रामनौमी तिहार के बेरा म छत्तिसगढ़ में श्रीराम

-प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी
आज जऊन छत्तिसगढ़ प्रान्त हवय तेखर जुन्ना गोठ ल जाने बर हमन ल सतजुग, तेरताजुग अऊ द्वापरजुग के कथा कहिनी ल जाने-पढ़ेबर परही। पहिली छत्तिसगढ़ हर घोर जंगल रहिस। इहां जंगल, पहाड़, नदी रहिस जेखर सुघ्घर अउ सांत बिहनिया म साधु संत इहां तपस्या करय। इहां जंगली जानवर अउ राक्छस मन भी रहय जऊन अपन एकछत्र राज करे बर साधु संत मन डरावंय अऊ मार डारय। इकर बाद भी ये जगह के अड़बड़ महत्ता होय खातिर साधु संत मन इंहा रहय। इहां बहुतअकन साधु संत मन के रहे के कथा सुनेबर मिलथे। सौरिनरायेन म मतंग रिसी के आसरम रहिस हवै जिहां सौवरिन दाई रहिस अऊ जेला वो हर राम लक्छमन इहां आही अउ तोला मुकति दिही, कहे रहिस। अजोध्या के राम ह सबले पहिली इहां आइन, राक्छस मन ल मारके मुकति देइस अउ इहां राज करिन। अजोध्या ल कौसल कइथे अउ छत्तिसगढ़ ल दक्खिन कौसल। इहां के राजा भानुमंत की नोनी कौउसिल्या महाराजा दसरथ के पटरानी बनिन अऊ राम जेखर लइका होइन। तभे राम भगवान के इहां ल ममा घर कइथे। सुना हमर छत्तिसगढ़ के महिमा ला जेला कवि सुकलाल पांडे ह गाये रहिन :-

ये हमर देस छत्तिसगढ़ आगू रहिस जगत सिरमौर।
दक्खिन कौसल नांव रहिस है मुलुक मुलुक मां सोर।।
रामचन्द सीता अउ लछिमन, पिता हुकुम से बिहरिन बन बन।
हमर देस मां आ तीनों झन, रतनपुर के रामटेक मां करे रहिन हैं ठौर।।
घुमिन इहाँ ओ ऐती ओती, फैलिस पद-रज चारों कोती।
यही हमर बढ़िया है बपौती, आ देंवता इहाँ अउ रज ला आँजे नैन निटोर।।
राम के महतारी कौसिल्या, इहें के राजा के हैं बिटिया।
हमर भाग कैसन है बढ़िया, इहें हमर भगवान राम के कभू रहिस ममिऔर।।




तइहा के कथा कहिनी ला सुनबे त अइसने लागथे कि इहां सिरि राम,लक्छमन अउ जानकी अपन बनवास रहे के बेरा मा इहां रहिन अउ आर्य संस्किरिती के परचार करिन। इहां के भूंइयामा तीनो झन के चरन परे रहिस ऐकरे सेती इहां के रहन सहन अउ जिंदगी म अड़बड़ असर परे हे। भगवान राम के सुभाव, मितान, भाईचारा अऊ सब ला एक जइसे माने के सुभाव रहिस तेखरे बर इहां सब ल अइसनहे माने जाथे। अइसे माने जाथे कि राम भगवान के जनम जीव जगत के हित, सुख उएभाग अउ उद्धार खातिर होय रहिस। ऊंखर राज मा जाति बरन के आधार मा कउनो किसिम के दुआभेद नइ करे जात रहिस। सब्बो झन ला एके माने के रिवाज रहिस, सब्बो झन अपन बात ला बोल सकत रहिस। इहां ऊंच-नीच, जात-पात के दुआभेद नइ रहिस। तभे तो सब्बो झन के बीच भकति के बीज बोइस। सखा केंवटराज, सौउरिन दाई, अहिल्या माई जैइसन कतुक झन के उद्धार करिन, अउ ओला भक्ति दिस। ऐखरे बर इहां अनेक राम जानकी मंदिर हावय अउ वोखर दरसन परसन करे मा मोक्छ मिले के बात कहे जाथे।
भगवान काबर जनम लेथे, एकर बारे म जाने बर शिव पारबती संवाद ल जानेबर परही। ऐला हमर कवि कपिलनाथ कस्यप ह अपन पुस्तक ‘‘सिरी राम कथा‘‘ म लिखे हे –

