बदलगे तोर ठाठबाट अउ बोली,गोठियात हे सब झन ह
मंदरस कहां ले बरसय ,करेला कस होगे हे जब मन ह
पोत के कतको कीरिम पवडर,सजा ले अपन बाना ल
नइ दिखय सुघ्घर मुरत तोर, जब तड़के रइही दरपन ह!
चारों खुंट लाहो लेवत हे, बड़े बड़े बिखहर बिछुरी सांप
संगत म अब सुभाव देख,बदले कस दिखत हे चंदन ह
भोकवाय गुनत रही जाबे, देख नवा जमाना के गियान
सियानी धराके नान्हे हांथ कलेचुप बुलकत हे ननपन ह
बिरथा हो जाही पोसे तोर,मन म अकल के घोड़ा घमंड
सुधबुध सबो गंवा जाही,जब गोड़ तरी आही अलहन ह
अपने मुड़ी गिरही पथरा,लगाबे निशाना कहूं बादर ल
अंधियारी रतिया लालच के,भटकत कलपही नरतन ह
ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
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