बिकास के बदचाल म होली होवथे बदहाल

ए दे, होली आ गे। फागुनी बयार ले गांव-गली, जंगल-पहाड़, सहर डहर चारों कोती मया महरथे। पऊर साल के होली म टेंगनू अउ बनऊ के अनबोलना ल तिहारू ह टोरे रीहिस। टेंगनू अउ बनऊ म सुघर मितानी हो गे। फेर ये मितानी ह काई कस जनइस ! चम्मास म टेंगनू ह अपन खेत के पानी ल रंइगइस। खाल्हे म बनऊ के खेत। बनऊ ह टेंगनू के खेत के पानी ल नइ झोंकों कहि के बिबाद सुरू कर दीस। एकर ले दूनों म तनातनी होगे। मितानी टूटगे। बईर के काई फेर जुरियागे। दूनों परिवार के लईका-सियान एक-दूसर के छंइहा नइ खुंदे।
अइसने किसम के हाल जगा-जगा हे। लोगन म बईर भाव, टोटका, अंधबिस्वास, ईरखा-दोख के बंबूरी घपटे हे। एखर सेती कभू बड़े घटना हो जथे। अपराध होय ले नोनी-बाबू के भविस बिगड़ जथे। परिवार बिखर जथे। पुलिस थाना अउ कोट-कछेरी के गिरहा बाढ़ते जाथे। अब होली के आड़ म हुड़दंग, हो-हल्ला होथे। अईसे लागथे मानों होली हुड़दंग-गुंडागर्दी के तिहार ए। होली म हुड़दंगी मन ल देखके लोगन घर के खिड़की-दरवाजा बंद कर देथे। कनो रंग-गुलाल के जगा चीट-ग्रीस या दूसर रसायनिक चीज ल चेहरा म मल देथे। बैपारी मन लोभ म बजार म मिलावट करके या नकली रंग-गुलाल ल बेंचथे। लोगन नसाबाजी करके असोभन बेवहार करथे। सुघर फागगीत के जगा फूहड़ गाना-बजाना कान फोड़ू अवाज म करथे। ये सब गलत हे। सोभा नइ दे। ये होली के सही रूप नोहे। एकर ले समाज म बिगाड़ होवथे। देस बिकास करथे, फेर समाज के बिनास होथे। इस्कुल-कलेज बाढ़त जाथे, फेर सज्जनता अउ समझदारी खंगथत जाथे। एला घरो-घर अउ इस्कुल-कलेज म गुने ल पड़ही।




“नफरत के दीवाल गिराय के नांव हे होली
दूसर संग मन ल मिलाय के नांव हे होली
आज के दिन बेरंग न रह जाए कनो दिल
मीत के पीरीत निभाय के नांव हे होली”
इहां होली मनाय के किसम-किसम के परंपरा हे। बिरज के होली, बरसाना के लठमार होली, कुमाऊॅं के गीत बैठकी, हरियाना के धुलेंडी, बंगाल के दोलजातरा, महारास्ट के रंगपंचमी, पंजाब के होला, तमिलनाड के कमन पेडिगई, मनिपुर के याओसांग, बिहार के फगुआ, छत्तीसगढ़ के होरी, मध्यप्रदेश मालवा के भगोरिया ल लोगन सुमरथे। होली समरस तिहार ए। एला हिन्दू के अलावा आने धरम के लोग घलो मनाथे। समाज के एकजुटता बर होली के जबर महत्तम हे। होली हमर संगीत अउ साहित्य म बसे हे। लोकगीत अउ फिल्मी गीत म होली के सुंदर छबि हे। कालीदास के कुमारसंभव अउ चंदबरदायी के पृथ्वीराज रासो म होली के बढ़िया चित्रांकन हे। आदिकवि विद्यापति, सूरदास, पद्माकर, कबीर, बिहारी, केशव, घनानंद ले लेके रहीम, रसखान, अमीर खुसरो, जायसी अउ दीगर सूफी संत मन होली के सुघर बरनन करे हे। ये लोकभावन संगीत अउ साहित्य के परंपरा ले आज समाज दुरिहाथे।
होली सही माने म दया-मया अउ लोगन ल जोड़े के तिहार ए। ईरखा-दोख, दुरभावना, टोटका-चारी मन के बंबूरी ए। एकर ले मनसे संग घर-परिवार अउ समाज के बिकास थाम जथे। मनसे ल ये बुरई के होली जलाना चाही। मरजादा म रहिके सदभावना के अबीर-गुलाल लगाना चाही। मया-पीरीत के फाग गाना चाही। मानवता-जीव दया के संदेस बगराना चाही। अइसे कोई काम नहीं करना चाही जेकर ले परिवार अउ समाज के सदभावना ल नुकसान होय। तभे होली ह फबही, फलित होही। होली के काबा भर सुभकामना हे!

लोकनाथ साहू ललकार
बालकोनगर, कोरबा (छ.ग.),
मोबाइल 9981442332
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