पारबती कइथे-
राम ब्रम्ह तू कइथा, अबले समझ न आइस मोर।
दसरथ बेटा वही राम का, पूंछत हंव कर जोर।।
काबर लेइस जनम ब्रम्ह, राजा इसरथ के बेटा बनके।
मोला एकर मरम बतावा, मेटा मोर कुसंका मनके।।

तब भोला बाबा कइथे-
राम कथा मैं कइहौं गिरजा, सुन के भरम भूत सब जाही।
काबर होथे जनम ब्रम्ह के, सुन के कथा समझ म आही।।
जानत हासब मरम जनम के, इहां ब्रम्ह के होथे काबर।
पूछत हा लेढ़ी अस निचट, जनमिन दसरथ के घर काबर।।
कइहौं कथा गूढ़ मैं गिरजा, वही राम के सुमिरन कर कर,
पूछे हा तूं कथा राम के, दुनिया के कइलान करेबर।।
पापी मन के घोर पाप मा, जब धरती गरूवा जाथे।
नास करे बर वोमन के लेके अवतार ब्रम्ह आथे।।
पापी मन ला मार धरम के थापन करथें,
तपसी साधू धरमी मुनि के रच्छा करथें।
होथे धरम परचार फेर धरती के ऊपर,
अधरम होथे लुपुत सांति छा जाथे घर घर।
ओढ़र कर तूं अइसन निच्चट बन के बउरी,
पूछेहा सुघ्घर परसंग सब के हित गउरी।
अनगनती नइ कहत बनय सब कथा राम के,
तब ले तुंहला समझा कहिहंव जनम राम के।।




राम जनम के मरम ल शिव जी कहत हे-
राम कथा नइ सुनिस कान जो, अजगर के बिल वोला जाना।
आखी दरस न करिन प्रभू के, मंजुर पाख के चंदुवा माना।।
साधू संत देख के लेनइ मूड़ नवावय,
करू तुमा अस वोहर चिटको काम न आवय।
दुखी भुखी ल देख हिरदय जेकर नइ पिघलिस,
राम कथा मा जो सरधा बिसवास नइ करिस।।
अइसन प्रानी ला जीते जी मुरदा जाना,
कर कर तरक अकारन वो सइथे दुख नाना।
जे प्रानी के जीभ कथा हरि के नइ गाइस,
वो भिंदोल बेंगवा अस ब्रिथा मानुख तन पाइस।।
राम चरित सुन के सुख मा फूलय नइ छाती,
बरम्हा वोला ब्रिथा दिहिस पथरा अस छाती।
राम कथा सुन के न अघावय गिरजा जेहर,
बड़ भागी जनमे जाना धरती मा वोहर।।
कागु भुसंडी कहिन गरूड़ सो, अदभुत सुघ्घर कथा राम के।
वही कथा ला कहिहंव गिरजा, सुमरन कर कर राम के।।

शिव जी आगू कइथे-
धरती मा अवतार राम के, अनगनती बेरा होये हे।
उमा ! एक दू कथा सुनाहंव, काबर कइसे जनम भये हे।।
द्वारपाल जय बिजय हरी के, ब्राम्हन मुख ले पाइन श्राप।
हाटक लोचन ला मारे बर, बरहा रूप धरिन भगवान।
मारिन हरनाकुस प्रहलाद के, इच्छा कर नरसिंग भगवान।।
रावन कुंभ करन हो जनमिन, रेंगे धरती डोलय जेकर।
फर बरम्ह भगवान राम के, मारे मुकति होइस जिनकर।।
कश्यप पिता अदिति माता, दसरथ कौसिल्या होके आइन।
अपन कठिन तप के कारन जो, राम लखन अस बेटा पाइन।।




