चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 2 : अरुण कुमार निगम


नवग्रह के पूजा करैं, पूजैं गौरी-गनेस।

खप्पर-कलस ला पूज के, काटयं कलह-कलेस।। ओ मईया ……

तोर चरण अर्पण करवं, नरियर, मेवा, पान।

जय अम्बे, जगदम्बे मा, जग के कर कल्यान।। ओ मईया ……

मन बिस्वास के आरती, सरधा-भक्ति के फूल।

अर्पित हे तोर चरण मा, हाँस के कर ले कबूल।। ओ मईया ……

अगर-कपूर के आरती, गोंदा के गरमाल।

पूजा बर मैं लाये हौं, कुंकुम, सेंदुर, गुलाल।। ओ मईया ……

ब्रम्हानी-रुद्रानी मा, कमलारानी देख।

सुर नर मुनि जन दुवार मा, पड़े हे माथा टेक।। ओ मईया ……

सुम्भ-निसुम्भ सँहार करे, मधु-कैटभ दिए मार।

जब-जब पाप खराए हे, करे जग के उद्धार।। ओ मईया ……

डम डम डम डमरू बजै, बाजै ताल मिरदंग।

भक्तन नाचे झूम के, चढ़े भक्ति के रंग।। ओ मईया ……

देव मुनि सुमरै सदा, सेवा गावैं संत।

वेद-पुरान बखान करैं, महिमा तोर अनंत।। ओ मईया ……

माई के मंदिर सदा, जगमग जागे जोत।

जेकर दरसन में मिली, सुख-सरिता के स्त्रोत।। ओ मईया ……
अरुण कुमार निगम

सरलग ….

Related posts

One Thought to “चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 2 : अरुण कुमार निगम”

  1. अब्बड़ सुन्दर लगीस अरूण भाई के दोहा मन।

Comments are closed.