एक ठन नानकुन गाँव रिहिस, जिहाँ के जम्मो झन बने-बने अपन जिनगी ल जियत रिहिस। जम्मो पराणि मन ह मिर-जुल के रहत रहै। उहाँ एक झन डोकरी दई घलो रहै, जेखर कोनो नी रिहिस। ऊखर बेटा-बहु मन ह शहर म रहै बर चल दे रिहिस, जउन मन बड़ दिन बादर होगे नी आवत रिहिस।
होली के तिहार ह मुड़ी म अवईया रहय। जम्मो घर-दुआर म लिपई-पोतई चलत रहै। घर के आघू ल गोबर म लिपत रहै। नगाड़ा के थाप दुरिहा-दुरिहा ले सुनावत रहै। रात म होलिका जलाये बर छेना-लकड़ी सकेलत रहै। लईका मन ह घलो होली तिहार के पिलानिंग करत रहै। देखते-देखत तिहार ह आगिस। गाँव म जम्मो पराणी मन ह एक-दूसर ल रंग-गुलाल म बोथ के तिहार के बधाई देवत रहै। लईका मन ह रंग-गुलाल, पिचकारी ल धरके सबो पारा म घूमेबर निकल गिस। होली के तिहार म जम्मो झन नाचत-गावत रहै अऊ खुशी मनावत रहै, लेकिन बस डोकरी दई ह अपन घर म चुपचाप रिहिस। लईका मन जम्मो घर ल घूमत-घूमत डोकरी दई के घर म गिस।
ऊहाँ कोनो नी दिखत रहै, अड़बड़ सुन्ना लागत रहै अऊ डोकरी दई ह अपन कुरिया म सुते रहय। लईका मन ह होली खेले बर डोकरी दई ल जगईस ता पता लगिस कि डोकरी दई ह बड़ दिन ले कुछु खाय पियय नी हे, उठके बैठे बर घलो नी सकत हवै। लईका मन ल ये बात ल सुनके बड़ दुख लागिस कि जेन भात-बासी ल हमन खईता करके कुकुर-बिलई ल दे देथन उही अन्न बर डोकरी दई ह बड़ दिन ले तरसत हवै। जम्मो लईका मन अपन घर डाहर भागिस। घर म किसम-किसम के ब्यंजन बने रहै। निरबोध लईका मन अपन भूख-पियास ल घरे म छोड़के कागच म रोटी-पीठा ल बाँधके डोकरी दई के घर डाहर दौड़िस।
ए डाहर घर के मन लईका मन ल खोजे बर लागिस कि अभिच कन तो होली खेलके अइस हवै फेर कहाँ चल दिस? डोकरी दई के घर म सबो कोई सकलईस अऊ अपन-अपन घर के ब्यंजन ल निकालिस। जम्मो झन मिलके डोकरी दई ल रोटी-पीठा खवईस, अऊ होली खेलके डोकरी दई के आशीर्बाद लिस। डोकरी दई के मन घलो तृप्त होगे, काबर कि ओला अतेक झन नाती-पोता जेन मिलगे रहै। घर म जाके लईका मन सबो किस्सा ल सियान मन ल सुनईस। घर के जम्मो सियान मन घलो लईका मन के काम ले अपन आप ल धन्य मानत रहै अऊ एके ठन बात सबै के मुहु म रहै कि “असली होली” ता हमर गांव भर म बस इही लईका मन ह मनईस हवै। धन्य हो बेटा तुमन।
कहानी ले शिक्छा मिलथे कि…
1) भात-बासी ल खईता नी करना चाही काबर कि उखरे बर कतको झन तरसत रहिथे।
2) जरूरतमंद मनखे मन के मदद करना ही सिरतोन तिहार मनाना हरै।
पुष्पराज साहू
छुरा (गरियाबंद)
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