भगवान के अवतार तीन रूप म माने जाथे-पहिली पूरा अवतार जेमा भगवान स्वयं अवतरित होथे। ये स्रेनी में सिरि राम, सिरि किसन ल माने जाथे। दूसर आवेशावतार जेमा भगवान परसुराम ल माने जाथे अऊ तिसर अंशावतार होथे जेमा भगवान बिस्नु के अवतार के बरनन मिलथे। येमा मत्स, कूर्म, बराह, नरसिंग, वामन, बुद्ध अउ कलकी। भगवान बिस्नु के अवतारों का सामूहिक या स्वतंत्र मूरति कुसाण काल के पहले नई मिलय। लेकिन ये काल म बराह, कृस्न अउ बलराम के मूरत बनेले सुरू हो गी रहिस। गुप्त काल म वैस्नव धरम के माने जाने वाले राजा महराजा मन के कारन अवतार वाद के धारणा के विकास होइस। गुप्त काल के बाद सात से तेरहवीं के बीच मूरत बने चालू होइस। अऊ बराह, नरसिंह अउ बामन के मूरत बहुत बनिस। ये मूरत महाबलिपुरम, इलोरा, बेलूर, सोमनाथ, ओसियां, भुवनेस्वर अउ खजुराहो मा बनिस। ओखर बाद इही समय सिरि राम, सिरि किसन अउ बलराम के मूरत बनिस। भगवान सिरि राम ल पूरा अवतार, दसरथ पुत्र अउ निरगुन राम के रूप मा माने जाथे। भारतीय मूरत मा दसरथ नंदन सिरि राम के मूरत दूसर भगवान के तुलना मा बाद मा बनाये गइस। दू हाथ अऊ धनुस बान रखे सिरि राम के मूरत खरऊद के सौराइन दाई के मंदिर मा खड़े हावे, सौरिनरायेन मा अकलतरा के जिमिदार ह सिरि राम लक्छमन अउ जानकी के मंदिर बनवा के मूरत इस्थापित करिस। बाद में केंवटा समाजके लोगन अउ मठ मा सिरि राम लक्छमन अउ जानकी के अड़बड़ सुंनदर मूरत देखे जाये लाइक हावे। सबले बढ़िया राइपुर के दूधाधारी मठ मा सिरिराम पंचायतन मंदिर मा सिरि राम, लक्छमन, भरत अऊ सत्रुघन चारों भाई माई जानकी अउ बजरंगबली के बहुत सुंदर मूरत दरसन करे लाइक हावै। जांजगिर के मंदिर मा अउ सेतगंगा के मंदिर मा सिरि राम लक्छमन अउ जानकी के मूरत हावे। सेतगंगा मा के राम जानकी मंदिर मा रावन के मूरत भी हावे अउ ओला देखे मा लागथे कि रावन ऊंहा पहरा देवत हावे। सिरि सौरिनरायेन महात्तम मा सिरिराम भगवान के जनम के बारे मा बरनन मिलथे जेमा लिखे हावे-

मैं निज अंशहि अवध म, रघुकुल हो तनु चार
राम लक्छमन भरत अऊ सत्रूघन सुकुमार।
कौसिल्या के गर्भ मा जनम लेहु निसंदेह
महातमा दसरथ राजा मो पर करत सनेह।।
सिरि राम जनम के लिये सिरिंगी रिसी पुतरेष्ठी यग्य कराये रहिस। अऊ सिरिंगी रिसी छत्तिसगढ़ के धमतरी जिला के सिहावा पहाड़ मा रहिस अउ तपस्या करिन। येहु कहे जाथे कि सिरिंगी रिसी ह सिरि राम के भाठों रहिन। ओखर किरपा हमर छत्तिसगढ़ प्रांत ल मिलिस। अतका सुघ्घर भाग्य हामर प्रांत के अउ हमर हावै। सिरि राम ह जनमिस त सब्बे कोती खुसी फैइल गइस। बिजघंट बाजे लगिस, फूल के बरसा होय लगिस। स्वरग मा गाये लगिस-
भये प्रगट किरपाला दीन दयाला कौसिल्या हितकारी।
हरसित महतारी मुनि मन हारी अदभूत रूप बिचारी।।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूसन बनमाला नयन बिसाला सोमा सिंधु खरारी।।




