जसगीत के अलग-अलग पारंपरकि धुन घलो हे इही विसेस्ता ह तो येला अन्य भक्ति गीत ले अलग चिनहारी देथे। अच्छा गवइया बतइया होगे तब तो आधा बस्ती झुपे बर उमड़ जथे। माता के जस ल तो सेउक मन गाथे फेर ओकर ले जादा झुपइया मन म आस्था समा जथे। गोहार पार पार के माता के साधन करथे।
सहरिया मन बेंड बाजा म, गाड़ा बाजा, डी जे, अउ कोन जनि कामा कामा नाचथे तेला तो कोनो काहीं नी काहय। परतितहा मन ल सेउक मन के झुपई म का बात बानी हे तेला उही मन जाने। आजकल सुनई आहे कि परतितहा समिति वाला मन भगेला ल पासत हे किके। पासत हे ते तो ठीक हे फेर आखिर म अंधविस्वास किके बकर देथे तेन बने बात नोहे।
भगेला ह जेवांरा ल नौ दिन अपन छाती म बोह लिस त कति मेर अंधविस्वास होगे। मूचु ह एक कनि सांग बाना ले डरिस त कते मेर अंधविस्वास होगे। फलेन ह सत्ती पार गइस त आधा बस्ती ह बोल बम किके घोंडईया मारे लगगे त कहा के भरम पैदा होगे। भरम काहव चाहे अंधविस्वास जोन होवथे आजकाल के अउ हमर तुहर चलाय नवा चलागन नोहे।
ए बात ले समाज म का संदेस जाही तेतो बाद के बात आय फेर अभी नौ दिन गांव के मनखे मन मनखे सही दिखही इही स सबले बड़े बात नोहे का। इही बहाना गांव म लोगन मन नसा पानी ले दुरिहाथे। सातविक जीवन के अनुभव पाथे। भगेला जइसन अक्कड़ दरवा ह सुधरगे ऐकर ले बड़े अउ का परमान देखाबो। अब परतितहा समिति वाला मन अइसन कारज ल भरम अउ अंधविस्वास कही त ओमन कोन नजर ले देखथे येला उही मन जाने। हमर छत्तीसगढ़ के ठौ ठौ देव धामी बसे हे अउ घर घर म भगेला जइसन आदमी। अब परतितहा समिति वाला मन ह के झन के आस्थ ल हूदरही तेला उही मन जाने। वोकर मन के अइसन करनी ले मोला तो रिस तो लागथे, तुमन ल कइसे लागथे तेला तुही मन जाना।
जयंत साहू
ग्राम-डुण्डा, पो. सेजबाहर,
रायपुर छ.ग.