हमर छत्तिसगढ़ प्रांत मा लोगन मन के मन मा सिरि राम ह मिसरी कस घुर गे हावै। इहां ऊंखर आये के अउ रहे के परमान मिलथे। इहि रद्दा ले लंका गये रहिस जेखरे बर इहां ला ‘‘दक्षिणापथ‘‘ कहे जाथे। ऊंहा जात जात जहां सिरि राम रूके रहिस ऊंहा तिरथ बन गे हावे। ऊंहा उंखर मंदिर भी बन गे हावे। सरगुजा के रामगढ़, सौरिनरायेन मा सौराइन दाई से भेंट, कसडोल के तुरतुरिया मा बालमिकी आसरम जिहां सीता मइया के दूनो लाल लव और कुस के जनम होइस, अऊ रतनपुर के पहाड़ी मा विसराम करिस। येकरे बर कबि सुकलाल पांडे लिखे हावे-
रतनपुर मा बसे राम जी सारंगपाणी
हइहयवंसी नराधियों की थी राजधानी
प्रियतमपुर हे संकर प्रियतम का अति प्रियतम
हे खरऊद मा बसे लक्छमनेस्वर सुर सत्तम
सौरिनरायेन म प्रगटे सौरि राम युत हें लसे
जो सब इनका दरसन करे वह सब दुख मा नहिं फंसे।।

रामराज के बरनन :-
कउनो ला नइ व्यापिस गिरजा, दैहिक दैविक भौतिक ताप।
राम राज मा रहिन सुखी सब, अइसन रहय राम परताप।।
कउनो के मन मा अइसन हिजगानइ आइस,
ऊंच-नीच के भाव कभूकउनो नइ लाइस।
अपन अपन ला सब समाज के अंग मान के,
एक एक ला करंय परेम सब अपन जान के।।
सब के सत व्यवहार रहय मानुस समाज मा,
रहंय न कउनो लबरा लुच्चा राम राज मा।
एक एक ला देख कभू इरखा नइ लाइन,
मार पीट हिंसा के मन माभावन लाइन।।
दाई बहिनी अस सब परनारी ला मानंय,
दूसर के धन दउलत ला माटी अस जानंय।
छूत छात के चिटको कउनो भेद न मानंय,
छुख सुख आये ले जुर मिल एक्के हो जावंय।।
रामराज मा नीत धरम के, उमा ! नित्त दिन बाजय बाजा।
सुख सागर मा प्रजा नहावंय, रामचंद्र अस पाके राजा।

केवल छत्तिसगढ़ मा नहिं बल्कि पूरे ब्रम्हांड मा सिरि राम राज के कल्पना करे जा सकत हावे। ऊंखर गुन ल कहुं नइ पाये जा सकत हावे। लेकिन विविधता भरे छत्तिसगढ़ मा मितान, भोजली, गुरू भाई जइसे रिवाज जरूर मिलथे जेमा ऊंच नीच, छेटे बड़े नइ देखे जाये। एक साथ पढ़े लिखे, खेले कूदे, खाये पहिने ओढ़े के साथ ही नौकरी करे जाथे … ये हमर छत्तिसगढ़ मा ही हो सकत हे जिहां राम भगवान के आसिस सब्बो दिन रइथे। इंहे निरगुन राम के मनइया रमरमिहा रइथे जौउन अपन सरीर मा राम राम लिखवा रइथे। सरीर के कोनो जगह नई बांचे हावे जिहां राम राम नई लिखाय रइथे। ऐखरे बर कहे जाथे कि राम ले राम के नाम हावै।

राम एम तापस तिय तारी। कोटि खल कुमति सुधारी।।
रिषि हित राम सुकेतु सुता की। सहित सेन सुत किन्ह बिबाकी।।
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा।।
भजेऊ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू।।

प्रोफेसर अश्विनी केसरबानी
‘‘राघव‘‘ डागा कालोनी
चांपा (36 गढ़)
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